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अमेरिका, चीन और दक्षिण एशिया में आतंकवाद का मूल कारण
अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता रॉबर्ट पल्लडिनो की वाशिंगटन में हुई प्रेस वार्ता में तीन प्रमुख मुद्दे थे। भारत-पाकिस्तान तनाव को लेकर उन्होंने कहा, “अभी बहुत सारी निजी कूटनीति चल रही है।” वाशिंगटन और दो क्षेत्रीय राजधानियों के बीच "निरंतर उच्च-स्तरीय संपर्क" है।
एम. के. भद्रकुमार
08 Mar 2019
Translated by महेश कुमार
Samjhauta Express
(4 मार्च 2019 को समझौता एक्सप्रेस करीब 150 यात्रियों को लेकर लाहौर रेलवे स्टेशन से नई दिल्ली के लिए रवाना हुई)

अमेरिकी विदेश विभाग के उप प्रवक्ता रॉबर्ट पल्लडिनो की मंगलवार को वाशिंगटन में आयोजित प्रेस वार्ता में तीन प्रमुख मुद्दे थे, भारत-पाकिस्तान तनाव को लेकर उन्होंने कहा, “अभी बहुत सारी निजी कूटनीति चल रही है।” वाशिंगटन और दो क्षेत्रीय राजधानियों के बीच “निरंतर उच्च-स्तरीय संपर्क” है।

पल्लडिनो ने कहा कि पहली बात तो अमेरिका ने भारत और पाकिस्तान को हमेशा से "स्थिति को नियंत्रण में रखने के लिए कदम उठाने के लिए"; आग्रह किया, दूसरा, तनाव को कम करने के लिए दोनों देशों के बीच “प्रत्यक्ष बातचीत” हो; और, तीन, किसी भी तरह की सैन्य गतिविधि "स्थिति को खराब करेगी।" जिससे बचा जाना चाहिए (डेली टाइम्स)

वास्तव में, भारत और पाकिस्तान ने ‘तनाव’ को कम करने के लिए कुछ कदम उठाए हैं: दिल्ली और लाहौर के बीच सप्ताह में दो बार चलने वाले ट्रेन समझौता एक्सप्रेस ने अपना कार्यक्रम फिर से शुरू किया है; नियंत्रण रेखा पर वस्तु विनिमय व्यापार पुन: शुरू किया गया है; करतारपुर कॉरिडोर पर परामर्श सही दिशा में हैं; और, पाकिस्तान ने अपने "राजनयिक प्रयासों में वृद्धि" के तौर पर दिल्ली में अपने दूत को वापस भेजने का फैसला किया है।

हालांकि, नियंत्रण रेखा पर स्थिति तनावपूर्ण बनी हुई है, जबकि युद्ध का खतरा कम हो गया है। दिल्ली में रक्षा मंत्रालय ने पाकिस्तानी सेना पर एलओसी के पास "भारी क्षमता के हथियार" तैनात करने का आरोप लगाया है और दोनों भारतीय सैन्य चौकियों और असैन्य क्षेत्रों को मोर्टार बमों और भारी तोप के गोलों से निशाना बनाए जाने के लिए शिकायत की है, इस पर पाकिस्तान को भारतीय पक्ष की ओर से "तेज और सटीक प्रतिक्रिया" मिलीं है। लेकिन रक्षा मंत्रालय ने यह भी स्वीकार किया है, कि "पाकिस्तान की सेना को नागरिक क्षेत्रों को लक्षित नहीं करने के लिए हमारी चेतावनी के बाद, सीमा के आस-पास स्थिति बहुत ही शांत बनी हुई है।"

बड़ा सवाल भारत और पाकिस्तान के बीच "प्रत्यक्ष बातचीत" के बारे में है - दोनों प्रारूप और सामग्री के बारे में। सिद्धांत रूप से, यह भारत के पक्ष में होगा कि द्विपक्षीय बातचीत पर जोर दिया जाए। दिल्ली में पाकिस्तानी उच्चायुक्त की वापसी इस बात का संकेत है कि इस्लामाबाद उच्च-स्तरीय बातचीत का दरवाज़ा  खोलने का इच्छुक है। पाकिस्तान को बातचीत में उलझाने से दिल्ली आखिर कब तक बच सकती है?

