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चुनाव आयोग जागा, लेकिन असली परीक्षा अभी बाक़ी
इस बार चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के सीधे आरोप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी हैं। बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ भी कई शिकायतें हैं लेकिन चुनाव आयोग ने अभी इस पर कोई संज्ञान नहीं लिया है।
मुकुल सरल
16 Apr 2019
सांकेतिक तस्वीर

बहुत दिनों बाद पता चला कि इस देश में चुनाव आयोग भी है। वह एक स्वायत्त और सक्षम संवैधानिक संस्था है हालांकि अभी उसकी मुख्य परीक्षा होनी बाकी है। क्योंकि इस बार चुनाव आचार संहिता उल्लंघन के सीधे आरोप प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर भी हैं। नमो टीवी तो सबकी आंखों के सामने बेरोक-टोक आज तक जारी है।  

सुप्रीम कोर्ट ने याद दिलाया तो चुनाव आयोग को याद आया कि उसकी भी कोई हैसियत है। टीएन शेषन ने सबसे पहले देश को चुनाव आयोग की ताकत का एहसास कराया था, लेकिन उनके बाद धीरे-धीरे यह एहसास गायब हो गया। और अब तो हालत ये हो गई कि चुनाव आयोग पर ही सत्ता के हाथ में खेलने के आरोप लगने लगे। विपक्ष के अलावा आम जनता भी चुनाव आयोग के फ़ैसलों को शक की निगाह से देखने लगी। चाहे वो गुजरात और हिमाचल विधानसभा चुनावों की घोषणा हो चाहे लोकसभा चुनाव के लिए अधिसूचना जारी करने का मामला। इसके अलावा आरोप लगने लगा कि चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के नेताओं के चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन पर आंखें मूंद कर बैठा है। इस बीच कई दलों के नेताओं ने विवादित बयान दिए लेकिन चुनाव आयोग ने कोई कार्रवाई नहीं की।

बात तब बढ़ी जब यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मेरठ में अली-बजरंग बली और बीएसपी प्रमुख मायावती ने सहारनपुर में मुस्लिम समाज से वोट न बांटने और एकजुट होकर गठबंधन को वोट देने की अपील की। इससे पहले योगी आदित्यनाथ ने ग़ाज़ियाबाद की सभा में सेना को ‘मोदी की सेना’ कहा था, इस सबको लेकर चुनाव आयोग में शिकायत की गई थी।

मामला सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचा और सोमवार को ही सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग से जवाब मांगा।

चुनाव आयोग ने अदालत से कहा कि उसके अधिकार क्षेत्र में महज नोटिस जारी करना और फिर दिशा-निर्देश जारी करना है। आयोग के पास किसी व्यक्ति को अमान्य या अयोग्य ठहराने का अधिकार नहीं है। अगर कोई बार-बार संहिता का उल्लंघन करता है तो वह उसके खिलाफ आपराधिक शिकायत दर्ज करा सकता है। उसका कुल अधिकार इतना ही है।

चुनाव आयोग के वकील ने कहा कि चुनाव प्रचार के दौरान नेताओं द्वारा नफरत फैलाने वाले और धार्मिक व सांप्रदायिक भाषणों के खिलाफ कार्रवाई करने के मामले में आयोग निष्प्रभावी व अधिकारविहीन है।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तब चुनाव आयोग की अधिकार और शक्तियों की समीक्षा करना ज़रूरी है। क्योंकि चुनाव आयोग एक संवैधानिक निकाय है।

इस पूरी कवायद के बीच सोमवार को चुनाव आयोग कुछ हरकत में आया और यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, बीएसपी प्रमुख मायावती, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और समाजवादी पार्टी नेता आज़म ख़ान पर कार्रवाई की।

इस कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट ने भी संतुष्टि जताई है और कहा कि लगता है कि चुनाव आयोग जाग गया है।

चुनाव आयोग ने इन चारों नेताओं के प्रचार के दौरान सांप्रदायिक और अभद्र बयान देने की शिकायतों पर संज्ञान लिया और अलग-अलग आदेश जारी किए। आयोग ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और सपा नेता आजम खान पर 72 घंटे यानी तीन दिन के लिए प्रचार करने पर रोक लगाई और बीएसपी सुप्रीमो मायावती और केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के चुनाव प्रचार करने पर 48 घंटे की रोक लगाई।

