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भारत
राजनीति
देश भर से आये किसानों ने दिल्ली के संसद मार्ग पर 'संसद' बनायी
अपनी मांगों के प्रति आवाज़ उठाने के लिए किसानों ने नई दिल्ली के संसद मार्ग पर संसद बनायी.
तारिक़ अनवर
22 Nov 2017
Translated by महेश कुमार

kisan sansad

 

सरकार ने जब किसानों को सुनने से इनकार कर दिया, तब देश भर के किसानों ने नई दिल्ली में संसद से कुछ मीटर की दुरी पर अपनी 'संसद' का गठन सोमवार को किया जिसे “ किसान मुक्ति संसद” का नाम दिया.

कृषि समुदाय से जुड़े 184 संगठनों ने एक राष्ट्रीय मंच के तहत, जिसे अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति (ए.आई,के,एस.सी.सी.) के बैनर के तहत संसद मार्ग में हजारों किसानों ने ऋण की बिना शर्त छूट और उनके फसलों के फायदे का मूल्य की मांग की.

भारत की संसद को प्रतिरूप करते हुए,  इस 'संसद' में भी 543 सांसद थे, जिन्होंने किसानों की मांग पर एक बिल के रूप में प्रस्तुत की. हालांकि, यह संसद अलग इसलिए थी क्यूंकि यहाँ सभी 'सांसद' महिलाएं थीं , जो किसान समुदाय से जुडी हुयी थीं.

अधिकांश सांसद वे महिलायें थी, जिनके पति, माता-पिता या परिवार के अन्य सदस्यों ने कर्जे के कारण आत्महत्या कर ली थी.

न्यूजक्लिक ने देश के विभिन्न क्षेत्रों से इन 'सांसदों' से बात की है, और पाया कि हर कहानी दिल को दहलाने वाली है.

kisan sansad

 

नाम: मनीआयु: 18 वर्ष

गांव: गोवारापल्ली (सिद्धिपेट जिला, तेलंगाना)

3 लाख रुपये का कर्ज चुकाने में असमर्थ, मनीषा के पिता (45 वर्षीय मल्लेशम) और माँ (35 वर्षीय लक्ष्मी) ने 27 फरवरी, 2015 और 22 नवंबर 2014 को आत्महत्या कर ली.

12 कक्षा पास,  मनीषा को पढ़ाई छोड़नी पडी और रोज़ाना मज़दूरी के रूप में काम करना पडा, यह सब उसने नौवीं कक्षा में पढ़ रहे अपने भाई नितिन को समर्थन करने के लिए किया .

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नाम: कताबाई पांडुरंग विसे

आयु: 35 वर्ष

गांव: भिसे वाघोली (लातूर, महाराष्ट्र)

विसे की 18 वर्षीय बेटी ने दो साल पहले कीटनाशक पीकर खुद को मार डाला. उसने यह बड़ा कदम इसलिए उठाया क्योंकि उसके पिता के पास एक छोटा सा एक एकड़ का खेत था. और वे उसकी शादी के लिए दहेज़ देने की स्थिति में नहीं थे. वह नहीं चाहती थी कि उसके पिता उसके विवाह के लिए इस छोटे ज़मीन के टुकड़े बेचे. 2 लाख रुपये करज़े ने उनकी चिंताओं को और बढ़ा दिया.

वह खेत से 12,000 रुपये से 15,000 रुपये प्रति वर्ष कमाते हैं. इसके अतिरिक्त, उनका पति एक भवन निर्माण मजदूर के रूप में काम करता है, जिससे उन्हें प्रति वर्ष 20,000 रुपये से 25,000 रुपये की अतिरिक्त आय होती है.

मात्र 1 लाख रुपये मुआवजे के तौर पर उसके नाम पर आवंटित किए गए थे, लेकिन वास्तव में उसे सिर्फ 30,000 रुपये ही मिले, जिसे उसने अपने ऋण की किस्त अदा करने के रूप में भुगतान किया.

वीसे की दो बेटियां और एक बेटा है.  उनमें से बड़ी बेटी विवाह की उम्र में पहुँच गयी है. वह कहती है कि हर उसे इस बात का डर सताता है कि कहीं उसकी दूसरी बेटी भी उसी कारण आत्महत्या न कर ले जिस वजह से बड़ी बेटी ने की थी.

जब भी किसान आत्महत्या की बात आती है तो महाराष्ट्र का सबसे खराब रिकॉर्ड है. वर्ष 2015 में, राज्य में करीब 3,030 किसानों ने अपना जीवन समाप्त कर दिया था.

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नाम: वेनाल्ला

आयु: 18 वर्ष

गांव: वाचना टांडा, वारंगल, तेलंगाना

इनके पिता ने 12 अक्टूबर 2016 को आत्महत्या की, जब वे खेती के लिए बैंक और साहूकार से ली गई उधार राशि को वापस करने में आ रही दिकत्तों को नहीं झेल पाए. उनकी मृत्यु के बाद, वेनल्लु की मां को गहरी आघात लगा और उन्होंने अपना मानसिक संतुलन को खो दिया.

वेनाल्ला कि स्नातक कक्षा में दूसरे वर्ष की छात्र थी के पास भी 10 और 8 साल के दो भाई हैं। उसकी माँ के इलाज और उसके भाइयों की शिक्षा का बोझ 18 वर्ष लडकी पर आन पडा.

तेलंगाना में 2015 में 1,358 किसानों ने आत्महत्या की, जो महाराष्ट्र के बाद दूसरे स्थान पर हैं .

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आयु: 30 वर्ष

जिला: सुरेंद्रनगर, गुजरात

भारी वर्षा के कारण 20 एकड़ जमीन पर उनकी कपास की फसल पूरी तरह से तबाह हो गई थी. इनके पति, जो किसान थे, अब परिवार की बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए रिक्शा चलाने लगे हैं.

कल्सुम का कहना है कि सभी प्रयासों के बावजूद, उसकी फसल हमेशा या तो खराब वातावरण से बर्बाद होती है या फिर कृषि में ज्यादा लागत लगने और बाजार में कम कीमत मिलने से. वह अपने सात वर्षीय बेटे को एक अच्छे स्कूल में भेजने में असमर्थ हैं.

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नाम: पद्मवती स्वामी हीरामाथ

आयु: 55 वर्ष

गांव: बिदर, कर्नाटक

30 साल पहले अपने पति की मौत के बाद, हीरामाथ अपने भाई के साथ रहती थी, वह एक किसान था और जिसने पांच साल पहले खुद को मार डाला था, क्योंकि वह कर्ज वापस करने में असमर्थ था.

अब, हीरामाथ अपनी 10 एकड़ जमीन पर दाल और गन्ने की खेती करती है. उसके चार छोटे बच्चे, साथ ही उसके भाई के रिश्तेदार, सभी खेती में शामिल हैं. हिरामाथ का कहना है कि वह कीटनाशक और मजदूरी पर खर्च करने के बाद लगभग कुछ नहीं बचा पाती है.

kisan sansad

 

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राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एन.सी.आर.बी.) द्वारा संकलित आंकड़े कहते हैं कि 2015 में कुल 12,602 किसानों ने आत्महत्या की थी, जिसमें से 8,007 किसान थे और 4,595 खेत मजदूर.

 

 

 

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