कोई गलती न हो, अमेरिका (और चीन) भारत-पाकिस्तान वार्ता में एक हितधारक बन गए है। स्पष्ट रूप से, युद्ध और एक संभावित परमाणु फ्लैशपॉइंट का जोखिम वाशिंगटन (और बीजिंग) को चिंतित कर रहा है, समान रूप से, वाशिंगटन की तत्काल चिंता यह है कि भारत-पाकिस्तान तनाव अफगान शांति प्रक्रिया को पटरी से न उतार दे। अमेरिकी विशेष प्रतिनिधि, राजदूत ज़ल्माय खलीलज़ाद के शब्दों में, तालिबान के साथ पिछले हफ्ते दोहा में बातचीत का नवीनतम दौर "उपयोगी" रहा है, लेकिन इसमें "समझ बनाने और अंततः शांति की दिशा में धीमे स्थिर कदम" का होना शामिल हैं। उन्होंने कहा कि "सभी चार प्रमुख मुद्दे" अमेरिकी सैनिकों की वापसी, सुरक्षा गारंटी, युद्ध विराम और अफगान की आंतरिक वार्ता इसमें शामिल हैं।

दरअसल, अफगान शांति वार्ता के आगामी संवेदनशील चरण में पाकिस्तानी सहयोग महत्वपूर्ण है। लेकिन हाल के संकट ने यह भी उजागर किया कि भारतीय हमलों के द्वारा आतंकी हमलों के प्रतिशोध से युद्ध की संभावना बढ़ जाती है, जिससे जोखिम में ज्यादा वृद्धि होती है। सीधे शब्दों में कहें तो भारत-पाकिस्तान संबंध अंतरराष्ट्रीय समुदाय की चिंता बन गए हैं।

क्या पाकिस्तान को बातचीत में उलझाना भारतीय राजनीतिक नेतृत्व के अनुकूल है? मुद्दा यह है कि, किसी भी तरह के "युद्धोन्माद" को कम करना, भाजपा को पीएम मोदी को "लौह प्रधान मंत्री" के रूप में पेश करने और अंध राष्ट्रवाद को आगामी चुनाव अभियान में प्रचार करने की आगामी संभावनाओं से वंचित करेगा। जबकि, युद्ध से बचने का मतलब है कि जनता का ध्यान राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे से हट सकता है, और भारत की राजनीतिक अर्थव्यवस्था में जलते मुद्दों की तरफ जा सकता है। रफ़ाल विवाद मोदी के लिए एक भारी अड़चन बन गया है।

इसके अलावा, एक बार जब पाकिस्तान के साथ तनाव कम हो जाएगा, तो 26 फरवरी को पाकिस्तान पर हमला करने के भारत के फैसले के बारे में सवाल उठने लाजिमी हैं। इसने इससे हासिल क्या किया? भारतीय विश्लेषकों ने एकतरफा निष्कर्ष निकाला है कि यह आतंकवाद के प्रति एक निवारक का काम करेगा। लेकिन यह साबित करने के लिए कोई स्पष्ट साक्ष्य नहीं है। हर वक्त, सैन्य घटनाक्रमों पर पश्चिमी मीडिया की रिपोर्ट न केवल अत्यधिक हानिकारक रही है, बल्कि उन्होंने यह भी कहा कि मोदी सरकार ने झूठी कहानी बनाने के प्रयास में दुष्प्रचार या साफ धोखे का सहारा लिया हो सकता है।

