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भारत
राजनीति
बिजनौर: मारे गए युवकों के परिवार वालों ने बताया कि उस दिन नहटौर अस्पताल में एक भी डॉक्टर नहीं था!
स्थानीय लोगों ने आरोप लगाया है कि एफ़आईआर में विरोधाभास है, क्योंकि अनस और सुलेमान को गोली आँख और छाती पर मारी गई है, जबकि पुलिस का दावा है कि उसने कमर के नीचे गोली मारी थी।
अब्दुल अलीम जाफ़री
29 Dec 2019
Mohd. Anas Mother

नहटौर (उत्तर प्रदेश): पश्चिमी उत्तर प्रदेश में स्थित बिजनौर ज़िले का कस्बा नहटौर नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) के खिलाफ विरोध प्रदर्शन के दौरान हिंसा की चपेट में आ गया। अभी फिलहाल भारी पुलिस बंदोबस्त के चलते यहाँ शांति देखी जा सकती है, और साथ ही लगातार चार दिनों की बंदी के बाद कुछ दुकानें भी खुल गई हैं, लेकिन इस सबके बीच मुस्लिमों के बीच में ख़ौफ़ का माहौल है। अधिकांश युवा डर के मारे भूमिगत हो चुके हैं।

नहटौर की तरह ही बिजनौर के एक दूसरे कस्बे नगीना में भी भय का माहौल है। जैसे ही नहटौर और नगीना के इलाकों में रात गहराती है, दोनों में सन्नाटा गहरा जाता है। दोनों ही जगह इस भय में जकड़े होने की वजह है, पिछले शुक्रवार  20 दिसंबर को शुरू हुए सीएए-एनआरसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन पर पुलिस की कथित बर्बरता। नहटौर में स्थानीय निवासियों के अनुसार इस रोष प्रदर्शन के बाद मुस्लिम प्रदर्शनकारियों के खिलाफ पुलिस की ओर से जो क्रूर दमनात्मक कार्रवाई हुई, उसमें दो युवकों की मौत हो गई। इतना ही नहीं, पुलिस ने प्रथम दृष्टया रिपोर्ट (एफआईआर) के आधार पर 39 मुसलमानों को गिरफ़्तार किया है और 2,500 "अज्ञात" लोगों के नाम पर रिपोर्ट दर्ज की है। जिन 39 लोगों को गिरफ्तार किया गया था उनमें से 9 को पहले ही जेल में सलाखों के पीछे भेजा जा चुका है।

न्यूज़क्लिक ने नहटौर में मारे गए दोनों युवकों-मोहम्मद अनस और मोहम्मद सुलेमान के परिवार से मुलाकात की। जिस तरह से मेरठ में पांच लोग कथित तौर पर कमर के ऊपर गोलियाँ लगने की वजह से मारे गए थे, उसी तरह नहटौर में भी दो युवकों को, एक को बाईं आँख और दूसरे को उसकी छाती पर कथित तौर पर गोली मारी गई है।

20 दिसंबर को क्या हुआ था

अरशद हुसैन (46 वर्ष) अपने घर के सामने बैठे हैं और उन्हें कुछ रिश्तेदारों और पड़ोसियों ने घेर रखा है, जो वहाँ उन्हें सांत्वना देने के लिए आये हुए हैं। अरशद अपने 22 साल के बेटे मोहम्मद अनस को गँवा चुके हैं, जो 20 दिसंबर को हुए विरोध प्रदर्शन के बाद हुई कथित हिंसा का शिकार हो गया था। अनस दो साल पहले ही अपनी पत्नी और आठ-माह के बच्चे के साथ दिल्ली में रहने लगा था। जहाँ वह शादियों और पार्टियों में स्टाल लगाने का काम करता था।

अनस अपने पैतृक गांव नहटौर में अपने घर की दूसरी मंजिल की छत पर टिन की चादर डालने के लिए 15 दिसंबर को लौटा था। 20 दिसंबर को शुक्रवार की नमाज के बाद दोपहर 3 से 3:30 बजे के बीच, वह अपने बच्चे के लिए दूध खरीदने के लिए अपने चाचा की डेयरी जो उनके घर पर ही है, और जो मुश्किल से 100 मीटर की दूरी पर था, उस पर जा रहा था। दोनों घर गली में स्थित थे जो कॉलोनी की एक लेन में खुलते थे, और दोनों तरफ दुकानें थीं।

