कार्यक्रम के जरिये वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि ‘असहमति के स्वर’ को कुचलने के लिए ही सरकार सुनियोजित ढंग से इस बार जनप्रतिबद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को चुन चुन कर निशाना बना रही है, ताकि सत्ता के दमन के खिलाफ कहीं से भी कोई आवाज़ नहीं उठे।
28 अक्तूबर की शाम एक बार फिर नागरिक प्रतिवाद करने वालों का जत्था एकत्र हुआ पटना गाँधी मैदान के पूर्वी छोर स्थित कारगिल चौक के पास। यह नागरिक प्रतिवाद था जन मुद्दों व वंचितों के मानवाधिकारों के लिए सतत सक्रिय रहने वालीं एडवोकेट सुधा भरद्वाज व सामाजिक कार्यकर्त्ता अरुण फरेरा तथा वर्नोन गोंजाल्विस की गिरफ्तारी के खिलाफ। राजधानी के प्रमुख सामाजिक कार्यकर्त्ता, युवा एक्टिविष्ट, वरिष्ठ कवि–साहित्यकार, रंगकर्मी व नागरिक–मानवाधिकारों के कार्यकर्ताओं ने हाथों में बैनर–पोस्टर लेकर मानव श्रृंखला बनाई और अपना विरोध प्रकट किया।

“आख़िरी सांस लेते लोकतंत्र के नाम” इस कार्यक्रम के जरिये वक्ताओं ने एक स्वर में कहा कि ‘असहमति के स्वर’ को कुचलने के लिए ही सरकार सुनियोजित ढंग से इस बार जनप्रतिबद्ध मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को चुन चुन कर निशाना बना रही है, ताकि सत्ता के दमन के खिलाफ कहीं से भी कोई आवाज़ नहीं उठे। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए वरिष्ठ जनवादी कवि आलोक धन्वा ने वर्तमान सरकार पर अघोषित आपातकाल थोपने का आरोप लगाते हुए कहा कि इसका सत्ता में बने रहना देश व लोकतंत्र दोनों के लिए खतरनाक है। इस अवसर पर छात्र-युवाओं के अलावा कॉलेज प्राध्यापकों, वकीलों और नागरिक समाज के लोगों ने भी सक्रिय उपस्थिति निभायी। नागरिक प्रतिवाद के जरिये उक्त तीनों सामाजिक कार्यकर्ताओं की अविलम्ब बिना शर्त रिहाई की मांग की गयी।
ऑल इंडिया पीपुल्स फोरम ने इस गिरफ्तारी का विरोध करते हुए उनकी अविलम्ब रिहाई के साथ साथ भीमा कोरे गाँव में हुई दलित विरोधी हिंसा के मास्टर माइंड मिलिंद एकबोटे व सम्भाजी भिंडे को तत्काल गिरफ्तार करने की मांग को लेकर राष्ट्रीय अपील जारी करते हुए देश के समस्त न्यायप्रिय नागरिकों से सभी गिरफ्तार मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के समर्थन में अपनी सक्रिय एकजुटता प्रदर्शित करने तथा भारतीय संविधान की रक्षा के लिए आगे आने का आह्वान किया है।