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राजनीति
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ब्रुसेल्स में मार्क्स
उनके समय के दौरान ब्रुसेल्स में सबसे उल्लेखनीय जो बात हुई वह कम्युनिस्ट घोषणापत्र का लिखा जाना था, जिसने अंतत मार्क्स और उनके साथ एंगेल्स को मज़दूर वर्ग के आंदोलन के बौद्धिक नेताओं के रूप में स्थापित कर दिया।
सुभाष गाताडे
16 Jul 2019
Translated by महेश कुमार
Marx in Brussels

कार्ल मार्क्स फरवरी 1845 से मार्च 1848 तक ब्रुसेल्स में रहे थे

उन्होंने 1947/48 की नए साल की पूर्व संध्या को "डॉचर आर्बिटरेविन" और "एसोसिएशन डेमोक्रेटिक" के साथ मिलकर इस जगह पर मनाया था

एक इमारत पर एक पट्टिका लगाई गई है जिसमें एक रेस्तरां 'ले साइगने, द स्वान' था जो अब उन दिनों की एकमात्र स्मृति बन कर रह गया है जब यहां इतिहास ‘बनाया’ गया था। इस महान किंवदंती के अनुसार, यह वही जगह है ‘जहां पहला अंतर्राष्ट्रीय कम्युनिस्ट अधिवेशन बुलाया गया था और मार्क्स और उनके आजीवन मित्र और कॉमरेड एंगेल्स ने कम्युनिस्ट घोषणापत्र लिखा  था।

हो सकता है कि ऐतिहासिक नारे 'दुनिया भर के मज़दूरों एक हो, आपके पास खोने के लिए कुछ नहीं है बल्कि हथकड़ियाँ हैं' जो बाद में पुरी दुनिया भर में गूंज उठे थे - जिनकी गूँज आज भी सुनाई देती है - इनकी  ‘विनम्र’ शुरुआत उन कमरों मे से एक में हुई हो, जहां मार्क्स और उनके करीबी सहयोगी श्रमिकों को उनके शोषण के बारे में शिक्षित करते थे।

इस विशेष रेस्तरां में बैठे कई लोग जिन्हे शानदार भोजन और उनकी पसंद का पेय परोसा जा रहा था, वे सब इतिहास के उन सभी विवरणों से पूरी तरह से बेखबर हैं। उनमें से कुछ ने अविश्वास और निराशा की भावना के साथ हमें देखा, जब उन्होंने हमें उस नॉनडेस्क्रिप्ट दीवार की तस्वीरें लेते हुए देखा, जिस पर वह पट्टिका लगी थी। शायद वे इसलिए अधिक संतुष्ट दिख रहे थे कि वे एक ऐसे स्थान पर भोजन का आनंद ले रहे हैं, जो ग्रैंड प्लेस या ग्रोट मार्केट पर स्थित है, जो ब्रुसेल्स के केंद्र में है और इसे यूरोप के सबसे खूबसूरत चौक में से एक माना जाता है और यह संयुक्त राष्ट्र की विरासत का भी हिस्सा है।

दुनिया के विभिन्न हिस्सों से हजारों पर्यटक - 'यूरोप के इस सबसे खूबसूरत चौक' में सचमुच आते हैं और खुद की तस्वीरों के साथ-साथ वे उन ऐतिहासिक इमारतों की भी तस्वीरें लेते हैं जिन्होंने इस पैलेस को घेरा हुआ है। बेशक, उनमें से ज्यादातर को ऐतिहासिक टाउन हॉल के आसपास देखा जा सकता है, जो ग्रैंड प्लेस की केंद्रीय शोभा है। जिसे इस चौक की एकमात्र मध्ययुगीन इमारत के रूप में गिना जाता है जो अभी भी बनी हुई है, इसका निर्माण 1402 और 1455 के बीच किया गया था। किसी भी पर्यटक ने इस विशेष रेस्तरां में आने के लिए कोई उत्सुकता नहीं दिखाई थी, जो कि उसी दायरे के कुछ मीटर की दूरी पर खड़ी है। उनमें से कुछ बल्कि उस युवा जोड़े को देखने में ज्यादा उत्सुक थे, जो पुरी तरह से आपस में काफी अन्तरंग हो रहे थे और उनके आसपास की घिरी भीड़ से वे पूरी तरह से अनजान थे।

दिलचस्प बात यह है कि इस पट्टिका के ठीक ऊपर एक और पट्टिका लगाई गई थी जिसमें कहा गया था कि बेल्जियन वर्कर्स पार्टी का संस्थापक सम्मेलन इस भवन में वर्ष 1885 में अप्रैल के महीने में आयोजित किया गया था। लगभग 112 श्रमिकों ने - मुख्य रूप से कारीगरों - ने इस बैठक में भाग लिया था।

