NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
बिहार में शराबबंदी क़ानूनः इससे उपेक्षित वर्ग ही ज़्यादा पीड़ित
बिहार में शराब निषेध क़ानून के ज़रिए से उपेक्षित वर्ग के लोगों को निशाना बनाया जा रहा है।
वासुदेव चक्रवर्ती
29 May 2018
Nitish Kumar

बिहार में शराब निषेध क़ानून के तहत ज़्यादातर उपेक्षित वर्ग के लोगों को गिरफ्तार किया गया है। इसका खुलासा हाल में आई एक रिपोर्ट से हुआ है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक़ राज्य में इस क़ानून के तहत 1,22,392 लोगों की गिरफ्तारियां हुई हैं।

गिरफ्तार किए गए लोगों में उपेक्षित वर्ग के लोगों का अनुपात उनकी जनसंख्या के अनुपात से ज़्यादा है। अनुसूचित जाति (एससी) के 27.1 प्रतिशत लोग गिरफ्तार किए गए जबकि इनका आबादी में अनुपात 16 प्रतिशत है वहीं अनुसूचित जनजाति (एसटी) के 6.8 प्रतिशत लोग गिरफ्तार किए गए जबकि इनका आबादी में अनुपात सिर्फ 1.3 प्रतिशत है।

पिछले महीने राज्य के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि "यह एससी, एसटी और ओबीसी वर्ग के गरीब लोग हैं जिन्हें सबसे अधिक लाभान्वित किया गया है।" हालांकि ये आंकड़े उनके दावों के विपरीत हैं।

बिहार के पुलिस महानिदेशक केएस द्विवेदी के हवाले से लिखा गया है कि "मुझे इन आंकड़ों की कोई जानकारी नहीं है, जेल विभाग में हो सकता है। लेकिन मैं कह सकता हूं कि इस समूह में समृद्ध और ऊंची जातियों की संख्या हमेशा कम होगी क्योंकि पुलिस को अक्सर खुली कॉलोनियों और झोपड़ियों में छापेमारी करना आसान है लगता है।"

एक पुलिस अधिकारी द्वारा स्पष्ट तौर पर इस तरह स्वीकार करना इसका बात का खुलासा करता है कि इस निषेध कानून से वास्तव में किसे निशाना बनाया जा रहा है। यह उपेक्षित,गरीब और मज़दूर वर्ग के लोग हैं जो इस कानून के पीड़ित बन गए हैं जबकि विशेषाधिकार प्राप्त, अभिजात वर्ग और राजनीतिक रूप से शक्तिशाली इस निषेध क़ानून का उल्लंघन करते हैं। इस फरवरी में बिहार में बीजेपी नेता मनोज बैठा ड्राइविंग करते हु्ए शराब के नशे में नौ बच्चों को कुचल दिया जिससे उनकी मौत हो गई।

हालांकि यह सच है कि शराब के इस्तेमाल की बुराई दुख और निर्धनता को बढ़ाता है, इस स्थिति को कम करने में निषेध एक संदिग्ध साधन रहा है।

शिक्षा और जागरूकता अभियान जैसे तरीकों के माध्यम से किसी सामाजिक समस्या से निपटने के बजाय क़ानूनी तरीकों को प्राथमिकता दी गई है क्योंकि वे काफी आसान हैं। लोकप्रियता के बहाने समर्थन प्राप्त करने के लिए भारत की कई राज्य सरकारों ने निषेध कानूनों के लागू करने के माध्यम से शराब के सेवन जैसी सामाजिक समस्या से निपटने का प्रयास किया है। हालांकि, इन उपायों के प्रभावी होने के सवाल का जवाब विवादित है और कई मामलों में बुरी तरह बेअसर साबित हुआ है।

बिहार में 2017 में यह बताया गया था कि गिरफ्तार किए गए 90,000 लोगों में से 95 प्रतिशत ज़मानत पर बाहर थें। यह भी बताया गया कि निषेध और शराब की मांग के चलते अवैध शराब के व्यापार में वृद्धि हुई नतीजतन क़ीमत काफी बढ़ गया। इसके अलावा, निषेध क़ानून के परिणामस्वरूप राज्य की अदालतों में 1,58,727 आपराधिक मामले आए। साथ ही,तस्करी करने वाले ज़्यादा लाभ कमाने के लिए राज्य की सीमाओं से शराब लाने के विभिन्न तरीकों का इस्तेमाल करते रहे हैं। इसी अवैध शराब के इस्तेमाल के चलते कई लोगों की मौत भी हुई है।

गुजरात में ठीक पिछले सप्ताह पुलिस ने एक करोड़ रुपए के शराब को नष्ट कर दिया था। गुजरात एक ऐसा राज्य है जिसने 1960 में अपने अस्तित्व में आने के बाद से ही निषेध कानून लागू कर रखा है। यहां अवैध शराब के लिए एक बड़ा बाजार है जो निषेध की नीति के प्रभावशीलता की कमी का खुलासा करता है।

केरल भी पहले निषेध करने की ओर क़दम बढ़ाया था लेकिन इसने अपनी नीति में संशोधन किया है। पूरी तरह निषेध करने पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय इसने पांच और तीन सितारा होटलों को बार चलाकर एल्कोहल परोसने की इजाज़त दी है, जबकि सस्ते दो सितारा होटल केवल बीयर और वाइन के लिए परमिट प्राप्त कर सकते हैं। इसके अलावा सरकार ने इसका सेवन करने के लिए क़ानूनी तौर पर उम्र सीमा 21 से 23 कर दिया है।

