NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार : नागरिकता संशोधन बिल के बाद क्या BJP सीमांचल में खेलने जा रही है NRC कार्ड?
मुस्लिम बहुल क्षेत्र में 23 विधानसभा सीटें हैं। लेकिन अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के पहले एनआरसी के मुद्दे पर फिलहाल एनडीए बंटा हुआ दिखाई देता है।
मोहम्मद इमरान खान
06 Dec 2019
NRC
Image Courtesy: Deccan Herald

केंद्रीय कैबिनेट ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 (CAB) को पास कर दिया है। अब बिहार में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी आने वाले 2020 के विधानसभा चुनावों में सीमांचल के इलाके में इसे भुनाने की कोशिशों में लग चुकी है। बता दें सीमांचल एक मुस्लिम बहुल इलाका है और बीजेपी की मंशा हिंदू ध्रुवीकरण की है। इस मुद्दे से बीजेपी के लिए सीमांचल के मुस्लिमों की भावनाओं को ठेस पहुंचाना आसान हो जाएगा और इनका इस्तेमाल हिंदू वोटों को हासिल करने में किया जा सकेगा।

वहीं बीजेपी के साथ गठबंधन में साझेदार जेडीयू NRC के पूरी तरह खिलाफ रही है। लेकिन अपनी पुरानी स्थिति के उलट नीतीश कुमार ने कहा कि पार्टी ने अभी तक मुद्दे पर अपनी राय नहीं बनाई है। उन्होंने कहा, ''हाल की स्थिति में इस पर हमने कोई पक्ष नहीं चुना है। हमारी कई राज्यों में यूनिट हैं और हम बाद में तय करेंगे।'' इस स्टेटमेंट से ऐसा लगता है कि NRC के मुद्दे पर जेडीयू अभी संशय की स्थिति में है।
   
बीजेपी और आरएसएस के लिए सीमांचल प्राथमिक क्षेत्र है, क्योंकि यहां मुस्लिम आबादी सबसे ज़्यादा है। बीजेपी इस क्षेत्र में पैठ बनाने में अभी तक नाकामयाब रही है। किशनगंज में 70 फ़ीसदी मुस्लिम हैं, वहीं पूर्णिया में 38 फ़ीसदी, कटिहार में 43 फ़ीसदी और अररिया में 42 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है। हालांकि 2011 की जनगणना के मुताबिक़, राज्य की कुल साढ़े दस करोड़ की आबादी में  मुस्लिमों का हिस्सा महज 16.5 फ़ीसदी है।

सीमांचल में 23 विधानसभा और चार लोकसभा सीटें हैं। बड़ी मुस्लिम आबादी होने के बावजूद 2015 के विधानसभा चुनाव में सिर्फ 10 मुस्लिम प्रत्याशी जीते। उस चुनाव में आरजेडी, कांग्रेस और जेडीयू ने एकसाथ मिलकर चुनाव लड़ा था। वहीं 2019 के लोकसभा चुनाव में राज्य से केवल एक ही मुस्लिम उम्मीदवार चुनाव जीता। मुस्लिम उम्मीदवार ने यह जीत किशनगंज सीट पर दर्ज की। यह विपक्षी महागठबंधन द्वारा राज्य में जीती गई एकमात्र सीट थी।

सीमांचल में एनआरसी पर जहां जेडीयू वक्त ले रही है, वहीं बीजेपी के इरादे पूरी तरह साफ हैं। पार्टी पिछड़ेपन, गरीबी और प्रवासन के मुद्दे को घुसपैठियों, खासकर बांग्लादेशी मुस्लिमों से जोड़ना शुरू कर चुकी है। पूर्णिया से बीजेपी विधायक विजय खेमका कहते हैं, 'अवैध घुसपैठिए स्थानीय लोगों के लिए अभिशाप हैं। उन्होंने हजारों लोगों की नौकरियां और रोजगार छीना है। उन्हें जबरदस्ती बाहर किया जाना चाहिए।'

बिहार विधानसभा में हाल में खत्म हुए शीत सत्र में भी खेमका ने अवैध प्रवासन का मुद्दा उठाया था।  उन्होंने गरीबी और पिछड़ेपन का आरोप अवैध प्रवासियों पर लगाते हुए कहा था कि ''वह लोग स्थानीय निवासियों की कीमत पर सुविधाओं का फायदा उठा रहे हैं।'' खेमका ने कहा कि बिहार में एनआरसी जरूर होना चाहिए। खासकर सीमांचल के इलाके में। ताकि पिछड़ेपन और गरीबी को मिटाया जा सके।