एक तरफ, यहां यह उल्लेख करना ज़रूरी है कि बेल्जियम वर्कर्स पार्टी ने न केवल देश में एक मजबूत श्रमिक आंदोलन का निर्माण करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी, बल्कि इसे बात का श्रेय भी जाता है कि इसने  मुक्त विचार, स्वास्थ्य देखभाल और कानूनी सलाह के एक केंद्र का निर्माण किया था। मेसन डु पेउपल  यानी ”(द पीपुल्स हाउस), यूरोप में अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है जिसका उद्घाटन फ्रांसीसी समाजवादी नेता ज्यां जेयर्स (1899) की उपस्थिति में हुआ था। पार्टी ने इस काम के लिए एक प्रमुख वास्तुकार विक्टर होर्टा को नियुक्त किया था जो ईंट, कांच और स्टील का एक प्रायोगिक संयोजन माना जाता था, जिसे 'आधुनिक वास्तुकला का मास्टरवर्क' माना जाता था। इस इमारत से प्रेरित होकर, डच समाजवादियों ने भी इसी तरह की तर्ज पर एक संरचना का निर्माण करने का प्रयास किया था, जिसका बाद में जाकर दूसरों ने भी अनुसरण किया था।

यह अलग बात है कि दुनिया भर के सैकड़ों प्रमुख वास्तुकारों के विरोध के बावजूद, सरकार ने 1965 में 'द पीपल्स हाउस' को ध्वस्त कर दिया था और अपने कार्यक्रम के तहत इसकी जगह पर एक गगनचुंबी इमारत बनाई गई - जिसे 'ब्रसेलीसिएशन' कहा जाता है। - जिसके परिणामस्वरूप कई अन्य ऐतिहासिक इमारतें ध्वस्त हो गईं।

आईए थोड़ा पीछे झांक कर देखें कि कैसे मार्क्स के लिए ब्रुसेल्स आदर्श स्थान बना, मार्क्स को 1845 में गुइज़ोट ने फ्रांस से निर्वासित कर दिया था उसके बाद तीन साल से अधिक समय तक यहां बे बिना किसी रोकटोक के शांत वातावरण में रहे थे। बेल्जियम के उस सबसे उदार संविधान को धन्यवाद जो उस समय पूरे यूरोप में अकेला था, यहां मार्क्स बोलने या भाषण की आजादी का आनंद उठा सकते थे जो अन्य जगहों पर प्रतिबंधों का सामना कर रही थीं। ब्रुसेल्स का केंद्रीय स्थान पर होना और आधुनिक रेलवे प्रणाली और डाक सेवाओं ने उनकी मदद की ताकि वे फ्रांस, जर्मनी और इंग्लैंड में अपने दोस्तों और कम्युनिस्ट सहयोगियों के साथ काम कर सके और उनसे संपर्क कर सके।'

मार्च 1848 तक, बेल्जियम के अधिकारियों का धैर्य भी खत्म हो गया और उन्होंने मार्क्स को 'फरवरी क्रांति के कारण हुई घबराहट के प्रभाव में' देश निकाला दे दिया और मार्क्स को देश छोड़कर भागना पड़ा। इस देश से अगले देश तक उनका भटकना कुछ समय तक जारी रहा क्योंकि अगस्त 1849 में जब वे लंदन में उतरे, तो वहां के अधिकारी उनके विचारों और गतिविधियों से बहुत नाराज थे, जहाँ वे जीवन भर रहे।

इतिहासकार एडवर्ड डी मैस्क्लेक ने वास्तव में ‘मार्क्स इन ब्रुसेल्स’ (2005) एक पुस्तक लिखी है जो ब्रुसेल्स में मार्क्स के नक्शेकदम की ब्रुसेल्स’ में खोज़ करती है। उन्हें पता चला कि मार्क्स और उनकी पत्नी और उनके तीन बच्चे शहर के पाँच अलग-अलग स्थानों पर रहते थे; अब ये अधिकांश स्थान मौजूद नहीं है। हालाँकि, उनके ल्क्सेल्ले  में, 50, रुए जओन द’अर्देन्नेस  के पूर्व घर पर अभी भी एक स्मारक पट्टिका लगी है, जहाँ बैठकर उन्होंने लगभग निश्चित रूप से कम्युनिस्ट घोषणापत्र लिखा था'। स्टीवन हर्मन जिन्होंने कार्ल मार्क्स के क्रांतिकारी ब्रुसेल्स के बारे में लिखा है और जिन्होंने कार्ल मार्क्स के वहां रहने के तथ्यों की तलाश की थी, वे वहां की एक सड़क का वर्णन करते हैं जहां मार्क्स एक गरीब मजदूर के घर के 5 नंबर में रहते थे। उनके आगे, नंबर 3 पर, फ्रेडरिक एंगेल्स रहते थे, 'और,' नंबर 7 पर समाजवाद के एक और प्रारंभिक प्रकाशक, मोजेस हेस रहते थे। '

