NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
मज़दूर-किसान
स्वास्थ्य
भारत
राजनीति
बात बोलेगी : प्लेटफॉर्म पर दम तोड़ती भारत निर्माता ‘भारत माता’
श्रमिक ट्रेनों से लाशों के आने का सिलसिला देश की जनता के दुख भरे दिनों की तरह थमने का नाम नहीं ले रहा है। जो बच रहे हैं, वे भी अपने आप में एक चमत्कार है। उन्हें मारने का इंतज़ाम तो पूरा पक्का किया है हुक्मरानों ने।
भाषा सिंह
27 May 2020
प्लेटफॉर्म पर दम तोड़ती भारत निर्माता
Image Courtesy: NDTV

भारत निर्माता, भारत माता दम तोड़ रही है। प्लेटफॉर्म पर मरी मां को सोया जान उसके कपड़ों से खेलता नन्हा मासूम 2020 के विकसित भारत का आईना है और देश का भविष्य है। हमने दरअसल, अपने लोकतंत्र को ऐसे ही लावारिस छोड़ दिया है।

श्रमिक ट्रेनों से लाशों के आने का सिलसिला देश की जनता के दुख भरे दिनों की तरह थमने का नाम नहीं ले रहा है। जो बच रहे हैं, वे भी अपने आप में एक चमत्कार है। उन्हें मारने का इंतजाम तो पूरा पक्का किया है हुक्मरानों ने। तपती गर्मी में बिना पर्याप्त पानी-खाने के हजारों किलोमीटर का सफर तय करते ये भारतीय नागरिक दम तोड़ रहे हैं। ट्रेनें सिर्फ 20-20 घंटें लेट नहीं चल रही हैं, बल्कि मजदूरों को लेकर रास्ता भटक रही हैं। रास्ता तो वाकई ये देश भूल ही गया है।

bhasha video.JPG

गुजरात के `विकास का मॉडल’ कैसे देश भर में पसर गया है, सरकारें किस कदर आपराधिक निष्क्रियता का लबादा ओड़कर आत्मनिर्भरता का जयगान कर सकती हैं---ये हमें कोरोना काल में, लॉकडाउन के दौरान होने वाली एक-एक मौत चीख़-चीख़ कर बता रही है। इन मौतों का न तो इन सरकारों के पास कोई ब्योरा है और न ही कभी होगा---वे रहेंगी अदृश्य। सिर्फ़ इतना ही नहीं, सत्ता तंत्र की नापाक साठगांठ ट्वीट करके बताएगी कि ऐसी कोई मौत तो हुई ही नहीं। कोई मरा ही नहीं, क्योंकि ये लोग तो मरने के लिए ही बने हैं! कीड़े-मकौड़ों की तरह नामालूम से, इनका गायब हो जाना ही देश के लिए हितकारी है। गुजरात के सूरत से घर को लौटती ‘भारत माता’ की जो ये लाश है, इस पर ऐसी ही प्रतिक्रिया आ रही होगी। इससे पहले भी हम देख-सुन रहे हैं कि गुजरात के सूरत में जो कामगार हैं, वे कैसे बिलबिला रहे हैं, घर जाने को सड़कों पर उतरे हुए हैं, लेकिन उनकी मदद के लिए कोई साहेब, कोई योगी, कोई नीतीश नहीं उतरे हैं।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के संसदीय क्षेत्र बनारस में जब श्रमिक ट्रेन से दो भारतीय नागरिकों की लाशें निकाली गईं, तो वाकई बनारस क्योटो (जापान का शहर) की तरह ‘जगमग’ हो गया होगा। याद दिला दें, प्रधानमंत्री ने बनारस को क्योटो की तरह चमकाने का वादा किया था।

27 मई को मुंबई से निकली श्रमिक स्पेशल ट्रेन जब बनारस के मंडुआडीह स्टेशन पर पहुंची, तो मानो हडकंप मच गया।

vns two bodies.jpg

फोटो साभार : अमर उजाला

इस स्पेशल ट्रेन से दो लाशें निकलीं—मृतक जौनपुर और आज़मगढ़ के हैं, एक नौजवान करीब 20 साल के, जो विकलांग हैं और दूसरे 63 वर्षीय बुजुर्ग। 20 साल के यात्री जिनकी मौत हुई, उनका नाम दशरथ प्रजापति है और वह जौनपुर के बदलापुर स्थित लालापुरा गांव के रहने वाले बताये जाते हैं। वह गुजरात के सूरत में काम करते थे। लॉकडॉउन से तबाह मजदूरों में से दशरथ भी एक थे, जो किसी भी तरह से जीते-जी गांव पहुंचना चाहते थे। लेकिन वे इतनी यातना झेल न पाए। दूसरे मृतक की शिनाख़्त आज़मगढ़ के रामरतन रघुनाथ के रूप में हुई है, जो मुंबई में जोगेश्वरी में रहते थे।