अनस के पिता, जो जालंधर (पंजाब) में एक दर्जी का काम करते हैं, भी 18 दिसंबर को नहटौर आए थे। 20 दिसंबर के दिन उन्होंने अनस को कह रखा था कि घर से बाहर न निकलना क्योंकि बाजार बंद हैं, लेकिन अनस ने जिद पकड़ ली कि उसके बच्चे को दूध की जरूरत है।

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अनस के पिता, अरशद हुसैन

बेहद व्याकुल स्वर में हुसैन ने बताया “अनस ने मेरी बात नहीं मानी और बोला कि ताया अब्बा की (पिता के बड़े भाई) दुकान से दूध खरीदकर बस एक मिनट में वापस आया। जैसे ही वह गली से सड़क पर पहुँचा, नहटौर पुलिस थाने से निकली एक गोली उसकी बाईं आँख में जा लगी। वह जमीन पर गिर पड़ा और बुरी तरह खून निकल रहा था।”

चेहरे पर शोक की लहर के साथ हुसैन ने न्यूज़क्लिक को बताया: "जैसे ही अनस गिरा उसके बाद से ही लोगों की चिल्लाहट सुनाई पड़ी कि काले ब्लेजर वाले एक लड़के की मौत हो गई है। उस समय तक मैं अपने परिवार के सदस्यों के साथ बातें करने में मशगूल था। तभी मुझे एहसास हुआ कि मेरे बेटे ने भी तो काली ब्लेजर पहनी हुई थी। जब तक मैं घटनास्थल पर पहुँचा, उसकी सांसें चल रही थीं। हम तत्काल उसे सरकारी अस्पताल लेकर पहुँचे लेकिन वहां पर एक भी डॉक्टर उपलब्ध नहीं था। फिर हम बिजनौर की ओर भागे, लेकिन रास्ते में ही उसने दम तोड़ दिया।”

स्थानीय निवासियों का आरोप है कि पुलिस ने अनस के शव को जिला मुख्यालय बिजनौर से, जहाँ पोस्टमार्टम किया गया था, से नहटौर ले जाने की अनुमति नहीं दी, क्योंकि उन्हें इस बात का डर था कि कहीं इसके चलते सांप्रदायिक तनाव न भड़क उठे।

अनस के चाचा रिसालत हुसैन ने न्यूज़क्लिक को बताया, "हमारी गैर-हाजिरी में पोस्टमार्टम किया गया। पोस्टमार्टम के बाद भी शव को हमारे हवाले नहीं किया गया। जब हमने इसकी मांग की  तो हमें यह कहकर धमकाया गया कि यदि किसी भी प्रकार की कानून-व्यवस्था में गड़बड़ी होगी, तो तमाम आपराधिक मामले ठोंक दिए जायेंगे। हम अनस को उसके पैतृक स्थान नहटौर में दफनाना चाहते थे, लेकिन वे इसके लिए राजी नहीं हुए। काफी तीखी गर्मागर्म बहस के बाद वे इस बात के लिए राजी हुए कि उसे अपने ‘ननिहाल’ (मेरे दादा-दादी के गाँव) मीठन में दफना सकते हैं, जो नहटौर से करीब 18 किलोमीटर दूर है। "

इसी तरह के शोक और पीड़ा वाला दृश्य 20 दिसंबर को घास मंडी में भी देखने को मिला। यह क़स्बा जो सुबह से ही यूपी पुलिस के कैंप में तब्दील हो गया था, में एक और नौजवान गोली का शिकार होते देखा गया। 20 वर्षीय सुलेमान जो आईएएस परीक्षा की तैयारी कर रहा था, कथित तौर उसकी छाती में गोली मारी गई थी,  जब वह नमाज पढ़ने के बाद मस्जिद से बाहर आ रहा था। बताया जाता है कि उसे काफी करीब से गोली मारी गई थी।

20 दिसंबर के दिन नहटौर में एक भी डॉक्टर नहीं था

इन दोनों ही मामलों में, परिवार वालों का कहना है कि जब वे नहटौर के सरकारी अस्पताल पहुँचे तो वहाँ पर एक भी डॉक्टर उपलब्ध नहीं था। दोनों परिवारों को कुछ घंटों तक इंतज़ार करना पड़ा, और उनका आरोप है कि अस्पताल प्रशासन ने उनपर कोई ध्यान नहीं दिया।

