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भारत
राजनीति
दिल्ली में मज़दूर-कर्मचारियों ने दिखाई एकजुटता, सरकार को सीधी चेतावनी
"इंकलाब जिंदाबाद", "हमारी मांग पूरी करो" और, "मोदी सरकार होश में आओ" जैसे नारे आज दिल्ली के तमाम औद्योगिक क्षेत्रों में सुनने को मिले। सभी जगह दो दिन की आम हड़ताल के पहले दिन व्यापक असर देखने को मिला।
मुकुंद झा
08 Jan 2019
workers strike

मंगलवार की सुबह-सुबह, दिल्ली कि सर्दी को सहते हुए, जय नरेश साहिबाबाद में अपने कारखाने के लिए रवाना हुए औरअपने कारखाने- रेडिएंट पॉलिमर के बाहर अपना विरोध दर्ज कराने के लिए पहुंचे। अपनी आँखों में आँसू लिए, उन्होंने न्यूज़क्लिक से कहा, “मैं 19 वर्षों से इस कारखाने में काम कर रहा हूँ , मुझे इतना कम भुगतान मिलता है कि मैं अपनी माँ के अंतिम संस्कार के लिए भी कुछ नहीं कर सका। जब मेरे बच्चों को एक संक्रामक रोग ने जकड़ लिया था मैं उनका भी इलाज नहीं करा पाया था। अपने  बच्चों की ज़िंदगी बचाने के लिए कई जगहों से पैसा इकट्ठा करना पड़ा था, क्योंकि मालिक हमें इतना कम भुगतान करते हैं कि मैं  अपने परिवार को सुरक्षा प्रदान नहीं कर सकता था और मैं उनके जीवन को नहीं बचा सकता हूँ।”

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नरेश की तरह, कई अन्य औद्योगिक मजदूर दो-दिवसीय आम हड़ताल में भाग ले रहे हैं। ये हड़ताल भाजपा नीत एनडीए सरकार की मजदूर विरोधी- जन विरोधी नीतियों के खिलाफ़ हो रही है।

ये हड़ताल 7 जनवरी की मध्यरात्रि से शुरू हुई थी। औद्योगिक श्रमिकों के अलावा, किसान संगठनो  के यूनियनों और संघों, खेतिहर मजदूरों ,स्कीम वर्कर, निर्माण मजदूरों , शिक्षक और छात्र आदि ने भी हड़ताल में भाग लिया है।

दिल्ली एनसीआर क्षेत्र में,  80 प्रतिशत से अधिक मजदूर हड़ताल के समर्थन में आकर इस हड़ताल को  कामयाब कर रहे हैं|  भारतीय जीवन बीमा निगम में हड़ताल को 100 फीसदी कर्मचारियों का समर्थन मिला। बैंक और डाक कर्मचारियों और अन्य सार्वजनिक क्षेत्र के कर्मचारियों ने भी  जबरदस्त भागीदारी की है। हड़ताल का असर साहिबाबाद, वजीरपुर, पटपड़गंज, नरेला ,मायापुरी ,बवाना और नांगलोई में सबसे ज्यादा दिखाई दिया।

“शौक नहीं मज़बूरी है, अब हड़ताल जरूरी है”

“पिछले 25 वर्ष से हम इस निगम में काम कर रहे हैं परन्तु अभी तक हमें कर्मचारी का दर्जा नहीं मिला है। न हमें कोई छुट्टी मिलती है। यहाँ तक कि हमें किसी त्योहार की भी छुट्टी नहीं मिलती, जबकि सभी सरकारी और निजी निगम के कर्मचारियों कि छुट्टी होती है परन्तु हमारे वेतन में से उस दिन का वेतन काट लिया जाता है।” ये सारी बातें केन्द्रीय भंडारण निगम (cwc) में कार्य करने वाले मजदूर मो. शाबिद ने बताईं। वे ये भी कहते हैं कि उन लोगों को जो वेतन मिलता है वो कई बार कई महीनों तक नहीं मिलता है। ऐसे में ये हड़ताल जरूरी हो गई है हमें कोई शौक नहीं है।

cwc.jpg

आपको बता दें  ये निगम  केंद्र सरकार के अधीन है। दिल्ली के पटपड़गंज औद्योगिक क्षेत्र में स्थित है, इसमें तकरीबन 350 लोग काम करते हैं। श्रम कानून के मुताबिक स्थायी काम के स्वरूप के लिए अस्थायी मजदूर रखना गैरकानूनी है, लेकिन यह सब हो रहा है और ये कहीं और नहीं सरकारी संस्थानों में हो रहा तो आप निजी की तो बात छोड़े दीजिए।