प्रगतिशील राजनीति के हर छात्र को पता है कि युवा मार्क्स के लिए ब्रुसेल्स में रहना उनके जीवन का सबसे बड़ा उत्पादक समय था। यहीं पर उन्होंने अपनी प्रसिद्ध पुस्तक पॉवर्टी ऑफ फिलॉसफी लिखी थी, जहां उन्होंने प्राउडन के आर्थिक और दार्शनिक सिद्धांतों की आलोचना की थी- फिर एक प्रसिद्ध फ्रांसीसी राजनीतिक अर्थशास्त्री और जिन्हे 'बाकुनिन अराजकतावाद के संस्थापक के रूप में मानते थे, जिन्होंने स्वतंत्र समाज और स्व-नियोजित कारीगर की कल्पना की थी। 'एंगेल्स और मार्क्स के बीच पत्राचार पर एक सरसरी नज़र यह स्पष्ट करती है कि मार्क्स ने जनवरी 1847 में इस पुस्तक पर काम शुरू किया था और अप्रैल 1847 तक इसे समाप्त कर दिया था।

इस अवधि के दौरान विलियम वीटलिंग, जर्मन में जन्मे दर्जी, आविष्कारक और कट्टरपंथी राजनीतिक कार्यकर्ता के साथ मार्क्स की प्रसिद्ध बहस को भी फिर से देखा जा सकता है। वेटलिंग के विचारों को लेकर नवजात समाजवादी हलकों में काफी जोश और समर्थन था, इतना कि उन्होंने पूरे महाद्वीप से हजारों समर्पित शिष्यों को अपनी ओर आकर्षित किया था और जिनके बारे में मार्क्स ने "जर्मन श्रमिकों के उत्साह और शानदार साहित्यिक पदार्पण" के लिए 1844 में एक लेख में प्रशंसा की थी1। बाद में वेइट्लिंग, जिन्होंने कम्यूनिज़्म की ईसाई धर्म की शुरुआत में पाई, उनकी 1847 की किताब गॉस्पेल ऑफ पुअर सिनर्स  में उनकी 'नैतिक अपील' के लिए उनकी काफी आलोचना हुई।

ब्रुसेल्स में इस अवधि का सबसे उल्लेखनीय पहलू कम्युनिस्ट घोषणापत्र का लिखा जाना था, जिसने मार्क्स और साथ ही एंगेल्स को मज़दूर वर्ग के आंदोलन के बौद्धिक नेताओं के रूप में स्थापित कर दिया था।

अब यह इतिहास है कि कैसे द लीग ऑफ़ जस्ट, जो मूल रूप से लंदन में रहने वाले जर्मन प्रवासियों का एक गुप्त समाज था, ने मार्क्स को संगठन में शामिल होने के लिए आमंत्रित किया, जिसमें मार्क्स और एंगेल्स दोनों शामिल थे। एंगेल्स ने जस्ट ऑफ द लीग - का नाम बदलकर कम्युनिस्ट लीग कर दिया था our जिसने पूरे जर्मन में फैले अन्य जर्मन श्रमिकों को एकजुट करने की परिकल्पना की थी। लीग ने एक घोषणापत्र तैयार करने के लिए दोनों साथियों को जिम्मेदारी दी जिसे लीग के सिद्धांतों के रूप में प्रस्तुत किया जाना था। लीग के बार-बार याद दिलाने के बावजूद जब दोनों घोषणापत्र पर काम समाप्त नहीं कर सके, तो लीग ने उन्हें जनवरी 1848 के अंत तक एक अल्टीमेटम दे डाला, जिसमें उन्हें फरवरी के पहले सप्ताह तक इसे खत्म करने के लिए कहा गया था, जिसे उन्होने दिए गए निर्धारित समय में समाप्त कर दिया था।

घोषणापत्र का प्रकाशन जो एक साहसपूर्वक दावा करता था, कि "सभी मौजूदा समाज का इतिहास वर्ग संघर्षों का इतिहास है," यही एक ऐसा अवसर भी था जब यूरोप के कई देशों में क्रांतियां हुईं - जिसने कुछ ही समय में उलटफेर किया – और जिन आंदोलनों ने आगे चलकर शोषितों के आंदोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को मज़बूत किया।

जैसे-जैसे हम इस ऐतिहासिक ग्रांड प्लेस को अलविदा कह रहे थे, हमने एक बार फिर से उस पट्टिका पर एक नज़र डालने की कोशिश की, जैसे कि हम एक बार फिर से उस जगह को अलविदा कहना चाहते थे तभी  पट्टिका के नीचे खड़े कुछ जवान लोग एक-दूसरे के साथ समूह में हमारे साथ फोटो खिंचवाते देख खुशी हुई थी, जिससे हमारे चेहरों पर खुशी की लहर दौड़ गयी।

1. लेख पर क्रिटिकल मार्जिनल नोट्स "द किंग ऑफ प्रुशिया एंड सोशल रिफॉर्म" के लेख पर द मार्क्स-एंगेल्स रीडर, उसरा संस्करण, रॉबर्ट सी. टकर (न्यूयॉर्क: नॉर्टन, 1978), पी. 129।

 

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