NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आरएसएस की "चाणक्य नीति"
ये संगठन निरंतर बीजेपी के लिए काम करने को लेकर जाना जाता रहा है और राज्य शक्ति का इस्तेमाल अपने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करता रहा है लेकिन जब बीजेपी जनादेश को खोना शुरू करती है तो ये ख़ुद इससे दूरी बना लेता है।
अजय गुदावर्ती
08 May 2019
आरएसएस की चाणक्य नीति

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) प्रमुख मोहन भागवत ने हाल ही में कहा कि ये एक सांस्कृतिक संगठन है और 2019 के आम चुनावों के परिणामों से इतर यह अपना काम करता रहेगा। आरएसएस अपनी सुविधा के अनुसार भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) से दूरी बनाने और अपना अधिकार व्यक्त करने के लिए जाना जाता रहा है। यह बीजेपी के लिए निरंतर काम करता है और राज्य की शक्ति का इस्तेमाल अपने हिंदुत्व के एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए करता है और जब बीजेपी अपने जनादेश को खोना शुरू कर देती है तो यह ख़ुद ही दूरी बना लेता है।

दूसरों का मूल्यांकन करने की चाणक्य नीति के रूप में यह आरएसएस की दीर्घकालिक रणनीति रही है लेकिन इसने कभी भी अपने स्वयं के काम को जनता द्वारा परीक्षण करने की अनुमति नहीं दी। एक सत्य पौराणिक ब्राह्मणवादी रीति में यह ख़ुद को समाज की सामूहिक दृष्टि से ऊपर समझता है और सार्वजनिक नैतिकता के तिरस्कार से ग्रस्त है यहाँ तक कि इसका इस्तेमाल करता है और नियमित रूप से इसकी निंदा करता है। इसके पास अपने स्वयंसेवकों की पंजीकृत सूची भी नहीं है लेकिन तर्क देता है कि ये सांस्कृतिक संगठन सभी के लिए खुला है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ स्वयं को एक सांस्कृतिक संगठन मानता है जिसका राजनीति से कोई लेना-देना नहीं है लेकिन चुनावों के दौरान सक्रिय भूमिका सहित अक्सर राजनीतिक भूमिका निभाता रहता है। यह अपने कपटी उद्देश्यों के साथ स्वीकार्य सार्वजनिक मानदंडों को मिलाता है। इसका ख़ुद का कोई भी प्रचारक जो दैनिक रूप से निरंतर टिप्पणी करता है शायद ही ख़ुद को पहचानता है। वे मानते हैं या यों कहें कि हमें विश्वास दिलाते हैं कि वे पहचान के लिए तरसते नहीं हैं और इसलिए गुमनाम बने रहना चाहते हैं। शायद टेलीविज़न न्यूज़ चैनलों पर पहली बार देश रतन, राघव अवस्थी और संदीप महापात्रा ने ख़ुद को आरएसएस के विचारकों या प्रवक्ताओं के रूप में पहचान दिलाई है। लेकिन जैसे-जैसे चुनाव क़रीब आ रहे हैं इनमें से बाद के दो व्यक्ति ग़ायब नजर आ रहे हैं जबकि पहले व्यक्ति को अब एक राजनीतिक विश्लेषक के रूप में पेश किया जाता है।

पूरे तौर पर समर्पित प्रचारक राम माधव अब महासचिव हैं और बीजेपी के लिए एक प्रमुख चुनाव-रणनीतिकार हैं। यह आश्चर्य की बात नहीं है यदि वह धीरे-धीरे लोगों की नज़रों से ग़ायब हो जाएँ या आरएसएस की तरफ़ लौट जाएँ। यही अपने कार्यों की ज़िम्मेदारी लिए बिना सत्ता का आनंद लेने की रणनीति है। ज़िम्मेदारी और आलोचनात्मक हमला बीजेपी या अन्य सहयोगी संगठनों द्वारा किए जाते हैं। इन सहयोगी संगठनों को अक्सर अनुषंगी संगठन के रूप में जाना जाता है जिन्हें अन्य रूप में संघ परिवार के हिस्से के रूप में मान्यता प्राप्त है।

फिर सहयोगी संगठन तब दूर हो जाते हैं जब उनके अनुरूप कार्य नहीं होता है लेकिन मौन समर्थन और संबंध जारी रखते हैं। यह एक नियमित कार्य है जो आरएसएस बीजेपी के लिए लायी जिसमें उसके कई बड़े नेता भड़काऊ और अक्सर असंवेदनशील टिप्पणी करते हैं जिसकी बीजेपी के केंद्रीय नेतृत्व द्वारा निंदा की जाती है या उससे बचती है जिसने कभी भी उनके ख़िलाफ़ कोई कार्यवाही नहीं की है।

संघ के कई अन्य सामान्य व्यवहारों में से इसका गुण हमला करना और छिप जाना है। यह नियमित रूप से विपक्ष को दोषी ठहराता है जिसका वह ख़ुद ही दोषी है। यह विपक्ष को हिंसक, सांप्रदायिक, अशिष्ट, षडयंत्रकारी, झूठ बोलने वाला, पीछे से हमला करने वालों में शामिल, असहिष्णुता और घृणा में लिप्त होने का दोषी ठहराता है। दूसरों को दोषी ठहराने के संघ के तरीक़ों को समझा जा सकता है। यह उनके ख़िलाफ़ आलोचना को बेअसर करने की उन्हें अनुमति देता है और साथ ही साथ यह भ्रम पैदा करता है कि कौन क्या कर रहा है। यह आम नागरिक के मन में अलगाव, घृणा और निराशावाद का भाव पैदा करता है। रोज़मर्रा की राजनीति और बड़े पैमाने पर कुटिलता से अलगाव के माध्यम से इस विघटन की विधा को अपने सत्तावादी एजेंडे को फलित होने के लिए एक पूर्व शर्त के रूप में आरएसएस द्वारा माना जाता है। यही कारण है कि आरएसएस ने उच्च शिक्षण संस्थानों के ख़िलाफ़ सक्रिय रूप से काम किया है।

