NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
अमेरिका
बराक के दोस्त नरेन्द्र उर्फ पाँचवां सवार कथा
वीरेन्द्र जैन
09 Feb 2015

हमारे यहाँ एक मुहावरा प्रचलित है- पाँचवां सवार। यह मुहावरा इस बोध कथा पर आधारित है कि चार घुड़सवार दिल्ली की ओर जा रहे थे कि रास्ते में दिल्ली की ओर जाने वाला खच्चर पर सवार एक व्यक्ति मिल गया जिसके साथ चलने के अनुरोध को उन्होंने स्वीकार कर लिया। अब पूरे रास्ते जब भी कोई पूछता कि आप लोग कहाँ जा रहे हैं तो किसी भी अन्य के बोलने से पहले वह खच्चर पर सवार व्यक्ति बोल उठता कि हम पाँचों सवार दिल्ली जा रहे हैं। स्वयं आगे बढ कर आत्मस्तुति करने की प्रवृत्ति पर हमारे यहाँ नारद मोह से लेकर कई कथाएं और अपने मुँह मियां मिट्ठू बनने जैसे कई मुहावरे प्रचलित हैं ताकि ऐसे लोगों को दर्पन दिखा कर सावधान किया जा सके। खेद है कि पौराणिक कथाओं में विज्ञान से ज्यादा भरोसा रखने वाले हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी ने अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा के आने पर ऐसी ही वृत्ति का परिचय देकर खुद को हास्यास्पद स्थिति में पहुँचाया।

                                                                                                                             

उल्लेखनीय है कि श्री मोदी के प्रधानमंत्री बनते ही उनके जीवन से सम्बन्धित विभिन्न चित्र और घटनाएं चर्चा में आयी थीं व सोशल मीडिया के कारण वे कुछ ही क्षणों में विश्वव्यापी हो गयी थीं। उनके पुराने चित्रों में से ही एक वह चित्र भी था जब श्री मोदी ने अपनी अमेरिका यात्रा के दौरान व्हाइट हाउस के बाहर खड़े होकर फोटो खिंचवा लेने में गौरव महसूस किया था और उनके मित्रों ने उस यादगार क्षण को सम्हाल कर रखा था। यह उनके अमेरिका मोह को प्रदर्शित करता है। कहा जाता है कि इमरजैंसी के दौरान गिरफ्तारी से बचने के लिए वे अज्ञातवास पर हिमालय में साधु बन कर रहे थे तो कुछ लोग यह भी कहते हैं कि इस दौरान भी वे विदेश में कुछ दिन रहे थे। एक समाचार पत्र में प्रकाशित समाचार के अनुसार उन्होंने अमेरिका से बिजनिस मैनेजमेंट और मास कम्युनिकेशन से सम्बन्धित तीन महीने का कोई कोर्स भी अमेरिका से किया था और उसमें डिप्लोमा प्राप्त किया था। जब गुजरात में गोधरा की घटना के बाद हुये नरसंहार के बाद श्री नरेन्द्र मोदी को कई देशों ने वीजा देने से इंकार कर दिया गया तब अमरीका द्वारा बीजा देने से इंकार करना ही सर्वाधिक चर्चा में रहा था क्योंकि श्री मोदी ने अपने मुख्यमंत्री रहने के दौरान भी अमेरिका की यात्रा करना चाही थी। वे हमेशा से ही भारत अमेरिका सम्बन्धों के सुधार से बड़ी सम्भावनाएं देखते आये हैं। एब्रौड फ्रैंड्स आफ बीजेपी नामक संस्था की सदस्य संख्या भी अमेरिका में ही अधिक है जिनमें समुचित संख्या में गुजराती हैं और भाजपा को सर्वाधिक सहयोग भी वहीं से मिलता रहा है।

अमेरिका का राष्ट्रपति कोई भी हो उसे भारत में विकसित होते बाज़ार को देखते हुये अच्छे सम्बन्ध बनाना जरूरी हैं। 2014 के आम चुनावों के बाद अगर अमरीकी राष्ट्रपति ने भारत के चुने हुए प्रधानमंत्री को व्हाइट हाउस में आमंत्रित किया था तो यह श्री नरेन्द्र मोदी के प्रति उनके विचारों में बदलाव का स्ंकेत नहीं अपितु कूटनीतिक मजबूरी थी। जब श्री मोदी ने बराक ओबामा को बार बार सार्वजनिक रूप से उनके पहले नाम से सम्बोधित किया तो उनके इस बदलाव ने दुनिया भर के सारे टीवी दर्शकों को चौंकाया। काश अमरीकी राष्ट्रपति भारत के प्रधानमंत्री को सचमुच अपना दोस्त समझा होता तो अच्छा होता। जाते जाते उन्होंने जब यह कहा कि अगर भारत धार्मिक आधार पर नहीं बंटा तो बहुत उन्नति करेगा तो उसका साफ और सही संकेत ग्रहण किया गया। देश को धार्मिक आधार पर बांटने के सारे खतरे केवल और केवल श्री मोदी की पार्टी और उस पार्टी के पितृ संगठन की ओर से हैं। जिस दूसरे धार्मिक संगठन से यह खतरा हो सकता था वह पहले ही एक बार देश का बंटवारा करा के अल्पसंख्यक में बदल चुका है और वह केवल रक्षात्मक टकराव ही मोल लेता है। भाजपा के केन्द्र में आने के बाद कश्मीर में चल रहे आन्दोलन के हल होने के आसार बढ गये हैं क्योंकि उसके हल में आ रही प्रमुख अड़चनों में से एक भाजपा द्वारा सत्ता के लिए भावनात्मक राजनीति करना भी था। आज राष्ट्रीय सहमति के साथ जो समझौते भाजपा कर सकती है वह किसी दूसरे सत्तारूढ दल को नहीं करने देती। यही कारण रहा कि बराक ओबामा के विदाई संदेश  का सीधा निशाना श्री नरेन्द्र मोदी और उनकी पार्टी ही रही है। इस सन्देश के बाद मोदी जी का ओबामा को पहले नाम से पुकारना अधिक विडम्बनापूर्ण लगने लगा था।

