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भारत
राजनीति
भाजपा सभी मजदूरों को ठेका मजदूर बनाना चाहती है
केंद्रीय श्रम मंत्रालय ने नियमों का मसोदा जारी किया है जो विभिन्न व्यवसायों को फिक्स्ड-टर्म (यानी तय समय के लिए) अनुबंध के आधार पर मजदूरों को काम देगा और बिना किसी सूचना के उन्हें नौकरी से बाहर कर देगा।

प्रणेता झा
30 Jan 2018
Translated by महेश कुमार
laborers
image courtesy : Indian Express

एक बार नहीं बल्कि चौथी बार, भाजपा की अगुवाई वाली एनडीए सरकार देश के उत्पादक कर्मचारियों को अनौपचारिक श्रमिकों की फौज में बदलने की कोशिश कर रही है।

केंद्रीय श्रम एवं रोज़गार मंत्रालय ने इस बाबत सभी क्षेत्रों में "नियत अवधि रोज़गार" शुरू करने वाले ड्राफ्ट नियमों के मसौदे की अधिसूचना जारी की है।

इसका मतलब है कि सभी व्यवसायों को एक निश्चित अवधि के अनुबंध के आधार पर श्रमिकों को भर्ती करने की अनुमति है – इसके विपरीत उद्योगों में श्रमिकों के अनुबंध मज़दूरी को समाप्त करने और नौकरियों के नियमित करने की मांग की है।

भारत में सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने लगातार मजदूरों को ठेकेदारी और अस्थिर काम की दिशा में उठाये सरकार के कदमों का हमेशा विरोध किया है।

मसौदे के नियम यह स्पष्ट करते हैं कि नियोक्ताओं को निश्चित अवधि के मज़दूरों के लिए रोजगार की समाप्ति का नोटिस देने की ज़रूरत नहीं है, न ही नियोक्ताओं को ऐसे मजदूरों को किसी भी छंटनी के भुगतान करने की जरूरत होगी। दूसरे शब्दों में कहे तो, मजदूरों को बिना किसी नोटिस के काम पर रखा जा सकता है और निकाला जा सकता है।

नियमों के अनुसार इससे कोई ज्यादा फर्क नहीं पड़ता कि, और जैसा कि वे कहते हैं, निश्चित अवधि के मजदूरों को स्थायी श्रमिकों के समान काम, वेतन और अन्य लाभ के हकदार हैं।

वास्तव में, यह प्रावधान है कि केवल एक निश्चित अवधि वाले मज़दूर जो लगातार तीन महीनों तक काम करता है, उसे दो सप्ताह का नोटिस (और नोटिस की अनुपस्थिति में, लिखित रूप में छंटनी के कारण के बारे में सूचित किया जाएगा) का हकदार है, यह दर्शाता है कि सरकार द्वारा रोज़गार की अवधि भी मजदूरों के लिए काल्पनिक है अगर यदि इन परिवर्तनों की रौशनी में इसको देखें तो।

एनडीए ने पहले 2003 में नियत अवधी कॉन्ट्रैक्ट श्रमिकों की भर्ती शुरू की थी, लेकिन 2007 में यूपीए सरकार ने सभी केंद्रीय ट्रेड यूनियनों के बड़े पैमाने पर सर्वसम्मति से विपक्ष के कारण इस आदेश को उलट दिया था।

फिर 2015 में, एनडीए ने इसी उद्देश्य के लिए मसौदा नियम जारी किए हैं, लेकिन ट्रेड यूनियनों के विरोध के बाद यह प्रस्ताव फिर से स्थगित कर दिया गया था।

अक्टूबर 2016 में एनडीए ने विपक्ष के कड़े विरोध के बावजूद परिधान विनिर्माण क्षेत्र में निश्चित अवधि के रोजगार की शुरुआत की है। सरकार ने यह कहने का प्रयास किया था कि परिधान क्षेत्र में काम मौसमी प्रकृति का है।

अब, 8 जनवरी 2018 को, श्रम मंत्रालय ने फिर से मसौदा अधिसूचना जारी की है जिसका मतलब औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) केंद्रीय नियम 1946 में संशोधन किया है। अधिसूचना 9 फरवरी 2018 तक टिप्पणी के लिए मंत्रालय की वेबसाइट पर अपलोड की गई है। 10 जनवरी 2018 को, भारतीय ट्रेड यूनियनों के केंद्र (सीआईटीयू) ने श्रम मंत्रालय को एक पत्र लिखा, जिससे सरकार को इस अविश्वसनीय मजदूर विरोधी प्रस्ताव को निरस्त अकरने के लिए कहा।

