NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अध्ययन : कानून के बाद भी लोगों की पहुंच से दूर है खाद्यान्न
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को बने 6 साल हो गए। मध्यप्रदेश में इसकी ज़मीनी हक़ीक़त समझने के लिए किए गए एक अध्ययन में यह बात सामने आई कि खाद्यान्न से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन में कई कमियां हैं।
राजु कुमार
02 Oct 2019
national food security

भोजन के अधिकार को लेकर देश भर में चले लंबे आंदोलन के बाद 10 सितंबर 2013 को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून लागू किया गया। कानून बनने के 6 साल बाद भी लाखों लोगों को भरपेट भोजन नहीं मिल पाता और लोगों को खाद्यान्न पाने के लिए रोजमर्रा की जिंदगी में परेशानियां झेलनी पड़ती हैं।

मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन को लेकर प्रदेश के 13 जिलों के 15 विकासखंडों में एक अध्ययन किया। इसमें 27 गांवों के सभी 3813 परिवारों को शामिल किया गया। इस अध्ययन से यह बात स्पष्ट होती है कि अभी भी एक बड़ी जनसंख्या के लिए खाद्यान्न हासिल करना एक चुनौती है।

इस कानून की प्रस्तावना में लिखा है, ‘‘ खाद्य सुरक्षा कानून मानव जीवन चक्र पर आधारित है। इसका उद्देश्य लोगों को जीवन जीने के लिए उस कीमत पर, जो उनके सामर्थ्य में हो, पर्याप्त मात्रा में गुणवत्तापूर्ण भोजन व पोषण सुरक्षा देना है, ताकि लोग सम्मान एवं गरिमा के साथ जीवनयापन कर सकें।’’ इस कानून के तहत योजना के रूप में चार तरह के अधिकार लोगों को दिए गए हैं, जिसमें राशन दुकान से सस्ती कीमत पर अनाज मिलना, आंगनवाड़ी के माध्यम से महिलाओं, किशोरियों एवं बच्चों को पोषण आहार मिलना, शालाओं (स्कूलों) में मध्यान्ह भोजन मिलना और प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना : मातृत्व हक़ का लाभ मिलना शामिल हैं।

अध्ययन में 3813 परिवार, 16 राशन दुकान, 29 आंगनवाड़ी, 42 शालाओं एवं मातृत्व हक़ पाने वाली 177 महिलाओं को शामिल किया गया है। अध्ययन में 13 संस्थाओं ने जिलों में मदद की।

अध्ययन निष्कर्षों के अनुसार इन गांवों के 2860 परिवार उचित मूल्य पर राशन पाने के पात्र हैं, लेकिन पात्र होते हुए इन गांवों के 592 परिवार इस योजना से छूटे हुए हैं।

आधार कार्ड न होने पर सामाजिक सुरक्षा सेवाओं से वंचित नहीं होने की बात ज़मीनी हक़ीक़त नहीं है।

अध्ययन वाले परिवारों में 1376 परिवार ऐसे हैं, जिनके सदस्यों के आधार नहीं होने पर उन्हें राशन नहीं मिलता। यहां तक कि आधार कार्ड होने के बाद भी अंगूठे के निशान नहीं मिलने, इंटरनेट सर्वर डाउन होने, बिजली नहीं होने और कार्ड गुम होने के कारण भी लोगों को राशन नहीं मिल पाता।

दुकानों का समय पर नहीं खुलना, दुकान दूर होने से पूरे दिन राशन लाने में बर्बाद होना, नहीं मिलने पर दोबारा जाना जैसी समस्याएं गरीब परिवारों को खाद्यान्न सुरक्षा से बाहर कर देती हैं।

इन समस्याओं का समाधान कैसे हो, जबकि लगभग 40 फीसदी हितग्राहियों को शिकायत निवारण तंत्र की जानकारी नहीं है। लोगों ने राशन के गुणवत्ता पर सवाल खड़े किए हैं और 66 परिवारों ने खराब राशन मिलना बताया।

अध्ययन में शामिल उपासना बेहार का कहना है, ‘‘प्रदेश में 1 मार्च 2014 से कानून लागू है, इसके लिए शिकायत निवारण तंत्र बनाया गया है, लेकिन लोगों को इसके बारे में पता नहीं है। जिले में कलेक्टर को जिला शिकायत निवारण अधिकारी बनाया गया है। ज्ञापन पर 30 दिनों में कार्रवाई करना अनिवार्य है। राज्य आयोग ने पिछले दिनों 30 शिकायतों की जांच की थी, उनमें से 18 शिकायतों को मंच ने उठाया था। क्रियान्वयन तंत्र को मजबूत करने की दिशा में पर्याप्त काम नहीं हुए हैं, जिनकी वजह से लोगों को परेशानी उठानी पड़ती है।’’

