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भारत
राजनीति
छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग : युवाओं के खिलाफ एक षड्यंत्र!
छत्तीसगढ़ राज्य सेवा आयोग की 1400 अंकों की मुख्य परीक्षा में ‘भारतीय संविधान’ के लिए सिर्फ 40 अंक हैं , जबकि देश संविधान से चलता है। लेकिन संस्कृत जैसे विषय का भार 50 अंकों कर दिया गया है।
अजय कुमार
16 Oct 2018
छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग के खिलाफ प्रदर्शन।

बड़ी सरकारी नौकरी पाना हर युवक का सपना होता है, लेकिन सरकारी वैकंसियों की संख्या गिनती की होती है और उसे पाने की चाहत रखने वाले लाखों में होते हैं। परीक्षाओं में पास होने के लिए सरकार द्वारा 5 से 10 एटेम्पट दिए जाते हैं। यानी भारत के करोड़ों युवा 10 साल तक एक सरकारी नौकरी की चाहत में अपने दिन-रात की क़ुरबानी देते रहते हैं। ऐसी स्थिति में परीक्षाएं योग्यता का पैमाना जांचने की बजाय छंटनी की मशीन लगने लगती हैं। ऐसा सरकारी षड्यंत्र लगने लगती हैं जो लाखों युवाओं को भ्रम में रखकर बेरोजगार रखना चाहती है। छतीसगढ़ लोक सेवा आयोग में शामिल होने वाले युवाओं ने भी एक ऐसे ही  षड्यंत्र का भंडाफोड़ किया और छत्तीसगढ़ राज्य लोक सेवा आयोग का घेराव कर प्रदर्शन किया । समझते हैं कि यह षड्यंत्र क्या है ?

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए इस मुद्दे पर अगुआई करने वाले छात्र और सामजिक कार्यकर्ता विनयशील बताते हैं कि छत्तीसगढ़ राज्य बनने के बाद से लेकर कई सालों तक छत्तीसगढ़ की राज्य सेवा परीक्षा में पाठ्क्रम, चयन प्रक्रिया और अन्य कई तरह की अनियमितताएं बनी हुई थीं। इस परेशानी को सही करने की जरूरत थी। आयोग में परीक्षा प्रणाली और पाठ्यक्रम की परेशानी को दूर करने के लिए साल 2012 में रमन सिंह की सरकार ने एक समिति बनाई। जिसने छत्तीसगढ़ राज्य सेवा परीक्षा के सिलेबस और नियमों में बड़े बदलाव किये। बदलाव सिविल सेवा के लिए जरूरी योग्यता के अनुसार किया जाना चाहिए था, लेकिन 2012 राज्य सेवा परीक्षा में किये गए बदलाव इन आधारों पर नहीं हुए। जिन आधारों पर हुए उनसे लगता है कि सरकार परीक्षा लेने के बजाय युवाओं के खिलाफ षड्यंत्र रच रही है।

ऐसा कहना गलत नहीं होगा कि राज्य सरकार ने छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की परीक्षा को राज्य में बढ़ रही बेरोजगारी को ध्यान में रखकर बदलवाया। ऐसा इसलिए क्योंकि छत्तीसगढ़ राज्य में सरकार और निजी क्षेत्र की सांठ-गांठ से मानकों को ताक पर रख कर 50 से ज्यादा इंजीनियरिंग और बड़ी संख्या में साइंस कॉलेज खुले थे। पिछले 9 से 10 सालों से निकलने वाले गणित और विज्ञान संकाय के अधिकांश छात्रों के लिए भी राज्य में नौकरी के अवसर नहीं थे। जिनकी संख्या आज बढकर 25 लाख पंजीकृत और लगभग इतने ही गैर पंजीकृत बेरोजगार युवाओं के रूप में राज्य के सामने खड़ी है। ग्रेजुएशन और पोस्ट ग्रेजुएशन के बाद भी नौकरी न दे पाने की स्थिति राज्य के लिए मुसीबत थी।

विनयशील साहित कई अन्य छात्र आरोप लगाते हैं कि ऐसा लगता है कि सरकार अपनी मुसीबत छुपाना चाहती थी। इसलिए सरकार ने आयोग के माध्यम से राज्य की मुख्य परीक्षा के सिलेबस में बदलाव करवाया। देश भर की लोक सेवा आयोग से अलग मुख्य परीक्षा के सिलेबस में केमिस्ट्री, फिजिक्स, बायोलॉजी, गणित (कोआर्डिनेट ज्योमेट्री, कंप्यूटर बाइनरी डिजिट सिस्टम) का प्रश्नपत्र शामिल कर दिया गया और सिविल सेवा के लिए जरूरी संविधान जैसे अहम विषय को महत्वहीन बना दिया गया। अब यही सिलेबस पिछले सात वर्षों से चला आ रहा है।

