NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
सोशल मीडिया
भारत
राजनीति
एसडीपीआई पर प्रतिबंध से कर्नाटक में भाजपा को फ़ायदा नहीं  
प्रशासकों, पुलिस विभागों, राजनीतिक नेताओं, दलों और नागरिकों को यह ज़रूर जानना चाहिए कि बंगलुरु में गत सप्ताह हुई हिंसा को क्यों नहीं रोका जा सका?
सैयद उबैदुर्रहमान
26 Aug 2020
ba

11 अगस्त को बेंगलुरु में हुई हिंसक घटना के ठीक बाद कर्नाटक में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के नेताओं ने इस पूरे घटनाक्रम के लिए बार-बार सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी ऑफ़ इंडिया (SDPI) को दोषी ठहराया था। बहुत ही सख़्त लहज़े में बात करते हुए उन्होंने इस बात का वादा किया कि राज्य इस संगठन पर प्रतिबंध लगाने पर विचार करेगा, जो कि पॉपुलर फ़्रंट ऑफ़ इंडिया या पीएफ़आई की एक शाखा है। पीएफ़आई को हाल के वर्षों में दक्षिणपंथी इस्लाम का समर्थन करने के चलते ख़ासे बदनामी मिली है।

लेकिन,कुछ ही दिनों के भीतर भाजपा ने इस एसडीपीआई पर प्रतिबंध लगाने के विचार को छोड़ दिया है। इसके बजाय, उसने बंगलुरु हिंसा के लिए कांग्रेस पार्टी और "आतंकवादियों" पर आरोप लगाने शुरू कर दिये हैं। सरकार के रुख़ में आये इस बदलाव का जवाब भाजपा और कांग्रेस के बीच सरल राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता नहीं है। ऐसा लगता है कि राज्य भाजपा का कुटिल अनुमान यह है कि अगर कर्नाटक में इस्लामवादी एसडीपीआई सक्रिय रहती है,तो इसे मुख्य चुनौती देने वाली कांग्रेस को और ज़्यादा नुकसान होगा।

इस महीने की शुरुआत में बेंगलुरु दो पुलिस स्टेशनों के आसपास के क्षेत्र में अभूतपूर्व हिंसा का गवाह बना। हिंसा तब भड़की,जब पुलिस ने कांग्रेस विधायक के भतीजे के ख़िलाफ़ कार्रवाई करने से इनकार कर दिया था, जो कथित तौर पर दो दिनों से सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट कर रहा था। शहर की पुलिस ने तब से लेकर 300 से अधिक लोगों को गिरफ़्तार किया है, जिसमें कुछ एसडीपीआई के सदस्य भी शामिल हैं।एसडीपीआई ने इस हिंसा में अपनी किसी भी भूमिका से इनकार किया है। लेकिन,यह कर्नाटक के मुस्लिम-बहुल क्षेत्रों में अपने पैर जमाने की कोशिश ज़रूर कर रहा है और बीते कुछ समय में इसने महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश और पश्चिम बंगाल में धीरे-धीरे अपनी एक मौजूदगी दिखायी है। उधर,केरल में एसडीपीआई सांप्रदायिक विवादों की एक लंबी श्रृंखला में उलझी हुई है।

11 अगस्त को इस्लाम के पैग़ंबर मुहम्मद पर एक अपमानजनक पोस्ट वायरल हुआ था। कथित तौर पर इसे अंजाम देने वाले पी नवीन कुमार की गिरफ़्तारी की मांग को लेकर डीजे हल्ली में रह रहे  मुसलमानों का एक समूह इस इलाक़े के पुलिस स्टेशन गया था। इसके तुरंत बाद, पुलिस उसे गिरफ़्तार किए बिना लौट आयी। तब तक, नवीन के चाचा, पुलाकेशिनगर के कांग्रेस विधायक, श्रीखंडवास मूर्ति के घर के बाहर भीड़ जमा हो गयी। भीड़ तेज़ी से बढ़ती गयी और हिंसा के बाद पुलिस ने आरोप लगाया कि इस भीड़ के बीच कई एसडीपीआई सदस्य भी थे। हक़ीक़त तो यह है कि अगर पुलिस ने तेज़ी से कार्रवाई की होती और अपराधी को हिरासत में ले लिया होता, तो यह मुद्दा आगे बढ़ता ही नहीं। पुलिस की निष्क्रियता से अशांति फ़ैल गयी, जो आख़िरकार बलबे में तब्दील हो गयी।

