NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
साहित्य-संस्कृति
भारत
राजनीति
बही-खाता 2019 : बधाई! सरकार अब साहूकार बन गई है
सरकार ने बता दिया है कि लाल कपडे़ में बंधे बही-खाते खोल कर वह सेठ-साहूकार बन गई है, मदर इंडिया की कन्हैयालाल बन गई है।
डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
07 Jul 2019
budget 2019-20
Image Courtesy : businessline

केंद्रीय बही-खाता प्रस्तुत हो गया है। वैसे तो बजट में ऐसा कुछ खास होता नहीं है जो हमारी रोजमर्रा की जिन्दगी को खासा बदल सके। बस वही किसी चीज पे टैक्स कम हुआ और किसी पे ज्यादा। थोड़ा बहुत भाषण और बजट खत्म। पर कहा जा रहा है कि इस बार कुछ खास बात हुई है। 

कहा जा रहा है कि ऐसा पहली बार हुआ है कि एक महिला वित्तमंत्री ने बजट, ओह सॉरी, बहीखाता प्रस्तुत किया। पर यह बजट पूर्णकालिक नहीं था। अब से लेकर इकतीस मार्च दो हजार बीस तक। यानी नौ महीने से भी कुछ दिन कम। और जहां तक रही महिला वित्तमंत्री की बात, इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री रहते हुए वित्तमंत्री का कार्यभार सम्हालते हुए बजट प्रस्तुत कर चुकी हैं। तो यह बात भी खास न हुई और न ही पहली बार हुई।

tirchi najar after change new_21.png

ऐसा भी नहीं है कि इस बार इस बही-लेखे में पूरे साल का हिसाब किताब एक साथ प्रस्तुत कर दिया गया है। सालाना बजट कोई ऐसी प्रस्तुति नहीं है कि उसमें वर्ष भर में होने वाले सारे वित्तीय नियम, कानून और व्यवस्थायें एक बार में ही बता दी जाएं। हमेशा से ही वित्तीय घोषणाएं संसद के अंदर भी और संसद के बाहर भी, वर्ष भर होती रहती हैं। ऐसा पहले भी होता रहा है, इस बार भी होगा और आगे भी होता रहेगा। बजट सत्र तो एक पर्व है, संसदीय प्रणाली का। जो इस बार भी मनाया जा रहा है हर बार की तरह। इसमें भी कुछ खास बात नहीं है। 

इस बार जो खास हुआ वह यह है कि माननीय वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण जी अपने बजट पेपर, जिन्हें बही-लेखा या बही-खाता बताया गया, लाल रंग के कपड़े की पोटली में बांध कर लायीं। कहा गया कि ब्रीफकेस गुलामी की, उपनिवेशवाद की निशानी है, औपनिवेशिक है। हम तो सदियों से ही अपना सामान पोटलियों में ही बांधते आये हैं। सेठ-साहूकार अपने बहीखाते लाल रंग की पोटली में बांध कर सहेजते आये हैं। सेठ-साहूकारों के बारे में हम जानते ही हैं। उनकी गरीबों पर निर्ममता जग जाहिर है। जिन्होंने स्वयं न झेला हो, उन्हें भी प्रेमचंद की कहानियां, उपन्यास पढ़ सेठ-साहूकारों के जुल्मों का एहसास अवश्य हुआ होगा। नहीं तो मदर इंडिया का कन्हैयालाल आपको याद होगा ही। तो सरकार ने बता दिया है कि लाल कपडे़ में बंधे बही-खाते खोल कर वह सेठ-साहूकार बन गई है, मदर इंडिया की कन्हैयालाल बन गई है।

पर यह बही-लेखा, ठीक से बही-लेखा भी नहीं था। उसमें तो एक तरफ रकम की आमद होती है और दूसरी ओर रकम खर्च का हिसाब। यानी बायीं ओर यह होता है कि पैसा कहां से आया, कहां से आयेगा अर्थात आमदनी का हिसाब। और दूसरी ओर अर्थात दायीं ओर खर्च का हिसाब किताब होता है- पैसा कहां गया और कहां जायेगा। पर इसमें तो वह भी नदारद था। बस भाषण ही भाषण था। बस कह दिया गया कि यह कमाई और खर्च का हिसाब भाषण के साथ संलग्न है। पढ़ा भाषण ही गया। इस भाषणों की सरकार से सिर्फ भाषणबाजी की ही उम्मीद की जा सकती है।

असली खास बात तो तब होगी जब सरकार इन बहीखातों को हिन्दू संवत के अनुसार प्रस्तुत एवं लागू करेगी। बजट प्रावधान हिन्दू नववर्ष के हिसाब से माने जायेंगे। बही-खाते लाल रंग के कपडे़ में बांध कर मंदिर में रख दिये जायेंगे और दीपावली के शुभ मुहूर्त में उन बही-खातों की और देवी महालक्ष्मी की पूजा अर्चना की जायेगी। लगता नहीं है कि सरकार देश की उन्नति के लिए इन टोनों टोटकों के अतिरिक्त कुछ सोच सकती है।