इस अजीब सिलेबस का फायदा सरकार को भी मिला। इंजीनियरिंग और साइंस कॉलेज से निकले ग्रेजुएट्स को लगने लगा कि शायद अब उनका भी आसानी से सीजी-पीएससी (छतीसगढ़ पब्लिक सर्विस कमिशन) में चयन हो जाएगा। एक बड़ा युवा वर्ग सबकुछ छोड़-छाड़कर 'जी तोड़ मेहनत' की कहावत में फंस गया, प्रतिकूल माहौल बनाने वाली सरकारी नीतियों और संरचनाओं से लड़ने की बजाय सीजी-पीएससी की तैयारी में जुट गया। जिस सीजी-पीएससी की प्रतिवर्ष अधिकतम वेकेंसी 300 तक होती है। जिसमे अभ्यर्थीयों की संख्या लाखों होती है। जहां 10 वर्ष की तैयारी के बाद भी अधिकतम 3000 लोगों का चयन होगा। वहां लाखों छात्रों का ध्यान खींचने में सरकार सफल रही। पढ़े-लिखे ग्रेजुएट्स, इंजीनियर्स का बड़ा तबका अपनी नौकरी की मांग भूलकर शहर की कोचिंग सस्थानों में गुम हो गया। सरकार जवाब देने से बच गयी। बेरोजगार छात्रों के पैसे से खाद-पानी पाने वाली कोचिंग-इंडस्ट्री को उगने का मौका मिला। और इन्हीं कोचिंग संस्थान को राज्य सरकार ने शिक्षा के क्षेत्र में एक्स्सिलेंस अवार्ड बांट कर अपनी जिम्मेदारी भी पूरी कर ली। इस पर किसी ने सवाल नहीं उठाया। इसलिए यह सब कुछ बिलकुल शांति से चल रहा है। इस सिलेबस का नुकसान सीधे तौर पर राज्य के आदिवासी अंचल के छात्रों को हो रहा है। साथ ही पूरी परीक्षा साइंस स्ट्रीम के प्रति झुकी होने के कारण मानविकी के विषयों से आने वाले ग्रेजुएट्स का चयन बहुत कम हो गया है। साल 2012 के पैटर्न का नुकसान छतीसगढ़ लोक सेवा आयोग में साफ़ तौर पर देखा जा सकता है, जिसे छत्तीसगढ़ लोक सेवा आयोग की वार्षिक रिपोर्ट साफ़ तौर पर साबित करती है। इस रिपोर्ट के अनुसार

  • 2015 में साइंस-मैथ्स ग्रेजुएट्स 84.43% और शेष 15% में आर्ट्स कॉमर्स एग्रीकल्चर और अन्य अभ्यर्थियों का चयन हुआ
  • 2016 में साइंस-मैथ्स ग्रेजुएट्स 82.43% और शेष 18% में आर्ट्स कॉमर्स एग्रीकल्चर और अन्य अभ्यर्थियों का चयन हुआ

छात्रों ने विरोध करना शुरू किया तो 2017 में प्रारंभिक परीक्षा के दूसरे पेपर ‘एप्टीट्युड टेस्ट’ को क्वालिफ्यिंग किया गया। ऐसे ही बदलावों की मुख्य परीक्षा में भी जरुरत है ताकि सीजी-पीएससी सभी छात्रों के लिए समान “लेवल प्लेयिंग फील्ड” दे सके और राज्य को बेहतर निर्णय करने वाले प्रशासक मिल सकें। ऐसा तभी हो सकता है जब संवैधनिक संस्थाओं को राजनितिक प्रभाव से मुक्त किया जा सके। इन्ही कुछ मांगों को लेकर हाल में ही राज्य में सीजी-पीएससी का घेराव और प्रदर्शन हुआ। पर अभी तक आयोग का रवैया जस का तस है। वर्तमान सिलेबस की ये बड़ी खामियां हैं –