खेमका के मुताबिक़, ''यह बांग्लादेशी घुसपैठिए मवेशियों की तस्करी से लेकर फर्जी नोटों के रैकेट में संलिप्त रहते हैं। इन्हें बांग्लादेश वापस भेजा जाना चाहिए। एनआरसी ऐसा कर सकती है।'' विडंबना यह है कि आंकड़े कुछ और तस्वीर बयां करते हैं। 2001 से 2011 के बीच किशनगंज में सबसे तेजी से साक्षरता दर बढ़ी है। केवल बीजेपी ही नहीं, आरएसएस के दूसरे संगठन जैसे विश्व हिंदू परिषद, बजरंग दल और एबीवीपी भी एनआरसी की मांग करते हुए अवैध घुसपैठियों की आड़ में मुस्लिमों को निशाना बना रहे हैं।

वीएचपी नेता राजीव कुमार के मुताबिक़,''हम एनआरसी के मुद्दे पर सीमांचल में लोगों को जागरूक कर उन्हें एनआरसी के पक्ष में खड़ा कर रहे हैं। ताकि घुसपैठियों की पहचान की जा सके, जो दशकों से यहां रह रहे हैं।'' कुमार का कहना है कि बजरंग दल, एबीवीपी और उनका संगठन सालों से इस इलाके में अवैध घुसपैठियों का मुद्दा उठा रहा है। अब हमें यकीन है कि एनआरसी जमीन पर बदलाव करेगा।

तीन महीने पहले बीजेपी से राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने पहली बार बिहार में एनआरसी का मुद्दा उठाया था। उन्होंने कहा था, 'हम सीमांचल में असम की तरह एनआरसी का समर्थन करते हैं। इसको लागू कर वहां से अवैध बांग्लादेशियों को निकाला जाना चाहिए।'

बीजेपी की हिंदुत्व राजनीति के समर्थक सिन्हा के मुताबिक़ बिहार के सीमावर्ती जिलों में जनसंख्या बढ़ रही है। यह बताता है कि वहां बड़ी संख्या में बांग्लादेशी घुसपैठ कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि किशनगंज, कटिहार, पूर्णिया और अररिया जिलों में एनआरसी कराए जाने की जरूरत है। बाद में नित्यानंद राय और केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने भी बिहार में एनआरसी कराए जाने की मांग की।

हालांकि कड़वा से कांग्रेस विधायक शकील अहमद खान का कहना है कि असम में सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हुई अपडेटेड एनआरसी का विरोध करने के बावजूद, बीजेपी वोटों के लिए बिहार में एनआरसी कार्ड खेल रही है। उन्होंने कहा, ''कांग्रेस, आरजेडी और सीपीआई (एमएल) ने विधानसभा में एनआरसी का विरोध किया और मांग रखी कि राज्य सरकार इसके विरोध में प्रस्ताव लाए।''

राजनीतिक जानकार सत्य नारायण मदन का कहना है कि हिंदुओं में भय और असुरक्षा की भावना पैदा कर अपना आधार बढ़ाने की कोशिश बीजेपी की पुरानी रणनीति रही है। जबकि किशनगंज को छोड़कर हिंदू सभी जगह बहुसंख्यक हैं। मदन के मुताबिक बीजेपी अभी तक ''सुरक्षित राजनीति'' खेल रही थी। 2019 के लोकसभा चुनाव में पार्टी ने इलाके की सभी चार सीटें अपनी साझेदार पार्टी जेडीयू को दे दीं। जेडीयू इनमें से तीन जीतने में कामयाब रही। वहीं किशनगंज सीट पर कांग्रेस को जीत मिली। किशनगंज को कांग्रेस का गढ़ माना जाता है। पार्टी यहां से आठ बार लोकसभा चुनाव जीत चुकी है। बीजेपी सिर्फ 1999 में यहां से चुनाव जीती थी। उस वक्त शाहनवाज हुसैन सांसद बने थे।

