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आरक्षण पर भागवत का बयान : समझने वाले समझ गए, जो न समझे…
संघ प्रमुख का ताजा बयान कोई सामान्य परिस्थितियों में नहीं आया है। मौके की नज़ाकत और राजनीति की जरूरत के हिसाब से आरक्षण पर उनका बयान आया है।
प्रदीप सिंह
21 Aug 2019
संघ प्रमुख मोहन भागवत
फाइल फोटो। साभार : NDTV KHABAR

आरक्षण पर संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान के बाद देश की राजनीति गरम है। एक बार फिर आरक्षण पर ख़तरा और बीजेपी की मंशा सवालों के घेरे में है। यह पहला अवसर नहीं है जब संघ प्रमुख ने आरक्षण पर बयान दिया हो। इस मुद्दे पर वह बयान देते रहे हैं। आरक्षण पर ‘खुल कर चर्चा’ करने की बात करके उन्होंने एक बार आरक्षण को चर्चा में ला दिया है।

संघ प्रमुख का ताजा बयान कोई सामान्य परिस्थितियों में नहीं आया है। मौके की नज़ाकत और राजनीति की जरूरत के हिसाब से आरक्षण पर उनका बयान आया है। इसके पहले 2015 में बिहार विधानसभा चुनाव के समय आरक्षण पर उनका बयान सुर्खियों में था। इस बार भी हरियाणा, महाराष्ट्र और झारखंड विधानसभा चुनाव के पहले आरक्षण पर चर्चा गरम है। ऐसे में कहा जा रहा है कि तीनों चुनावी राज्यों में सवर्ण गोलबंदी के लिए भागवत ने बयान दिया है। एक हद तक यह बात सही भी है। लेकिन इस बयान के पीछे कांग्रेस का राजनीतिक खेल है। जिसे संघ-भाजपा बिगाड़ना चाहती है।

दरअसल, अभी हाल ही में कांग्रेस सरकार ने छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आरक्षण कोटा को बढ़ाने की घोषणा की है। दोनों राज्यों में डेढ़ दशक तक भाजपा की सरकार रही। और एक राज्य में तो ओबीसी तबके से आने वाले शिवराज ही मुख्यमंत्री रहे। लेकिन उन्होंने आरक्षण को नहीं बढ़ाया। ऐसे में कांग्रेस ने मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में दलितों और ओबीसी के आरक्षण का कोटा बढ़ाकर देश भर में एक संदेश देने की कोशिश की है। भाजपा की परेशानी यहीं से शुरू होती है।

छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने राज्य में ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया है। एससी आरक्षण में भी बढ़ोत्तरी करके 13 प्रतिशत करने का एलान किया है। राज्य में एसटी आरक्षण पहले से ही 32 प्रतिशत है। यानी नई घोषणा के मुताबिक, छत्तीसगढ़ में एससी-एसटी-ओबीसी का कुल आरक्षण 72 प्रतिशत हो गया है। इसी तरह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी ओबीसी आरक्षण 14 प्रतिशत से बढ़ाकर 27 प्रतिशत कर दिया है। कांग्रेस इन दिनों अपने राजनीतिक जीवन के सबसे बुरे और कठिन दौर में है। तब दो कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों ने अपने राज्यों में शिक्षा और नौकरियों में ओबीसी कोटा लगभग दोगुना करके राष्ट्रीय स्तर पर दलितों-पिछड़ों को संदेश देने की कोशिश की है।

अब भाजपा खुलेआम छत्तीसगढ़ और मध्य प्रदेश में आरक्षण कोटे में हुई बढ़ोत्तरी का विरोध नहीं कर सकती है। इसलिए कहीं भाजपा के सवर्ण मतदाता नाराज न हो जाएं, संघ प्रमुख ने एक दांव खेला है। इस दांव से कांग्रेस की तरफ सवर्ण मतदाताओं के जाने पर रोक लगेगी। और पिछड़ों-दलितों में कांग्रेस के आधार बढ़ाने का प्रयास विवाद की श्रेणी में आ जाएगा। ताजा बयान इसी रणनीति का हिस्सा है।

यह बात सही है कि नब्बे के दशक में जब देश में ओबीसी आरक्षण लागू होने की घोषणा हुई तो कांग्रेस ने इसका खुलकर विरोध नहीं किया। बीजेपी राजनीतिक समीकरणों की विवशता के कारण आरक्षण का खुलेआम समर्थन और विरोध करने से परहेज करती रही है। ऐसे में सवाल उठता है कि आरक्षण पर संघ-बीजेपी का नज़रिया क्या है?

