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राजनीति
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अमेरिका
बाइडन को पश्चिमी एशिया में बदले की भावना की विरासत मिली है 
बाइडन को बड़े फैसले करने हैं। अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ, इज़राइल अमेरिकी क्षेत्रीय रणनीति के कॉकपिट में घुस गया है जो सुन्नी अरबी निज़ाम को ईरान के खिलाफ खड़ा करता है। जबकि, बाइडन ईरान से बातचीत करने की योजना बनाए हुए है।
एम. के. भद्रकुमार
05 Dec 2020
Translated by महेश कुमार
बाइडन
क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (दाएँ) अमेरिकी विदेश मंत्री माइक पोम्पिओ का स्वागत करते हुए, नेओम, सऊदी अरब, 22 नवंबर, 2020।

अरब के रेगिस्तान के सूखे परिदृश्य पर नज़र डालें तो पता चलेगा कि निवर्तमान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प और उनके दामाद जेरेड कुशनर ने पिछले अगस्त में अब्राहम समझौते नाम का एक पौधा लगाया था। वे भविष्य को नज़र कर लगाए गए इस अंगूर के बागीचे से बेहतरीन स्वाद वाले अंगूरों के गुछों की समृद्धता की उम्मीद में ऐसा मान कर चल रहे थे कि उन्हें चार साल के लिए अमेरिका पर फिर से शासन करने का जनादेश मिल जाएगा और बगीचे से स्वादिष्ट अंगूर भी। 

लेकिन खुदा की इच्छा तो कुछ ओर ही थी। ये पौधा जो अब बाइडन प्रेसीडेंसी की विरासत बन गया है, ट्रम्प ने अपने पालने में उसका गला घोंटना की कोशिश की थी। यह अब बाइडन पर निर्भर है कि वह अपने पूर्ववर्ती के पौधे को जल चढ़ाए, उसे खाद दे और उसे कीड़ों एवं रेगिस्तानी तूफानों से बचाए, और इसे एक अंगूर का बाग बनाए। लेकिन बाइडन की दुविधा यही रहेगी कि ट्रम्प का पौधा केवल क्रोध के अंगूर को पैदा कर सकता है।

ट्रम्प और कुश्नर का अनुमान था कि सऊदी अरब के युवा क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान (एमबीएस) के अब्राहम समझौते में आने से उनकी एक समझ बन जाएगी। लेकिन ऐसे नाखुशगवार संकेत मिल रहे हैं कि एमबीएस अमेरिका में 3 नवंबर को हुए चुनाव परिणामों का इंतजार कर रहे हैं जिन्हे निश्चित रूप से ट्रम्प हार गए हैं।

ट्रम्प, जो ’हारे हुए लोगों से घृणा करते है, ने अनुमान लगाया था कि सउदी उन्हें आज के हालत में एक अलग रोशनी में देखेंगे। लेकिन उन्होंने इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू की सलाह पर अपने सबसे भरोसेमंद राज्य सचिव माइक पोम्पियो को सऊदी अरब की यात्रा पर भेजने के लिए राजी किया ताकि किसी तरह एमबीएस की जड़ता को खत्म किया जा सके।  

पोम्पेओ और नेतन्याहू ने क्राउन प्रिंस से मिलने के लिए एक संयुक्त मिशन शुरू करने का फैसला किया था। इसमें कोई संदेह नहीं कि यह एक मुश्किल मिशन था, क्योंकि नेतन्याहू जैसे किसी भी व्यक्ति का उस मिट्टी पर पैर रखना बहुत संवेदनशीलता का मसला होगा जहां इस्लाम की दो सबसे पवित्र मस्जिद हैं।

हालांकि, यह मिशन वैसे भी गैर-उत्पादक निकला। एमबीएस ने एतराज जताया। 22 नवंबर को नेओम, सऊदी अरब के रेड सी रिसॉर्ट में हुई गुप्त बैठक की विभिन्न जानकारियों के लीक होने के कारण ऐसा हुआ। लीक जानकारियों के मुताबिक अब सऊदी निज़ाम की प्राथमिकताएं वैसी नहीं हैं, जैसा पहले हुआ करती थीं।

स्पष्ट रूप से कहें तो, रियाद ने स्पष्ट रूप से यह निष्कर्ष निकाला है कि नव-निर्वाचित  अमेरिकी राष्ट्रपति की नज़रों में अच्छा बनने के लिए अभी बहुत काम करना बाकी है और इसके लिए एकल-ध्यान की जरूरत है। अप्रत्याशित रूप से, एमबीएस सावधानी से चल रहे है।

यमन में सउदी से जुड़े अत्याचार, पत्रकार जमाल खशोगी की हत्या, सऊदी अरब में मानवाधिकार की स्थिति आदि ने बाइडन की नज़रों में सऊदी के एक “ख़ारिज” राज्य होने की धारणा को पुख्ता कर दिया था। एमबीएस ने जोर देकर इस बात को कहा कि जब बाइडन सत्ता संभाल रहे है तो ईरान के साथ युद्ध उकसाना कोई स्मार्ट बात नहीं होगी।