चुनाव आयोग ने अनुच्छेद 324 के तहत मिली शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए ये आदेश जारी किए। आदेश के मुताबिक योगी आदित्यनाथ और मायावती पर प्रतिबंध की मियाद आज मंगलवार सुबह छह बजे से शुरू हो गई है। वहीं आज़म खान और मेनका पर आज मंगलवार सुबह दस बजे से प्रतिबंध लागू हो गया है। इस अवधि में ये नेता किसी भी जनसभा, पदयात्रा या रोड शो में हिस्सा नहीं ले सकेंगे। न ही प्रिंट या इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में कोई इंटरव्यू दे सकेंगे।

सभी नेताओं ने अपने ऊपर लगे प्रतिबंध पर आपत्ति जताई। मायावती तो आयोग के फ़ैसले के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट भी पहुंची लेकिन वहां उनकी याचिका खारिज कर दी गई। मायावती का कहना था कि चुनाव आयोग ने बिना उनका पक्ष सुने उनके ऊपर प्रतिबंध लगा दिया। उन्होंने आयोग पर प्रधानमंत्री मोदी और अमित शाह को खुली छूट देने का आरोप भी लगाया।

उधर, बीजेपी ने भी योगी आदित्यनाथ पर 72 घंटे के प्रतिबंध पर आपत्ति जताई। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र नाथ पांडेय ने कहा, "हमारी पार्टी एक अनुशासित राजनीतिक दल है और हम भारतीय निर्वाचन आयोग के हर निर्णय का सम्मान करते हैं। लेकिन उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहीं भी किसी भी प्रकार से न तो कहीं धार्मिक भावनाओं को भड़काने का काम किया और न ही धार्मिक उन्माद फैलाने वाला बयान दिया। बल्कि योगी ने सिर्फ अपने आराध्य का नाम लिया है।"

योगी का भी कहना है कि उन्होंने कभी भी धर्म और जाति के नाम पर वोट नहीं मांगे। हालांकि उन्होंने इस मुद्दे को एक बार फिर भुनाने की कोशिश की। वह मंगलवार सुबह लखनऊ के एक हनुमान मंदिर में पूजा अर्चना करने पहुंचे और इस सिलसिले में एक ट्वीट कर हनुमान में अपनी प्रबल आस्था जताते हुए विपक्ष पर प्रहार किया।

योगी अब 18 अप्रैल तक कोई चुनाव प्रचार नहीं कर सकेंगे। 18 अप्रैल को ही दूसरे दौर का चुनाव है और इस बीच उनकी कई जगह रैलियां प्रस्तावित थीं। इसी तरह मायावती को भी कई जगह गठबंधन की रैलियों को संबोधित करना था।

इसके अलावा आज़म ख़ान पर तो उनके बयान के लिए एफआईआर भी दर्ज हो चुकी है। राष्ट्रीय महिला आयोग ने भी उनके बयान की निंदा करते हुए उन्हें नोटिस भेजा है।

आपको बता दें कि समाजवादी पार्टी के नेता आज़म ख़ान ने बीजेपी प्रत्याशी जयाप्रदा को लेकर आपत्तिजनक टिप्पणी की थी। आज़म और जयाप्रदा दोनों यूपी की रामपुर लोकसभा सीट से प्रत्याशी हैं। आज़म ख़ान का बयान सोशल मीडिया पर वायरल हो गया और लोगों ने कड़ी आपत्ति जताई। हालांकि आज़म ख़ान ने सफाई दी कि उन्होंने कहीं भी जयाप्रदा का नाम नहीं लिया। उन्होंने इशारों में कहा कि  उनका ये बयान अमर सिंह के लिए था।

इसी तरह केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी के मुसलमानों को वोट के लिए ‘धमकाने’ के बयान पर चुनाव आयोग ने संज्ञान लिया और 48 घंटे चुनाव प्रचार करने पर रोक लगा दी। मेनका गांधी ने सुल्तानपुर में सभा करते हुए कहा था कि अगर उन्हें मुसलमान वोट नहीं देंगे तो अच्छा नहीं लगेगा। वो बिना मुसलमानों के समर्थन से भी चुनाव जीत सकती हैं। लेकिन फिर अगर कोई नौकरी के लिए उनके पास आता है तो अच्छा नहीं लगता है।

