NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
दिल्ली ऊंचा सुनती है? एक बार फिर दिल्ली को सुनाने-जगाने आ रहे हैं देशभर के किसान
ऑल इंडिया किसान कोआर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले करीब 200 किसान संगठन इस मार्च में शामिल हैं। रैली के आयोजकों का कहना है कि इसमें एक लाख से ज़्यादा किसान शामिल होंगे।
ऋतांश आज़ाद
20 Nov 2018
kisan sabha

‘दिल्ली चलो’ के नारे के साथ ‘किसान मुक्ति मार्च’ 29 और 30 नवंबर को दिल्ली आ रहा है। इसमें देशभर के किसान शामिल हैं। किसान मुख्य तौर पर संसद में कृषि संकट पर चर्चा, कर्ज़ माफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य की मांगे लेकर दिल्ली आ रहे हैं।

ऑल इंडिया किसान कोआर्डिनेशन कमेटी के बैनर तले करीब 200 किसान संगठन इस मार्च में शामिल हैं। रैली के आयोजकों का कहना है कि इसमें एक लाख से ज़्यादा किसान शामिल होंगे।

पिछले सालों में किसान लगातार मोदी सरकार की किसान विरोधी नीतियों के खिलाफ आंदोलन कर रहे हैं ।

बीती 5 सितंबर को सीआईटीयू और अखिल भारतीय किसान सभा के बैनर तले करीब 2 लाख से ज़्यादा मज़दूर और किसानों ने दिल्ली में मार्च किया था। इससे पहले मार्च 2018 में महाराष्ट्र के किसानों ने नासिक से मुंबई तक एक ऐतिहासिक लॉन्ग मार्च किया था। इस मार्च की खूबसूरत लाल तस्वीरें सोशल मीडिया पर छा गयी थीं। बताया जाता है कि इसमें 40,000 से ज़्यादा किसानों ने हिस्सा लिया था। महाराष्ट्र सरकार को किसानों के माँगों के सामने झुकना पड़ा था, हालांकि ज़मीन के पट्टे अब तक किसानों को नहीं मिले हैं और न ही पूरी तरह से कर्ज़ माफी हुई है।

इसी तरह पिछले साल सितंबर 2017 में राजस्थान के सीकर में 13 दिनों का किसान आंदोलन चला। इस दौरान पूरे इलाके का चक्का जाम कर दिया गया था और इसमें करीब 50,000 किसान शामिल थे। राजस्थान सरकार ने आंदोलन के चलते किसानों की सभी मांगे मानने की बात की थी। सरकार के बाद में मुकर जाने पर किसान सभा के नेतृत्व में किसानों ने फरवरी 2018 में विधानसभा के घेराव का ऐलान किया जिसके बाद जयपुर के बाहर सैकड़ों किसान नेता गिरफ्तार हुए। लेकिन अंत में किसानों की 50,000 रुपये तक के कर्ज़ को माफ कर दिया गया। हालांकि अब भी बहुत सी माँगों को नहीं माना गया है लेकिन फिर भी यह किसानों की बड़ी जीत थी।

अभी दिल्ली ने गन्ना किसानों का भी आंदोलन देखा, जिसे यूपी बॉर्डर पर रोक लिया गया और फिर पुलिस और किसानों के बीच काफी संघर्ष हुआ।

मध्य प्रदेश का मंदसौर कौन भूल सकता है। जिसमें जून, 2017 में हुए आंदोलन में पांच किसानों को जान गंवानी पड़ी। और फिर उसकी पहली बरसी पर 2018 में एक जून से दस जून तक दस दिन का गांव बंद आंदोलन हुआ।

