NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन की हकीकत
खनन क्षेत्र के लोगों की वंचनाओं को कम करने के लिए बनी डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन की ज़मीनी हकीकत भ्रष्टाचार के ऐसे स्वरुप को दर्शाती है जिसमें सरकार और बड़े अधिकारी लोगों के भोलेपन का फायदा उठाकर वह काम करते हैं जिसका जुड़ाव खनन के वजह से पैदा हुई परेशानियों के हल से नहीं है।
अजय कुमार
20 Sep 2018
Mineral Mining

जिन ज़मीनों में कोयला मिलता है। वहां केवल कोयले का खनन का नहीं होता। उस जमीन के लोग कोयले का व्यापार भी करते हैं और इसे अपने आजीविका के आधार के तौर पर इस्तेमाल भी करते  है। हालांकि सरकारी तौर पर ऐसे काम करना गैरकानूनी होता है। लेकिन कोयले की मौजूदगी सीधे तौर पर दिखती है। इसलिए आजीविका की तौर पर इसका इस्तेमाल  किया जाता है। कोयले से लदे इन इलाकों में बूढ़ों से लेकर बच्चे तक कोयला चुनते हुए देखे जा सकते हैं।  सायकिल पर लादकर कोयले की खरीद बिक्री करना इनका रोज का काम है। इस तरह से इन लोग के पास कोयले खनन की वजह से आजिविका के दूसरे साधनों की कमी है। केवल कोयला ही कोयला इनकी नियति है। पानी से लेकर हवा तक में कोयला घुला हुआ रहता है। लोगों ने साफ सुथरे पानी की आशा छोड़ दी है। भूजल का स्तर नीचे चला गया है। पानी का रंग पीला हो गया है। पानी में कई तरह के तत्व तैरते रहते हैं। गन्दी हवा से पनपी बीमारियां यहां पार आम बात है यानी कि प्रदूषण यहां के जीवन का अहम हिस्सा है। लोगों में पोषण का भी खराब स्तर है। झारखंड का पश्चिम सिंहभूम,ओडिशा का सुंदरगढ़ और क्योंझर,मध्यप्रदेश का सिंगरौली यहां के सबसे खराब इलाके हैं। इन परेशानियों के हल के रूप में गाँव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र है लेकिन स्वास्थ्यकर्मियों का मिलना यहां असंभव है।  

खनिज संसाधन से लदे इलाकों में स्थानीय लोगों के जीवन में बेहतरी के लिए मार्च 2015 में भारत सरकार ने केंद्रीय खनन, द माइंस एंड मिनरल्स (डेवलपमेंट  एंड रेगुलेशन) में संशोधन कर डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन की स्थापना की गयी। यह एक गैर लाभकारी ट्रस्ट है। इस फाउंडेशन की स्थापना खनिज सम्पदा से जुड़े देश के हर जिलें में किए जाने का नियम है। इसका काम खनन इलाके से जुड़े लोगों के जरूरी जरूरतों को पूरा करने के लिए काम करना है। इसके लिए खननकर्ता रॉयल्टी के हिस्से का 10 फीसदी हिस्सा डिस्ट्रिक्ट मिनरल फॉउंडेशन में जमा करती है। जिसका इस्तेमाल इन इलाकों की परेशानियों को हल करने के लिए किया जाता है। अब तक फण्ड की लिहाज से इसमें 18500 करोड़ रूपये जमा हो चुके हैं। जो फंड के लिहाज से बहुत अधिक राशि है। 