आंगनवाड़ी केन्द्रों पर मिलने वाली सेवाओं एवं उपलब्ध सुविधाओं को अध्ययन के आधार पर देखा जाए, तो 29 में 14 केन्द्रों के भवन किराये के हैं। 16 फीसदी केन्द्रों में बच्चों के बैठने के लिए पर्याप्त जगह नहीं है। 18 केन्द्रों यानी 66 फीसदी में शौचालय की सुविधा नहीं है। 6 केन्द्रों पर वजन मापने की मशीन नहीं है। 11 केन्द्रों पर बच्चों को नाश्ता नहीं मिल पाता। कुपोषित बच्चों को अतिरिक्त तीसरा आहार 12 केन्द्रों पर नहीं मिलता। कुपोषित बच्चों को सोयाबीन बरी का पैकेट 11 केन्द्रों पर नहीं मिल पाता। 11 केन्द्रों पर किशोरी बालिकाओं को नियमित टेक होम राशन नहीं मिल पाता।

अध्ययन का विश्लेषण करने वाले जावेद अनीस का कहना है, ‘‘मध्यप्रदेश में कुपोषण का स्तर बहुत ही ज्यादा है। महिलाओं एवं किशोरियों में एनीमिया भी ज्यादा है। ऐसे में खाद्य सुरक्षा कानून का सही क्रियान्यन बहुत जरूरी है, ताकि इन समस्याओं का निवारण हो सके। आंगनवाड़ी केन्द्र की सेवाओं को ज्यादा मजबूत करने की जरूरत है, लेकिन अध्ययन के आधार पर कहा जा सकता है कि इस दिशा में ठोस कार्य अभी भी नहीं हुए हैं।’’

मध्यान्ह भोजन योजना के तहत शालाओं में भोजन मिलता है, लेकिन 20 शालाओं में पीने का साफ पानी उपलब्ध नहीं है, जबकि बच्चों में जल जनित बीमारियों के होने का ख़तरा ज़्यादा होता है। 9 शालाओं में मध्यान्ह भोजन में दलित एवं आदिवासी बच्चों के साथ भेदभाव की बात भी सामने आई है। 9 शालाओं में नियमित रूप से भोजन नहीं मिलने की शिकायत भी अध्ययन में सामने आई है।

मातृत्व हक़ के 177 पात्र हितग्राहियों में से 144 के ही प्रधानमंत्री मातृत्व वंदना योजना के फॉर्म भरे गए हैं। इसमें भी केवल 88 पात्र हितग्राहियों को योजना की राशि प्राप्त हुई है। अध्ययन के अनुसार प्रसव के एक दिन पहले तक 18 महिलाएं मजदूरी में लगी हुई थीं और प्रसव के 1 माह बाद ही 39 महिलाओं ने काम पर जाना शुरू कर दिया। प्रसव पूर्व कम से कम 4 जरूरी स्वास्थ्य जांचों से वंचित महिलाओं की संख्या 25 यानी लगभग 14 फीसदी रही है।

Kavindra Kiyawat.jpeg

इस अध्यययन की रिपोर्ट को साझा करने के लिए मध्यप्रदेश लोक सहभागी साझा मंच और विकास संवाद समिति द्वारा मध्यप्रदेश में राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून के क्रियान्वयन की वस्तुस्थिति को लेकर राज्य स्तरीय सम्मलेन का आयोजन किया गया।

इसमें मध्यप्रदेश राज्य खाद्य आयोग के सदस्य सचिव कवीन्द्र कियावत ने कहा कि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा कानून को लागू करने के दिशा में कई व्यावहारिक और अनियमितताओं से संबंधित चुनौतियां देखने को मिल रही हैं। प्रशासन सुचारू रूप से काम करे इसके लिए निगरानी, पारदर्शिता और जवाबदेही बहुत जरूरी है। इसमें सामाजिक संस्थाओं और जागरूक नागिरकों को महत्वपूर्ण भूमिका निभागी होगी। शिकायतों को आयोग गंभीरता से लेता है, इसलिए लोग शिकायत निवारण तंत्र का उपयोग करेंगे, तो स्थिति में सुधार होगी।’’

राज्य खाद्य आयोग के प्रशासकीय अधिकारी एस. के. जैन का भी कहना है कि सार्वजनिक वितरण प्रणाली में प्रशासनिक स्तर पर कई कमियां हैं, जिसे दूर किया जाएगा। एक राशन दुकान से हितग्राहियों की संख्या सीमित कर देने के बाद राशन के लिए ज्यादा लंबा इंतजार नहीं करना पड़ेगा

National Food Security Act
Madhya Pradesh
Madhya Pradesh government
Food to rights
Food safety law on human life cycle
State food commission

Related Stories

परिक्रमा वासियों की नज़र से नर्मदा

कड़ी मेहनत से तेंदूपत्ता तोड़ने के बावजूद नहीं मिलता वाजिब दाम!  

मनासा में "जागे हिन्दू" ने एक जैन हमेशा के लिए सुलाया

‘’तेरा नाम मोहम्मद है’’?... फिर पीट-पीटकर मार डाला!

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

एमपी ग़ज़ब है: अब दहेज ग़ैर क़ानूनी और वर्जित शब्द नहीं रह गया

मध्यप्रदेशः सागर की एग्रो प्रोडक्ट कंपनी से कई गांव प्रभावित, बीमारी और ज़मीन बंजर होने की शिकायत

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल

मध्यप्रदेश: गौकशी के नाम पर आदिवासियों की हत्या का विरोध, पूरी तरह बंद रहा सिवनी

राम सेना और बजरंग दल को आतंकी संगठन घोषित करने की किसान संगठनों की मांग


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License