जब से बीजेपी के नेतृत्व एनडीए सरकार सत्ता में आई है तब से इसने खास तौर से सोशल मीडिया पर हमला करना शुरू कर दिया।
"आपत्तिजनक सामग्री" के कारण मोदी सरकार के निर्देश पर ब्लॉक किए गए या हटाए गए सोशल मीडिया यूआरएल की संख्या पर नज़र डालें तो स्पष्ट हो जाएगा कि सरकार आलोचना को बर्दाश्त करना नहीं चाहती है।
मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक एक सरकारी कमेटी की सिफारिश पर नवंबर 2017 तक कुल 1,32 9 सोशल मीडिया यूआरएल को कथित तौर पर ब्लॉक कर दिया गया था या हटा दिया गया था।
वर्ष 2016 में इसकी संख्या 964 (वर्ष 2017 के पहले 11 महीनों में 38% की वृद्धि हुई) थी, जबकि 2015 में इसकी संख्या 587 थी। वहीं वर्ष 2014 में कुल 10 यूआरएल को ही ब्लॉक किया गया था या हटा दिया गया था।
वेब 2.0 की यह सेंसरशिप सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) अधिनियम 2000 की धारा 79 (3) (बी) के तहत इस्तेमाल की जा रही है।
फेसबुक पर वर्ष 2016 में 363 और वर्ष 2015 में 352 यूआरएल ब्लॉक किया गया वहीं नवंबर 2017 तक कुल 530 यूआरएल ब्लॉक किया गया।
वहीं अन्य सोशल मीडिया ट्विटर पर नवंबर 2017 तक 588 यूआरएल ब्लॉक किए गए। वर्ष 2016 में यूआरएल ब्लॉक करने की संख्या 196 थी जबकि वर्ष 2015 में कुल 27 यूआरएल को ब्लॉक कर दिया गया था। वहीं यूट्यूब पर 123 यूआरएल को नवंबर 2017 तक ब्लॉक किया गया जबकि 2016 में इसकी संख्या 3 थी और 2015 में 125 थी।
हालांकि, कंटेंट हटाने को लेकर सोशल मीडिय कंपनियों से किए गए सरकार की ओर से अनुरोध में इज़ाफा हुआ वहीं यूआरएल ब्लॉक करने के अदालत की तरफ से दिए गए आदेश में कमी दर्ज की गई।
हालांकि 432 यूआरएल 2014 में अदालत के आदेशों के बाद ब्लॉक कर दिया गया या हटा दिया गया। इसकी संख्या साल 2015 में 632 तक पहुंच गई। वर्ष 2016 में कुल 100 यूआरएल अदालत के आदेशों के बाद ब्लॉक कर दिए गए और यह संख्या नवंबर 2017 तक 83 तक पहुंच गई थी।
द हिंदू अख़बार के अनुसार इलेक्ट्रॉनिक्स एंड इन्फॉर्मेशन टेक्नोलॉजी मिनिस्ट्री की एक आंतरिक टिप्पणी में कहा गया कि, "यद्यपि सोशल मीडिया साइटें सूचना साझा करने और आदान-प्रदान करने का एक अच्छा माध्यम है लेकिन कुछ असामाजिक क़िस्म के तत्व अफवाहों को फैलाने और इस तरह की आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करने के लिए इस मंच का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसके चलते समाज में बाधा उत्पन्न हो जाता है।"
सेंसरशिप को न्यायसंगत ठहराते हुए कहा कि, "यह देखा गया है कि दुर्भावनापूर्ण उद्देश्यों के लिए सोशल नेटवर्किंग साइटों का दुरुपयोग बढ़ रहा है। इन वेबसाइटों को शरारती लोगों द्वारा लक्षित उपयोगकर्ताओं या उपयोगकर्ताओं के समूह की व्यक्तिगत जानकारी हासिल करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।"
भारतीय इंटरनेट यूजर्स को मैलवेयर से बचाने के बजाए सामग्री को ब्लॉक या अक्षम करने के लिए सरकारी आदेशों में वृद्धि से लगता है कि सरकार बोलने की आज़ादी और नागरिकों के असंतोष के अधिकार पर अंकुश लगाना चाहती है। ज़्यादातर इंटरनेट यूजर्श सोशल मीडिया का इस्तेमाल सरकार की आलोचना करने और अपने राजनीतिक विचार साझा करने के लिए करते हैं।
उदाहरण स्वरूप 26 सितंबर, 2017 को फेसबुक ने मोहम्मद अनस नाम के एक पत्रकार के खाते को 30 दिनों तक के लिए ब्लॉक कर दिया। अनस ने गुजरात के एक व्यापारी के एक कैशमेमो की एक तस्वीर साझा किया था। इस कैशमेमो के नीचे लिखा था: "कमल का फूल हमारी भूल"।
ये बीजेपी की विनाशकारी आर्थिक नीतियों को लेकर गुजरात में व्यापारियों की निराशा को दिखा रहा था। ठीक जब ये कैशमेमो वायरल हो रहा था उसके कुछ समय बाद गुजरात में विधानसभा चुनाव होने वाले थे। इसको लेकर बीजेपी की चिंता बढ़ रही थी।
इसी प्रकार फेसबुक पर एक बेहद लोकप्रिय पेज "ह्यूमन्स ऑफ हिंदुत्व" के नाम से था जो खुले तौर पर व्यंग्यपूर्ण पोस्ट में बीजेपी सरकार और आरएसएस के हिंदू कट्टरपंथी विचारधारा की आलोचना की थी। इसे भी पिछले साल अस्थायी रूप से ब्लॉक कर दिया गया था।
बीजेपी शासन के अधीन देश में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के साथ-साथ दलित लोगों के ख़िलाफ़ हमले हुए और कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। इसके अलावा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण आरएसएस-भाजपा की राजनीतिक रणनीति का हिस्सा है।
फेसबुक की "सरकारी अनुरोध रिपोर्ट" के मुताबिक़ 'भाजपा सरकार द्वारा किए गए आंकड़ों के अनुरोध भी लगातार बढ़ रहे हैं। वर्ष 2017 में जनवरी से जून के बीच भाजपा की अगुआई ने फेसबुक से आँकड़ों के लिए कुल 9, 853 अनुरोध किया था। वर्ष 2016 जुलाई और दिसंबर के बीच कुल 7,289 अनुरोध किए गए, जबकि 2016 के पहले छह महीनों में ऐसे अनुरोधों की संख्या 6,324 थी।
फेसबुक ने यह भी कहा कि वर्ष 2017 के पहले छमाही में "क़ानून तथा प्रसंस्करण एजेंसियों और इलेक्ट्रॉनिक्स तथा सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत इंडिया कंप्यूटर इमरजेंसी रिस्पांस टीम" के कानूनी अनुरोधों पर भारत में 1,228 कंटेंट को प्रतिबंधित किया गया।
कंपनी ने आगे कहा कि "ज़्यादातर कंटेंट को धर्म और घृणात्मक टिप्पणी से संबंधित स्थानीय कानूनों का उल्लंघन करने के आरोप में प्रतिबंधित किया गया था।"