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राजनीति
बंगाल चुनाव: राज्य में औद्योगिक बहाली अब  इतिहास की बात हो गई है?
अभी देखा जाना बाकी है कि केंद्र सरकार ने राज्य के लिए जिस निवेश की स्वीकृति दी थी कहीं वह सीएम के सनकी दृष्टिकोण और कूटनीति में भारी कमी के कारण आखिरकार पश्चिम बंगाल के ताजपुर में प्रस्तावित महासागर में बनने वाले बंदरगाह को न ले डूबे। 
रबींद्र नाथ सिन्हा
20 Mar 2021
Translated by महेश कुमार
बंगाल चुनाव: राज्य में औद्योगिक बहाली अब  इतिहास की बात हो गई है?
तस्वीर सौजन्य: रॉयटर्स 

कोलकाता: ममता बनर्जी की लीडरशिप में तृणमूल कांग्रेस मंत्रालय का यह दूसरा कार्यकाल है जिसके दौरान उद्योगों में हुए निवेश पर एक अध्ययन बताता है कि निजी क्षेत्र के खिलाड़ियों ने सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी), होस्पिटेलिटी/आतिथ्य और सीमेंट क्षेत्रों में इकाइयों को लगाया या उनका विस्तार किया है, और इस निवेश का आकार 100 करोड़ रुपये से 1,000 करोड़ रुपये के बीच का है। लेकिन, कोयला, इस्पात और पेट्रोलियम क्षेत्रों में जोकि केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यम (PSU) हैं, उनमें निरपवाद रूप से बड़े पैमाने का निवेश हुआ हैं।

इसके अलावा, ऐसा लगता है कि बंगाल ग्लोबल बिज़नेस समिट्स (BGBS) से निजी क्षेत्र के निवेशों का परिणाम भी कुछ खास देखने को नहीं मिला है क्योंकि कॉरपोरेट्स ने हालत के मद्देनजर खुद निवेश न करने के फैसले लिए हैं। राज्य सरकार के कैलेंडर में बंगाल ग्लोबल बिज़नेस समिट्स (BGBS) एक वार्षिक कार्यक्रम है, लेकिन 2019 समिट के बाद, मुख्यमंत्री ने घोषणा की कि कॉरपोरेट्स को अपने प्रस्तावों को लागू करने और लागू करने की स्थिति तक पहुंचने के लिए समय की जरूरत है, इसलिए प्रत्येक दो वर्षों में इस तरह की समिट/सम्मेलन आयोजित किए जाएंगे। बंगाल ग्लोबल बिज़नेस समिट्स (BGBS) 2019 के बाद राज्य सरकार ने दावा किया था कि उसे 2.84 लाख करोड़ रुपये के निवेश के प्रस्ताव मिले हैं। 2018 में यह आंकड़ा कुछ 2.19 लाख करोड़ रुपये का था। तब भी उक्त दावे पर कोई विवरण साझा नहीं किया गया था और वह आज भी उपलब्ध नहीं हैं।

आईटी क्षेत्र में निजी कंपनियों के निवेश को राज्य के भीतर और उत्तर-पूर्वी राज्यों से मिल रहे प्रचुर मात्र में कुशल स्टाफ और बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई में आए ठहराव तथा राज्य सरकार द्वारा तत्परता से भूमि उपयोग के नियमों में ढील देना ताकि विशेष आर्थिक ज़ोन देने से इनकार करने की कमी को पूरा किया जा सके को इस मामूली विस्तार के लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। 

100 करोड़ रुपये के निवेश के साथ राज्य के आईटी परिदृश्य पर अपनी उपस्थिति दर्ज करने वाली इन्फोसिस को भूमि उपयोग की शर्तों में देर से दी गई छूट को इसके लिए जिम्मेदार माना जा सकता है। कोलकाता के न्यू टाउन में सिलिकॉन वैली और जिलों में कई आईटी ग्रोथ सेंटर के निर्माण से विप्रो को विस्तार करने और कई अन्य कंपनियों को यहाँ अपनी गतिविधियों को अंजाम देने का मौका मिला है जैसे कि कैपजेमिनी, कॉग्निजेंट, टेक महिंद्रा और फर्स्ट सोर्स सहित कई फर्मों ने यहां दुकान खोल ली है। केंद्र सरकार के एक संस्थान जिसने आईटी स्पेस में अपनी फेसिलिटी खोली है, वह भारतीय सांख्यिकी संस्थान है।

