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रूस के लिए गेम चेंजर है चीन का समर्थन 
वास्तव में मॉस्को के लिए जो सबसे ज्यादा मायने रखता है, वह यह कि पेइचिंग उसके विरुद्ध लगने वाले पश्चिम के कठोर प्रतिबंधों के दुष्प्रभावों को कई तरीकों से कम कर सकता है। 
एम. के. भद्रकुमार
08 Feb 2022
Russia China
शी जिनपिंग एवं व्लादिमीर पुतिन। चित्र सौजन्य: विकिमीडिया कॉमन्स 

रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन शुक्रवार को जब पेइचिंग की यात्रा पर थे तो सारी दुनिया का ध्यान इस बात पर टिका था कि चीन अमेरिका और नाटो के साथ बाद के गतिरोध के माहौल में रूस के समर्थन में किस हद तक आगे जाएगा। पुतिन की यात्रा के समापन पर जारी संयुक्त बयान से जाहिर होता है कि चीन ने रूस को अपना पूर्ण समर्थन दे दिया है, उसने अमेरिका से सुरक्षा गारंटी की मास्को की मांग और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के विस्तार के उसके विरोध जैसे दो प्रमुख मुद्दों पर समर्थन किया है। 

रूस ने पश्चिमी गठबंधन के साथ किसी भी सैन्य टकराव में चीनी हस्तक्षेप की न तो कभी अपेक्षा की थी और न ही किसी तरह के हस्तक्षेप की मांग की थी। इसलिए कि रूस के पास अपनी संप्रभुता की रक्षा करने की खुद ही क्षमता है। 

वर्तमान समय में रूस को चीनी समर्थन अभी भी कई तरह से दिया जा सकता है। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में चीनी समर्थन पाने के अलावा, मास्को के लिए वास्तव में जो सबसे ज्यादा मायने रखते हैं, वे प्रौद्योगिकी हस्तांतरण, व्यापार, निवेश आदि कई तरीके हैं, जिनके माध्यम से पेइचिंग उसके विरुद्ध पश्चिमी के किसी भी कठोर प्रतिबंधों के दुष्प्रभावों को कम कर सकता है। इसे लेकर जाहिर तौर पर पुतिन और शी जिनपिंग के बीच समझौता हो गया है। 

इस दिशा में, चीन के साथ अनुमानित $117.5 अरब मूल्य के रूसी तेल और गैस सौदों के नए समझौते की पहले ही शुरुआत की जा चुकी है और पुतिन की यात्रा के दौरान इस बारे में एक महत्त्वपूर्ण कदम उठाया गया है। बदले में, चीन ने भी रूस के सुदूर पूर्व में निर्यात को बढ़ाने का वादा किया है। रूस के सुदूर पूर्व से चीन को प्रति वर्ष 10 अरब घनमीटर 30 साल तक आपूर्ति करने के एक नए अनुबंध पर हस्ताक्षर किया गया था। 

रूस की दिग्गज तेल कंपनी रोसनेफ्ट ने भी चीन की सीएनपीसी के साथ अलग से एक समझौता किया है। इसके तहत, चीन को अगले 10 साल के लिए 100 मिलियन टन तेल की आपूर्ति कजाकिस्तान हो कर की जाएगी, यह 80 बिलियन अमेरिकी डॉलर मूल्य के समझौते का प्रभावी विस्तार है। सालाना 50 बीसीएम गैस आपूर्ति की विशाल क्षमता वाली साइबेरिया-2 गैस पाइप लाइन का चीन तक निर्माण का एक अहम प्रस्ताव भी विचाराधीन है। 

निस्संदेह, रूस पूरी गंभीरता से अपने तेल और गैस के निर्यात के लिए बाजारों में एक विविधता लाने का प्रयास रहा है। इससे मास्को को अपने यूरोपीय भागीदारों के साथ भी बातचीत करने के लिए गुंजाइश बनेगी। पेइचिंग के साथ नए समझौते से रूस के गैस निर्यात को यूरोप में मोड़ने की आवश्यकता नहीं होगी, क्योंकि वे सखालिन के प्रशांत द्वीप से गैस भंडार से जुड़े हुए हैं, जबकि रूस के यूरोपीय पाइपलाइन नेटवर्क का स्रोत साइबेरियाई क्षेत्रों के गैस हैं। 

स्पष्ट है कि गेंद अब पूरी तरह से यूरोपीय यूनियन के देशों के पाले में है- क्या वे रूस के आश्वस्त स्रोत से इतनी कम कीमतों पर ऊर्जा की सुनिश्चित आपूर्ति को जारी रखते हैं या ऐसे विकल्प को छोड़कर खुद को दंडित करते हैं। 

