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"दीपक नाइट्राइट" गुजरात में ख़तरनाक औद्योगिक कचरा छोड़ रहा है
सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया है कि रसायनिक फ़र्म नकली बिलों को ग़ैर-मौजूदा व्यापारियों के नाम छापती है, और फिर उन्हें ट्रक चालकों के हवाले कर देती है ताकि स्वास्थ्य के लिए हानिकारक कचरे को साबरमती जैसी नदियों में फैंका जा सके।
उज्ज्वल कृष्णम
22 May 2019
Translated by महेश कुमार
"दीपक नाइट्राइट"

वडोदरा स्थित मानवाधिकार सामाजिक कार्यकर्ताओं ने रसायन निर्माता, "दीपक नाइट्राइट" पर अवैध रूप से मुख्यधारा के जल निकायों/नदियों और हवा को ख़तरनाक रूप से तबाह करने का आरोप लगाया है।

कंपनी के ख़िलाफ़ इस सामूहिक कार्रवाई के पीछे ग़ैर-सरकारी संगठन अंर्तराष्ट्रीय मानवाधिकार संरक्षण (भारत) का हाथ है जिसने उप्रोक्त कंपनी प्रमुख की ग़लतियों को उजागर करने वाले दस्तावेज़ न्यूज़क्लिक को दिए गए हैं।

शिकायत में 28 दिसंबर, 2018 को जीएसटी डिवीज़न-वडोदरा, वडोदरा कलेक्टर, गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (जीपीसीबी), केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, मुख्यमंत्री और गुजरात सरकार के पर्यावरण मंत्री को संबोधित किया गया था; ग़ैर सरकारी संगठन के प्रदेश अध्यक्ष दीपक सिंह सोलंकी ने लिखा, “दीपक नाइट्राइट के टैंकर नं. GJ06XX8662 को 26 दिसंबर, 2018 को सुबह 10:30 बजे नंदेसरी के जल निकाय में ख़तरनाक तरल पदार्थ छोड़ते हुए पाया गया। हमारी टीम ने जब ड्राइवर से बात की और उनके पास नकली बिल मिला [इनसेट] जिसमें पाया गया: बिल के मुताबिक़ शिपमेंट को कहीं कलोल जाना था लेकिन ट्रक जीएसीएल (गुजरात क्षार और रसायन लिमिटेड) कंपनी के पास अम्लीय तरल छोड़ता पाया गया। हमने तुरंत जीपीसीबी-वडोदरा के श्री गुप्ता और जीपीसीबी-गांधीनगर के के वी मिस्त्री को सूचित किया और उनके व्हाट्सएप नंबर पर बिल की एक प्रति भी भेजी।” शिकायतकर्ता ने "दीपक नाइट्राइट" के ख़िलाफ़ सख़्त कार्रवाई की मांग की है।

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सोलंकी ने न्यूज़क्लिक से कहा, "हमने सभी अपीलकर्ता अधिकारियों को लिखा, लेकिन कंपनी के ख़िलाफ़ अभी तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है।"

न्यूज़क्लिक द्वारा हासिल किए गए और समीक्षा किए गए एक कथित बिल में धोखाधड़ी के विवरण मौजूद हैं। शिपमेंट के लिए दिए गए पते पर ऐसी कोई कंपनी नहीं है। खोज करने पर पाया गया कि नारदीपुर नगर, जो शिपमेंट का पता है, वह एक आवासीय क्षेत्र है।
न्यूज़क्लिक द्वारा हासिल किए गए बिल पर छपे जीएसटीआईएन नंबर के माध्यम से कंपनी का विवरण भी खोजा गया। यह पाया गया कि कौशल नरेशभाई नायक पंजीकृत व्यवसाय का वास्तविक नाम है, लेकिन बिल में जीएसटीआईएन के अनुरूप खेप के रूप में श्री संत एक्सिम का उल्लेख किया गया है।

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उक्त बिल में दिखाई गयी लागत, काफ़ी संदिग्ध है। एक टन सोडियम सल्फेट लिक्विड (एसएसएल) की क़ीमत 10 रुपये है, तो इस प्रकार, 22.585 टन का एसएसएल 226.85 रुपये में उपलब्ध बताया गया है। बिल से पता चलता है कि एक टैंकर जीएसटी सहित 266 रुपये की क़ीमत के माल का परिवहन करता है। यहाँ यह ध्यान दिया जाना चाहिए कि प्रेषक और रिसीवर के बीच की दूरी 140 किमी है, जिसके लिए परिवहन लागत बहुत अधिक होगी और कोई भी कंपनी नुकसान नहीं उठाएगी।
एनजीओ ने आरोप लगाया है कि इसका मतलब यह है कि "दीपक नाइट्राइट" एक टन (जो 1,370 लीटर के बराबर है) को 10 रुपये में बेच रहा है, यानी 0.0074 रुपये/लीटर जो आम तौर पर 5 रुपये -7 प्रति लीटर के बाज़ार मूल्य पर बेचा जाता है।
आंकड़ों को देखते हुए, पर्यावरण बचाओ ज़मीन बचाओ समिति के कार्यकर्ता अल्पेश सेठ ने सोचा, “किसी भी कंपनी को इतना भारी नुकसान उठाने की क्यों ज़रूरत पड़ी? कोई भी कंपनी व्यावसायिक रसायन को क्यों डंप करेगी?”