पश्चिम बंगाल में आईटी क्षेत्र का निर्माण वाम मोर्चा सरकार के पहले सीएम ज्योति बसु के अथक प्रयासों का मूल कारण है। कई बाधाओं को पार करते हुए, बसु साल्ट लेक इलेक्ट्रॉनिक एक्सपोर्ट प्रोसेसिंग ज़ोन बनाने में सफल रहे थे- जो कि इस क्षेत्र का जाना-माना उदाहरण है। लेकिन बसु के उत्तराधिकारी बुद्धदेव भट्टाचार्य के औद्योगिकीकरण के प्रयासों को उस वक़्त बड़ा झटका लगा था जब ममता बनर्जी ने भूमि अधिग्रहण के खिलाफ निरंतर आंदोलन किए थे। 

होस्पिटेलिटी/आतिथ्य क्षेत्र में निवेश का पता केंद्र सरकार की लुक ईस्ट नीति और पूर्वी क्षेत्र में व्यापारिक गतिविधियों में वृद्धि से लगाया जा सकता है जिसके परिणामस्वरूप चीन, नेपाल, भूटान, बांग्लादेश, सिंगापुर से व्यापारियों की यात्रा में महत्वपूर्ण उछाल आया है। व्यावसायिक संभावनाओं में धीरे-धीरे सुधार मिलने के संकेतों के चलते आईटीसी और ताज होटल समूह ने कमरों की क्षमता को बढ़ाने का काम किया है और नोवोटेल, रॉयल ऑर्किड, मोनोटेल और जेडब्ल्यू मैरियट, ने भी राज्य में अपने होटल खोल लिए हैं। 

रियल एस्टेट व्यापार और रेलवे के महंगे भाड़े के प्रभाव के कारण, साथ ही लंबी दूरी की आवाजाही में सड़क परिवहन की बढ़ती लागत ने कई कंपनियों को राज्य में सीमेंट बनाने की इकाइयां स्थापित करने पर मजबूर किया। 2011 में सिर्फ पांच कंपनियां थीं जिनकी 4.8 मिलियन टन की क्षमता थी। हाल के महीनों में, इन कंपनियों की संख्या 16 हो गई है और इनकी साझा क्षमता बढ़कर 20 मिलियन टन को पार कर गई है। यह एक अंतर्निहित कमी के बावजूद है कि राज्य में व्यावसायिक रूप से व्यवहार्य चूना पत्थर के भंडार की कमी है। इसलिए राज्य को अधिक क्लिंकर यानि धातुमल इकाइयों से संतोष करना होगा। अन्य महत्वपूर्ण खिलाड़ी में, नेओटियास, जेएसडब्ल्यू, डालमिया सीमेंट (भारत), रामको, स्टार सीमेंट शामिल हैं।

ज्योति बासु की पहल पर, कलकत्ता लेदर कॉम्प्लेक्स (सीएलसी) पर 1980 के दशक के अंत में काम शुरू हुआ था और पिछले कुछ वर्षों के दौरान, सीएलसी आज एशिया में बड़े उद्यम के मामले में काफी चर्चित है। उद्योग के नेताओं की इस पर एकमत राय है।

राज्य के वित्त और उद्योग मंत्री अक्सर दावा करते हैं कि सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम क्षेत्र (MSME) ने महत्वपूर्ण प्रगति की है लेकिन वह खास श्रेणी में हुए निवेश और उनमें पैदा हुए रोजगार पर विवरण साझा करने में हमेशा अनिच्छुक रहते हैं।

