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स्वास्थ्य
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बोलीवियाई स्वास्थ्य सेवा :नवउदारवादी स्वास्थ्य सेवा का विकल्प
पूंजीवाद के ख़ात्मे के बिना स्वास्थ्य सेवा प्रणाली की दिशा में कोई बड़ा बदलाव नहीं हो सकता है। मुनाफ़े की जगह लोगों की अहमियत हो,इसके के लिए समाजवाद की ज़रूरत है।
यानिस इकबाल
09 Feb 2021
बोलीवियाई स्वास्थ्य सेवा :नवउदारवादी स्वास्थ्य सेवा का विकल्प

23 सितंबर 2020 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा के 75 वें सत्र की आम बहस के दौरान वेनेजुएला के राष्ट्रपति, निकोलस मादुरो ने कहा था,“नव-उदारवाद ने लोगों के अधिकारों को निजी सेवाओं में बदलते हुए सार्वजनिक संस्थानों का गला घोंट दिया है; स्वास्थ्य एक विलासिता बन गया है...लोगों का स्वास्थ्य और कल्याण कारोबार की चीज़ नहीं है; बाज़ार मानवता की नियति तय करता रहे,इसकी इजाज़त नहीं दी जसकती !"

नवउदारवाद के इस दौर में स्वास्थ्य सेवा की स्थिति की आलोचना बेहद अहम है। यह इस हैरतअंगेज़ हक़ीक़त को रेखांकित करता है कि जिस आर्थिक व्यवस्था के तहत हम रह रहे हैं, वह हमारी प्राथमिक ज़रूरतों को पूरा कर पाने में असमर्थ है और यह आर्थिक प्रणाली उस चीज़ को लेकर बहुत ज़्यादा रकम की मांग करती है,जिस पर हमारा निर्वाह निर्भर करता है। वेनेज़ुएला सही मायने में पूंजीवादी स्वास्थ्य सेवा की दमनकारी वास्तविकता का एक ज़रूरी विकल्प है। बोलीवियाई क्रांति की मदद से इस लैटिन अमेरिकी देश ने शॉवेज़ के शासनकाल में एक ऐसे नये समाजवादी बदलाव की परिकल्पना की थी,जो आमूलचूल बदलाव की उम्मीद है,सम्मान और न्याय की भावना पर आधारित है।

नवउदारवादी तबाही

शॉविज़्मवाद के सत्ता में आने से पहले वेनेज़ुएला में बेशुमार अस्थिरतायें थीं। तेल से मिलने वाली आय के समान वितरण को बढ़ावा देने के इरादे वाली नीतियां नाकाम हो गयी थीं, राष्ट्रीय क़र्ज़ में बढ़ोत्तरी हो गयी थी,और 1980 के दशक के दौरान तेल राजस्व में आयी गिरावट ने एक ऐसा सामाजिक आर्थिक संकट पैदा कर दिया था, जिसने 1989 के अंत तक 54% आबादी को ग़रीबी में रहने के लिए मजबूर कर दिया था। उस साल कार्लोस आंद्रेस पेरेज़ को पहली बार उस अभियान के बाद दूसरी बार राष्ट्रपति चुना गया था,जिसमें उन्होंने अपने पहले राष्ट्रपति काल के दौरान 1960 के दशक में हुए ज़बरदस्त आर्थिक प्रगति को फिर से हासिल करने का वादा किया था।

लेकिन,ग़रीबों के लिए काम करने के बजाय पेरेज़ ने तत्परता से विश्व बैंक और अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) के हुक़्म का पालन किया। इन दोनों संस्थानों ने एक नयी योजना- "एल पेकटे" की रूपरेखा तैयार की,यह एक ऐसी सख़्त योजना थी,जिसमें सार्वजनिक व्यय में भारी कटौती,सार्वजनिक उद्यमों का निजीकरण,विदेशी कंपनियों द्वारा तेल के दोहन को लेकर अवसर में बढ़ोत्तरी और कारोबार का उदारीकरण शामिल था। इन नीतियों को बहुत जल्द ही व्यापक जनविरोध का सामना करना पड़ा। फिर,1993 में भ्रष्टाचार से जुड़े मुकदमे के बाद पेरेज़ को सत्ता से हटा दिया गया।

