NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
शिक्षा
भारत
राजनीति
अध्ययन: मिड-डे मील योजना में स्कूलों के 2.95 करोड़ बच्चे गायब!
मिड-डे मील की सरकारी वेबसाइट पर दिए वार्षिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष देश में कुल 11.93 करोड़ बच्चों का एडमिशन विभिन्न स्कूलों में हुआ है लेकिन इनमें से 9.036 करोड़ बच्चों को ही मिड-डे मील दिया जा सका है।
अमित सिंह, पीयूष शर्मा
20 Sep 2019
mid day meal
Image courtesy: Business Line

नई दिल्ली: देश के विभिन्न स्कूलों में नामांकन या एडमिशन लेने वाले लगभग 3 करोड़ बच्चों को मिड-डे मील यानी मध्याह्न भोजन योजना का लाभ नहीं मिल पाता है। मिड-डे मील की सरकारी वेबसाइट पर दिए वार्षिक आंकड़ों के मुताबिक पिछले वित्तीय वर्ष यानी 2018-19 में देश में कुल 11.93 करोड़ बच्चों का दाखिला विभिन्न स्कूलों में हुआ है लेकिन इनमें से 9.036 करोड़ बच्चों को ही मिड-डे मील दिया गया है।

मिड-डे मील की मॉनीटरिंग करने वाली बॉडी पीएबी (प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड) ने ही स्कूलों में भर्ती कुल छात्रों की संख्या को दरकिनार करते हुए करीब 9.58 करोड़ बच्चों को मिड-डे मील का आंवटन किया। यानी पीएबी ने ही करीब 2.40 करोड़ बच्चों का मिड-डे मील अप्रूव (स्वीकृत) नहीं किया।
table 2
इतना ही नहीं जिन 9.58 करोड़ बच्चों को मिड-डे मील का अप्रूवल मिला है उनमें से भी लगभग 55 लाख बच्चों को मिड-डे मील वित्तीय वर्ष 2018-19 में नसीब नहीं हुआ है। यानी मिड-डे मील को लेकर सरकार भले ही लाख दावे कर ले, वास्तविकता उससे बहुत दूर है। अब भी बड़ी संख्या में बच्चों को गर्म खाना मुहैया नहीं कराया जा सका है। ये सरकारी और अब तक के नवीनतम आंकड़े हैं।

अगर हम राज्यों के आंकड़ें देखें और उदाहरण के तौर पर राजस्थान को लें तो यहां पर 2018-19 में लगभग 62 लाख बच्चों का दाखिला हुआ लेकिन पीएबी ने 45 लाख बच्चों के लिए ही मिड-डे मील अप्रूव किया है।

पांच सर्वाधिक नाकाम राज्य?

बच्चों को मिड-डे मील मुहैया करा पाने में नाकाम रहने वाले बड़े राज्यों में उत्तर प्रदेश पहले नबंर पर आता है। यहां पर सिर्फ 57.08 प्रतिशत नामांकित बच्चों को ही मिड-डे मील मिल पा रहा है। इसके बाद बिहार का नंबर आता है। यहां पर 59.39 प्रतिशत बच्चों को मिड-डे मील मिलता है। तीसरे नंबर पर झारखंड है। यहां के 61.45 प्रतिशत बच्चों को दोपहर का गर्म खाना मिलता है।
चौथे नंबर पर मध्य प्रदेश और पांचवें पर राजस्थान हैं। यहां क्रमश: 71.45 और 73.80 प्रतिशत नामांकित बच्चों को मिड-डे मील दिया जा रहा है।

बेहतर प्रदर्शन करने वाले पांच बड़े राज्य

बच्चों को मिड-डे मील देने में पूर्वोत्तर के राज्यों का प्रदर्शन अच्छा हैं। अगर हम पांच बड़े राज्यों की बात करें तो उनमें अरुणाचल प्रदेश, पश्चिम बंगाल, केरल, असम और कर्नाटक आते हैं जहां 90 प्रतिशत से ज्यादा बच्चों को मिड-डे मील मुहैया कराया जा रहा है।

प्रति छात्र रोजाना ख़र्च भी बहुत कम!