मेनका इस बार सुल्तानपुर से बीजेपी की प्रत्याशी हैं। अब तक वे पीलीभीत से सांसद हैं। इस बार उनकी और उनके बेटे वरुण गांधी की सीट अदला-बदली की गई है। वरुण पीलीभीत से चुनाव लड़ रहे हैं। उनके लिए भी वोट मांगते हुए मेनका ने इसी तरह का विवादित बयान दिया। उन्होंने कहा कि वो वोट मिलने के आधार पर इलाकों का ए बी सी डी में वर्गीकरण करेंगी और जिस इलाके से जितने वोट हासिल होंगे वहां उतना काम होगा। यानी ए में सबसे ज़्यादा और बी में उससे कम। सी में उससे भी कम।

मेनका के इस बयान पर भी विपक्ष ने कड़ी आपत्ति जताई है।

उधर, ख़बर है कि चुनाव आयोग ने तमिलनाडु में सत्तारूढ़ ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एआईडीएमके) के टीवी चैनलों पर दिखाए जा रहे एक विज्ञापन पर प्रतिबंध लगा दिया है। एआईडीएमके की ओर से 'ओरु कुडुम्बा आटची' (एक परिवार का शासन) नाम से ये विज्ञापन जारी किया गया था। चुनाव आयोग ने इसे आचार संहिता के विपरीत माना है और इस विज्ञापन के प्रसारण को तुरंत रोकने का आदेश जारी किया है।

चुनाव आयोग के कदम की आम तौर पर सराहना हो रही है, लेकिन अब यहीं उसकी विश्वसनीयता की परीक्षा है। देश देख रहा है कि एक ‘नमो टीवी’ नाम से एक चैनल अचानक उनके टीवी पर दिखाई देने लगता है, जिसके लोगो में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तस्वीर चस्पा है। इस चैनल पर सारा दिन 24 घंटे सिर्फ और सिर्फ प्रधानमंत्री मोदी के भाषण चलते हैं। आपत्ति होने पर पता चलता है कि इस चैनल ने लाइसेंस भी नहीं लिया है। लेकिन न सरकार और न चुनाव आयोग के स्तर पर कोई कार्रवाई होती है। पहले इनकार के बाद बीजेपी मान लेती है कि ये उसका विज्ञापन चैनल है। लेकिन इसके बाद भी चुनाव आयोग कोई कार्रवाई नहीं करता। क्योंकि इस तरह इस पार्टी द्वारा एक चैनल चलाना सभी अन्य प्रत्याशियों को बराबर का मौका नहीं देता। जानकारों का कहना है कि इस चैनल पर सिर्फ और सिर्फ मोदी का भाषण आता है और मोदी खुद इस चुनाव में एक प्रत्याशी हैं, इसलिए इसका पूरा खर्चा उनके चुनाव खर्च में जोड़ा जाए और तय सीमा से अधिक खर्च होने पर उन्हें चुनाव के अयोग्य घोषित किया जाए। तमाम शिकायतों के बाद भी चुनाव आयोग ने इस मामले में कोई फैसला नहीं लिया है।

इसी तरह मोदी की बायोपिक पर चुनाव आयोग काफी समय तक ख़ामोश रहा। उसके प्रोमो बेरोक-टोक लगातार टेलीविजन पर आते रहे। काफी आपत्ति होने पर चुनाव आयोग ने एक्शन लिया और फिर चुनाव तक इस फिल्म पर रोक लगा दी। अब इसके खिलाफ फिल्म के निर्माताओं ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की है जिसपर कोर्ट ने चुनाव आयोग को फिल्म देखकर इस सप्ताह के अंत तक बंद लिफाफे में रिपोर्ट पेश करने का निर्देश दिया है।

