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AISHE रिपोर्ट 2017-18: सिर्फ 3.6% कॉलेज पीएचडी प्रोग्राम करवाते हैं
अगर हम पीएचडी में दाखिले को दो श्रेणियों में रखें जहाँ एक तरह सरकारी अनुदान पाने वाले विश्विद्यालय हों और दूसरी तरह निजी विश्वविद्यालय तो हम पाएंगे कि भारत के 80% पीएचडी छात्र सरकारी विश्विद्यालयों में पढ़ते हैं और 20 % निजी विश्विद्यालयों में।

अधिराज नायर
04 Aug 2018
Translated by ऋतांश आज़ाद
PHD

26 से 28 जुलाई को दिल्ली की उच्च शिक्षा में अनुसंधान और नयेपन पर विभिन्न कुलपतियों की तीन दिवसीय कांफ्रेंस हुई। इस कांफ्रेंस के अंत में एक 10 सूत्री  प्रस्ताव पारित किया गया। इसमें एक सूत्र था कि शिक्षकों और छात्रों को प्रतिस्पर्धा आधारित शोध निधि योजनाओं में भाग लेने के लिए दिशानिर्देश द्वारा अनुसंधान उत्पादिता को बढ़ाया जाए। इस आयोजन के आखरी दिन All India Survey Higher Education (AISHE) की 2017-18 रिपोर्ट मानव संसाधन मंत्री प्रकाश जावड़ेकर द्वारा जारी की गयी। 

जब सरकार अनुसंधान को बेहतर बनाने की मंशा जता रही है, तब हमें भारत के विभिन्न राज्यों में पीएचडी की स्थिति की जाँच करनी चाहिए। हमें 2017-18 की AISHE रिपोर्ट की जाँच करनी चाहिए। 

सभी 3,66,42,378 (3.6 करोड़) छात्रों में से 79.19% छात्र स्नातक कार्यक्रमों में हैं, 11.23% छात्र स्नातकोत्तर में। पीएचडी में दाखिला लेने वाले  1,61,412 छात्र  हैं (इनमें 3,110 इंटीग्रेटेड पीएचडी छात्रों को जोड़ा नहीं गया है) जो 0.5% से भी कम है। इन छात्रों में  57% से ज़्यादा पुरुष हैं और 42.6% महिलायें हैं। पीएचडी में दाखिला लेने वालों की संख्या में थोड़ी वृद्धि हुई है, 2013-14 में यह संख्या 1,07,890 थी और2017-18 में यह संख्या 1,61,412  हो गयी है। 

जैसा कि पहले भी रिपोर्ट किया गया है कि देश में 78% कॉलेज निजी क्षेत्र के अंतर्गत आते हैं, उनमें से कुछ सहायता प्राप्त हैं बाकियों को सहायता नहीं मिलती। वहीं दूसरी तरफ 22 % सरकारी कॉलेज हैं। जिन कॉलेजों में पीएचडी प्रोग्राम हैं उनकी संख्या सिर्फ 3.6 % है। अगर सरकार को सच में भारत की अनुसंधान क्षमता को बढ़ाना है, तो इस दिशा में पहले कदम के तौर पर पीएचडी करवाने वाले संस्थानों की संख्या को बहुत तेज़ी से बढ़ाना होगा। 

इसीलिए छात्र सरकारी विश्विद्यालयों में सबसे ज़्यादा पीएच.डी. छात्र (31.6%) हैंI  इसके बाद राष्ट्रीय महत्व के संस्थानों  में (20.4%) हैं, फिर केंद्रीय विश्विद्यालय (15.8%) में और फिर डीम्ड और निजी विश्वविद्यालय (13.4%) में।  

अगर हम पीएचडी में दाखिले को दो श्रेणियों में रखें जहाँ एक तरह सरकारी अनुदान पाने वाले विश्विद्यालय हो और दूसरी तरह निजी विश्वविद्यालय तो हम पाएंगे कि भारत के 80%पीएचडी छात्र सरकारी विश्विद्यालयों में पढ़ते हैं और 20 % निजी विश्विद्यालयों में। 

इसका मुख्य कारण है कि सरकारी विश्विद्यालयों के मुकाबले निजी विश्विद्यालयों की फीस बहुत ज़्यादा होती है। जहाँ एक तरफ JNU और DU जैसे संस्थान हर साल 1,000 रुपये शैक्षिक फीस के तौर पर लेते हैं (इसमें रेजिस्ट्रेशन फीस शामिल नहीं है) और IIT में छात्रों को 50,000 रुपये हर साल देने होते हैं, इसमें हॉस्टल और बाकि तरह की फीस शामिल हैं। वहीं दूसरी तरफ निजी संस्थानों की सालाना फीस40,000 रुपये से लेकर 1,00,000 रुपये तक होती है, जिसमें हॉस्टल फीस शामिल नहीं है।  इसके आलावा वे बहुत ज़्यादा रेजिस्ट्रेशन फीस (10,000-15,000 रुपये), डीज़रटेशन फीस (10,000-20,000 रुपये) और दूसरी फीस भी लेते हैं। 

इसीलिए हम देख सकते हैं कि JNU और DU जैसे विश्विद्यालयों में जहाँ छात्रों ने कम फीस की माँग को लेकर सालों तक आंदोलन किया है, वहाँ पीएचडी की 5 साल की पढ़ाई प्राइवेट विश्विद्यालयों की रेजिस्ट्रेशन फीस से भी कम है। लेकिन IIT की फीस निजी विश्विद्यालयों की राह पर चलने  JNU और DU से ज़्यादा है। इसीलिए हम देखते हैं कि निजी संस्थान बहुत महँगे होते हैं इसी वजह से यहाँ सरकारी संस्थानों से कम पीएचडी छात्र हैं। 2017-18  रिपोर्ट के हिसाब से 34,400 छात्रों को पीएचडी डिग्री मिली जिसमे 20,179 पुरुष और 14,221  महिलाएँ थीं। इसी तरह 2016 में पीएचडी की डिग्री पाने संख्या28,779 थी। 

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