इसी जटिल पृष्ठभूमि में है कि प्रवक्ता पल्लदीनो के जरिये अमेरिका की भविष्यवाणी पर संकेत देने वाली अभद्र टिप्पणी को समझने की आवश्यकता है। (वाशिंगटन, डीसी, जोश व्हाइट, राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद में दक्षिण एशियाई मामलों के एक पूर्व निदेशक द्वारा लेख ‘अन्य परमाणु खतरा’ देखें।)

मूल रूप से, चीन भी अमेरिका की तरह ही उसी स्थिति में है। यह इस कारण से है कि वाशिंगटन दक्षिण एशिया में तनावपूर्ण स्थिति को लेकर बीजिंग के संपर्क में है।

बुधवार को बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग में, चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता लू कांग ने सीधे-सीधे एक सवाल का जवाब देने से परहेज किया कि इस सप्ताह में पहले इस्लामाबाद का दौरा करने वाले उप विदेश मंत्री कोंग जुआनौ भी दिल्ली की यात्रा करेंगे या नहीं।

बीजिंग ने पाकिस्तान और भारत को "आपस में सद्भावना प्रदर्शित करने, आधे रास्ते एक-दूसरे से मिलने, संवादों के माध्यम से मतभेदों को सुलझाने, और द्विपक्षीय संबंधों में सुधार करने की सलाह दी है।" लेकिन लू कांग ने अंतर्राष्ट्रीय समुदाय को आतंकवादी समूहों के खिलाफ पाकिस्तान के नवीनतम कदमों के बारे में का "उसके मक़सद और पहल के बारे में मान्यता" देने की भी सलाह दी है, जो "आतंकवाद से और अंतर्राष्ट्रीय आतंकवाद से लड़ने के  लिए योगदान करने के अपने दीर्घकालिक प्रयासों के अनुरूप हैं।"

दिल्ली को किसी मुगालते में नहीं रहना चाहिए कि बीजिंग इस्लामाबाद पर आतंकवाद के खिलाफ दबाव बनाने वाला है। वास्तव में, जैश-ए-मोहम्मद प्रमुख मसूद अजहर को वैश्विक आतंकवादी घोषित करने के लिए  संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में लू स्पष्ट था कि चीन के रुख में कोई बदलाव नहीं हुआ है। लू के अनुसार,“सुरक्षा परिषद और इसके सहायक निकायों में कार्य प्रक्रियाओं पर स्पष्ट मानक और नियम हैं। चीन इन मानकों और नियमों के सख्त अनुपालन में परामर्श में भाग ले रहा है। आप निश्चित रूप से जानते हैं कि इन मुद्दों की बहुपक्षीय चर्चा एक गंभीर और जिम्मेदार रवैये का आह्वान करती है। चीन का रवैया जिम्मेदारी की मजबूत भावना को दर्शाता है और प्रासंगिक मुद्दों के वास्तविक और स्थायी समाधान के अनुकूल है।”

जैसा कि हो सकता है, लब्बोलुआब यह है कि ब्रीफिंग में लू इस बात को रेखांकित करते हैं, कि आतंकवाद को बढ़ावा देने वाले "जटिल कारकों" के बारे में चीन का "महत्वपूर्ण और सुसंगत दृष्टिकोण" है। लू ने कहा, "हम मानते हैं कि आतंकवाद को मिटाने के लिए, हमें लक्षणों और मूल कारणों दोनों का इलाज करना होगा।"

सबसे निश्चित रूप से, यह संदेश दिल्ली में गया। महत्वपूर्ण बात यह है कि लू शायद खुद को ऐसा कुछ कहने के लिए आए थे जिसे पल्लदिनो नहीं कह सकते थे। हिंदुत्ववादियों का मानना है कि हाल के दिनों में वैश्विक जिहादवाद के व्यापक प्रसार ने विश्व समुदाय में कश्मीरी अलगाववाद के लिए सहानुभूति को छीन लिया है, काफी साधारण व्याख्या है।

सौजन्य: इंडियन पंचलाइन

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