पहले संघ प्रमुख मोहन भागवत के बयान को देखते हैं। रविवार को दिल्ली में ‘ज्ञान उत्सव’ कार्यक्रम में उन्होंने कहा, “जो आरक्षण के समर्थन में हैं और जो विरोध में हैं, उनके बीच दोस्ताना माहौल में चर्चा होनी चाहिए।”अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए उन्होंने कहा- ‘‘मैंने आरक्षण के बारे में पहले भी बात की थी, लेकिन इससे बहुत ज्यादा उथल-पुथल मच गई और पूरी चर्चा मुख्य मुद्दे से कहीं और भटक गई। जो लोग आरक्षण के समर्थन में हैं, उन्हें चर्चा ऐसे लोगों के हितों का ध्यान रखते हुए करनी चाहिए, जो आरक्षण के खिलाफ हैं। इसी तरह से विरोध करने वालों को भी चर्चा में शामिल होना चाहिए। आरक्षण पर जब भी चर्चा हुई है, इस पर तीखी प्रतिक्रिया आई है। हमारे समाज के विभिन्न वर्गों में सद्भाव की आवश्यकता है।’’

संघ प्रमुख के बयान के दिन तो इस पर राजनीति दलों की तरफ से कोई  प्रतिक्रिया नहीं आई। लेकिन दूसरे दिन कांग्रेस, बसपा और राजद मैदान में उतर गए। जैसे-जैसे दिन बीत रहे हैं, संघ प्रमुख की आशंका सही साबित हो रही है। संघ-भाजपा पर आरक्षण को खत्म करने और दलित-पिछड़ा विरोधी होने का आरोप-प्रत्यारोप लगना शुरू हो गया है।

बसपा प्रमुख मायावती ने भागवत के बयान पर कहा, “संघ कहता है कि आरक्षण के मुद्दे पर खुले दिल से चर्चा होनी चाहिए। लेकिन, ऐसी चर्चा शक का माहौल बनाएगी, जिसकी आवश्यकता नहीं है। आरक्षण संवैधानिक और मानवीय मसला है। इससे छेड़छाड़ की बजाय संघ को अपनी आरक्षण विरोधी मानसिकता छोड़नी चाहिए।”

कांग्रेस ने कहा कि भाजपा सरकार पर बुनियादी मुद्दों से लोगों का ध्यान मुख्य  भटकाने का आरोप लगाते हुए कहा कि संघ और भाजपा की आदत हो गई है कि मुद्दे उछालो और समाज में मतभेद पैदा करो। ऐसे मुद्दे उछालो जो मतदाताओं का ध्यान सरकार की समस्याओं से भटका सके।

कांग्रेस नेता पीएल पुनिया ने कहा, “बाबा साहब अंबेडकर मानते थे कि सामाजिक-आर्थिक असमानता एक चुनौती है। आरक्षण भी इसी चुनौती को ध्यान में रखते हुए लाया गया था। भाजपा ने हमेशा ही संविधान को चुनौती देने की कोशिश की। और, अब वे आरक्षण पर चर्चा चाहते हैं।”

आरक्षण पर विवाद बढ़ता देख दूसरे दिन संघ की तरफ से डैमेज कंट्रोल की कोशिश हुई । आरएसएस के अखिल भारतीय प्रचार प्रमुख अरुण कुमार ने ट्वीट किया, ‘‘सरसंघचालक मोहन भागवत के दिल्ली में एक कार्यक्रम में दिए गए भाषण के एक भाग पर अनावश्यक विवाद खड़ा करने का प्रयास किया जा रहा है। समाज में सद्भावना पूर्वक परस्पर बातचीत के आधार पर सब प्रश्नों के समाधान का महत्व बताते हुए उन्होंने आरक्षण जैसे संवेदनशील विषय पर विचार करने का आह्वान किया। जहां तक संघ का आरक्षण के विषय पर मत है, वह अनेक बार स्पष्ट किया जा चुका है कि अनुसूचित जाति, जनजाति, ओबीसी एवं आर्थिक आधार पर पिछड़ों के आरक्षण का संघ पूर्ण समर्थन करता है।”