साथ ही आंध्र प्रदेश में महिलाएं जून महीने से राज्य की नई शराब नीति के ख़िलाफ़ लड़ाई लड़ रही हैं। महिलाओं द्वारा की गई मांगों में शामिल हैं: नई नीतियां, नई दुकानों को दिए गए लाइसेंस वापस ले लिए जाएं, सप्ताह में एक दिन बंद, जारी किए गए लाइसेंस की अवधि को दो साल में वापस लेना चाहिए, आवासीय क्षेत्रों की दुकानें और स्कूलों, मंदिरों, रेलवे स्टेशनों और बस स्टेशनों से नज़दीक दुकानें बंद होनी चाहिए, जिन क्षेत्रों में शराब की दुकान नहीं है वहीं नहीं खुलना चाहिए, शराब के इस्तेमाल के विरूद्ध एक अभियान चलाया जाना चाहिए और उन परिवारों को मुआवजे का भुगतान किया जाना चाहिए जिनके सदस्यों की मौत शराब के इस्तेमाल के चलते हुई है।

केरल और आंध्र प्रदेश के उदाहरणों से पता चलता है कि पूर्ण निषेध होने के एक साधारण कानूनी क़दम के बजाय, शराब के इस्तेमाल को और अधिक कठिन बनाने के लिए कदम उठाए जाने चाहिए ताकि शराब पीने वाले इसका सेवन करना रोक दें। साथ ही युवाओं को एल्कोहल के इस्तेमाल से रोकने के लिए नीतियों में जागरूकता अभियान को शामिल करना चाहिए।

यह कहते हुए यह छूट नहीं दी जानी चाहिए कि देश भर में कई महिला आंदोलन हुए हैं जो निषेध के लागू करने की मांग कर रहे हैं। तथ्य यह है कि पुरूष शराब के नशे में हिंसा करते हैं और ये महिलाएं निर्धनता के चलते न कि नैतिकता की संभ्रांतवादी भावना के चलते निषेध की मांग करती है। इन आंदोलनों ने शराब के दुरुपयोग पर जागरूकता और चेतना लाई है और राज्य सरकारों को भी रोका है जिसे शराब की बिक्री से भारी राजस्व मिलता है।

जो स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है वह यह कि ये निषेध कानून एससी, एसटी, ओबीसी और मजदूर वर्गों को वास्तव में लाभान्वित करने के बजाय निशाना बना रहा है। ऐसा लगता है कि यह शराब की तस्करी और बिक्री के लिए एक लाभप्रद काले बाजार को प्रोत्साहित किया गया है। शराबबंदी के कथित लक्ष्य का समर्थन प्राप्त करने के लिए निषेध एक खोखला जनवादी उपाय प्रतीत होता है।

Nitish Kumar
Bihar
liquor prohibition law

Related Stories

बिहार: पांच लोगों की हत्या या आत्महत्या? क़र्ज़ में डूबा था परिवार

बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बिहारः नदी के कटाव के डर से मानसून से पहले ही घर तोड़कर भागने लगे गांव के लोग

मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 

बिहार : दृष्टिबाधित ग़रीब विधवा महिला का भी राशन कार्ड रद्द किया गया

बिहार : नीतीश सरकार के ‘बुलडोज़र राज’ के खिलाफ गरीबों ने खोला मोर्चा!   

बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका

बिहार पीयूसीएल: ‘मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा फहराने के लिए हिंदुत्व की ताकतें ज़िम्मेदार’

बिहार में ज़िला व अनुमंडलीय अस्पतालों में डॉक्टरों की भारी कमी


बाकी खबरें

  • sedition
    भाषा
    सुप्रीम कोर्ट ने राजद्रोह मामलों की कार्यवाही पर लगाई रोक, नई FIR दर्ज नहीं करने का आदेश
    11 May 2022
    पीठ ने कहा कि राजद्रोह के आरोप से संबंधित सभी लंबित मामले, अपील और कार्यवाही को स्थगित रखा जाना चाहिए। अदालतों द्वारा आरोपियों को दी गई राहत जारी रहेगी। उसने आगे कहा कि प्रावधान की वैधता को चुनौती…
  • बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    एम.ओबैद
    बिहार मिड-डे-मीलः सरकार का सुधार केवल काग़ज़ों पर, हक़ से महरूम ग़रीब बच्चे
    11 May 2022
    "ख़ासकर बिहार में बड़ी संख्या में वैसे बच्चे जाते हैं जिनके घरों में खाना उपलब्ध नहीं होता है। उनके लिए कम से कम एक वक्त के खाने का स्कूल ही आसरा है। लेकिन उन्हें ये भी न मिलना बिहार सरकार की विफलता…
  • मार्को फ़र्नांडीज़
    लैटिन अमेरिका को क्यों एक नई विश्व व्यवस्था की ज़रूरत है?
    11 May 2022
    दुनिया यूक्रेन में युद्ध का अंत देखना चाहती है। हालाँकि, नाटो देश यूक्रेन को हथियारों की खेप बढ़ाकर युद्ध को लम्बा खींचना चाहते हैं और इस घोषणा के साथ कि वे "रूस को कमजोर" बनाना चाहते हैं। यूक्रेन
  • assad
    एम. के. भद्रकुमार
    असद ने फिर सीरिया के ईरान से रिश्तों की नई शुरुआत की
    11 May 2022
    राष्ट्रपति बशर अल-असद का यह तेहरान दौरा इस बात का संकेत है कि ईरान, सीरिया की भविष्य की रणनीति का मुख्य आधार बना हुआ है।
  • रवि शंकर दुबे
    इप्टा की सांस्कृतिक यात्रा यूपी में: कबीर और भारतेंदु से लेकर बिस्मिल्लाह तक के आंगन से इकट्ठा की मिट्टी
    11 May 2022
    इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा उत्तर प्रदेश पहुंच चुकी है। प्रदेश के अलग-अलग शहरों में गीतों, नाटकों और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का मंचन किया जा रहा है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License