सुलेमान के बड़े भाई शोएब मलिक, जिनकी आँखें रो-रोकर लाल हो चुकी हैं, ने न्यूज़क्लिक को बताया कि: “सिविल सर्विसेज (प्रिल्म्स) की तैयारी के सिलसिले में सुलेमान को नोएडा में उसके मामा के आवास पर भेज दिया गया था। पिछले कुछ दिनों से वह बुखार से पीड़ित था, और इसी वजह से हमने उसे अपने घर नहटौर पर आराम करने के लिए बुला लिया था। 20 दिसंबर के दिन उसे 101 डिग्री बुखार था। वह जुमे की नमाज (शुक्रवार की नमाज) अदा करने गया था। कई प्रत्यक्षदर्शियों के अनुसार, पुलिस ने सुलेमान को मस्जिद के बाहर से उठा लिया था। बाद में पुलिस ने काफी नजदीक से उसकी छाती में गोली मार दी। "

शोएब के अनुसार, सुलेमान आरएसएम (RSM) डिग्री कॉलेज, धामपुर में राजनीति विज्ञान और भूगोल विषय के साथ अंतिम वर्ष का स्नातक छात्र था। इसके साथ ही वह सिविल सर्विसेज की तैयारी में भी जुटा हुआ था।

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सुलेमान का अध्ययन कक्ष

सुलेमान के साथ हुई अपनी अंतिम बातचीत को याद करते हुए, भावुक स्वर में शोएब ने बताया: "अपने भाई को आईएएस अफसर बनाने का मेरा सपना अधूरा रह गया। तैयारी के सिलसिले में बेहद कम उम्र में ही सुलेमान ने घर छोड़ दिया था। पिछले साल से ही उसने आईएएस की तैयारी के सिलसिले में कोचिंग क्लासेस लेनी शुरू की थीं।"

अनस के पिता की ही तरह शोएब का भी आरोप है कि पुलिस ने उनके परिवार को भी नहटौर से कहीं दूर ले जाकर सुलेमान को दफनाने के लिए मजबूर किया। उसने बताया कि पुलिस ने उन्हें नहटौर पुलिस थाने में बुलाया और शव को बिजनौर ले जाने और सुलेमान को वहीं दफना देने के लिए कहा था।

"पुलिस ने मुझे और मेरे पिता जाहिद हुसैन को धमकी दी थी और कहा था कि यदि हम इसके लिए राजी नहीं हुए तो हमें फर्जी मामलों में फंसा दिया जाएगा। उन्होंने (पुलिस) मुझ पर और मेरे पिता पर ट्रिगर रखकर धमकाया कि सुलेमान को किसी स्थानीय कब्रिस्तान में दफन नहीं करना है। हम क्या कर सकते थे, हम असहाय थे, हमें उसे अपने पैतृक कस्बे से करीब 17 किलोमीटर दूर बगदाद अंसार (उसकी नानी के गाँव) ले जाकर उसे दफनाना पड़ा।

अनस के परिवार की ही तरह, शोएब के परिवार ने भी आरोप लगाया है कि घटना के दिन कोई डॉक्टर उपलब्ध नहीं था। शोएब ने बताया, "पोस्टमार्टम के दौरान यूपी पुलिस ने हमें प्रताड़ित किया, और यहां तक कि अस्पताल परिसर में भी, जहां कोई डॉक्टर मौजूद नहीं था। हमने तीन घंटे तक इंतजार किया, लेकिन सुलेमान को देखने कोई नहीं आया। अगर अस्पताल में डॉक्टर होते, तो वह आज जिंदा होता।"

एफआईआर में खामियाँ

दोनों परिवारों ने पुलिस पर आरोप लगाए हैं कि वे सारे मामले को दबाने-छुपाने में लगे हुए हैं, जो उनके अनुसार एफआईआर के साथ शुरू ही शुरू हो जाती है। पुलिस द्वारा दर्ज एफआईआर में कहा गया है कि लोग अपनी-अपनी दुकानों से भाग रहे थे, जिसके कारण 20 दिसंबर को भगदड़ मची। लेकिन सच्चाई ये है कि उस दिन शहर में पूरी तरह से बंदी थी।

प्राथमिकी खुद का भी खण्डन करती है क्योंकि पुलिस ने दावा किया है कि उसने कमर से नीचे गोली चलाई, जबकि अनस और सुलेमान ने क्रमशः आंख और छाती में लगी चोटों के कारण दम तोड़ दिया था। कस्बे में ऐसे कई मकान हैं जहाँ पर पता चला है कि उनपर छह फीट ऊँचे तक गोलियाँ लगी हैं। न्यूज़क्लिक के पास सबूत के तौर पर एफआईआर की एक प्रति भी मौजूद है।