मदन के मुताबिक, ''अब बीजेपी दूसरे मूड में है। पार्टी अब अगले विधानसभा चुनावों में एनआरसी के ज़रिए अपना आधार बढ़ाना चाहती है। इसलिए वह इस मुद्दे पर जेडीयू की दिक्कतों को भी नज़रंदाज कर रही है।'' बाढ़ प्रभावित किशनगंज के विकास आकंड़े राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी पिछड़े हुए हैं। आर्थिक सर्वेक्षण 2018-19 के मुताबिक़ जिले की प्रति व्यक्ति आय 9,928 रूपये है। किशनगंज की साक्षरता दर 57.04 फ़ीसदी है। जिले की 84 फ़ीसदी महिलाएं निरक्षर हैं। करीब 60 फ़ीसदी आबादी गरीबी रेखा से नीचे है। हाई स्कूल के बाद ड्रॉप आउट रेट 98 फ़ीसदी जैसे बदतर स्तर पर है।  

विशेषज्ञों के मुताबिक़, खराब आर्थिक और सामाजिक स्थितियों के चलते सीमांचल और किशनगंज के इलाकों से बड़े स्तर का प्रवासन होता है। बिहार के यह पिछड़े जिले सस्ते मजदूरों का गढ़ बनकर उभरे हैं, जिन्हें विकसित राज्यों में अपनी आजीविका के लिए जाने को मजबूर होना पड़ता है। आज की तारीख में भी बीजेपी के किसी बड़े नेता ने बिहार में एनआरसी का मुद्दा नहीं उठाया है। लेकिन सिन्हा की बात में वजनदारी है, क्योंकि वे मीडिया में आरएसएस का चेहरा हैं। फिलहाल ऐसा समझ आता है कि सत्तारूढ़ एनडीए गठबंधन एनआरसी के मुद्दे पर बंटा हुआ है।

जेडीय़ू के कुछ वरिष्ठ नेताओं ने लगातार कहा है कि उनकी पार्टी एनआरसी के पक्ष में नहीं है। यह भावना पार्टी के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर और राष्ट्रीय महासचिव के सी त्यागी के कथनों से भी झलक जाती है। त्यागी ने साफ कहा था कि बिहार और पूरे देश में एनआरसी की कोई जरूरत नहीं है। उनके मुताबिक़, ''एनआरसी बेहद संवेदनशील मुद्दा है। इसे असम में सुप्रीम कोर्ट से अनुमति मिलने के बाद लागू किया गया था। पार्टी एनआरसी के नाम पर नागरिकों को देश से बाहर भेजे जाने के खिलाफ है।''

जाने माने चुनावी रणनीतिकार और नीतीश कुमार के करीबी प्रशांत किशोर ने भी एनआरसी का विरोध किया था। किशोर के मुताबिक़, ''राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े जटिल मुद्दे पर बिना रणनीतिक ध्यान दिए भाषणबाजी और राजनीति करने से लोगों को बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है। लाखों लोग अपने ही देश में विदेशी करार दे दिए जाते हैं।''

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

After CAB, is BJP Planning to Play NRC Card in Bihar’s Seemanchal?

BJP’s NRC Card
kishanganj
Bihar Muslims
communal polarisation
NRC in Bihar
Seemanchal
CAB
citizenship bill

Related Stories

उत्तरप्रदेश में चुनाव पूरब की ओर बढ़ने के साथ भाजपा की मुश्किलें भी बढ़ रही हैं 

यूपी चुनाव: मुसलमान भी विकास चाहते हैं, लेकिन इससे पहले भाईचारा चाहते हैं

फ़ैक्ट चेकः योगी ने कहा मुज़फ़्फ़रनगर दंगों में 60 हिंदू मारे गये थे, दावा ग़लत है

हेट स्पीच और भ्रामक सूचनाओं पर फेसबुक कार्रवाई क्यों नहीं करता?

छत्तीसगढ़: सांप्रदायिक सौहार्द्र के लिए चर्चित कवर्धा में अचानक हिंसा कैसे भड़क गई?

असम: दशकों से खेती कर रहे मुस्लिम किसान दरांग ज़िले में अपनी ही ज़मीन से बेदखल, गोलीबारी में तीन की मौत

'हम किसी की संपत्ति नहीं हैं' : कश्मीर में सिख महिला की जल्दबाज़ी में शादी पर जम्मू-कश्मीर की महिलाओं की प्रतिक्रिया

दो-बच्चों की नीति राजनीतिक रूप से प्रेरित, असली मक़सद मतदाताओं का ध्रुवीकरण

असम चुनाव: शुरू में जनता का रुख भाजपा सरकार के खिलाफ होने के बावजूद वह क्यों जीत गई ?

बंगाल चुनाव : बीजेपी की हार वक़्त का इशारा साबित हुई है


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License