कंपनी पर साज़िश का आरोप लगाते हुए, सोलंकी ने कहा, "कंपनी बिल पर किसी भी रसायनिक पदार्थ का नाम लिख देती है और ट्रक चालकों को कहती है कि आप इसे किसी भी पानी के सुनसान प्राकृतिक चैनल में छोड़ दो या उसे कभी-कभी साबरमती में भी छोड़ दिया जाता है।"

"दीपक नाइट्राइट" की कुल संपत्ति 2015 और 2016 में क्रमश: 125,868.57 और 112,355.36 लाख रुपये थी। 2017 में, इसकी कुल संपत्ति 1,78,748.46 लाख रुपये हो गयी थी, जो बाद में ज़बरदस्त मुनाफ़ा दिखाते हुए 2018 में 2,59,056.00 लाख रुपये तक पहुँच गई थी। ब्लूमबर्ग क्विंट द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, "दीपक नाइट्राइट" के शेयरों में 2019 में 16 प्रतिशत से अधिक की वृद्धि हुई है, अपनी साथ की कंपनियों को पछाड़ते हुए ऐसा किया था, क्योंकि विश्लेषकों को उम्मीद है कि रासायनिक निर्माता के नए फिनोल-एसीटोन संयंत्र से उसकी कमाई को बढ़ेगी। रिपोर्ट में कहा गया है कि "दीपक नाइट्राइट" ने अपनी इस बढ़ोतरी के लिए अभी तक ब्लूमबर्गक्विंट के सवालों के जवाब नहीं दिए हैं।

"दीपक नाइट्राइट" के पुराने रिकॉर्ड की खोज से पता चला कि रसायनिक कंपनी प्रदूषण के मामलों में लगातार उल्लंघन करने की आरोपी रही है। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के एक फ़ैसले [दीपक नाइट्राइट लिमिटेड बनाम गुजरात राज्य और 5 मई, 2004] में जिसे मुख्य न्यायाधीश की पीठ द्वारा दिया गया था, शीर्ष अदालत ने "दीपक नाइट्राइट" को प्रदूषण के परिणामस्वरूप व्यापक पर्यावरण को नुकसान पहुँचाने का दोषी पाया और भारी जुर्माना लगाया था। मुख्य न्यायाधीश ने नेशनल एनवायरनमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (एनईईआरआई) और एमिकस क्यूरी टीआर अन्धारूजिना के साथ सहमति व्यक्त की कि गुजरात औद्योगिक विकास निगम (जीआईडीसी) के औद्योगिक एस्टेट नंदेसरी में "दीपक नाइट्राइट" की औद्योगिक इकाइयों ने जीपीसीबी और प्रत्येक इकाइयों द्वारा निर्धारित मानदंडों के अनुरूप काम नहीं किया है और जीआईडीसी द्वारा निर्मित प्रवाह चैनल परियोजना में अपशिष्टों को नही बहा रहे थे। चैनल परियोजना ने इसके बदले माही नदी में अपशिष्टों का बहाया, जो अंततः समुद्र मिल जाती है।

