NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आधी पुलिस मानती है कि मुस्लिम अपराधी होते हैं - सर्वे 
40 फीसदी पुलिस वाले रेप के दोषियों, बच्चा चुराने वालों और अपहरण करने वालों के लिए मॉब लिंचिंग का समर्थन करते हैं। 35 फीसदी पुलिस वाले मानते हैं कि यह स्वभाविक है कि भीड़ गौ हत्या के दोषियों को दंड दे। 20 फीसदी पुलिस वाले मानते हैं कि गंभीर अपराधियों का ट्रायल करने की बजाए, उन्हें मार दिया जाना चाहिए।  
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
29 Aug 2019
police and pubic

पुलिस से जुड़ा एक नया सर्वे सामने आया है। यह सर्वे CSDS( Centre for Study of Developing Societies) और कॉमन कॉज ने मिलकर किया है। इस सर्वे का नाम ‘Status of Policing in India Report 2019: Police Adequacy and Working Conditions' है। इस सर्वे को करने के लिए 21 राज्यों के 12 हज़ार पुलिसकर्मियों की मदद ली गयी। इनसे पूछे गए सवाल-जवाब के आधार पर इस रिपोर्ट का निष्कर्ष निकाला गया है। 

इस सर्वे के अनुसार 28 फीसदी पुलिस वालों का मानना है कि आपराधिक मामलों की छानबीन में राजनीतिक दबाव सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने खड़ी होती है। पांच में से दो पुलिस वाले मानते हैं कि कोई भी छानबीन स्वतंत्र नहीं होती है, उसमें किसी न किसी तरह के दबाव जरूर काम करते है।  13 फीसदी पुलिसकर्मी मानते हैं कि छानबीन में पुलिस व्यवस्था का इंटरनल दबाव काम करता है, 41 फीसदी पुलिसकर्मी  मानते हैं कि क़ानूनी दबाव काम करता है, 25 फीसदी पुलिसकर्मी मानते हैं कि समाज का दबाव काम करता है, 9 फीसदी पुलिसकर्मी मानते हैं कि पुलिस से जुड़ा दबाव काम करता है और 12 फीसदी ने ऐसे सवालों पर कोई  जवाब नहीं दिया। 

रिपोर्ट के मुताबिक़, 14 प्रतिशत पुलिसवाले मानते हैं कि किसी अपराध से मुस्लिम ज़रूर जुड़े हुए हैं।  वहीं 36 प्रतिशत पुलिसवाले ये मानते हैं कि किसी अपराध में मुस्लिम कहीं न कहीं जुड़े हुए हैं। ये आंकड़ा जोड़कर50 प्रतिशत तक हो जाता है। अधिकांश पुलिस वाले यह मानते हैं कि पुलिस का काम करने के लिए शारीरिक मजबूती और आक्रमकता की  अधिक जरूरत होती है। इसकी कमी महिलाओं में होती है।  इसलिए महिलाएं पुलिस का काम सँभालने के लायक नहीं होती है। बहुत खतरनाक आपराधिक मामलों की छानबीन के लिए उपयुक्त नहीं होती।   इसके साथ पुलिस वालों के काम का घंटा निर्धारित नहीं होता है , उन्हें कभी भी काम करना पड़ सकता है।  इसलिए महिलाओं के लिए यह पेशा ठीक नहीं है। इस  रिपोर्ट  में इस तरह के कई पूर्वाग्रह दिखाए गए हैं। 

इस  रिपोर्ट से यह बात भी निकलकर समाने आई है कि 40 फीसदी पुलिस वाले रेप के दोषियों, बच्चा चुराने वालों और अपहरण करने वालों के लिए मॉब लिंचिंग का समर्थन करते हैं। 35 फीसदी पुलिस वाले मानते हैं कि यह स्वभाविक है कि भीड़ गौ हत्या के दोषियों को दंड दे। 20 फीसदी पुलिस वाले मानते हैं कि गंभीर अपराधियों का ट्रायल करने की बजाए, उन्हें मार दिया जाना चाहिए।  अपराधियों के लिए तकरीबन 75 फीसदी पुलिस वालों ने हिंसा का समर्थन किया। छोटे - मोटे अपराधों  के लिए 37 फीसदी पुलिस वालों ने क़ानूनी बहस में पड़ने की बजाए सीधे दंड देने को ठीक ठहराया। 40 फीसदी पुलिस वालों ने 16 से 18 साल के बच्चों के किये हुए अपराधों को वयस्कों की तरह मानकर सजा सुनाने की वकालत का समर्थन किया। 