दंगा करना निंदनीय है और ज़िम्मेदार लोगों को दंडित किया जाना चाहिए, लेकिन जो बात अचरज पैदा करती है, वह यह  है कि कई हल्कों से बात सामने आ रही है कि यह एक "नियोजित दंगा" था। जब किसी ने उस भड़काऊ पोस्ट पर पुलिस कार्रवाई की मांग की थी, तो कोई पहले से ही एक साज़िश कैसे रच सकता था ? पूछा जाना चाहिए था इस अफ़वाह को हवा देने वालों ने मारे गये उन तीन मुसलमानों का ज़िक़्र कभी क्यों नहीं किया, जो कथित तौर पर पुलिस की तरफ़ से भीड़ पर की गयी गोलीबारी में मारे गये थे, इसकी भी जांच होनी चाहिए।

इस घटनाक्रम से अलग, इस बात की तीन अहम वजह हैं कि बेंगलुरु में हुई उस हिंसा को आख़िर क्यों नहीं रोका जा सका, और ये तीनों वजह देश भर के प्रशासकों, पुलिस विभागों, राजनीतिक नेताओं, पार्टियों और नागरिकों के लिए सबक हैं। सबसे पहले, कांग्रेस के कुछ विधायकों ने बेंगलुरु में उस ग़ुस्से पर पानी डालने की कोशिश की, लेकिन वे कामयाब नहीं हो पाये। प्रतिस्पर्धी सांप्रदायिकता के इस दौर में कांग्रेस नेताओं की पुरानी पीढ़ी,जो मुसलमानों से जुड़ सकती है, दूर हो गयी है। मसलन, कर्नाटक में सीके जाफ़र शरीफ़ मुसलमानों के बीच बेहद सम्मानित नेता हुआ करते थे, लेकिन 2018 में उनकी मृत्यु हो गयी और नेताओं की नयी पौध को मुसलमानों में उतना यक़ीन और इज़्ज़त नहीं मिल पायी है। दो मौजूदा कांग्रेस विधायक, ज़मीर अहमद ख़ान और रिज़वान अरशद ने उन ग़ुस्सों को वश में करने की कोशिश ज़रूर की थी, लेकिन वे नाकाम रहे।असल बात तो यह है कि कांग्रेस  पार्टी अब लोगों के साथ उतने गहरे तौर पर नहीं जुड़ी हुई है,जितना कभी जुड़ी हुई थी।

जो मौजूदा हालात हैं,उसमें भाजपा का कौशल यह है कि व इस हिंसा को सांप्रदायिक रूप से ध्रुवीकरण की घटना में बदल सकती है। लेकिन,इस तरह की कोशिशों के बीच कुछ अच्छी घटनायें भी सामने आयी हैं। पहली घटना, एक ऐसा वीडियो वायरल हुआ है,जिसमें किसी स्थानीय मंदिर की हिफ़ाज़त करते हुए कुछ मुस्लिम युवाओं ने मानव श्रृंखला बनायी हुई है। ठीक है कि इस तरह की घटनाओं से बीजेपी के विचारों के ख़िलाफ़ कोई बड़ा विचार खड़ा नहीं किया सकता,लेकिन ऐसे संघर्षों को लेकर भाजपा के सांप्रदायिक रूप से संचालित कथानकों को चुनौती ज़रूर मिलती है। ऐसी भी रिपोर्टें आयी थीं कि हिंसा के दौरान मुस्लिम युवाओं ने अपने पड़ोसियों के घरों की हिफ़ाज़त की थी। इस तरह की ख़बरें भी ग़ुस्से को कुछ हद तक कम करने में मदद की है। लेकिन,इस तरह की कोशिशें बड़े पैमाने पर स्थानीय मुस्लिम समुदायों और व्यक्तियों की तरफ़ से हुई हैं। जो दुखद बात है,वह यह कि भाजपा के नज़रिये को चुनौती देने वाली इस तरह की मिसाल न सिर्फ़ बेंगलुरु या कर्नाटक,बल्कि पूरे देश की किसी भी सक्रिय राजनीतिक गतिविधि से ग़ायब हो चुकी है।