इस निगम  में काम करने वाली महिला सफाई कर्मचारी ने जिनका नाम निशा है, उन्होंने बतया कि उन्हें दिन भर काम करने के एवज में मात्र साढ़े पांच हज़ार रुपये मिलते हैं जो केंद्र द्वारा निर्धारित न्यूनतम वेतन 18 हज़ार से बहुत कम है। उनका शोषण यहीं नहीं रुकता है। वो आगे कहती हैं कि ठेकेदार उन लोगों के साथ दुर्व्यवहार भी करता है।

cwc के कर्मचारी मसाते जो यहाँ 20 सालों से काम कर रहे हैं वो कहते हैं कि आज तक उन्हें दिहाड़ी मजदूर की तरह रखा जाता है। वो बताते हैं कि उन लोगो को पीएफ और ईएसआई का लाभ भी नहीं मिलाता है, जबकि सबके पैसे काट लिए जाते हैं।

इन्हीं मांगों को लेकर आज से दो दिन के अखिल भारतीय हड़ताल में cwc के सभी कर्मचारी शामिल हुए और सैकड़ों की संख्या में मजदूरों ने गेट मीटिंग कर प्रबन्धन को चेतावनी दी। ये तो एक निगम की कहानी थी। पूर्वी दिल्ली के इस औद्योगिक क्षेत्र के अन्य इलाकों में भी इस हड़ताल का व्यपक असर देखने को मिला।

वज़ीरपुर में भी जबरदस्त प्रतिरोध

 "आज वज़ीरपुर बंद है", "इंकलाब जिंदाबाद", "हमारी मांग पूरी करो" और, "मोदी सरकार होश में आओ" जैसे नारे पूरे वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में गूंज रहे थे।

सुबह 7:30 बजे से, वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में हड़ताल को सफल करने के लिए कई केंद्रीय ट्रेड यूनियन सदस्य और कार्यकर्ता मछली बाजार के पास एकत्र हुए। उन्होंने नारों के माध्यम से मजदूरों को साथ आने का आह्वान किया। इसके साथ वो न्यूनतम मजदूरी को लागू करने और 12 मांगों के चार्टर को पूरा करने के लिए नारे लगा रहे थे।

वज़ीरपुर औद्योगिक क्षेत्र में रैली करने के लिए (AICCTU) और (CITU) के बैनर तले क्षेत्र के लगभग 200 मजदूर एकत्रित हुए। कई फैक्ट्री मालिकों ने प्रदर्शनकारियों के साथ टकराव से बचने के लिए कारखानों को अंदर से बंद कर दिया था | कई मजदूर अपनी  इच्छा के विरुद्ध काम कर रहे है ऐसी भी आशंका ज़ाहिर कि जा रही थी | ट्रेड यूनियनों के सदस्य, श्रमिक एक कारखाने से दूसरे कारखाने में जा कर  श्रमिकों को हड़ताल में शामिल होने के लिए कह रहे थे। इन सब में कई बार उनका पुलिस से सीधा टकराव भी हुआ।

 मोहमद सारी , एक 19 साल का लड़का, उसका शरीर स्टील फैक्ट्री के पाउडर से सना हुआ था वो भी हड़ताल का हिस्सा था। वह लगभग 2 महीने से काम कर रहा था और उसे प्रत्येक किलो उत्पाद पर 12 रुपये मिलता है। परन्तु जो ठेकेदार कच्चे माल को उपलब्ध कराता है, वो उससे हर किलो उत्पाद के लिए 3 रुपये वापस ले लेता है।

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मजदूर यूनियन का कहना है कि सरकार सार्वजनिक क्षेत्र के संस्थानों के निजीकरण की कोशिश कर रहे हैं और विभिन्न क्षेत्र लगातार इन  नीतियों के खिलाफ लड़ रहे हैं। ट्रेड यूनियनों ने स्पष्ट रूप से कहा है कि “रणनीतिक सार्वजनिक उपक्रमों, महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और सार्वजनिक उपयोगिताओं के निजीकरण की सरकार की नीति, रक्षा उत्पादन और रेलवे के साथ बंदरगाहों,  हवाई अड्डों, दूरसंचार, वित्तीय क्षेत्र आदि को विशेष रूप से लक्षित करते हुए 100% प्रत्यक्ष विदेशी निवेश के लिए खोलना एक ओर राष्ट्रीय संपत्ति और संसाधनों की लूट और दूसरी ओर देश के आर्थिक आधार को नष्ट करने के उद्देश्य से है।”

अखिल भारतीय किसान सभा  ने आम हड़ताल के साथ एकजुटता के साथ ग्रामीण बंद का आह्वान किया है। ऑल इंडिया एग्रीकल्चर वर्कर्स यूनियन के साथ अखिल भारतीय किसान सभा ने सक्रिय रूप से किसान और ग्रामीण गरीबों की मांगों पर अभियान चलाया है|

 

 

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