इस अवधि में उस समय वजूद में रहे उन सार्वजनिक सेवाओं के व्यापक नेटवर्क का विकेंद्रीकरण हुआ,जिनका नियंत्रण राष्ट्रीय सरकार से कुछ क्षेत्रीय सरकारों के हाथों में चला गया था। इससे वे स्वास्थ्य सेवायें कई छोटे-छोटे हिस्सों में बंट गयी थीं और काफ़ी कमज़ोर हो गयी थीं,जो कभी अपने असरदार होने के तौर पर जानी जाती थीं।

तक़रीबन एक साल तक चली उस संक्रमण सरकार के बाद,एक क्रिश्चन डेमोक्रेट राफ़ेल काल्डेरा ने 1993 के राष्ट्रपति चुनावों में जीत हासिल की,उसने वादा किया था कि वह नवउदारवादी नीतियों को आगे जारी नहीं रखेगा। हालांकि,व्यवहारिक तौर पर इसका ठीक उलटा हुआ, "एजेंडा वेनेज़ुएला" नामक एक ऐसी योजना पर ध्यान केंद्रित किया गया,जो कि बेहद सख़्त उपायों का अनुसरण करती थी। स्वास्थ्य क्षेत्र में वेनेज़ुएला की सरकार को दो क़र्ज़ मिला,एक क़र्ज़ विश्व बैंक से मिला था और दूसरा क़र्ज़ इंटर अमेरिकन डेवलपमेंट बैंक से मिला था,इ दोनों ही का मक़सद मुनाफ़ा कमाने वाली निजी पूंजी का बढ़ावा देना था। 1990 के दशक के शुरुआती कठोर वित्तीय उपायों के साथ संयुक्त स्वास्थ्य सेवाओं के विकेंद्रीकरण ने इस निम्न स्वास्थ्य सुविधाओं के प्रबंधन की ज़िम्मेदारी संरचनात्मक रूप से डंवाडोल क्षेत्रीय सरकारों पर डाल दी।

1990 के दशक में पेरेज़ और काल्डेरा द्वारा स्थापित नवउदारवादी स्वास्थ्य सुधार आख़िरकार एक अंतहीन आपदा में जाकर ख़त्म हुआ। इसका नतीजा सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं की वित्तीय कमी और स्वास्थ्य सेवाओं के विकेंद्रीकरण के रूप में सामने आया। जब निम्न वित्त पोषण और प्रबंधित स्वास्थ्य सेवाओं का विकेंद्रीकरण किया गया और इसे क्षेत्रीय अधिकारियों के हवाले कर दिया गया,तो वे इसे संचालित कर पाने में बेहद नाकाम साबित हुए। इसका नतीजा यह हुआ कि इससे स्वास्थ्य सेवाओं और संस्थानों के ज़्यादा से ज़्यादा निजीकरण किये जाने का रास्ता खुलता गया।

जो स्वास्थ्य सेवायें व्यापक निजीकरण के प्रयासों के बाद सार्वजनिक प्राधिकरणों के अधीन रहे थे, अब उन स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर लागत वसूली व्यवस्था,यानी कि  इन सेवाओं के उपभोक्ताओं से भुगतान कराये जाने की प्रणाली को शुरू किया गया। इन बदलावों का परिणाम यह हुआ कि 1997 तक वेनेज़ुएला में कुल स्वास्थ्य व्यय का 73% निजी था। स्वास्थ्य सेवाओं के निजीकरण ने बड़े पैमाने पर वर्ग-आधारित स्वास्थ्य विषमताओं का विस्तार किया।

तेल की क़ीमतों में नाटकीय गिरावट के साथ-साथ दो तिहाई आबादी का ग़रीबी या अत्यधिक ग़रीबी के हवाले होना इस नवउदारवादी नीतियों का ही परिणाम था और यही पृष्ठभूमि थी,जिसमें  ह्यूगो शॉवेज़ दिसंबर 1998 में वेनेज़ुएला के राष्ट्रपति चुने गये थे। यह जीत दो दशकों के भ्रष्ट वेनेज़ुएला शासन के ख़िलाफ़ लोगों की बढ़ती एकजुटता और निरंकुश नवउदारवादी फ़ॉर्मूले के ख़िलाफ़ राजनीतिक परिणति थी।

नया संविधान

शॉवेज़ का पहला राजनीतिक काम एक सार्वजनिक जनमत संग्रह की घोषणा था, ताकि लोग यह तय कर सकें कि राष्ट्रीय संविधान सभा (ANC) को ख़ास तौर पर एक नया संविधान लिखने और एक नये शासन की नींव रखने को लेकर बुलाया जाये या नहीं। राष्ट्रपति ने 2 फ़रवरी 1999 को इस जनमत संग्रह की तारीख़ तय कर दी।