हालांकि प्रतिबंध लगाए जाने से रूस को कुछ अव्यवस्था हो सकती है, जिसके लिए उसे शुरू में पुनर्समायोजन की दरकार होगी। लेकिन मास्को पिछले अनुभवों के बलबूते इसका बखूबी सामना कर लेगा। लगभग $640 अरब विदेशी मुद्रा भंडार के साथ, मास्को ऊर्जा बाजार में यूरोपीय लोगों की तुलना में अधिक समय तक टिका रह सकता है। 

इस संबंध में, बड़ा सवाल रूस की पश्चिमी सीमाओं पर खतरनाक स्थिति को लेकर पुतिन के फैसलों को लेकर है। इसका संक्षिप्त उत्तर यह है कि बाइडेन प्रशासन द्वारा प्रतिबंधों की धमकी से पुतिन भयभीत नहीं होंगे।

चीन नहीं मानता है कि रूस यूक्रेन में बड़े पैमाने पर आक्रमण की योजना बना रहा है, फिर वह बड़े करीने से इस मुद्दे को दरकिनार कर देता है। पुतिन भी बहुत सावधानी से काम करते हैं, और लगभग हमेशा प्रतिक्रिया देते हैं। चाहे वह चेचन्या हो, जॉर्जिया, सीरिया या यूक्रेन हो, सभी प्रकरणों में उनका यही प्रतिक्रियावादी पैटर्न रहा है। बेशक, यह अलग बात है कि इन सभी मामलों में, पुतिन ने अपने मकसद को हासिल करने के लिए निर्णायक रूप से कार्य किया है।

यूक्रेन के आस-पास के हालात में बाइडेन प्रशासन पुतिन पर दबाव डाल रहा है। रूस के पड़ोसियों के लिए अमेरिकी और नाटो सेना के नवीनतम सुदृढीकरण-विशेष रूप से बाल्टिक राज्यों के लिए, यानी सेंट पीटर्सबर्ग के करीब-पूरी तरह से अनुचित हैं और इसे केवल रूस के उकसावे की उसकी रणनीति के रूप में देखा जा सकता है। वह भी ऐसी परिस्थिति में जबकि यूक्रेन के विरुद्ध रूसी सैन्य अभियान के औचित्य का अभी तक कोई पर्याप्त का सबूत नहीं है। 

फिर भी, यूक्रेन की उत्साहित सेना द्वारा डोनबास में जोखिम भरे सैन्य अभियानों की वास्तविक संभावनाओं को देखते हुए या इससे भी बदतर, उस क्षेत्र में राष्ट्रवादी बटालियनों (जिसे नाटो ने हाल के सप्ताह में गुप्त रूप से हथियारों की एक बड़ी खेप भेजी है।) की गतिविधियों को देखते हुए पागलपन में भी एक तरीका माना जा सकता है। 

डोनबास पर किसी भी हमले की स्थिति में, रूस दखल देगा ही देगा, इसे समझने में कोई भी भूल न करे। मॉस्को में ड्यूमा के समक्ष जो कानून विचाराधीन है, उसमें आकस्मिक परिस्थिति में ऐसी प्रतिक्रिया देने के प्रावधान पर विशेष जोर दिया गया है। यह रूसी सरकार से डोनेट्स्क और लुहान्स्क की स्वतंत्रता को मान्यता देने का आह्वान करता है और दूसरी बात, सरकार को इन दो "पीपुल्स रिपब्लिक्स" को नए हथियार प्रदान करने के लिए भी अधिकृत करता है। 

एक मुमकिन हालात यह हो सकता है कि रूस धैर्यपूर्वक यूक्रेन की तरफ से किए जाने वाले उकसावे की प्रतीक्षा करेगा। उसके लिए बुनियादी मुद्दा प्रतिक्रिया देने के संकल्प करने भर का है। इस मामले में रूस का बहुत कुछ दांव पर लगा है और अपने पश्चिमी विरोधियों की तुलना में जूझने की उसकी शक्ति कहीं ज्यादा है। 

यहाँ ढीठपन का एक बड़ा तत्व है। इस समय यूरोप में जो कुछ हो रहा है, वह अमेरिका के लिए एक बड़ी व्याकुलता का विषय बन गया है और जैसे-जैसे समय बीतता जाएगा, बाइडेन प्रशासन को इस बात का अफसोस होगा कि उसकी हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीति लड़खड़ा रही है और वह एक जगह पर फंस गई है। इसके विपरीत, रूस के अपने कदम पीछे खींचने की संभावना लगभग शून्य है। 

जाहिर है, उत्तर कोरियाई मिसाइल परीक्षण पहले से ही सुदूर पूर्व में अमेरिका की गठबंधन प्रणाली पर भारी दबाव बना रहा है। इससे अमेरिका के सुरक्षा हित यूक्रेन की तुलना में सीधे प्रभावित होते हैं। शुक्रवार को, अमेरिका ने प्योंगयांग की क्रैश लैंडिंग की निंदा करने वाला एक वक्तव्य जारी कर दिया। 