 सीटू के महासचिव तपन सेन ने पत्र लिखकर कहा क्या औद्योगिक क्षेत्रों में सभी नौकरियां " मौसमी (सामयिक)" हो गयी हैं? "", परिधान क्षेत्र में निश्चित अवधि के ठेके शुरू करने के लिए मंत्रालय के पहले औचित्य के संदर्भ यह सवाल उठाय गया।

सेन ने कहा, "यह मजदूरों के हितों के विरुद्ध है और कर्मचारियों को अस्थायी बनाने और अस्थायी बनाने के लिए तैयार किया गया एक गंभीर मजदूर विरोधी कदम है।"

"चूँकि नौकरी का चरित्र अस्थायी है इसलिए स्थायी सेवाकर्मियों के समान मजदूरी और सेवा की अधिसूचना मजदूर विरोधी है और नौकरी की सुरक्षा से इसका कुछ भी लेना-देना नहीं है, ऐसे में अस्थायी कर्मचारी की समान व्यवहार की मांग से उन्हें अपने रोज़गार खोने का डर हमेशा बना रहेगा। "

पत्र में कहा गया है कि अधिसूचना "अस्थायी श्रमिकों द्वारा उद्योगों में नियमित कर्मचारियों की संख्या को धीरे-धीरे बदलने के लिए डिजाइन किया गया है, जो पूरी तरह से उन्हें सभी अधिकारों से वंचित कर देगा और इसलिए इसे स्वीकार नहीं किया जा सकता"।

नोटिस में यह बताया गया है कि श्रमिकों को काम पर रखने में लचीलापन लाने के प्रस्ताव को वापस लाने के लिए उद्योग के विभिन्न क्षेत्रों से दबाव था। जब अन्य क्षेत्रों के लिए निश्चित अवधि के रोजगार का विस्तार करने की बात करते हैं, तो सरकार ने कहा है कि यह सोसायटी को आसानी-से-व्यापार में सुधार करके "वैश्विक स्तर पर बड़े पैमाने पर निवेश आकर्षित करने" को प्रोत्साहित करेगा।

न्यूजक्लिक से बात करते हुए, सीआईटीयू की अध्यक्ष डा. के. हेमलता ने कहा कि, "यह केवल मजदूरों की स्थिति को और अधिक अनिश्चित करेगा क्योंकि नियोक्ताओं को मजदूरों के प्रति कोई दायित्व नहीं होगा। वे नौकरी पर जब चाहे रखेंगे और निकाल देंगे। श्रमिकों के लिए नौकरी की सुरक्षा और सामाजिक सुरक्षा नहीं होगी। "

रोजगार सृजन के दावों के लिए डॉ हेमलता ने कहा, "रोजगार सृजन लोगों की क्रय क्षमता पर निर्भर करता है। यदि लोगों के पास पैसा है, अगर वे खरीदते हैं, तो तभी वे उत्पादन करेंगे और उसके बाद ही रोजगार सृजन होगा। जो भी रोजगार पैदा हो रहा है वह श्रमिकों के बीच ऐसी क्रय शक्ति पैदा नहीं कर रहा है। यह कोई अच्छी नौकरी नहीं है। "

"जब प्रधान मंत्री कहते है कि एक व्यक्ति को पोकोड बेचने से 200 रुपये प्रति दिन कमाई होती है और वह एक रोज़गार है, और मनरेगा के मजदूरों जिनको 40 दिनों का काम भी नहीं मिलता हैं उन्हें भी रोज़गार कहा जाता है, तो यह किस परकार का रोजगार क्या है?"

उन्होंने कहा, कि 2015 की एक अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) की रिपोर्ट में भी कहा गया था कि श्रमिकों के अधिकारों पर हमला करने से रोजगार सृजन कैसे होगा।

इसमें कोई आश्चर्य नहीं है कि आइएलओ की 2018 की एक रिपोर्ट का अनुमान है कि 77% भारतीय कामगार 2019 तक बड़े ही कमजोर रोजगार में लगे होंगे।

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