मिड-डे मील में सरकार द्वारा प्रति छात्र ख़र्च की जाने वाली रकम भी बहुत कम है। यह योजना वैसे तो पूरी तरह से केंद्र सरकार की है, लेकिन इसको तैयार करने पर होने वाले खर्च में केंद्र और राज्यों दोनों की हिस्सेदारी रहती है। इसका फैसला केंद्रीय फंडिंग पैटर्न के आधार पर तय होता है।

हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय ने स्कूलों में दोपहर के खाने पर तैयार करने वाली कीमतों में जो बढ़ोत्तरी की है। इसके तहत प्राइमरी तक के लिए प्रति छात्र 13 पैसे की बढ़ोत्तरी की गई है, जबकि अपर प्राइमरी यानी छठी से आठवीं तक के लिए प्रति छात्र 20 पैसे की बढ़ोत्तरी की गई है।
 table 1
इसके तहत प्राइमरी स्तर के प्रति छात्रों के खाना तैयार करने का ख़र्च अब 4.48 रुपये हो गया है, इनमें केंद्र 2.69 रुपये देगा, जबकि राज्य 1.79 रुपये का खर्च उठाएगा। वहीं बढ़ोत्तरी के बाद अपर प्राइमरी स्तर के प्रति छात्र खाना बनाने का खर्च 6.71 रुपये कर दिया गया है। इनमें से 4.03 रुपये केंद्र देगा, जबकि 2.66 रुपये राज्य को देना होगा।

क्या कहना है सरकार का?

न्यूज़क्लिक से बातचीत करते हुए उपायुक्त, (क्रिन्यान्वन एवं मूल्यांकन) मिड-डे मील आयुक्तालय, राजस्थान के डॉ. आशीष व्यास ने बताया, 'कुल भर्ती छात्रों की संख्या निसंदेह ज्यादा है। लेकिन मिड-डे मील की मॉनीटरिंग करने वाली बॉडी पीएबी (प्रोजेक्ट अप्रूवल बोर्ड) अप्रूवल छात्र उपस्थिति के आधार पर देती है। राजस्थान राज्य में पिछले पांच सालों में छात्रों की उपस्थिति लगभग 75 प्रतिशत के करीब है। अप्रूवल भी इसी आधार पर दिया गया है। आप आंकड़ों को देख लीजिए। दूसरी बात स्कूल में आने वाले हर बच्चे को मिड-डे मील दिया गया है। हम इसकी गारंटी लेते हैं।'

क्या कहना है एक्सपर्ट का?

भोजन के अधिकार और मिड-डे मील जैसे मसलों पर काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता सिराज दत्ता कहते हैं, 'सरकार का यह हमेशा तर्क रहता है कि स्कूल में पहुंचने वाले बच्चों की संख्या के आधार पर पीएबी से अप्रूवल दिया जाता है लेकिन पिछले साल आधार की अनिवार्यता जैसी बात सामने आई थी। जिसके विरोध के बाद सरकार को सफाई देने पड़ी थी। मुझे शक है कि इतनी बड़ी संख्या में छात्रों के पीएबी के अप्रूवल से बाहर होने की एक वजह यह भी हो सकती है।

दूसरी बात सरकार प्रति छात्र खाना बनाने का खर्च इतना कम देती है कि इसमें उन्हें पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा पाना ही मुश्किल है। अब अगर 3 करोड़ छात्रों को नामांकन के बावजूद मिड-डे मील नहीं मिल पा रहा है तो यह सरकार की जिम्मेदारी है कि उन्हें पौष्टिक भोजन मुहैया कराए। इसके लिए स्कूलों से इतर कम्युनिटी किचन जैसी व्यवस्था हो सकती है। लेकिन बच्चों को स्वादिष्ट भोजन मुहैया कराने में ज्यादातर सरकारों की रुचि ही नहीं है। झारखंड जैसे राज्यों में पहले बच्चों को मिड-डे मील में तीन अंडे मिलते थे। अब वह भी घटकर 2 रह गया है।'

क्या है मिड-डे मील योजना?

आपको बता दें कि देश में मिड-डे मील भारत सरकार और राज्य सरकार के संयुक्त प्रयास से संचालित योजना है जिसे 15 अगस्त 1995 में लागू किया गया था। पहले इस योजना के तहत बच्चों के अभिभावकों को अनाज उपलब्ध कराया जाता था लेकिन साल 2004 से सुप्रीम कोर्ट के एक निर्देश के मुताबिक पका-पकाया भोजन प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराने की योजना शुरू की गई।

योजना की सफलता को देखते हुए अक्तूबर 2007 से इसे शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े ब्लॉकों में स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालयों तथा अप्रैल 2008 से शेष ब्लॉकों एवं नगर क्षेत्र में स्थित उच्च प्राथमिक विद्यालयों तक विस्तारित कर दिया गया।

पौष्टिक भोजन उपलब्ध करा कर बच्चों में शिक्षा ग्रहण करने की क्षमता को विकसित करने, विद्यालयों में छात्र संख्या बढ़ाने, प्राथमिक कक्षाओं में विद्यालय में छात्रों के रुकने की मानसिकता विकसित करने, बच्चों में भाई-चारे की भावना विकसित करने और विभिन्न जातियों एवं धर्मों के बीच के अंतर को दूर किया जा सके, इसके लिए मध्याह्न भोजन प्राधिकरण का गठन अक्टूबर 2006 मे किया गया।