बहुत सारे राज्यों में अनुसूचित जाति, जनजाति और पिछड़े वर्ग के कोटे को भरा नहीं गया है।  साल 2007 के मुकाबले 2016 में पुलिस में औरतों का प्रतिशत 11.4 फीसदी से घटकर 10.2 फीसदी हो गया। इस रिपोर्ट में यह बात भी निकलकर सामने आई कि  पुलिसकर्मियों का सबसे अधिक ट्रांसफर चुनावों के दौरान होता है।  

उत्तराखंड, झारखंड, महाराष्ट्र और बिहार के दो-तिहाई पुलिस अधिकारी ये मानते हैं कि मुस्लिम ही अपराध कर सकते हैं। इन राज्यों में उत्तराखंड की स्थिति सबसे खराब है।  उत्तराखंड में हर पांच में से चौथा पुलिसकर्मी ये सोचता है कि मुस्लिम अपराध ही करेंगे। 

नागालैंड को छोड़ दें तो सभी राज्यों में पुलिसकर्मी 11 से 18 घंटे तक काम करते हैं। औसत तकरीबन 14 घंटे है। 10 में से आठ पुलिसकर्मी को ओवरटाइम के लिए पैसा नहीं मिलता। 24 फीसदी पुलिसकर्मी 16 घंटे से ज्यादा काम करते हैं। 20 फीसदी को 13 से 16 घंटे तक ड्यूटी करनी पड़ती है, 16 घंटे से ज्यादा काम करने वालों की तादाद 24 फीसदी है। 80 फीसदी पुलिसकर्मी आठ घंटे से ज्यादा ड्यृटी करते हैं।

46 प्रतिशत से अधिक पुलिसकर्मी कहते हैं कि उन्हें ज़रुरत के वक़्त सरकारी गाड़ी नहीं मिलती है।  आगे बढ़ें तो 37 प्रतिशत पुलिसवाले ये मानते हैं कि छोटे-मोटे अपराधों में कानूनी केस नहीं होना चाहिए, बल्कि पुलिस को खुद ही इन छोटे-मोटे केसों का निबटारा करने की छूट होनी चाहिए। निचले स्तर पर पुलिस प्रशिक्षण का स्तर काफी खराब है। बीते पांच सालों में 6.4 % कर्मियों को ही सेवा के दौरान प्रशिक्षण दिलाया गया। अधिकारियों को तुलनात्मक रूप से ज्यादा प्रशिक्षण मिलता है। 

रिपोर्ट में देश के पुलिस थानों की खस्ता हालत भी बयां की गई है। जिन 22 राज्यों में अध्ययन किया गया उनमें करीब 70 पुलिस थानों में वायरलेस डिवाइस उपलब्ध नहीं है। करीब 224 पुलिस थानों में टेलीफोन नहीं है।  12 %पुलिस वालों ने कहा कि उनके थानों में पानी का इंतजाम नहीं है।18 % ने कहा कि स्वच्छ शौचालय उपलब्ध नहीं हैं।14 % ने बताया कि उनके यहां आम लोगों के बैठने के लिए जगह नहीं है। तीन में से एक सिविल पुलिसकर्मी को कभी भी फोरेसिंक टेक्नॉलाजी पर प्रशिक्षण नहीं मिला।

महिलाओं के लिए अलग शौचालय नहीं है। पांच में से एक महिला पुलिसकर्मी ने बताया कि हमारे लिए अलग शौचालय नहीं है। चार में से एक ने कहा कि थानों के तहत यौन उत्पीड़न शिकायत समिति नहीं है।

इस तरह से इस रिपोर्ट का इशारा साफ है कि  आपराधिक और झगड़े से जुड़े मामलों का निपटारा करने के लिए नागरिकों के  सबसे नजदीक मौजूद सरकारी संगठन 'पुलिस' की स्थिति बहुत खराब है। 

police department
Muslims
human trafficking
mob lynching
CSDS
Centre for Study of Developing Societies
indian police system
BJP

Related Stories

बदायूं : मुस्लिम युवक के टॉर्चर को लेकर यूपी पुलिस पर फिर उठे सवाल

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License