न्युज़क्लिक द्वारा हासिल किए गए बॉम्बे स्टॉक एक्सचेंज के दस्तावेज़ के अनुसार, "दीपक नाइट्राइट" के पास भारत में पाँच विनिर्माण सुविधाएँ हैं, जिसमें से तीन विनिर्माण सुविधाएँ हैदराबाद में स्थित हैं। हैदराबाद में स्थित विनिर्माण सुविधाओं में से एक जो Di-Nitro Stillbene Disulphonic Acid के निर्माण में लगी थी। तेलंगाना राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (टीएसपीसीबी) ने उन्हें ग़ैर-अनुपालन के लिए कारण बताओ नोटिस जारी किया था और उसके बाद, टीएसपीसीबी के निर्देशों का पालन नहीं करने के लिए और हवा को प्रदूषित करने के लिए उक्त इकाई को 1 अक्टूबर, 2016 को बंद करने का आदेश जारी कर दिया गया। इसके बाद इस उद्योग की बिजली की आपूर्ति काट दी गई और कंपनी को क्लोज़र ऑर्डर की तारीख़ से सभी औद्योगिक गतिविधियों को बंद करने का निर्देश दिया गया। हालांकि, "दीपक नाइट्राइट" किसी भी तरह से 13 मार्च, 2017 को बंद करने के आदेश को निरस्त करने के आदेश को प्राप्त करने में सफ़ल रहे।
न्यूज़क्लिक ने वडोदरा में पानी के दूषित होने के बारे में कुछ स्थानीय लोगों से बात की। एमएस यूनिवर्सिटी ऑफ़ बड़ौदा में बीएससी के छात्र विवेक आनंद ने कहा, “विश्वामित्री को देखो, वह कितनी गंदी है। यह हमारे विश्वविद्यालय परिसर और स्थानीय चिड़ियाघर से होकर गुज़रती है। पानी की सतह पर रसायनिक झाग को इंगित कर दिखाता है कि यह कितना ख़तरनाक है।”

वडोदरा के साम क्षेत्र के निवासी 20 वर्षीय सचिन यादव ने न्यूज़क्लिक को बताया कि कई बार उन्होंने ट्रक ड्राइवरों को रत्रि बाज़ार के पीछे मंगल पांडे मार्ग पर प्लास्टिक कचरा डंप करते देखा है। उन्होंने आगे बताया, “यह क्षेत्र वास्तव में शहर के बाहरी इलाक़े में है। क्योंकि यह विश्वामित्री नदी के किनारे पर है, इसलिए  उन्हें बिना किसी ख़तरे के अपने तरल या ठोस कचरे को यहाँ जल्दी से निपटाने की छूट मिल जाती है। पानी के स्तर प्रदूषित करते हुए और उसे गिराते हुए ठोस और तरल कचरा पाने में बह जाता है। प्रशासन को इसकी जानकारी है लेकिन उनकी ओर से कोई कार्रवाई नहीं की गई है।”

पर्यावरण बचाओ ज़मीन बचाओ को पर्यावरण अधिकारों की रक्षा के लिए दीपक सिंह सोलंकी ने गठित किया है। उन्होंने एक वीडियो जारी करते हुए दिखाया कि कैसे "दीपक नाइट्राइट" की नंदेसरी इकाई में पीले रंग की गैस को हवा में छोड़ रही थी। वीडियो को स्थानीय लोगों द्वारा प्रमाणित किया गया था। 25 वर्षीय धर्मेंद्रभाई गोहिल, जो प्लांट से लगभग 500 मीटर दूर एक गाँव दामपुरा में रहते हैं, यह पूछे जाने पर कि क्या इन रसायनों के हवा में छोड़े जाने के कारण उन्हें कोई जलन महसूस होती है, उन्होंने कहा, “आँखों में जलन और खुजली यहाँ आम है। लेकिन हम क्या कर सकते है?"

न्यूज़क्लिक ने तब प्लांट के 1 किलोमीटर के दायरे के एक गाँव रूपपुरा का दौरा किया। प्लांट के बारे में बात करने वाले गांव के निवासी 70 वर्षीय उदय सिंह गोहिल ने कहा, “स्थिति डरावनी है। वे रात में कुछ हानिकारक गैस छोड़ते हैं, जिसमें एक भयानक और तीखी गंध होती है जिससे मेरे लिए साँस लेना मुश्किल हो जाता है। यह हमें सोने भी नहीं देती है।" उन्होंने कहा, "लगभग 30 साल पहले यह स्थान जीवन से भरपूर था। लेकिन अब आसपास कोई पक्षी भी नहीं चहकते हैं। गायों का जीवनकाल कम हो गया है और वे बिना किसी पुरानी बीमारी के मर जाती हैं।”

"हमने इसका विरोध किया था लेकिन कुछ नहीं हुआ। हमने पंचायत, स्थानीय पुलिस और मजिस्ट्रेट से भी संपर्क किया था, लेकिन सभी प्रयास व्यर्थ गए।” रायका गाँव के निवासी अजीतभाई राठोड ने कहा, जो संयंत्र के पास रहते हैं। 
न्युज़क्लिक ने 8 मई, 2019 को "दीपक नाइट्राइट" को ई-मेल किया था, जिसमें अनियमितताओं पर खुलासे के बारे में उनसे टिप्पणी मांगी गई थी। लगातार मेल भेजने के बावजूद, कंपनी ने अभी तक इसका जवाब नहीं दिया है।

लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं और Academia.edu में एक संपादक के रूप में कार्य करते हैं। वह भारत में सामाजिक असमानता और अधिकारों पर लिखते हैं।

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