इस बीच अन्य संकेत भी मिल रहे हैं कि सऊदी अरब अपनी क्षेत्रीय नीतियों में बदलाव लाने  की उम्मीद करता है। निश्चित रूप से, किंग सलमान का 20 नवंबर को तुर्की के राष्ट्रपति रेसेप एर्दोगन को फोन करना और सुलह की बात करना, फिर कतर के साथ संबंधों को सामान्य बनाने की सऊदी की पहल, और हाल ही में जी-20 शिखर सम्मेलन के दौरान सऊदी का खुद को एक "सॉफ्ट पावर" के रूप में पेश करने का प्रयास- ये सभी एक सऊदी निज़ाम के नवजात नीतिगत संकेत हैं साथ ही भूल सुधार भी है।

इस नीतिगत सुधार कार्यक्रम में संयुक्त अरब अमीरात के क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन जायद (एमबीजेड) की एमबीएस की निकटता एक कारण भी है, जो निश्चित रूप से अमेरिका और इजरायल की खुफिया जानकारी के साथ मिलकर काम करता है। इस क्षेत्र में और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर सामान्य धारणा यह है कि एमबीजेड की की हथेली पर एमबीएस एक "उपयोगी मूर्ख" के रूप में है।

वास्तव में, समय के साथ इस तरह की धारणा लगातार बढ़ती गई है। निश्चित रूप से एमबीज़ेड ने सऊदी अरब को यमन युद्ध में खींचने, कतर के साथ सऊदी अरब के संबंध टूटने (वहाबी धार्मिक विचार और प्रबंधन वाला एकमात्र मुस्लिम देश), और तुर्की के साथ संबंधों की खटास को उकसाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। 

यह बताना कठिन होगा कि तुर्की के विश्लेषक सही है या नहीं- अर्थात्, एमबीजेड ने सऊदी अरब को अपनी अंगुली पर लपेटा हुआ है और वह एमबीएस के साथ एमिरात और इजरायल के हितों की सेवा करने के मामले में हेरफेर करता है। लेकिन ऐसा अनुमान प्रशंसनीय लगता है।

किंग सलमान का एर्दोगन और शेख तमीम बिन हमद अल-थानी, कतर के अमीर के साथ रिश्ते को बेहतर बनाने या चर्चा करना किसी भी कीमत पर एमबीजेड को पसंद नहीं आया होगा, क्योंकि उनके लिए ये दोनों देश शत्रु हैं जो मुस्लिम ब्रदरहुड के संरक्षक हैं, और इससे भी महत्वपूर्ण बात ये है कि यह रणनीति यूएई को मुस्लिम मध्य पूर्व में नंबर एक दर्जे की क्षेत्रीय शक्ति बनाने के महत्वाकांक्षी मार्ग को चुनौती देती हैं।

एर्दोगन की नज़रों में, 2016 में यूएई ने उनके खिलाफ असफल तख्तापलट की कोशिश की थी जिसमें उन्हें सत्ता से उखाड़ फेंकने और खत्म करने की कोशिश करने का संदेह है। तुर्की कुर्द अलगाववादियों को अमीरी समर्थन पर गंभीर ध्यान रखता है। फिर से, तुर्की और यूएई सीरिया और लीबिया में संघर्ष में आमने-सामने हैं।

बहरहाल, एर्दोगन ने किंग सलमान की पहल का स्वागत किया है और उम्मीद जताई है कि इससे सऊदी-तुर्की के रिश्ते सामान्य होंगे। लेकिन उन्हें यह भी पता है कि यह सब कुछ यूएएस-इजरायल के दायरे से बाहर निकलने वाले एमबीएस पर निर्भर करता है और अंतत सऊदी अरब आखिरकार अपने हितों के लिए काम कर रहा है।

इसमें कोई शक नहीं, ट्रम्प के बाहर जाने से से बड़ा बदलाव आया है। ट्रम्प ने एमबीएस को इस हद तक सशक्त कर दिया था कि वह सचमुच हत्या करने के बावजूद भयमुक्त रह सकता था।  लेकिन 20 जनवरी से, पॉटरी बार्न रूल लागू हो जाएगा- 'यदि आप इसे तोड़ते हैं, तो इसे आप को ही जोड़ना होगा।'

पोम्पेओ और नेतन्याहू के साथ हुई एमबीएस की बैठक में सऊदी पुनर्विचार के निशान दिखाई दिए। यूएस-इजरायल ने नेओम में- मुख्य रूप से बैठक के दौरान धमकी दी कि सऊदी अरब को संयुक्त अरब अमीरात के कदमों का अनुसरण करना होगा और अब्राहम समझौते में शामिल रहना होगा, और इसके एवज़ में इज़राइल सऊदी शासन की रक्षा में बाइडन के विरोधभाव को कम करने के लिए बेल्टवे में तार खींचेगा-लेकिन इस जद्दोजहद का वांछित परिणाम नहीं निकला। 