ऐसे अनगिनत भारत निर्माताओं के मरने की लगातार हृदयविदारक खबरें आ रही हैं। ये सूची लगातार लंबी होती जा रही है। निश्चित तौर पर ऐसे लोगों की संख्या भी बहुत होगी, जो घर-द्वार पहुंचते-पहुंचते बीमार हुए होंगे या जिनके जीवन की डोर ख़ामोशी से टूट गई होगी—बिना ख़बर बने। इन लाखों लोगों, मजदूरों की मदद करने के बजाय वे अपने-अपने जश्न में मशगूल हैं। 30 मई को मोदी सरकार के दूसरे कार्य़काल का पहला साल पूरा हो रहा है, तो केंद्र सरकार उस जश्न की तैयारियों में है, और उधर कोरोना संकट-लॉकडाउन के बीच उत्तर प्रदेश के अयोध्या में भव्य-दिव्य राम मंदिर का निर्माण शुरू हो गया है।

ऐसे में मान ही के चलना चाहिए कि प्लेटफॉर्म पर मरी मां के आंचल से खेलता बच्चा हमारे दौर की सबसे बड़ी-ख़ौफ़नाक सच्चाई है, जो लंबे समय तक मानवता की मौजूदगी पर बड़ा प्रश्नचिह्न लगाती रहेगी।

Coronavirus
Lockdown
migrants
Bihar
Labor trains
shramik special train
Migrant workers

Related Stories

मिड डे मिल रसोईया सिर्फ़ 1650 रुपये महीने में काम करने को मजबूर! 

बिहार : गेहूं की धीमी सरकारी ख़रीद से किसान परेशान, कम क़ीमत में बिचौलियों को बेचने पर मजबूर

कर्नाटक: मलूर में दो-तरफा पलायन बन रही है मज़दूरों की बेबसी की वजह

हैदराबाद: कबाड़ गोदाम में आग लगने से बिहार के 11 प्रवासी मज़दूरों की दर्दनाक मौत

ग्राउंड रिपोर्ट: कम हो रहे पैदावार के बावजूद कैसे बढ़ रही है कतरनी चावल का बिक्री?

बिहारः खेग्रामस व मनरेगा मज़दूर सभा का मांगों को लेकर पटना में प्रदर्शन

यूपी: महामारी ने बुनकरों किया तबाह, छिने रोज़गार, सरकार से नहीं मिली कोई मदद! 

यूपी चुनावों को लेकर चूड़ी बनाने वालों में क्यों नहीं है उत्साह!

सड़क पर अस्पताल: बिहार में शुरू हुआ अनोखा जन अभियान, स्वास्थ्य सुविधाओं के लिए जनता ने किया चक्का जाम

पीएम के 'मन की बात' में शामिल जैविक ग्राम में खाद की कमी से गेहूं की बुआई न के बराबर


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    मोदी सरकार के 8 साल: सत्ता के अच्छे दिन, लोगोें के बुरे दिन!
    29 May 2022
    देश के सत्ताधारी अपने शासन के आठ सालो को 'गौरवशाली 8 साल' बताकर उत्सव कर रहे हैं. पर आम लोग हर मोर्चे पर बेहाल हैं. हर हलके में तबाही का आलम है. #HafteKiBaat के नये एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार…
  • Kejriwal
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: MCD के बाद क्या ख़त्म हो सकती है दिल्ली विधानसभा?
    29 May 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस बार भी सप्ताह की महत्वपूर्ण ख़बरों को लेकर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन…
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष:  …गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
    29 May 2022
    गोडसे जी के साथ न्याय नहीं हुआ। हम पूछते हैं, अब भी नहीं तो कब। गोडसे जी के अच्छे दिन कब आएंगे! गोडसे जी का नंबर कब आएगा!
  • Raja Ram Mohan Roy
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या राजा राममोहन राय की सीख आज के ध्रुवीकरण की काट है ?
    29 May 2022
    इस साल राजा राममोहन रॉय की 250वी वर्षगांठ है। राजा राम मोहन राय ने ही देश में अंतर धर्म सौहार्द और शान्ति की नींव रखी थी जिसे आज बर्बाद किया जा रहा है। क्या अब वक्त आ गया है उनकी दी हुई सीख को अमल…
  • अरविंद दास
    ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली
    29 May 2022
    प्रख्यात निर्देशक का कहना है कि फिल्मी अवसंरचना, जिसमें प्राथमिक तौर पर थिएटर और वितरण तंत्र शामिल है, वह मुख्यधारा से हटकर बनने वाली समानांतर फिल्मों या गैर फिल्मों की जरूरतों के लिए मुफ़ीद नहीं है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License