अमित मित्रा ने 1 मार्च को दावा किया था कि बैंकों के आंकड़ों से पता चलता है कि चालू वित्त वर्ष के अप्रैल से जनवरी के बीच उन्होंने एमएसएमई क्षेत्र को 63,000 करोड़ रुपये का कर्ज़ दिया है और केंद्र के मैट्रिक्स पर नज़र दौड़ाने से पता चलता है कि इस दौरान 23 लाख नई नौकरियां पैदा हुई थीं। 

मित्रा ने आगे कहा था “केंद्र अब निवेश के हर करोड़ पर 44 नए रोजगार पैदा करने का आंकड़ा दे रहा है, जो संख्या पूर्व में 36 थी। मैं बाद वाले को लेकर चल रहा हूँ।”

पश्चिम बंगाल में केंद्र सरकार द्वारा नियंत्रित सार्वजनिक उपक्रमों की महत्वपूर्ण इकाइयों में दुर्गापुर स्टील प्लांट, बर्नपुर में इस्को (IISCO) स्टील प्लांट (ISP) और स्टील अथॉरिटी ऑफ इंडिया लिमिटेड की दुर्गापुर में मिश्र धातु स्टील प्लांट, ईस्टर्न कोलफील्ड्स लिमिटेड की माइंस और भारत कोकिंग कोल लिमिटेड, कोल इंडिया लिमिटेड, इंडियन ऑयल कॉर्पोरेशन की हल्दिया रिफाइनरी, भारत पेट्रोलियम कॉर्पोरेशन लिमिटेड के स्टोरेज टर्मिनल आदि शामिल हैं।

उन्होंने नई इकाइयों में निवेश किया है और वे नियमित रूप से पूंजीगत व्यय करते हैं। उत्तर 24 परगना जिले के अशोकनगर में तेल और प्राकृतिक गैस निगम की परियोजना एक प्रमुख ग्रीनफ़ील्ड उद्यम है जो लागू होने की प्रक्रिया में है। 2013-14 के अंत तक इस्को स्टील प्लांट का पूरा आधुनिकीकरण कर लिया गया था और उस पर 16,000 करोड़ रुपये से अधिक का निवेश किया गया था। यह हाल के वर्षों में अब तक का सबसे बड़ा निवेश है।

लेकिन, राज्य के निवेश के दृष्टिकोण को वाम मोर्चे की सरकार के सात कार्यकालों के बाद भारी झटका लगा। हुगली जिले के सिंगूर में भूमि अधिग्रहण के खिलाफ आंदोलन चलाकर टाटा की  छोटी कार परियोजना को 3 अक्टूबर 2008 को राज्य से बाहर निकलने पर मजबूर कर दिया था, तब तक कंपनी का 80 प्रतिशत तक काम पूरा हो चुका था।

इसी कारण से केंद्र की पेट्रोलियम, रसायन और पेट्रोकेमिकल्स निवेश क्षेत्र (PCIPIR) विशेष आर्थिक क्षेत्र योजना के तहत पूर्वी मेदिनीपुर जिले के नंदीग्राम में रासायनिक हब परियोजना का भाग्य पूरी तरह से अनिश्चित हो गया था। इसके लिए 47,000 करोड़ रुपये का निवेश होना  था। सिंगुर और नंदीग्राम के ब्योरे पर और जानकारी हासिल करने की जरूरत हैं। लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती है।

मई 2011 में सीएम बनने के बाद,ममता बनर्जी ने पुरबिया मेदिनीपुर जिले के कोंताई (कंठी) उप-मंडल में जुनपुट के पास हरिपुर में परमाणु ऊर्जा निगम की प्रस्तावित परमाणु ऊर्जा परियोजना को लगाने को खारिज कर दिया था। इस उद्यम को रूसी सहयोग से 1650 मेगावाट के छह परमाणु रिएक्टर स्थापित करने की परिकल्पना की थी- जो कुल 10,000 मेगावाट बिजली पैदा करते।