मोदी जी का बार बार कपड़े बदलना, चटख रंगों वाले मंहगे ऐसे सूट का पहिनना जिसकी धारियों पर उनका नाम लिखा हो बहुत ही बचकाना हो गया। गणतंत्र दिवस की परेड में वे यह प्रोटोकाल भी भूल गये कि परेड की सलामी केवल राष्ट्रपति ही लेते हैं। इससे भी ज्यादा दुखद यह हो गया कि साम्प्रदायिक कटुता से सोचने वाली उनकी प्रचार टीम ने उपराष्ट्रपति द्वारा परम्परा और प्रोटोकाल का पालन करने पर उनकी राष्ट्रभक्ति पर ही सवाल खड़ा कर दिया क्योंकि वे मुस्लिम परिवार में जन्मे हैं। इसे देखते हुए ओबामा का विदाई सन्देश अधिक संकेतक महसूस हुआ। दुनिया भर के देशों और सरकारों पर गहन दृष्टि रखने वाले अमरीका के राष्ट्रपति ने बहुत वर्षों बाद आयी पूर्ण बहुमत वाली सरकार की प्रमुख कमजोरी पर उंगली रख दी।

ओबामा की इस यात्रा से मोदी सरकार का प्रभाव देश की विदेशमंत्री की सीमित भूमिका, वित्त और गृहमंत्री के आपसी सम्बन्ध तथा सत्तारूढ संगठन का अल्पसंख्यक ईसाइयों के साथ व्यवहार के अनुसार भी पड़ा होगा। पाकिस्तान का मददगार अमरीका हमें अपने ग्रुप में शामिल किये बिना कभी भी सशक्त. संगठित, और पूर्ण स्वतंत्र नहीं देखना चाहता क्योंकि यही उसकी साम्राज्यवादी सोच के हित में है। ओबामा ने इसी प्रभव में परमाणु रियेक्टरों की सम्भावित दुर्घटनाओं के बारे में कोई भी जिम्मेवारी लेने से साफ इंकर कर दिया और हमें ही झुकना पड़ा।  अच्छी दोस्ती बराबर वालों में ही सम्भव हो पाती है। हमारे प्रधानमंत्री को अगर अमरीका अपने प्रति अतिरिक्त मोहग्रस्त समझेगा तो वह ऐसा ही बनाये रखने के लिए हमारा सशक्त होना पसन्द नहीं करेगा। फिल्म ‘अल्बर्ट पिंटो को गुस्सा क्यों आता है’ का एक रूपक है जिसमें नसरुद्दीन शाह एक कार मैकेनिक की भूमिका में हैं और एक सम्पन्न परिवार का युवक अपनी कार की अच्छी सर्विसिंग के लिए उसे अपना दोस्त होने का भ्रम देता है। गलतफहमी का शिकार नसरुद्दीन जब उसकी कार में विशेष मेहनत करके सुधारने के बाद कार की डिलीवरी करने उसकी कोठी में जाता है और उसके नाम से बुलाते हुये उसकी माँ को उसे अपना दोस्त बतलाता है तो उसकी माँ उसे सौ रुपया बख्शीस देते हुए उसकी औकात बतला देती है।

काश अमरीकी राष्ट्रपति ओबामा सचमुच ही हमारे प्रधानमंत्री के यार होते, पर ऐसा है नहीं।  

 

डिस्क्लेमर:- उपर्युक्त लेख मे व्यक्त किए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत हैं, और आवश्यक तौर पर न्यूज़क्लिक के विचारो को नहीं दर्शाते ।

 

नरेन्द्र मोदी
ओबामा
परमाणु संधि
रक्षा समझौता

Related Stories

पेट्रोल और डीज़ल के बढ़ते दामों 10 सितम्बर को भारत बंद

मीडिया पर खरी खरी – एपिसोड 2 भाषा सिंह के साथ

चीन-भारत संबंधः प्रतिद्वंदी दोस्त हो सकते हैं

नकदी बादशाह है, लेकिन भाजपा को यह समझ नहीं आता

फिक्स्ड टर्म जॉब्स (सिमित अवधि के रोज़गार) के तहत : मोदी सरकार ने "हायर एंड फायर" की निति को दी स्वतंत्रता

बावजूद औद्योगिक उत्पादन में वृद्धि के दावे के बेरोजगारी 7 प्रतिशत की दर से बड़ी

राफेल घोटालाः पूर्व रक्षा मंत्री ने तोड़ी चुप्पी

मुंद्रा की सबसे महत्वपूर्ण स्कीम में पाया गया बैंक घोटाला

साल 1990 के बाद के बड़े व्यापारिक घोटाले

2018 की बंद मुट्ठी : गुजरात चुनाव से भाजपा राज के अंत की शुरूआत हो गयी है


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License