  • राज्य सेवा आयोग की 1400 अंकों की मुख्य परीक्षा में ‘भारतीय संविधान’ के लिए सिर्फ 40 अंक हैं – देश संविधान से चलता है। एक नागरिक और अभ्यर्थी के तौर पर इस विषय की बेहतर समझ प्रशासनिक सेवा की बुनियादी जरूरत है। जिसका महत्व राज्य सेवा आयोग की परीक्षा में नगण्य है। जबकि संस्कृत जैसे विषय का भार 50 अंकों कर दिया गया है, अब इसकी क्या जरूरत है इसका जवाब तो रमन सिंह की सरकार ही ही दे सकती है।  
  • वहीँ राज्य सेवा आयोग की मुख्य परीक्षा में केमिस्ट्री, फिजिक्स, बायोलॉजी, गणित के 400 अंक के दो प्रश्नपत्र हैं – इन विषयों और टॉपिक्स का प्रशासनिक कार्यों से कोई संबध नहीं है और कोई आम नागरिक भी याह जानकर सवाल पूछ सकता है कि आखिरकार नागरिक प्रशासन से जुड़े क्षेत्र में इन विषयों की समझ से किस तरह की योग्यता हासिल करने की जरूरत है। यहाँ तक की भारत के किसी अन्य राज्य सेवा की परीक्षा में भी यह विषय मुख्य परीक्षा के विषय के हिस्से नहीं हैं। इन्ही वजहों से राज्य में पिछले 7 वर्षों से आदिवासी छात्रों का चयन भी कम होता जा रहा है।  
  • भारतीय इतिहास में मध्यकालीन इतिहास का अधिकाशं भाग पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं है -  कारण राजनैतिक है। देश के अधिकांश बीजेपी शासित राज्यों की लोक सेवा परीक्षा में मध्यकालीन इतिहास पाठ्यक्रम का हिस्सा नहीं होता है। प्रायः भक्ति काल और विजय नगर साम्राज्य के ही टॉपिक्स होते हैं। राज्य सुनियोजित तरीके से अपने नागरिकों को इतिहास का एक पूरा हिस्सा पढाना नहीं चाहता है। यह चिंतनीय स्थिति है।
  • सीजी-पीएससी बिना मॉडल आंसर के गोलमेज सम्मेलन के आधार पर चेक करवाती है उत्तरपुस्तिका।

हाल में विनयशील ने सीजी-पीएससी में RTI लगाकर 2016 के एक प्रश्न "हिन्दू राष्ट्रवाद से आप क्या समझते हैं" के मॉडल उत्तर की मांग की थी। जिसके जवाब में आयोग ने बताया कि मुख्य परीक्षा के पेपर्स की जांच के लिए कोई मॉडल आंसर नहीं बनाए गए थे इसलिए जानकारी नहीं दी जा सकती है।

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इसी सवाल पर विनयशील RTI के प्रथम अपील में गए तो उन्होंने अपीलेट अधिकारी से पूछा कि आप मॉडल उत्तर क्यों नहीं दे रहे? क्या मुख्य परीक्षा के प्रश्नों की जांच के लिए मॉडल उत्तर नहीं  जारी करती है।  तब सीजी-पीएससी में प्रथम अपीलेट अधिकारी आरती वासनिक ने बताया कि हम शिक्षकों का गोलमेज सम्मेलन करवाते हैं जहाँ सभी आपस में चर्चा करके जाते हैं और फिर उसी चर्चा के आधार पर अपनई रूपरेखा बना कर उत्तर की जाँच करते हैं। उत्तर पुस्तिका जांच करने की ऐसी प्रक्रिया जानकर कोई भी हैरान हो सकता है और समझ सकता है कि राज्य सरकारें हम सभी अभ्यर्थियों के साथ खिलवाड़ कर रही हैं।

  • अन्य राज्यों की तरह छत्तीसगढ़ राज्य सेवा आयोग UPSC के पैटर्न पर आधारित नहीं है - देश के कई राज्यों जैसे उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात के सेवा आयोग ने अपनी परीक्षा प्रणाली में UPSC के पैटर्न के आधार पर बदलाव किया है। इन राज्यों के छात्रों का प्रतिनिधित्व अखिल भारतीय सेवाओं में बढ़ा है। लेकिन छत्तीसगढ़ राज्य की लोक सेवा का सिलेबस पूरे देश से अलग है।

अतः राज्य लोक सेवा आयोग को छत्तीसगढ़ के विषयों को प्राथमिकता देते हुए, उपरोक्त पैटर्न में जल्द से जल्द बदलाव करना चाहिए। जिसमें UPSC के पैटर्न को आधार बनाकर ही आगे बढ़ना चाहिए। छात्रों का कहना है कि ऐसा तभी हो सकेगा जब राज्य सेवा आयोग को संवैधानिक तरीके से कार्य करने की आजादी मिलेगी और उसके पास जरूरत के अनुसार मानव संसाधन और संवैधानिक शक्तियां होंगी। एक नयी समिति बनाकर उपरोक्त कमियों में जल्द सुधार की शुरुआत होनी चाहिए। तभी राज्य की जनता को बेहतर प्रशासन मिल सकेगा। आदिवासी एवं विभिन्न विषयों के छात्रों के साथ न्याय हो सकेगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो छात्रों का कहना है कि हमें मजबूर होकर आन्दोलन की तरफ रुख करना पड़ेगा। इस विषय पर सरकार की तरफ से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है।

परीक्षा प्राणाली के इस पूरे संरचनागत दोष को जानकर कोई भी छत्तीसगढ़ सरकार के लचर रवैये पर हैरानी जता सकता है और यह सोचने पर मजबूर हो सकता है कि सरकार परीक्षा लेने की बजाय युवाओं के के खिलाफ षड्यंत्र कर रही है।

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