20 और 21 नवंबर 2017 को दिल्ली के संसद मार्ग पर करीब 40 हज़ार किसान जमा हुए। यहाँ किसानों ने ऐतिहासिक किसान संसद आयोजित की। यहाँ पहले दिन महिला किसानों और दूसरे दिन पुरुष किसानों ने बैठक की। इसके बाद कर्ज़ माफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य और उसकी खरीद की गारंटी का कानून पास किया। किसान सभा के महासचिव हनन मौला ने बताया कि इसके बाद इस कानून को बेहतर बनाने के लिए कानून के जानकारों और बुद्धिजीवियों से सलाह ली गयी। आखिरकार इसे कानूनी रूप से अनुकूल बनाए जाने के बाद इसे 21 पार्टियों के सामने पेश किया गया। सभी पार्टियों ने इसे लागू करने का लिखित वादा किया इन पार्टीयों में वामपंथी पार्टियों के अलावा काँग्रेस और बाकी पार्टियाँ भी शामिल हैं।

हनन मौल्ला का कहना है कि 1991 में लायी गयी नवउदरवादी नीतियों के बाद से करीब 4 लाख किसान आत्महत्या कर चुके हैं,  हर रोज़ 52 किसान अपनी जान लेते हैं।

जानकार बताते हैं कि इसका मुख्य कारण कर्ज़ों के तले दबती हुई किसानों की ज़िंदगी है। हुआ यह है कि जहां पहले किसानों को बीज, खाद, पानी बिजली आदि सरकार सस्ती दरों पर देती थी। वहाँ अब निजी कंपनियों के आने से लागत बढ़ गयी है और बाज़ार में सही दाम मिल नहीं रहा। हालत यह है कि किसानों को कई बार लागत से भी कम कीमत पर माल बेचना पड़ता है। इस वजह से किसान कर्ज़ लेते हैं और फिर कर्ज़ और ब्याज़ के जाल में फंस जाते हैं। सरकार ने जब कर्ज़ माफी की भी तो पूरी तरह नहीं हुई और साथ ही कहीं भी सरकार लागत के डेढ़ गुना दाम पर पूरी खरीद नहीं करती।  

इसीलिए किसान मांग कर रहे हैं कि सरकार उनके पूरे कर्ज़ माफ करें,  लागत का डेढ़ गुना दाम दें और पूरी खरीद करे। इसके साथ किसान संसद में कृषि संकट पर 21 दिनों कि चर्चा की मांग कर रहे हैं। साथ ही किसान पेंशन, वन अधिकार कानून के तहत आदिवासी किसानों के लिए ज़मीन के पट्टे और स्वामीनाथन कमेटी की बाकी सिफ़ारिशों को लागू करने की भी मांग कर रहे हैं।

खास बात यह है कि देश भर से मध्यम वर्ग के विभिन्न हिस्से भी अब इस आंदोलन से जुड़ रहे हैं। किसान मुद्दे पर लगातार काम कर रहे वरिष्ठ पत्रकार पी साईनाथ और कुछ लोगों ने मिलकर इसके लिए एक संगठन का गठन किया है। इंडिया फॉर फार्मर्स नामक इस संगठन के बैनर तले साईनाथ इस मार्च के लिए समर्थन जुटाने के लिए विभिन्न जगहों पर सभाएं कर रहे हैं। दिल्ली में ही अब तक उन्होंने जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, दिल्ली विश्वविद्यालय, अंबेडकर विश्वविद्यालय में छात्रों के सामने किसानों कि समस्याओं को रखा और उनसे मार्च में आने कि अपील की है। जेनयू में बोलते हुए साईनाथ ने कहा कि महाराष्ट्र का किसान आंदोलन इतने सालों में ऐसा पहला आंदोलन था जिसने मध्यमवर्ग को आकर्षित किया और मध्यवर्ग के विभिन्न हिस्सों ने इसमें अपना योगदान दिया। किसी ने जूते देकर, किसी ने प्रचार करके, किसी ने खाना देकर तो किसी ने किसानों के साथ शामिल होकर योगदान दिया। उन्होंने यह भी कहा कि यह किसानों की लड़ाई कि शुरुआत है क्योंकि किसानों कि लड़ाई सिर्फ कर्ज़ माफी और न्यूनतम समर्थन मूल्य के मिल जाने से खत्म नहीं होगी। यह लड़ाई नवउदारवादी नीतियों के खिलाफ है ।