विशेष रूप से समाज के निचले तबके से जानकार नागरिक जो आत्म-विश्वासी होता है वह एक पदानुक्रमित सामाजिक व्यवस्था बनाने में बाधा है जहाँ आरएसएस नेतृत्व करता है और शेष इसका अनुसरण करता है। जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) विशेष भूमिका में आया था क्योंकि इसने निम्न जातियों और वर्गों में से कुलीन वर्ग बनाने में भूमिका निभाई थी। जेएनयू को न केवल इसकी वैचारिक प्रवृत्तियों के लिए नापसंद किया जाता है बल्कि निम्न समूहों से कुलीन वर्ग बनाने की ये सामाजिक भूमिका जिसे आरएसएस अपने केंद्रीयकृत राज्य ढांचे के लिए किसी भी तरह के विरोध या राय के अंतर के एक बड़े ख़तरे के रूप में मानता है।

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और इससे कहीं ज़्यादा हिंदू महासभा ने हिंदू समाज में व्याप्त छूआछूत जैसी प्रथाओं को समाप्त करने के लिए समाज सुधार आंदोलनों की शुरूआत की थी। मदन मोहन मालवीय सामाजिक सुधार और वंचित वर्गों या फिर हरिजन को इकट्ठा करने को लेकर हिंदू एकता के अग्रणी रहे। हालांकि विचारक एम.एस. गोलवलकर और 1930 के पश्चात आरएसएस के उदय के साथ यह राष्ट्र-राज्य के लिए ख़तरों की एक पीड़ानोन्मादी कल्पना की ओर मुड़ गया जो अनिवार्य रूप से निम्न जातियों की संभावित स्वतंत्रता की चिंता थी और बिखरती हिंदू पदानुक्रमित व्यवस्था जो इसे मुस्लिम शासन की अधीनता को स्वीकार करने को मजबूर हो जाएगा। कई मायनों में मुस्लिम गिरते हुए ब्राह्मणवादी शासन के वाचक बन गए। यह पीड़ानोन्माद प्राचीन काल पर पूर्ण दावे के साथ अपनी स्वयं की धारणा में और प्रतिशोधी राजनीति की प्रथा में आरएसएस को वैधता देता है।

आरएसएस अपनी रणनीति को ग़लत तरीक़े से सामाजिक श्रेष्ठता की स्थिति से विस्थापित करने वालों के रूप में मानता है जो पहले मुस्लिम शासन द्वारा किया गया और बाद में औपनिवेशिक शासकों द्वारा। आरएसएस और प्राचीन काल तथा भारतीय संस्कृति से इसका प्रेम इसके ब्राह्मणवादी चिंता का पर्याय है जो नागपुर के चितपावन ब्राह्मणों द्वारा नेतृत्व किया गया। समय के साथ ये मानसिक उन्माद संस्थागत पुराने तरीक़े का वर्चस्व प्राप्त करने के लिए हीनता की गहरी भावना और अधूरे अहंकार के रूप में स्थापित किया गया।

विश्व भर के कई समाजों में औपनिवेशिक आधुनिकता वैषयिक भावना पैदा करती है जो चिरस्थायी हीनता से ग्रस्त है। हालांकि भारतीय संदर्भ में ब्राह्मणवाद प्राकृतिक श्रेष्ठता के विचार के साथ कोलाहलपूर्ण अहंकार के आयाम को जोड़ता है। यह हीनता-श्रेष्ठता द्वंद्वात्मक पद्धति खुद को सभी समतावादी सिद्धांतों के आपराधिक विनाश के माध्यम से व्यक्त करती है और लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं का तिरस्कार करती है। हीनता और संशय तब न केवल तथाकथित निम्न जातियों बल्कि हिंदू जाति की विशिष्ट संरचना का हिस्सा बन जाती है। इसलिए वैकल्पिक राजनीति शुरू करना मुश्किल है और आरएसएस जो सफ़ल हो रहा है वह एक ऐसी राजनीति शुरू करने में है जो विभिन्न प्रकार की हीनताओं के बीच समानता का चित्रण करता है जो अंततः आत्म-घृणा की एक बड़ी घटना में तब्दील हो जाता है और जो लक्ष्य की खोज में होते हैं तथा मुस्लिम निशाना बन जाते हैं। जिहाद तथा आक्रामक नव-उदारवाद के वैश्विक तर्क ने इस प्रकार के आत्म-वास्तविकीकरण और तर्कसंगत को और अधिक बढ़ावा दिया है।

(लेखक दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के राजनीतिक अध्ययन केंद्र से संबद्ध हैंं। उन्होंने हाल ही में 'इंडिया आफ़्टर मोदी: पॉपुलिज़्म एंड द राइट' पुस्तक लिखी है। इस लेख में व्यक्त विचार निजी हैं।)

RSS
BJP
JNU
Neo liberal policies
Chitpawan brahmins
untouchability
Hindu Mahasabha
VHP
Bajarang Dal

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License