अमेरिकी राज्य विभाग ने नेओम की बैठक के बारे में इतना भर कहा कि, "उन्होंने (पोम्पेओ और एमबीएस) ने क्षेत्र में ईरान के आक्रामक व्यवहार और यमन में युद्ध के मामले में एक राजनीतिक समाधान हासिल करने की जरूरत और खाड़ी की एकता की जरूरत पर चर्चा की।"

एमबीएस ने समझदारी से काम लेते हुए "गल्फ यूनिटी" यानि खाड़ी एकता के बारे में पॉम्पेओ के समर्थन और नेतन्याहू की चाहत को थाम लिया, जो कि स्पष्ट रूप से ईरान पर हमला करने का एक रूपक ही था। एमबीएस को पता था कि अगर ट्रम्प इजरायल-इमरती-सऊदी रणनीति के संदर्भ में ईरान पर हमला करने के लिए आगे बढ़ते हैं, तो सऊदी अरब को बाइडन से अमेरिकी सुरक्षा नहीं मिलेगी।

सऊदी अरब यहाँ खुद को एक तंग जगह में फंसा पा रहा है। एमबीएस आशंकित है कि बाइडन  प्रशासन उसके प्रति शत्रुतापूर्ण हो जाएगा और उसे खाशोगी की हत्या जैसी पिछली गलतियों के लिए जवाबदेह बना देगा, और कि किंग सलमान के बाद उनकी ताजपोशी के उनके दावे को घातक रूप से नष्ट कर सकता है। पहले से ही सऊद हाउस के भीतर से उनका विरोध जारी है और विरोध करने वाली कुछ लोगों को पश्चिमी समर्थन हासिल हैं।

इस तरह के जटिल परिदृश्य में ट्रम्प इस सप्ताह एमबीएस से मिलने के लिए कोश्नर को नियुक्त कर रहे हैं ताकि एमबीएस को उनकी रणनीति के लिए राजी किया जा सके जो उनका एक अंतिम प्रयास होगा। वास्तव में, कोश्नर नेतन्याहू के इशारे पर काम कर रहा हैं। कोशनेर को निजी स्तर पर एमबीएस पर प्रभाव डालने के रूप में आदरणीय माना गया है।

सभी पक्षों के दांव बहुत ऊंचे लगे हैं- विशेष रूप से इजरायल और यूएई के। सऊदी अरब के इजरायल के तम्बू में घुसे बिना, अब्राहम समझौता कमजोर और अस्थिर हो जाएगा, और इतिहास में ऐसे कई मध्य पूर्वी समझौते हैं, जो ओस्लो समझौते और कैंप डेविड समझौते की तरह, परम-आनंद में पैदा हुए थे, जो समझौते 20 जनवरी को व्हाइट हाउस में गॉडफादर के सेवानिवृत्त होने के बाद बेअसर हो सकते है।

मध्य पूर्व की स्थिति के संबंध में बाइडन केपी बड़े फैसले करने हैं। अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर करने के साथ, इज़राइल अमेरिकी क्षेत्रीय रणनीति के कॉकपिट में घुस गया है, जिसने फारस की खाड़ी के सुन्नी अरब निज़ामों को ऐतिहासिक रूप से ईरान के खिलाफ कर दिया है। जबकि, बाइडन की ईरान के साथ बातचीत करने की योजना है।

फिर, इज़राइल तलवार लिए तैयार रहता है और फारस की खाड़ी में इसकी चढ़ाई निश्चित रूप से आने वाले वर्षों के निर्बाध युद्ध संघर्ष और रक्तपात का नुस्खा है। क्या इन हालात में इजरायल अमेरिका का अच्छा सहयोगी है? अगर अलग तरीके से कहें, तो अमेरिका ने इजरायल को मध्य पूर्व नीतियों को तय करने की अनुमति क्यों दी?

अंत में, सऊदी अरब एक क्षेत्रीय वजनदात ताक़त है और बाइडन की आमे वाली प्रेसीडेन्सी  रियाद को खाड़ी संकट को समाप्त करके एक अधिक व्यावहारिक विदेश नीति में शामिल कर सकती है। निसंदेह, एमबीएस पर बाइडन की लगाम एक निर्णायक कारक होगा।

लेकिन फिर, रियाद पर संयुक्त अरब अमीरात का दबाव भी है, जो कतर और तुर्की के साथ कोई भी सऊदी सुलह नहीं चाहता है। फिर भी, पेचीदा मसला यह है कि बाइडन ने सऊदी अरब की कई बार कठोर आलोचना की है, लेकिन बाइडन मध्य पूर्वी हॉटस्पॉट्स में सैन्य हस्तक्षेप के विस्तृत रिकॉर्ड के बावजूद, संयुक्त अरब अमीरात पर नज़रें गड़ाए हुए है।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करें

Biden Inherits West Asia’s Grapes of Wrath

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