सरकार ब्रीफकेस की गुलामी से तो बच गई पर गुलामी की असली प्रतीक अंग्रेजी की गुलामी करती रही। बीच में एक आध हिंदी के शब्दों को छोड़कर बाकी सारा भाषण अंग्रेजी में था। और उसके भी ऊपर बार बार पांच ट्रिलियन डालर की बात होती रही। और भइया, यह डालर कहां की मुद्रा है। क्या मोदी जी इसे देश की मुद्रा बना कर देश को अमेरिका का गुलाम तो नहीं बनाने जा रहे। और यह पांच ट्रिलियन, यह कहां की गिनती है। क्या हमारी अपनी भाषा गिनती के मामले में कमजोर है। हमारी हिन्दी में तो लाख, करोड़, अरबों, खरबों के बाद भी गिनती जारी रहती है। नील, पद्म और शंख इसके बाद ही आते हैं। सरकार को गुलामी सिर्फ और सिर्फ बजट शब्द और ब्रीफकेस में दिखाई देती है क्योंकि लाल रंग के कपडे़ की पोटली में बंधे हुए बहीखाते से उसकी सेठ-साहूकारों वाली मानसिकता पूरी होती है।

अंत में : व्यंग्य नहीं, सच्ची बात। मोदी जी को और उनकी सरकार को यह पता है, गंभीर बात के साथ कोई शिगूफा छोड़ दो। लोगबाग उस शिगूफे के पीछे लग जायेंगे। यहां भी यही हो रहा है। अधिकतर लोग लाल पोटली और बहीखाते की बात कर रहे हैं, बजट पर बहस हो ही नहीं रही है। मोदी जी की जय। आपसे कोई पार नहीं पा सकता!

(लेखक पेशे से चिकित्सक हैं।)

tirchi nazar
Political satire
Satire
Union Budget 2019
Budget 2019-20
bahi-khata
बहीखाता
Narendra modi
Nirmala Sitharaman

Related Stories

तिरछी नज़र: सरकार-जी, बम केवल साइकिल में ही नहीं लगता

विज्ञापन की महिमा: अगर विज्ञापन न होते तो हमें विकास दिखाई ही न देता

तिरछी नज़र: बजट इस साल का; बात पच्चीस साल की

…सब कुछ ठीक-ठाक है

तिरछी नज़र: ‘ज़िंदा लौट आए’ मतलब लौट के...

बना रहे रस: वे बनारस से उसकी आत्मा छीनना चाहते हैं

तिरछी नज़र: ओमीक्रॉन आला रे...

तिरछी नज़र: ...चुनाव आला रे

चुनावी चक्रम: लाइट-कैमरा-एक्शन और पूजा शुरू

कटाक्ष: इंडिया वालो शर्म करो, मोदी जी का सम्मान करो!


बाकी खबरें

  • सबरंग इंडिया
    फादर स्टेन स्वामी की हिरासत में मौत 'हमेशा के लिए दाग': संयुक्त राष्ट्र समूह
    21 Mar 2022
    संयुक्त राष्ट्र वर्किंग ग्रुप ने मनमानी हिरासत पर भारत सरकार से उन परिस्थितियों की प्रभावी जांच करने को कहा जिनके कारण फादर स्टेन स्वामी की मृत्यु हुई थी
  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    कांग्रेस का असल संकट और 'आप' के भगत अम्बेडकर
    20 Mar 2022
    कांग्रेस का असल संकट क्या है? 18 और 23 असंतुष्ट नेताओं के ग्रुप वैचारिक दबाव-समूह हैं या चुनावी राजनीति में अपने-अपने स्वार्थ के अखाड़ेबाज? पंजाब में अपनी शानदार चुनावी सफलता के बाद आम आदमी पार्टी(आप…
  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या लाभार्थी थे भाजपा की जीत की वज़ह?
    20 Mar 2022
    'इतिहास के पन्ने मेरी नज़र से' के इस अंग में नीलांजन बात करते हैं समाजशास्त्री हिलाल अहमद से. वे बात करते हैं देश के बदलते चरित्र की.
  • Kanwal Bharti
    राज वाल्मीकि
    भेदभाव का सवाल व्यक्ति की पढ़ाई-लिखाई, धन और पद से नहीं बल्कि जाति से जुड़ा है : कंवल भारती 
    20 Mar 2022
    आपने 2022 में दलित साहित्य के समक्ष चुनौतियों की बात पूछी है, तो मैं कहूँगा कि यह चुनौती अब ज्यादा बड़ी है। हालांकि स्थापना का संघर्ष अब नहीं है, परन्तु विकास और दिशा की चुनौती अभी भी है।
  • Aap
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़े के पास पहुँची आप पार्टी से लेकर मोदी की ‘भगवा टोपी’ तक
    20 Mar 2022
    हर हफ़्ते की ज़रूरी ख़बरों को एक पिटारे में एक बार फिर लेकर हाज़िर हैं अनिल जैन
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License