विडंबना यह है कि चीन ने अमेरिका से कहा कि वह उत्तर कोरिया के साथ अपने व्यवहार में अधिक लचीलापन लाए और संयुक्त बयान पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। इस तरह वह भारत और रूस समेत छह अन्य सदस्य देशों में शामिल हो गया, जिन्होंने इस पर दस्तखत करने से इनकार कर दिया है। संयुक्त राष्ट्र में चीन के राजदूत झांग जून ने बाद में संवाददाताओं से कहा, "अगर वे (अमेरिका) कुछ नई सफलता देखना चाहते हैं, तो उन्हें अधिक ईमानदारी और लचीलापन दिखाना चाहिए। उन्हें अधिक आकर्षक और अधिक व्यावहारिक, अधिक लचीले दृष्टिकोण, नीतियों और कार्यों के साथ आना चाहिए और डीपीआरके की चिंताओं को उसमें समायोजित करना चाहिए।"

यहीं वह जगह है, जहां पर अमेरिका को दुनिया नई वास्तविकता का सामना करना पड़ रहा है, जिसमें  एशिया-प्रशांत क्षेत्र में चीन और यूरोप में रूस को अलग-थलग करने की उसकी शीत युद्धकालीन मानसिकता काम नहीं करेगी। 

शुक्रवार को पेइचिंग में जारी संयुक्त बयान में जाहिर चीन और रूस के बीच एकजुटता यूक्रेन में तत्काल संकट या ताइवान पर तनाव से कहीं आगे जाती है और इसका एक बहुलवादी विश्व व्यवस्था के आधार पर अंतरराष्ट्रीय संबंधों में एक नए युग की शुरुआत करने के लिए एक युगांतरकारी महत्व है, जहां अमेरिका की भूमिका लंबे समय तक विशिष्ट बनी नहीं रहेग या परिभाषित करने वाली नहीं होगी। 

वैश्विक सामरिक स्थिरता से संबंधित लगभग सभी प्रमुख मुद्दों पर रूस और चीन के बीच आज व्यापक सहमति है, जो आधुनिक इतिहास में अभूतपूर्व है। 

चीन-रूस के संयुक्त बयान में नाटो के विस्तार, लोकतंत्र के नाम पर अमेरिका के नेतृत्व वाले वैचारिक गुट, अमेरिका के हिंद-प्रशांत क्षेत्र की रणनीति, AUKUS आदि सहित कई प्रमुख क्षेत्रीय और वैश्विक मुद्दों पर चीन और रूस के आम रुख को उजागर करते हुए अमेरिका का कम से कम पांच बार उल्लेख किया गया है। 

शी ने पुतिन से कहा कि वे नई ऐतिहासिक परिस्थितियों में चीन-रूस संबंधों एक खाका तैयार करने और इस में मार्गदर्शन के लिए उनके साथ काम करने को तैयार हैं। चीन ने सुरक्षा की अविभाज्यता के रूस के मूल सिद्धांत का समर्थन किया है। इन परिस्थितियों में यदि अमेरिका अपनी जीरो-सम की मानसिकता से सोचता है कि वह प्रतिबंधों के जरिए रूस को हरा कर खुद जीत सकता है, तो यह उसका कोरा भ्रम है। 

रूस की मांगों पर तुषारापात करना भी उसके लिए संभव नहीं होगा। बाइडेन प्रशासन के सामने सबसे बड़ी चुनौती अपनी विश्वसनीयता को बनाए रखने की होगी,खासकर यूरोप की नजर में। इसलिए कि यदि रूस को अपने गैर-परक्राम्य मूल हितों की रक्षा के लिए सैन्य हस्तक्षेप के लिए मजबूर किया जाता है, जैसा कि किसी बिंदु पर ऐसा होगा तो एक जंगी हालात में खतरनाक वृद्धि हो सकती है। 

क्या अमेरिका रूस के साथ खुलेआम संघर्ष के लिए तैयार है? क्या इसके सहयोगी भी इसके लिए खेलेंगें? क्या वे इसकी कीमत वहन कर सकते हैं? क्या उनका देश यूरोप में एक थर्मोन्यूक्लियर परमाणु शक्ति के साथ युद्ध की बुरी तरह परिभाषित धारणाओं की रक्षा के लिए युद्ध के विचार की अनुमति देगा? 

एक बेहतर विवेकपूर्ण तरीका यह होगा कि एक राजनयिक सूत्र की तलाश की जाए जो इन सभी स्व-स्पष्ट वास्तविकताओं को ध्यान में रखे और किसी ऐसे मसौदे पर बातचीत करे जो रूस की वैध सुरक्षा आवश्यकताओं की गारंटी देता हो।

(एम.के.भद्रकुमार एक पूर्व राजनयिक हैं। वे उज्बेकिस्तान और तुर्की में भारत के राजदूत रहे हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके निजी हैं।) 

अंग्रेजी में मूल रूप से लिखे लेख को पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें 

China’s Support is Game Changer for Russia

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