लेकिन इस सफाई के बाद भी विवाद थमता हुआ नहीं दिखा। इसके बाद केंद्र सरकार ने मामले को अपने हाथ में लेते हुए केन्द्रीय मंत्रियों को मैदान में उतार दिया है।

भाजपा के सहयोगी और केन्द्रीय मंत्री रामविलास पासवान आरक्षण के मुद्दे पर किसी भी ‘‘बहस’’ की जरूरत नहीं समझते हैं। उनका कहना है कि यह समाज के कमजोर वर्गों का संवैधानिक अधिकार है। पासवान ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कई बार दोहराया है कि आरक्षण में छेड़छाड़ नहीं की जा सकती है। पासवान कहते हैं, ‘‘आरक्षण अब ऊंची जातियों के गरीबों के लिए भी उपलब्ध है इसलिए यह असंभव है कि इसे समाप्त कर दिया जाएगा। विपक्षी दल विवाद को तूल देने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन मेरा मानना है कि उनके झूठ पर लोग विश्वास नहीं करेंगे।’’

कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने भी संघ प्रमुख के इस बयान पर ट्वीट किया कि आरएसएस का हौसला बढ़ा हुआ है और मंसूबे खतरनाक हैं। लेकिन सरकार की तरफ मंत्री सफाई देने में लगे हैं। केंद्रीय मंत्री रामदास अठावले ने कहा कि आरक्षण संवैधानिक अधिकार है। दलितों से इसे कोई भी नहीं छीन सकता है। आरक्षण पर चर्चा की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह स्थायी रहेगा। 

भाकपा-माले महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य ने कहा है कि तीन तलाक के अपराधीकरण, अनुच्छेद 370 के निरस्तीरकण और जम्मू-कश्मीर में सर्वनाश के उपरांत, आरएसएस ने अब अपना ध्यान आरक्षण की ओर मोड़ दिया है।

उन्होंने कहा, “पहले कोड शब्द ‘आरक्षण की समीक्षा’ था, अब नया कोड शब्द ‘बातचीत’ है। दरअसल, इसके जरिये संघ गिरोह आरक्षण को खत्म कर देने की चालें खेल रहा है। आरक्षण के खिलाफ भाजपा-आरएसएस द्वारा थोपे गए इस युद्ध का मुकम्मल जवाब दिया जाएगा।”

आर्य समाज के नेता स्वामी अग्निवेश कहते हैं, “ बीजेपी सरकार जीवन से जुड़े मुद्दों पर कोई खास चर्चा नहीं करती है। वह कभी कश्मीर तो कभी राम मंदिर और पाकिस्तान को लाती रहती है। आज इस देश के 18 से 35 वर्ष के युवाओं के सामने सबसे बड़ी समस्या रोजगार का है। अंध निजीकरण और श्रमिक अधिकारों पर लगातार हो रहे सुनियोजित हमले से रोजगार के अवसर कम हो रहे हैं। ऐसे में संघ-बीजेपी ने आरक्षण का नया राग छेड़ दिया है।”       

अभी, जब लोग कश्मीर मुद्दे को लेकर इस तरह उछल रहे हैं जैसे कोई जीत मिली हो ठीक उसी वक्त सूचनाएं आ रही हैं कि ऑटोमोबाइल सेक्टर में 2 लाख नौकरियां खत्म हो गई हैं, रेलवे के निजीकरण वाया निगमीकरण के विरोध में रेलवे कर्मचारियों के संगठन सड़कों पर उतर रहे हैं। सत्ता के लिये युवा वर्ग ही सबसे बड़ी चुनौती होता है इसलिये इस वर्ग को दिग्भ्रमित बनाए रखने के लिये सत्ता-संरचना हर सम्भव कोशिश कर रही है। आरक्षण की समीक्षा उसी की एक कड़ी है।

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