असल में यह स्थिति नेतृत्व शून्यता को दिखाती है और इसे इस बात से काफ़ी हद तक समझा सकता है कि कर्नाटक सरकार ने शुरुआत में एसडीपीआई और पीएफ़आई के ख़िलाफ़ सख़्त बातें कर रही थी, लेकिन आख़िर क्या हुआ कि अचानक से उसने अन्य लक्ष्यों पर निशाना साधना शुरू कर दिया। राज्य भाजपा की कुटिल हक़ीक़त यह है कि एक तरफ़ जहां एसडीपीआई मतदाताओं को धार्मिक आधार पर ध्रुवीकृत कर सकती है। वहीं दूसरी ओर, एसडीपीआई मुस्लिम मतदाताओं को न सिर्फ़ चुनावी तौर पर,बल्कि सामाजिक रूप से भी भीविभाजित कर सकती है। इन दोनों ही स्थितियों में फ़ायदा भाजपा को ही मिलना है। भाजपा यह क़यास लगाते हुए भी दिख रही है कि पीएफ़आई,कांग्रेस के लिए एक राजनीतिक ख़तरा बन सकती है, ख़ुद के लिए नहीं।

विधानसभा और संसदीय चुनावों में एसडीपीआई की भागीदारी से कर्नाटक के वोट की हिस्सेदारी में शायद ही सेंध लग पायी है। 2013 के विधानसभा चुनाव में इसने 23 सीटों से लड़ा था और 22 में बुरी तरह से हार गयी थी, इसे कुल वोटों का सिर्फ़ 3.2% हासिल हुआ। 2018 के विधानसभा चुनाव में एसडीपीआई ने ऐलान किया था कि वह 25 निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव लड़ेगी, लेकिन,आख़िरकार वह बेंगलुरु के चिकीपेट, कालबुर्गी नॉर्थ और मैसूर में ही अपने तीन उम्मीदवारों को उतार पायी। इस राज्य में मुसलमानों की आबादी यहां की कुल आबादी का क़रीब 14% है, लेकिन इस बात का ख़्याल रखना ज़रूरी है कि कभी इस समुदाय की एकमात्र पसंद कांग्रेस हुआ करती थी। और अब एसडीपीआई उन्हीं सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारती है,जहां मुसलमानों की आबादी अच्छी ख़ासी है।

मगर, स्थानीय नगरपालिका चुनावों में एसडीपीआई के प्रदर्शन में सुधार हुआ है। 2013 के स्थानीय निकाय चुनावों में इसने 17 सीटें जीती थीं, जबकि 2018 में इसने 80 सीटों से चुनाव लड़ा था और 19 सीटों पर जीत दर्ज की थी। भले ही यह एक छोटी बढ़त हो, लेकिन एसडीपीआई जैसी छोटी पार्टी के लिहाज से यह बढ़त अहम है। राजनीति में एक कट्टर ब्रांड के बढ़ते असर और कांग्रेस के मतदाताओं के एक हिस्से को तोड़ लेने की इसकी क्षमता बताती है कि कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा एसडीपीआई पर प्रतिबंध लगाने की बात से क्यों पीछे हट गये हैं। इसके विपरीत, ऐसा लगता है कि राज्य सरकार बेंगलुरु दंगों के ज़िम्मेदार लोगों के ख़िलाफ़ कठोर और अभूतपूर्व कार्रवाई करने को सही ठहरा रही है।

उत्तर प्रदेश मॉडल पर चलते हुए येदियुरप्पा ने आश्वास्त किया है कि उनकी सरकार कर्नाटक उच्च न्यायालय का दरवाज़ा खटखटाएगी और दंगाइयों द्वारा पहुंचाये गये नुकसान का आकलन करने के लिए “दावा आयुक्त” नियुक्त करेगी और उनसे मुआवज़ा वसूलेगी। उन्होंने हाल ही में ट्वीट किया, “हमारी सरकार ने केजी हल्ली और डीजी हल्ली में हुए हिंसक घटनाओं में सार्वजनिक और निजी संपत्ति को पहुंचे नुकसान का आकलन करने और दोषियों से इसकी क़ीमत वसूलने का फ़ैसला किया है… ग़ैरक़ानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम को लागू करने सहित डीजे हल्ली और केजी हल्ली हिंसक घटनाओं के दोषियों के ख़िलाफ़ कड़ी कार्रवाई शुरू कर दी गयी है..”  .