एफआईआर में शामिल खामियों और गोलीबारी के पीछे के पुलिस के संभावित इरादे पर टिप्पणी करते हुए  एक स्थानीय पत्रकार ने (जिन्होंने अपनी पहचान जाहिर करने से मना किया) इस पूरे वाकये के लिए पुलिस को कसूरवार ठहराया है। "पुलिस और एफआईआर दोनों ही खुद को झुठलाते हैं। एफआईआर में, जहाँ पुलिस ने उल्लेख किया है कि लोग अपनी दुकानों से भाग रहे थे, जबकि यह घटना शुक्रवार की नमाज के बाद हुई थी, और इस हकीकत के बावजूद कि उस दिन कस्बे में पूर्ण बंदी की कॉल दी गई थी। जब पूरा क़स्बा एक साथ था, तो फिर स्थानीय लोगों का अपनी दुकानों में मौजूद रहना कैसे संभव है? "

इस सिलसिले में जब न्यूज़क्लिक नहटौर के पुलिस इंस्पेक्टर  सत्य प्रकाश सिंह से मुलाकात की तो उन्होंने कहा कि: "अगर हमने हत्या के इरादे से गोली चलाई होती, तो सिर्फ दो ही नहीं, पूरा शहर लाशों के ढेर में तब्दील हो चुका होता।"

आगे बताते हुए उन्होंने कहा: "39 लोगों को गिरफ्तार किया गया है, जिनमें से नौ को जेल भेज दिया गया है। 39 लोग एफआईआर में नामजद किये गए हैं, जबकि 2,500 लोग एफआईआर में नामजद नहीं हैं।"

हालात काबू से बाहर कैसे हो गए

20 दिसंबर की दोपहर के समय नया बाजार में नमाज के बाद मस्जिद के बाहर भारी भीड़ जमा हो गई थी। एक विरोध प्रदर्शन की योजना बनी थी लेकिन जमीयत उलेमा-ए-हिंद ने लोगों से विरोध प्रदर्शन को रद्द करने के लिए कहा था, इसलिए पूरी तरह से बंदी थी।

एक स्थानीय निवासी ने आरोप लगाते हुए बताया "विरोध प्रदर्शन यहाँ पर बिलकुल भी नहीं हुआ, क्योंकि हमें सन्देश मिला था कि विरोध प्रदर्शन न किये जाएँ। जिम्मेदार लोग समुदाय को इसके रद्द किये जाने की सूचना दे ही रहे थे कि अचानक से पुलिस और नमाजियों (शुक्रवार की नमाज के लिए जाने वाले लोग) के बीच मस्जिद के बाहर तीखी नोक-झोंक होने लगी। लोग पुलिस से सवाल कर रहे थे कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़ा एक आदमी प्रमोद त्यागी, मस्जिद के सामने क्या कर रहा है। अचानक किसी ने पीछे से एक पत्थर मारा, जो एक मुस्लिम व्यक्ति को जा लगा। इसके बाद तो वह जगह रणभूमि में तब्दील हो गई।” अपनी बात में जोड़ते हुए उसने कहा कि पुलिस ने लाठीचार्ज या आंसूगैस चलाने के बजाय सीधे गोलियां चलाने वाला तरीका अपनाया। “पुलिस का इरादा क्या था, यह बिलकुल स्पष्ट है” उसका आरोप था।

जब इस सिलसिले में न्यूजक्लिक ने इंस्पेक्टर सिंह से सवाल किया, तो उनका कहना था, "त्यागी वहां पर सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के मकसद से उपस्थित थे।"

इस पूरे मामले अब अपडेट यह है कि मृतक सुलेमान के भाई शोएब ने पुलिस वालों के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज करा दी है। शोएब ने नहटौर के पूर्व थाना प्रभारी राजेश सोलंकी (जिनका इस घटना के बाद ट्रांसफर कर जिला क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो (डीसीआरबी) भेज दिया गया है), दरोगा आशीष तोमर, सिपाही मोहित तोमर समेत 6 पुलिसकर्मियों पर हत्या का केस दर्ज कराया है। उत्तर प्रदेश में यह पहला मामला है, जिसमें हिंसा के दौरान मारे गए किसी व्यक्ति के परिवार वालों की तरफ़ से पुलिसकर्मियों पर केस दर्ज हुआ है।

अंग्रेजी में लिखा मूल आलेख आप नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक कर पढ़ सकते हैं।

Bijnor: Families of 2 Youth Killed Say There Were no Doctors in Nehtaur on Dec 20

CAA Protest in UP
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