NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
संस्कृति
पुस्तकें
भारत
राजनीति
आनंद तेलतुंबड़े के साथ आए लेखक और अन्य संगठन, संभावित गिरफ्तारी के खिलाफ एकजुटता का आह्वान
“आनंद तेलतुंबड़े और साथी आम्बेडकरवादी वामपंथी लेखकों का उत्पीड़न भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के सांघातिक संकट का संकेत है। जिसका राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध जरूरी है।”
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
30 Jan 2019
Anand Teltumbde

जनवादी लेखक संघ (जलेस) के दिल्ली स्थित केन्द्रीय कार्यालय में जलेस समेत जन संस्कृति मंच (जसम), दलित लेखक संघ (दलेस), न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव, रमणिका फाउंडेशन, साहित्य वार्ता और प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस) के प्रतिनिधियों ने एक सभा कर लेखक आनंद तेलतुंबड़े के साथ एकजुटता जाहिर करते हुए एक बयान जारी किया है।

बयान में कहा गया है कि आनंद तेलतुंबड़े और साथी आम्बेडकरवादी वामपंथी लेखकों का उत्पीड़न भारतीय लोकतंत्र और सामाजिक न्याय के सांघातिक संकट का संकेत है। जिसका राष्ट्रव्यापी प्रतिरोध जरूरी है। पूरा बयान इस प्रकार है:-

एक आसन्न गिरफ़्तारी देश के ज़मीर पर शूल की तरह चुभती दिख रही है।

पुणे पुलिस द्वारा भीमा कोरेगांव मामले में प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े के ख़िलाफ़ दायर एफआईआर को खारिज करने की मांग को सर्वोच्च न्यायालय द्वारा ठुकरा दिए जाने के बाद यह स्थिति बनी है। अदालत ने उन्हें चार सप्ताह तक गिरफ़्तारी से सुरक्षा प्रदान की है और कहा है कि इस अन्तराल में वह निचली अदालत से जमानत लेने की कोशिश कर सकते हैं। इसका मतलब है कि उनके पास फरवरी के मध्य तक का समय है।

इस मामले में बाकी विद्वानों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को जमानत देने से इंकार करने वाली निचली अदालत इस मामले में अपवाद करेगी, इसकी संभावना बहुत कम बतायी जा रही है। सुधा भारद्वाज, वर्नन गोंसाल्विस, वरवर राव, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा जैसे अनेक लेखक और मानवाधिकार कार्यकर्ता सरकार के निशाने पर आ चुके हैं और इनमें से ज़्यादातर को गिरफ़्तार किया जा चुका है।

दलित खेत मज़दूर माता-पिता के घर जन्में और अपनी प्रतिभा, लगन, समर्पण और प्रतिबद्धता के ज़रिये विद्वतजगत में ही नहीं बल्कि देश के ग़रीबों-मजलूमों के हक़ों की आवाज़ बुलन्द करते हुए नयी ऊंचाइयों तक पहुंचे प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े की यह आपबीती देश-दुनिया के प्रबुद्ध जनों में चिन्ता एवं क्षोभ का विषय बनी हुई है।

विश्वविख्यात विद्वानों नोम चोमस्की, प्रोफेसर कार्नेल वेस्ट, ज्यां द्रेज से लेकर देश दुनिया के अग्रणी विश्वविद्यालयों, संस्थानों से सम्बद्ध छात्र, कर्मचारियों एवं अध्यापकों ने और दुनिया भर में फैले अम्बेडकरी संगठनों ने एक सुर में यह मांग की है कि ‘पुणे पुलिस द्वारा डॉ. आनंद तेलतुंबड़े, जो वरिष्ठ प्रोफेसर एवं गोवा इन्स्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेण्ट में बिग डाटा एनालिटिक्स के विभागाध्यक्ष हैं, के ख़िलाफ़ जो मनगढंत आरोप लगाए गए हैं, उन्हें तत्काल वापस लिया जाए।’ जानी-मानी लेखिका अरूंधती रॉय ने कहा है कि ‘उनकी आसन्न गिरफ़्तारी एक राजनीतिक कार्रवाई होगी। यह हमारे इतिहास का एक बेहद शर्मनाक और खौफ़नाक अवसर होगा।’