इस तरह, भाजपा एक तीर से दो निशाने लगाना चाहती है। इसे मालूम है कि एसडीपीआई पर प्रतिबंध से कांग्रेस को अपने मुस्लिम मतदाताओं पर पकड़ बनाने में मदद मिलेगी। और इसे यह भी पता है कि बंगलुरु मामलों में "अनुकरणीय" न्याय की दंडात्मक कार्रवाई से समाज का ध्रुवीकरण होगा। 2019  लोकसभा चुनाव के नतीजों से यह साफ़ हो गया था कि राज्य की बहुसंख्यक मतदाता एकजुट है, और एसडीपीआई अल्पसंख्यक को एकजुट करने में मदद कर सकती है। एसडीपीआई चाहे जितना भी महत्वहीन क्यों न हो, इन सभी कारणों से राज्य सरकार की तरफ़ से इस पर प्रतिबंध लगाये जाने की कोई संभावना नहीं है। अगर इस पर प्रतिबंध लगाया जाता है, तो इसका फ़ायदा सिर्फ़ और सिर्फ़ भाजपा के सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी पार्टी,कांग्रेस को मिलेगा।

बीजेपी के नज़रिए से देखा जाये, तो विभाजन और कलह को पोषित करने वाले किसी माहौल से हासिल होने वाला फ़ायदा समाज को हुए समग्र नुकसान से कहीं बड़ा होता है।

इस लेख के लेखक,एक लेखक और स्तंभकार हैं। इनके विचार व्यक्तिगत हैं .

 

banglore incident of mob lynching
BJP
Congress
muslim i9n karnatal
sdpi role in benglore

Related Stories

बीजेपी के चुनावी अभियान में नियमों को अनदेखा कर जमकर हुआ फेसबुक का इस्तेमाल

फ़ेसबुक पर 23 अज्ञात विज्ञापनदाताओं ने बीजेपी को प्रोत्साहित करने के लिए जमा किये 5 करोड़ रुपये

चुनाव के रंग: कहीं विधायक ने दी धमकी तो कहीं लगाई उठक-बैठक, कई जगह मतदान का बहिष्कार

पंजाब विधानसभा चुनाव: प्रचार का नया हथियार बना सोशल मीडिया, अख़बार हुए पीछे

मुख्यमंत्री पर टिप्पणी पड़ी शहीद ब्रिगेडियर की बेटी को भारी, भक्तों ने किया ट्रोल

सांप्रदायिक घटनाओं में हालिया उछाल के पीछे कौन?

हेट स्पीच और भ्रामक सूचनाओं पर फेसबुक कार्रवाई क्यों नहीं करता?

वे कौन लोग हैं जो गोडसे की ज़िंदाबाद करते हैं?

कांग्रेस, राहुल, अन्य नेताओं के ट्विटर अकाउंट बहाल, राहुल बोले “सत्यमेव जयते”

विश्लेषण : मोदी सरकार और सोशल मीडिया कॉरपोरेट्स के बीच ‘जंग’ के मायने


बाकी खबरें

  • विजय विनीत
    ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां
    04 Jun 2022
    बनारस के फुलवरिया स्थित कब्रिस्तान में बिंदर के कुनबे का स्थायी ठिकाना है। यहीं से गुजरता है एक विशाल नाला, जो बारिश के दिनों में फुंफकार मारने लगता है। कब्र और नाले में जहरीले सांप भी पलते हैं और…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में 3,962 नए मामले, 26 लोगों की मौत
    04 Jun 2022
    केरल में कोरोना के मामलों में कमी आयी है, जबकि दूसरे राज्यों में कोरोना के मामले में बढ़ोतरी हुई है | केंद्र सरकार ने कोरोना के बढ़ते मामलों को देखते हुए पांच राज्यों को पत्र लिखकर सावधानी बरतने को कहा…
  • kanpur
    रवि शंकर दुबे
    कानपुर हिंसा: दोषियों पर गैंगस्टर के तहत मुकदमे का आदेश... नूपुर शर्मा पर अब तक कोई कार्रवाई नहीं!
    04 Jun 2022
    उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था का सच तब सामने आ गया जब राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के दौरे के बावजूद पड़ोस में कानपुर शहर में बवाल हो गया।
  • अशोक कुमार पाण्डेय
    धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है
    04 Jun 2022
    केंद्र ने कश्मीरी पंडितों की वापसी को अपनी कश्मीर नीति का केंद्र बिंदु बना लिया था और इसलिए धारा 370 को समाप्त कर दिया गया था। अब इसके नतीजे सब भुगत रहे हैं।
  • अनिल अंशुमन
    बिहार : जीएनएम छात्राएं हॉस्टल और पढ़ाई की मांग को लेकर अनिश्चितकालीन धरने पर
    04 Jun 2022
    जीएनएम प्रशिक्षण संस्थान को अनिश्चितकाल के लिए बंद करने की घोषणा करते हुए सभी नर्सिंग छात्राओं को 24 घंटे के अंदर हॉस्टल ख़ाली कर वैशाली ज़िला स्थित राजापकड़ जाने का फ़रमान जारी किया गया, जिसके ख़िलाफ़…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License