राष्ट्रपति ने इस ह़ुक़्मनामें ने अपने अनुरोध के औचित्य के रूप में निम्नलिखित बातें कहीं, “वेनेज़ुएला की राजनीतिक प्रणाली संकट में है और संस्थायें अवैध होने की एक तेज़ प्रक्रिया से गुज़री हैं। इस वास्तविकता के आलावा,शासन से लाभान्वित होने वाले लोगों ने बड़ी संख्या में लोगों की तरफ़ से किये जाने वाले परिवर्तन की मांग को  स्थायी रूप से अवरुद्ध कर दिया है। इस व्यवहार के कारण लोकप्रिय ताक़तों में मुक्त होने की बेचैनी है,और उनकी लोकतांत्रिक आकांक्षायें एक मतदाता होने की ताक़त पाने के आह्वान से ही पूरी होंगी। ‘एस्टाडो डा डेरेचो (विधि-नियम) को ठोस रूप दिये जाने के अलावे,एक ऐसे न्यायिक आधार की भी ज़रूरत है,जो एक सामाजिक और भागीदारी वाले लोकतंत्र के संचालन की अनुमति देता हो।”

जनमत संग्रह 25 अप्रैल 1999 को हुआ,और 81.9% लोगों ने व्यवस्था को बदलने और सामाजिक और भागीदारीपूर्ण लोकतंत्र के प्रभावी कार्यान्वयन को लेकर एक प्रणाली बनाने के उद्देश्य से एक राष्ट्रीय संविधान सभा(ANC) बुलाये जाने की मंज़ूरी दे दी।

सभी के लिए स्वास्थ्य सेवा

इस बोलीवियाई संविधान ने मौलिक रूप से स्वास्थ्य की बाज़ारू अवधारणा की संरचना को बदल दिया। इस संविधान में स्वास्थ्य से जुड़े अनुच्छेद इस प्रकार हैं:

• अनुच्छेद 83: “स्वास्थ्य एक मौलिक सामाजिक अधिकार,राज्य का कर्तव्य है, जो इसे जीवन के अधिकार के हिस्से के रूप में गारंटी देगा। राज्य जीवन प्रत्याशा में वृद्धि, सामूहिक कल्याण और सेवाओं तक पहुंच की दिशा में उन्मुख नीतियों को बढ़ावा देगा और उन्हें विकसित करेगा। सभी लोगों को स्वास्थ्य संरक्षण का अधिकार है, और इसके संवर्धन और रक्षा में सक्रिय रूप से भाग लेना, और स्वास्थ्य और स्वच्छता के उन उपायों का अनुसरण करना लोगों का कर्तव्य है,जिन्हें गणतंत्र द्वारा हस्ताक्षरित और पुष्टि किये गये अंतर्राष्ट्रीय संधियों और समझौतों के मुताबिक़ क़ानूनी तौर पर स्थापित करता है। ”

• अनुच्छेद 84: “स्वास्थ्य के अधिकार की गारंटी देने के लिए राज्य सार्वजनिक, अंत:क्षेत्रीय प्रकृति की राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली, विकेन्द्रीकृत और भागीदारी, सामाजिक सुरक्षा प्रणाली के साथ एकीकृत, ग्रेच्युटी के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित (अबाध  पहुंच), सार्वभौमिकता, अभिन्नता, समानता, सामाजिक एकीकरण, और एकजुटता का निर्माण,नेतृत्व और प्रबंधन करेगा। यह सार्वजनिक प्रणाली स्वास्थ्य को बढ़ावा देगी और बीमारियों की रोकथाम को प्राथमिकता देगी,शीघ्र देखभाल और गुणवत्तापूर्ण पुनर्वास को सुनिश्चित करेगी। सार्वजनिक सेवाओं और वस्तुओं का स्वामित्व राज्य के पास है और इसका निजीकरण नहीं किया जा सकता है। संगठित समुदाय के पास सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों में विशिष्ट नीतियों की योजना बनाने,उसके क्रियान्वयन और नियंत्रण को लेकर फ़ैसले की भागीदारी का अधिकार और कर्तव्य है।”

