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Faiz Ahmed Faiz

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  • राजेंद्र शर्मा
    फ़ैज़, कबीर, मीरा, मुक्तिबोध, फ़िराक़ को कोर्स-निकाला!
    23 Apr 2022
    कटाक्ष: इन विरोधियों को तो मोदी राज बुलडोज़र चलाए, तो आपत्ति है। कोर्स से कवियों को हटाए तब भी आपत्ति। तेल का दाम बढ़ाए, तब भी आपत्ति। पुराने भारत के उद्योगों को बेच-बेचकर खाए तो भी आपत्ति है…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    फ़ैज़: हम ने इस इश्क़ में क्या खोया है क्या सीखा है... आजिज़ी सीखी ग़रीबों की हिमायत सीखी
    13 Feb 2022
    ‘इतवार की कविता’ में आज फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की 111वीं सालगिरह और प्यार के दिन वैलेंटाइन्स डे की पूर्व बेला पर पढ़ते हैं फ़ैज़ की यह नज़्म जिसमें वह बात कर रहे हैं अपने रक़ीब से...
  • फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    ...यूँ ही हमेशा उलझती रही है ज़ुल्म से ख़ल्क़/ न उनकी रस्म नई है, न अपनी रीत नई
    13 Feb 2021
    भारतीय उपमहाद्वीप के शानदार शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ का आज जन्मदिन है। 110वीं सालगिरह। इस मौके पर फिर पढ़ते हैं उनकी एक बेहतरीन नज़्म “निसार मैं तेरी गलियों के अए वतन…” जो आज और भी मौज़ूं है।
  • हमें आत्मसमर्पण के लिए आसमान नहीं छूना है
    ट्राईकोंटिनेंटल : सामाजिक शोध संस्थान
    हमें आत्मसमर्पण के लिए आसमान नहीं छूना है
    09 Aug 2020
    अमीरों की ऋण हड़ताल, वित्त के उदारीकरण, श्रम क़ानूनों के विनियमन और कल्याणकारी सेवाओं की अनदेखी से सामाजिक असमानता गहरी हुई और राजनीति में दुनिया की विशाल आबादी की भूमिका कम हुई। ‘टेक्नोक्रेट्स’-…
  • Eid mubarak
    न्यूज़क्लिक डेस्क
    ईद मुबारक...आइए हाथ उठाएँ हम भी, हम जिन्हें रस्म-ए-दुआ याद नहीं...
    25 May 2020
    “आइए अर्ज़ गुज़ारें कि निगार-ए-हस्ती/ज़हर-ए-इमरोज़ में शीरीनी-ए-फ़र्दा भर दे…” ईद उल-फ़ित्र के इस मुबारक मौके पर आइए पढ़ते हैं मशहूर शायर फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ की नज़्म ‘दुआ’।
  • modi
    डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र : "हम देखेंगे...", कि हमें कुछ भी न दिखे
    22 Mar 2020
    देखते रहने वालों का सिर्फ़ देखते रहना उन्हें फलीभूत भी हो रहा है, इनाम भी दिला रहा है। यकीन न हो तो इनाम पाने वालों से पूछ लीजिये, गोगोई जी से पूछ लीजिये। जैसे देखते रहना गगोई जी को फलीभूत हुआ है,…
  • फ़ैज़
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आईआईटी कानपुर ने कहा, फ़ैज़ की नज़्म पढ़ने के लिए जगह और समय उचित नहीं था
    16 Mar 2020
    कमेटी की रिपोर्ट के बाद सवाल यह उठता है कि क्या कविता, गीत या किसी भी कला के लिए 'उचित' समय या स्थान होता है, और यदि होता है तो इस कौन निर्धारित करता है।
  • manjari chaturvedi
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    'कव्वाली यहां नहीं चलेगी'...क्यों नहीं चलेगी? क्योंकि योगी जी आने वाले हैं!
    18 Jan 2020
    कला-संगीत और नृत्य में भी हदबंदी की जा रही है। उसे हिन्दू-मुसलमान में बांटने का प्रयास किया जा रहा है। ऐसा ही कुछ एक बार फिर हुआ है उत्तर प्रदेश में। इक़बाल और फ़ैज़ की नज़्मों के बाद अब निशाने पर आई…
  • Faiz Ahamad faiz
    फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
    चले चलो कि वो मंज़िल अभी नहीं आई...
    05 Jan 2020
    फ़ैज़ ने एक नहीं ऐसी तमाम नज़्में-ग़ज़लें कहीं हैं जो हमारे हुक्मरां, हमारे शासक को परेशान करती हैं, चुनौती देती हैं, सवाल पूछती हैं। ‘इतवार की कविता’ में पढ़ते हैं उन्हीं की ऐसी ही एक नज़्म ‘सुब्ह-ए…
  • hum dekhenge faiz ahmed faiz
    डॉ. प्रणय कृष्ण
    हां, हुक्मरान आपको फ़ैज़ और उनकी नज़्म से डरना ही चाहिए...
    02 Jan 2020
    जामिया में छात्रों पर लाठीचार्ज के विरोध में कानपुर आईआईटी के छात्रों ने विरोध प्रदर्शन किया था जिसमें फ़ैज़ की मशूहर नज़्म ‘हम देखेंगे’ को गाया था। अब इस पर जांच कमेटी बैठाई गई है जो यह भी जांच…
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CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License