इसके अलावा भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह के खिलाफ भी चुनाव आचार संहिता के उल्लंघन की कई शिकायतें हैं लेकिन चुनाव आयोग ने अभी उनके ऊपर संज्ञान नहीं लिया है। समझौता एक्सप्रेस ब्लास्ट मामले में एनआईए कोर्ट का फ़ैसला आने के बाद प्रधानमंत्री मोदी ने ‘हिन्दू आतंकवाद’ को लेकर विपक्ष पर कड़े प्रहार किए थे। उनके इस भाषण पर विपक्ष ने आपत्ति जताई थी और इसे आचार संहिता का उल्लंघन बताया था। इसके बाद प्रधानमंत्री मोदी ने अभी पुलवामा को लेकर वोट मांगें। महाराष्ट्र के लातूर की एक सभा में उन्होंने बालाकोट में सेना की कार्रवाई और पुलवामा शहीदों के नाम पर वोट मांगा। प्रधानमंत्री मोदी ने फर्स्ट टाइम वोटरों से भावुक अपील करते हुए कहा, “मैं फर्स्ट टाइम वोटरों से पूछना चाहता हूं कि क्या आपका पहला वोट पाकिस्तान के बालाकोट में एयर स्ट्राइक करने वालने वीर जवानों के नाम समर्पित हो सकता है क्या?”  “आपका पहला वोट पुलवामा में जो वीर शहीद हुए हैं उनके नाम आपका वोट समर्पित हो सकता है क्या?”

इसको लेकर पूर्व सैनिकों जिसमें कई पूर्व सेना प्रमुख भी शामिल हैं, ने भी चिंता जताई है और राष्ट्रपति को इस बारे में चिट्ठी लिखकर कार्रवाई की मांग की है। इन सभी का कहना है कि राजनीतिक उद्देश्यों के लिए सेना, सैन्य वर्दी या प्रतीकों का इस्तेमाल न किया जाए।

इन चुनाव में विंग कमांडर अभिनंद वर्धमान के नाम का फायदा उठाने की भी कोशिश की गई। आपको याद ही होगा कि भारतीय वायुसेना के विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान को पाकिस्तान ने उस समय पकड़ लिया था जब वे पाकिस्तानी विमानों को खदेड़ते हुए पाकिस्तान की सीमा में प्रवेश कर गए थे। बाद में उन्हें सकुशल रिहा कर दिया गया था। बीजेपी की ओर से कई चुनावी होर्डिग्स और पोस्टरों में सैनिकों की तस्वीरों के साथ विंग कमांडर अभिनंदन वर्धमान की तस्वीरों का भी इस्तेमाल किया गया। जिन्हें आपत्ति के बाद हटाया गया।

इसके अलावा केरल के वायनाड को लेकर भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की विवादित टिप्पणी की। दरअसल कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी यूपी के अमेठी के अलावा केरल के वायनाड से भी चुनाव लड़ रहे हैं। इस पर पीएम मोदी ने कहा कि ऐसी जगह से राहुल गांधी खड़े हुए जहां बहुसंख्यक, अल्पसंख्यक हैं। इसी तरह अमित शाह ने भी कहा कि जुलूस निकलता है तो पता नहीं चलता कि हिन्दुस्तान में निकला या पाकिस्तान में। कांग्रेस ने इस पर कड़ी आपत्ति जताई है और चुनाव आयोग से इन दोनों के चुनाव प्रचार पर भी रोक लगाने की मांग की है।

इस तरह हर दिन-हर पल कोई न कोई नेता अपने चुनाव प्रचार में आदर्श चुनाव आचार संहिता का खुलेआम उल्लंघन कर रहा है। बहुत नेता तो जानबूझकर विवादित बयान देते हैं ताकि वो एक मुद्दा बन सके और उन्हें किसी न किसी तरह चुनाव में फायदा मिल सके। इस तरह आम लोगों के जीवन से जुड़े रोटी-रोज़गार के असल मुद्दे भी गायब हो जाते हैं और ये थोपे गए या नकली मुद्दे बहस का प्रमुख विषय बन जाते हैं। समझा जाता है कि ये चुनाव आयोग की लापरवाही का ही नतीजा है, अगर चुनाव आयोग शुरू से ही सख़्त कदम उठाता तो आज ये नौबत न आती। आज भी उसकी असली परीक्षा सर्वोच्च पदों पर बैठे नेताओं ख़ासतौर पर प्रधानमंत्री को लेकर है कि वो उनके बयानों को किस नज़रिये से देखता है या किस तरह का रुख अपनाता है। अगर ऐसे मामलों में चुनाव आयोग एक बार भी सख़्त कदम उठा ले तो वो देश के लिए एक उदाहरण बन सकता है और अन्य नेता भी कुछ भी बोलने से पहले सौ बार सोचेंगे।

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