• अनुच्छेद 85: “सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली का वित्तपोषण राज्य का एक ऐसा दायित्व है, जो राजकोषीय संसाधनों, अनिवार्य सामाजिक सुरक्षा अंशदान और क़ानून द्वारा अनिवार्य वित्तपोषण के किसी अन्य स्रोत को एकीकृत करेगा। स्टेट एक ऐसे स्वास्थ्य बजट की गारंटी देगा,जो उसे स्वास्थ्य नीति के उद्देश्यों को लागू करने में सक्षम बनाता हो। विश्वविद्यालयों और अनुसंधान केंद्रों के समन्वय के साथ पेशेवरों और तकनीशियनों को शिक्षित करने के लिए एक राष्ट्रीय मानव संसाधन विकास नीति, और स्वास्थ्य निवेशों का उत्पादन करने के लिए एक राष्ट्रीय उद्योग विकसित किया जायेगा। राज्य सार्वजनिक और निजी स्वास्थ्य संस्थानों को विनियमित करेगा।”

इन क़ानूनों से हम देख सकते हैं कि इस संविधान ने स्वास्थ्य के क्षेत्र में व्यवाक बदलाव किया है। इस संविधान ने उन क़ानूनों को उलट दिया है,जो कि काल्डेरा क़ानून के रूप में लोकप्रिय थे,काल्डेरा क़ानून स्वास्थ्य प्रणाली के निजीकरण के पक्ष में था और उसने एक नयी स्वास्थ्य प्रणाली बनाने को लेकर कई तरह की रणनीतियों को लागू किया था। इनमें एकीकृत स्वास्थ्य सेवाओं का कार्यान्वयन,प्राथमिक स्वास्थ्य सेवा केंद्रों पर ध्यान और उपचारात्मक सेवाओं के बजाय निवारक सेवायें शामिल थे। हालांकि,जो सबसे अहम बदलाव था,वह था-स्वास्थ्य देखभाल को किसी ख़रीद-फ़रोख़्त वाली वस्तु की श्रेणी से बाहर ले आना, यानी जिस स्वास्थ्य सेवाओं का इस्तेमाल पहले अभिजात्य वर्ग के कुछ लोगों द्वारा किया जाता था,उन्हें मौलिक अधिकार की श्रेणी में ले आया गया।

15 दिसंबर 1999 को वेनेज़ुएला के एक जनमत संग्रह में नये संविधान को लेकर अपनी राय देते हुए 71.37% लोगों ने स्वास्थ्य के अधिकार के पक्ष में मतदान किया।

बैरियो एडेंट्रो

शॉवेज़ के प्रशासन के शुरुआती सालों में काराकस के एक स्थानीय न्यायिक क्षेत्राधिकार,लिबर्टाडोर नगर पालिका को अपने सबसे ग़रीब इलाक़ों (बैरियोज़) में कुछ ज़बरदस्त समस्याओं का सामना करना पड़ा। नतीजतन,लिबर्टाडोर, जो शावेज़ के अनुरूप था,उसने 2003 में इंस्टीट्यूट फॉर एंडोजेनस डेवलपमेंट (IED) बनाया था। ग़रीबों को सशक्त बनाने के उद्देश्य से सामाजिक कार्यक्रमों को लागू करने के लिए आईईडी को स्थापित किया गया था। समाजशास्त्री,रूबेन अलायोन ने समुदाय के कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर बैरियो निवासियों को उन विभिन्न समस्याओं का सर्वेक्षण करने के लिए सहयोग किया, जिनका वे सामना कर रहे थे।इन समस्याओं में आवास, स्वास्थ्य देखभाल, शिक्षा, खाद्य सुरक्षा और रोज़गार की समस्यायें थीं।

यहां रहने वाले लोगों ने स्वास्थ्य देखभाल को ही सबसे बड़ी चिंता के रूप में चिह्नित किया था और चिकित्सा उपचार की राह में आने वाली व्यापक अवरोधों की पहचान की थी। आईईडी ने लिबर्टाडोर नगर पालिका के महापौर,फ़्रेडी बर्नल को जानकारी इकट्ठा करके दे दिया,जिन्होंने चिकित्सकों से कहा था कि वे ग़रीबों के आस-पड़ोस रहें और उनके बीच काम करें। वेनेज़ुएला के पचास चिकित्सकों ने इसका जवाब दिया, लेकिन उन्होंने बैरियोस में रहने से इनकार कर दिया (30 ने यह जानकर अपने पदों से इस्तीफ़ा दे दिया कि उन्हें बैरियों में रहने की ज़रूरत होगी,बाक़ी 20 ने भागीदारी तो की, लेकिन उन्हें माध्यमिक स्तर की सेवाओं का काम सौंपा गया था और इस तरह उन्हें बैरियो में रहने की ज़रूरत नहीं थी)।