मालूम हो कि इस मामले में प्रोफेसर आनंद तेलतुंबड़े के ख़िलाफ़ प्रथम सूचना रिपोर्ट पुणे पुलिस ने पिछले साल दायर की थी और उन पर आरोप लगाए गए थे कि वह भीमा कोरेगांव संघर्ष के दो सौ साल पूरे होने पर आयोजित जनसभा के बाद हुई हिंसा के लिए जिम्मेदार हैं (जनवरी 2018)। यह वही मामला है जिसमें सरकार ने देश के चन्द अग्रणी बुद्धिजीवियों को ही निशाना बनाया है, जबकि इस प्रायोजित हिंसा को लेकर हिन्दुत्ववादी संगठनों पर एवं उनके मास्टरर्माइंडों पर हिंसा के पीड़ितों द्वारा दायर रिपोर्टों को लगभग ठंडे बस्ते में डाल दिया है।

इस मामले में दर्ज पहली प्रथम सूचना रिपोर्ट (8 जनवरी, 2018) में प्रोफेसर आनन्द का नाम भी नहीं था, जिसे बिना कोई कारण स्पष्ट किए 21 अगस्त 2018 को शामिल किया गया और इसके बाद उनकी गैरमौजूदगी में उनके घर पर छापा भी डाला गया, जिसकी चारों ओर भर्त्सना हुई थी।

गौरतलब है कि जिस जनसभा के बाद हुई हिंसा के लिए उन्हें जिम्मेदार ठहराया जा रहा है, उसका आयोजन सेवानिवृत्त न्यायाधीश पी बी सावंत और न्यायमूर्ति बी जी कोलसे पाटील ने किया था, जिसमें खुद डॉ. आनन्द शामिल भी नहीं हुए थे बल्कि अपने एक लेख में उन्होंने ऐसे प्रयासों की सीमाओं की बात की थी। उन्होंने स्पष्ट लिखा था कि ‘भीमा कोरेगांव का मिथक उन्हीं पहचानों को मजबूत करता है, जिन्हें लांघने का वह दावा करता है। हिन्दुत्ववादी शक्तियों से लड़ने का संकल्प निश्चित ही काबिले तारीफ है, मगर इसके लिए जिस मिथक का प्रयोग किया जा रहा है वह कुल मिला कर अनुत्पादक होगा।’

मालूम हो कि पिछले साल इस गिरफ़्तारी को औचित्य प्रदान करने के ‘सबूत’ के तौर पर पुणे पुलिस ने ‘‘कामरेड आनंद’’ को सम्बोधित कई फर्जी पत्र जारी किए। पुणे पुलिस द्वारा लगाए गए उन सभी आरोपों को डॉ. तेलतुम्बड़े ने सप्रमाण, दस्तावेजी सबूतों के साथ खारिज किया है। इसके बावजूद ये झूठे आरोप डॉ. तेलतुम्बड़े को आतंकित करने एवं खामोश करने के लिए लगाए जाते रहे हैं। जैसा कि स्पष्ट है यूएपीए (अनलॉफुल एक्टिविटीज प्रिवेन्शन एक्ट) की धाराओं के तहत महज़ इन आरोपों के बलबूते डॉ. तेलतुम्बड़े को सालों तक सलाखों के पीछे रखा जा सकता है।

डॉ. आनंद तेलतुंबड़े की संभावित गिरफ़्तारी कई ज़रूरी मसलों को उठाती है।

दरअसल रफ़्ता-रफ़्ता दमनकारी भारतीय राज्य ने अपने-आप को निर्दोष साबित करने की बात खुद पीड़ित पर ही डाल दी है : ‘हम सभी दोषी हैं जब तक हम प्रमाणित न करें कि हम निर्दोष हैं। हमारी जुबां हमसे छीन ली गयी है।’

प्रोफेसर आनंद की संभावित गिरफ्तारी को लेकर देश की एक जानी-मानी वकील ने एक विदुषी के साथ निजी बातचीत में (scroll.in) जो सवाल रखे हैं, वह इस मौके पर रेखांकित करने वाले हैं। उन्होंने पूछा है, ‘आख़िर आपराधिक दंडप्रणाली के प्राथमिक सिद्धांतों का क्या हुआ? आखिर क्यों अदालतें सबूतों के आकलन में बेहद एकांतिक, लगभग दुराग्रही रूख अख्तियार कर रही हैं? आखिर अदालतें क्यों कह रही हैं कि अभियुक्तों को उन मामलों में भी अदालती कार्रवाइयों से गुज़रना पड़ेगा जहां वह खुद देख सकती हैं कि सबूत बहुत कमज़ोर हैं, गढ़े गए हैं और झूठे हैं? आखिर वे इस बात पर क्यों ज़ोर दे रही हैं कि एक लम्बी, थकाऊ, खर्चीली अदालती कार्रवाई का सामना करके ही अभियुक्त अपना निर्दोष होना साबित कर सकते हैं, जबकि जुटाए गए सबूत प्रारंभिक अवस्था में ही खारिज किए जा सकते हैं?’