इस योजना के अन्तर्गत विद्यालयों में मध्यावकाश में बच्चों को स्वादिष्ट भोजन दिये जाने का प्रावधान है। प्राथमिक विद्यालयों में उपलब्ध कराये जा रहे भोजन में कम से कम 450 कैलोरी ऊर्जा व 12 ग्राम प्रोटीन एवं उच्च प्राथमिक विद्यालयों में कम से कम 700 कैलोरी ऊर्जा व 20 ग्राम प्रोटीन उपलब्ध होना चाहिए।

आपको यह भी बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में सरकारी स्कूलों, सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों, स्थानीय निकाय के स्कूलों, मदरसा और मकतब तक में पढ़ने वाले सभी बच्चों को गर्म भोजन दिए जाने की बात कही है।

mid day meal
mid-day meal scheme
Reality of scheme
Indian government
Supreme Court
Government schools

Related Stories

उत्तराखंड : ज़रूरी सुविधाओं के अभाव में बंद होते सरकारी स्कूल, RTE क़ानून की आड़ में निजी स्कूलों का बढ़ता कारोबार 

तिरछी नज़र: प्रश्न पूछो, पर ज़रा ढंग से तो पूछो

सरकार ने बताया, 38 हजार स्कूलों में शौचालयों की सुविधा नहीं

वायु प्रदूषण: दिल्ली में स्कूल, कॉलेज, सरकारी कार्यालय 29 नवंबर से फिर खुलेंगे

ओडिशा: रिपोर्ट के मुताबिक, स्कूल बंद होने से ग्रामीण क्षेत्रों में निम्न-आय वाले परिवारों के बच्चे सबसे अधिक प्रभावित

10% ईडब्ल्यूएस आरक्षण अप्रमाणिक और निराधार: डेटा

इस साल और कठिन क्यों हो रही है उच्च शिक्षा की डगर?

स्कूल तोड़कर बीच से निकाल दी गई फोर लेन सड़क, ग्रामीणों ने शुरू किया ‘सड़क पर स्कूल’ अभियान

कोविड-19: बिहार में जिन छात्रों के पास स्मार्ट फोन और इंटरनेट नहीं, वे ऑनलाइन कक्षाओं से वंचित

वॉल मैगजीन कैम्पेन: दीवारों पर अभिव्यक्ति के सहारे कोरोना से आई दूरियां पाट रहे बाल-पत्रकार 


बाकी खबरें

  • Ramjas
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली: रामजस कॉलेज में हुई हिंसा, SFI ने ABVP पर लगाया मारपीट का आरोप, पुलिसिया कार्रवाई पर भी उठ रहे सवाल
    01 Jun 2022
    वामपंथी छात्र संगठन स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ़ इण्डिया(SFI) ने दक्षिणपंथी छात्र संगठन पर हमले का आरोप लगाया है। इस मामले में पुलिस ने भी क़ानूनी कार्रवाई शुरू कर दी है। परन्तु छात्र संगठनों का आरोप है कि…
  • monsoon
    मोहम्मद इमरान खान
    बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग
    01 Jun 2022
    पटना: मानसून अभी आया नहीं है लेकिन इस दौरान होने वाले नदी के कटाव की दहशत गांवों के लोगों में इस कदर है कि वे कड़ी मशक्कत से बनाए अपने घरों को तोड़ने से बाज नहीं आ रहे हैं। गरीबी स
  • Gyanvapi Masjid
    भाषा
    ज्ञानवापी मामले में अधिवक्ताओं हरिशंकर जैन एवं विष्णु जैन को पैरवी करने से हटाया गया
    01 Jun 2022
    उल्लेखनीय है कि अधिवक्ता हरिशंकर जैन और उनके पुत्र विष्णु जैन ज्ञानवापी श्रृंगार गौरी मामले की पैरवी कर रहे थे। इसके साथ ही पिता और पुत्र की जोड़ी हिंदुओं से जुड़े कई मुकदमों की पैरवी कर रही है।
  • sonia gandhi
    भाषा
    ईडी ने कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी को धन शोधन के मामले में तलब किया
    01 Jun 2022
    ईडी ने कांग्रेस अध्यक्ष को आठ जून को पेश होने को कहा है। यह मामला पार्टी समर्थित ‘यंग इंडियन’ में कथित वित्तीय अनियमितता की जांच के सिलसिले में हाल में दर्ज किया गया था।
  • neoliberalism
    प्रभात पटनायक
    नवउदारवाद और मुद्रास्फीति-विरोधी नीति
    01 Jun 2022
    आम तौर पर नवउदारवादी व्यवस्था को प्रदत्त मानकर चला जाता है और इसी आधार पर खड़े होकर तर्क-वितर्क किए जाते हैं कि बेरोजगारी और मुद्रास्फीति में से किस पर अंकुश लगाने पर ध्यान केंद्रित किया जाना बेहतर…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License