बुद्धदेव भट्टाचार्य सरकार ने पीसीपीआईआर इकाई और परमाणु ऊर्जा परिसर की योजना पिछड़े जिले के व्यापक विकास के लिए बनाई थी। वास्तव में उन्होंने केंद्र सरकार को पश्चिम बंगाल को एक परमाणु ऊर्जा परिसर आवंटित करने के लिए राजी किया था और डॉ॰ मनमोहन सिंह ने इसे स्वीकार भी कर लिया था। ममता बनर्जी के सत्ता में आने के बाद उन्होंने कहा था कि वह एक विश्व स्तरीय ईको-टूरिज्म सुविधा स्थापित करेंगी। लेकिन इन दिनों सीएम उस इको-टूरिज्म प्लान की बात तो करती हैं लेकिन नज़र कुछ नहीं आता।

चूंकि इस दौरान हरिपुर में परमाणु ऊर्जा परिसर नहीं लगाने से तमिलनाडु ने इस मौके को हथिया लिया और पूरी तरह से कार्यात्मक कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा परिसर बन गया जिसे हरिपुर के लिए मंजूरी मिली थी।

अभी यह देखा जाना बाकी है कि केंद्र सरकार ने राज्य के लिए जिस निवेश की स्वीकृति दी थी वह सीएम के सनकी दृष्टिकोण और कूटनीति में भारी कमी के कारण आखिरकार पश्चिम बंगाल के ताजपुर में प्रस्तावित महासागर में बनने वाले बंदरगाह को न ले डूबे। 

केंद्र की 74 प्रतिशत और राज्य की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी की परिकल्पना वाले समझौते (एमओयू) पर चार साल पहले हस्ताक्षर किए गए थे और एक विशेष प्रयोजन वाहन (एसपीवी) नामांकित भोर सागर पोर्ट लिमिटेड की स्थापना की गई थी।

लेकिन अब, बनर्जी का आरोप है कि केंद्र बिना किसी तर्क या कारण के इसमें देरी कर रहा है। इसलिए अब वह इसे एक राज्य परियोजना के रूप में चाहती है जिसके लिए नबाना ने एक्स्प्रेसन ऑफ इन्टरेस्ट आमंत्रित किए है। ऐसा छह सप्ताह पहले किया गया था लेकिन इस बारे में अभी तक कोई जानकारी नहीं मिली है कि किसी भी पार्टी ने 4,200 करोड़ रुपये की लागत वाले उद्यम में रुचि दिखाई है या नहीं। यह इस तथ्य के बावजूद कि समझौता ज्ञापन और एसपीवी बरकरार है।

उद्योगपति और व्यापारी नेता किसी भी राज्य सरकार द्वारा आयोजित निवेश सम्मेलनों में  निवेश के प्रस्ताव प्रस्तुत करते हैं। लेकिन पश्चिम बंगाल में यह सुनिश्चित करना मुश्किल है क्योंकि वे सिंगूर प्रकरण को भूल नहीं पाए हैं। रासायनिक हब, हरिपुर परमाणु ऊर्जा परिसर और ताजपुर महासागर का बंदरगाह का दर्दनाक हश्र अभी उनके दिमागों में ताजा है। 997 एकड़ नैनो कार फैसिलिटी की जगह अब बनर्जी सिंगूर में 11 एकड़ भूमि पर कृषि-उद्योग फैसिलिटी लगाने की बात कर रही हैं।

इस बीच, हिंदुस्तान मोटर्स की एंबेसडर कार, डनलप टायर और जेसोप का रेलवे रोलिंग स्टॉक सभी इतिहास का किस्सा बन कर रह गए है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Bengal Elections: Industrial Revival in State a Part of History?

TMC government
Trinamool Congress
mamata banerjee
Left Front in Bengal
West Bengal assembly elections
Bengal Elections 2021
Buddhadev Bhattacharjee
Tata Nano Plant Singur
Haripur Nuclear Power Plant
Industrial Development Bengal
Tajpur Deep Sea Port

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