इसी तरह अखिल भारतीय किसान सभा भी देश भर में सैकड़ों सभाएं कर रही है। जिनके जरिये इस आंदोलन को न सिर्फ किसानों बल्कि दूसरे वर्गों तक ले जाया जा रहा है। किसान सभा के उप सचिव विजू कृष्णन का कहना है कि “मोदी सरकार किसानों के लिए अच्छे दिन नहीं लाई बल्कि उसने किसानों के जीवन को बर्बाद किया है। मगर अब किसानों के इस संघर्ष के ज़रिये हम अच्छे दिन लाएँगे और इस सरकार को हराएंगे।’’

इसी महीने मुंबई में 5000 किसानों ने एक कन्वेन्शन किया था। इसमें महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चौहान और एनसीपी के नेता शरद पँवार शामिल थे। दोनों ही नेताओं ने किसानों के बिल का समर्थन किया। किसान सभा ने इस कन्वेन्शन में लॉन्ग मार्च के बारे में एक डॉक्यूमेंटरी दिखाई और 29 – 30 नवंबर के मार्च का आह्वान किया।

इसी तरह देश भर में स्टूडेंट्स फॉर फार्मर्स, यूथ फॉर फार्मर्स, टेकीज़ फॉर फार्मर्स, फोटोग्राफ़र्स फॉर फार्मर्स जैसे संगठन भी उभर कर आ रहे हैं। यह अपनी-अपनी तरह से किसानों की मदद करने का आह्वान कर रहे हैं। इसके साथ ही मोदी सरकार के सबसे बड़े समर्थक रहे रिटायर्ड आर्मी अफसर भी इस बार किसानों के साथ खड़े हुए हैं, यह अभूवपूर्व घटना है।

29 नवंबर को दिल्ली के बाहर 4 जगहों से मार्च शुरू होंगे। यह सब रामलीला मैदान पहुंचेंगे। रात को आर्टिस्ट फॉर फार्मर्स नामक बनाए गए संगठन की तरफ से किसानों के लिए कार्यक्रम होंगे। अगले दिन यह किसान रामलीला मैदान से संसद मार्ग तक का मार्च करेंगे। जानकारों की माने तो यह पूरा आंदोलन एक ऐतिहासिक आंदोलन होने वाला है। खास बात यह होगी कि इसमें न सिर्फ किसान बल्कि छात्र और मध्यवर्ग के नौकरीपेशा और अन्य लोग भी उनके साथ खड़े होंगे।

AIKS
AIKSCC
kisan sabha
agrarian crises
kisan mukti march

Related Stories

छोटे-मझोले किसानों पर लू की मार, प्रति क्विंटल गेंहू के लिए यूनियनों ने मांगा 500 रुपये बोनस

डीवाईएफ़आई ने भारत में धर्मनिरपेक्षता को बचाने के लिए संयुक्त संघर्ष का आह्वान किया

‘तमिलनाडु सरकार मंदिर की ज़मीन पर रहने वाले लोगों पर हमले बंद करे’

विभाजनकारी चंडीगढ़ मुद्दे का सच और केंद्र की विनाशकारी मंशा

हरियाणा: हड़ताली आंगनवाड़ी कार्यकार्ताओं के आंदोलन में अब किसान और छात्र भी जुड़ेंगे 

कृषि बजट में कटौती करके, ‘किसान आंदोलन’ का बदला ले रही है सरकार: संयुक्त किसान मोर्चा

केंद्र सरकार को अपना वायदा याद दिलाने के लिए देशभर में सड़कों पर उतरे किसान

ऐतिहासिक किसान विरोध में महिला किसानों की भागीदारी और भारत में महिलाओं का सवाल

महाराष्ट्र: किसानों की एक और जीत, किसान विरोधी बिल वापस लेने को एमवीए सरकार मजबूर

मुंबई महापंचायत: किसानों का लड़ाई जारी रखने का संकल्प  


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License