‘आज हम उस विरोधाभासपूर्ण स्थिति से गुजर रहे हैं कि आला अदालत को रफ़ाल डील में कोई आपराधिकता नज़र नहीं आती जबकि उसके सामने तमाम सबूत पेश किए जा चुके हैं, वहीं दूसरी तरफ वह तेलतुम्बड़े के मामले में गढ़ी हुई आपराधिकता पर मुहर लगा रही हैं। न्याय का पलड़ा फिलवक्त़ दूसरी तरफ झुकता दिखता है। इस बात को मद्देनज़र रखते हुए कि अदालत ने जनतंत्र में असहमति की भूमिका को रेखांकित किया है, आखिर वह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, बुद्धिजीवियों के लिए दूसरा पैमाना अपनाने की बात कैसे कर सकती है।’

लेखकों, संस्कृतिकर्मियों, प्रबुद्ध जनों की यह सभा इस समूचे घटनाक्रम पर गहरी चिन्ता प्रकट करती है और सरकार से यह मांग करती है कि उनके ख़िलाफ़ लगाए गए सभी फ़र्जी आरोपों को तत्काल खारिज किया जाए।

हम देश के हर संवेदनशील, प्रबुद्ध एवं इंसाफ़ पसंद व्यक्ति के साथ, कलम के सिपाहियों एवं सृजन के क्षेत्र में तरह तरह से सक्रिय लोगों एवं समूहों के साथ इस चिन्ता को साझा भी करना चाहते हैं कि प्रोफेसर आनन्द तेलतुम्बड़े, जो जाति-वर्ग के अग्रणी विद्वान हैं, जिन्होंने अपनी छब्बीस किताबों के ज़रिये - जो देश- दुनिया के अग्रणी प्रकाशनों से छपी हैं, अन्य भाषाओं में अनूदित हुई हैं और सराही गयी हैं - अकादमिक जगत में ही नहीं सामाजिक-राजनीतिक हल्कों में नयी बहसों का आगाज़ किया है, जो कमेटी फ़ॉर प्रोटेक्शन आफ डेमोक्रेटिक राइट्स - जो मानवाधिकारों की हिफाजत के लिए बनी संस्था है - के सक्रिय कार्यकर्ता रहे हैं, जिन्होंने जनबुद्धिजीवी के तौर पर सत्ताधारियों को असहज करनेवाले सवाल पूछने से कभी गुरेज नहीं किया है, और जो फ़िलवक्त गोवा इन्स्टिट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट में ‘बिग डाटा एनालिटिक्स’ के विभाग प्रमुख हैं और उसके पहले आईआईटी में प्रोफेसर, भारत पेट्रोलियम कार्पोरेशन लिमिटेड के कार्यकारी निदेशक और पेट्रोनेट इंडिया के सीईओ जैसे पदों पर रहे चुके हैं, क्या हम उनकी इस आसन्न गिरफ्तारी पर हम मौन रहेंगे!

आइए, अपने मौन को तोड़ें और डॉ. अम्बेडकर के विचारों को जन जन तक पहुंचाने में मुब्तिला, उनके विचारों को नए सिरे से व्याख्यायित करने में लगे इस जनबुद्धिजीवी के साथ खड़े हों!

अशोक भौमिक, जन संस्कृति मंच (जसम)

हीरालाल राजस्थानी, दलित लेखक संघ (दलेस)

सुभाष गाताडे, न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव

रमणिका गुप्ता, रमणिका फाउंडेशन

प्रेम सिंह, साहित्य वार्ता

अली जावेद, प्रगतिशील लेखक संघ (प्रलेस)

मुरली मनोहर प्रसाद सिंह, जनवादी लेखक संघ (जलेस)

 

Anand Teltumbde
dalit scholar
Bhima Koregaon Case
Maharashtra
arban naxal
jsm
जसम
जलेस
प्रलेस
दलेस
रमणिका फाउंडेशन
साहित्य वार्ता
न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव

Related Stories

महाराष्ट्र की लावणी कलाकार महामारी की वजह से जीवनयापन के लिए कर रहीं संघर्ष

महाराष्ट्र: पुरातत्व विभाग पर कोरोना की मार, वित्तीय संकट गहराने से 375 विरासत स्थलों का संरक्षण बंद

अविनाश पाटिल के साथ धर्म, अंधविश्वास और सनातन संस्था पर बातचीत

“सच जानने के लिए हमें अपना मीडिया खुद बनाना होगा”

"ज़र्द पत्तों का बन, अब मेरा देस है…"

महाराष्ट्र में प्रगतिशील आंदोलनों का एक लम्बा इतिहास रहा है: मेघा पान्सारे


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License