1999 के भू-स्खलन के बाद आपातकालीन सेवायें देने वाले और आस-पड़ोस में स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने वाले क्यूबाई डॉक्टरों को याद करते हुए बर्नल ने क्यूबा के दूतावास के साथ बातचीत शुरू की,जिसका परिणाम ज़रूरी नैदानिक सेवायें मुहैया करने वाले क्यूबाई चिकित्सकों के एक समूह को लिबर्टाडोर तक लाने को लेकर एक ऐसे समझौते के रूप में सामने आया,जो प्लान बैरियो एडेंट्रो के नाम से जाना जाता है।

जब अप्रैल 2003 में 58 चिकित्सक की पहली खेप पहुंची,तो उन्हें घरों में रखा गया और उन्होंने उन जगहों का इस्तेमाल एक आवासीय क्षेत्र के साथ-साथ परीक्षण कक्ष के रूप में भी किया। इसके बाद चिकित्सकों के दो अतिरिक्त समूह भेजे गये। स्वास्थ्य समितियां इन डॉक्टरो के साथ दोपहर में एक-एक घर का दौरा करती थीं, जिसमें परिवारों से मिलना,स्वास्थ्य की ज़रूरतों का आकलन करना, रोगियों का इलाज करना और जनगणना को संचालित करने के साथ-साथ आपातकालीन बुलावे पर उन घरों में चिकित्सा के लिए जाना भी शामिल था। इन समितियों ने रोकथाम को प्रोत्साहित करने, स्वास्थ्य के बुनियादी ढांचे को बढ़ाने और संसाधनों की ख़रीद में सक्रिय भूमिकायें निभायी थीं।

सितंबर 2003 में पायलट कार्यक्रम का मूल्यांकन किये जाने और इसकी कामायाब माने जाने के बाद शॉवेज़ ने इस कार्यक्रम का नाम मिसियार बैरियो एडेंट्रो रख दिया और इसे एक राष्ट्रीय योजना में बदल दिया। इसे  एक ऐसी पहल के तौर पर पारिभाषित किया गया,जिसका मक़सद सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली के ज़रिये सामाजिक अधिकार के रूप में स्वास्थ्य की संवैधानिक आवश्यकता को पूरा करना था। वैचारिक रूप से यह समानता, सार्वभौमिकता, पहुंच,एकजुटता,सांस्कृतिक संवेदनशीलता,भागीदारी और न्याय के सिद्धांतों द्वारा समर्थित था।

राष्ट्रीय जनसंख्या संस्थान (INE) के मुताबिक़,बैरियो अडेंट्रो ने 80% से ज़्यादा उन राष्ट्रीय आबादी की ज़रूरतों को पूरा किया,जिन्हें पुराने चिकित्सा संस्थानों द्वारा हाशिए पर छोड़ दिया गया था और इनमें से 75% से ज़्यादा लोग इस सेवा से संतुष्ट थे।

समाजवाद की ज़रूरत

1966 में मेडिकल कमेटी फ़ॉर ह्यूमन राइट्स के सामने दिये गये एक भाषण में मार्टिन लूथर किंग जूनियर ने कहा था, "सभी प्रकार की ग़ैर-बराबरी में स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र में की जाने वाली नाइंसाफ़ी सबसे भयानक और सबसे अमानवीय नाइंसाफ़ी है।" ऐसा लगता है कि कोविड-19 महामारी के बावजूद दुनिया ने स्वास्थ्य सेवा में फ़ैली ग़ैर-बरारबी को लेकर कोई सबक नहीं सीखा है। पूंजीवाद के ख़ात्मे के बिना स्वास्थ्य देखभाल प्रणाली की दिशा में कोई बड़ा बदलाव नहीं हो सकता है,क्योंकि ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने की लालसा ऐसे किसी भी प्रयास को हमेशा बाधित करती रहेगी। यही वजह है कि इस समय उस समाजवाद की ज़रूरत है, जो यह सुनिश्चित करता है कि मुनाफ़ा कमाने की जगह लोगों को अहमियत दी जाये।

लेखक अलीगढ़ स्थित एक स्वतंत्र शोधकर्ता और स्वतंत्र लेखक हैं। इनके विचार निजी हैं।

अंग्रेज़ी में प्रकाशित मूल आलेख को पढ़ने के लिए नीचे दिये गये लिंक पर क्लिक करे

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