सेण्टर फॉर एनवायरनमेंट (सीएसई) ने देश के 12  खनन राज्यों में डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन का विश्लेषण किया। इसमें आदिवासी अनुसूचित क्षेत्रों के तौर पर निर्धारित जिले भी शामिल किए गए और आंशिक तौर पर निर्धारित आदिवासी अनुसूचित क्षेत्र भी।  इस विश्लेषण में पाया गया कि डिस्ट्रिक्ट मिनरल फण्ड के खर्चे के लिए किसी भी जिले में ग्राम सभा से सलाह मश्विरा कर अनुमति नहीं ली गयी।  जबकि कानूनन ऐसा करना जरूरी होता है। जब यह सवाल जिला मजिस्ट्रेट से पूछा गया तो जिला मजिस्ट्रेट ने कोई भी जवाब नहीं दिया। और कई अधिकारियों ने तो आरटीआई के सहारे जवाब मांगने की सलाह दी। जिलाधिकारियों ने कोरम पूर्ति के लिए  वह दस्तावेज दिखाए जिसपर गाँव के सरपंच के हस्ताक्षर थे लेकिन ग्राम सभा के साथ की गयी प्रक्रियाएं नदारद थी। कई अधिकारीयों ने पीछे से जवाब दिया कि पूरी प्रक्रिया बहुत अजीब है। इससे किसी किस्म का सलाह निकाल पाना और मान पाना बहुत मुश्किल होता है। लोगों को डिस्ट्रिक्ट मिनरल फण्ड (डीएमएफ) जानकारी बिल्कुल नहीं है। यहां तक पंचायती राज संस्थाओं को डीएमएफ की शक्तियों और संसाधनों से परिचित नहीं करवाया गया है। तेलंगाना और राजस्थान में डीएमएफ के मामलें में उल्टी धारा चल रही है। डीएमएफ के नियमों में बदलाव किया गया है। डीएमएफ का पैसा खर्च करने के लिए सलाह मश्विरा देने की जिम्मेदारी ग्राम सभा की है लेकिन इन राज्यों में फैसला करने की शक्ति डीएमएफ समिति को सौंप दी गयी है। जिसमें केवल सांसद,विधायक और बड़े अधिकारियों को शामिल किया गया है।

डीएमएफ के तहत खनन से जुड़े जिलों में डीएमएफ  कार्यलय की स्थापना किए जाने का नियम है ताकि डीएमएफ के काम उचित तरीके से हो पाए।  लेकिन ज्यादातर जिलें में डीएमएफ कार्यालय की स्थापना भी नहीं की गयी है। ऐसी स्थिति में डीएमएफ के तहत आबंटित धन से वह काम नहीं  हो रहे हैं जो होने चाहिए। जैसे कि उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले के ग्रामीण इलाकों में बच्चों की स्थिति खराब है लेकिन इस क्षेत्र में डीएमएफ के तहत आबंटित 745 करोड़ रूपये में केवल 3 करोड़ रुपया महिला और बाल विकास के लिए आबंटित किया गया है। सीएसई की रिपोर्ट के तहत सिंगरौली ,पश्चिम सिंहभूम ,भीलवाड़ा में भी बिलकुल ऐसी ही स्थिति है ,जहां के पोषण संकेतक बहुत बुरे हालात दर्शाते हैं लेकिन इस मसले पर पैसा खर्च होने की स्थिति नहीं दिखती। झारखंड के धनबाद के लिए डीएमएफ के तहत 935 करोड़ की राशि आबंटित की गयी है लेकिन इस जिलें में झरिया की स्थिति सबसे बदतर है इसके लिए एक भी रुपया आबंटित नहीं है। बिलकुल इसी तर्ज पर डीएमएफ के तहत योजनाओं के आभाव में इसके तहत जगहों पर राशि आबंटित की गयी  है जिसका आदिवासी परेशानियों से बहुत कम जुड़ाव है जैसे कि ओडिसा के झारसुगड़ा में डीएमएफ फंड का इस्तेमाल हवाई अड्डे को बिजली देने में किया जा रहा है। 

ऐसा लगता है कि डीएमएफ के तहत सही योजनाएं इसलिए नहीं बनाई जा रही है ताकि फण्ड का इस्तेमाल जरूरी जगह पर न होते हुए  गैरजरूरी जगह पर होता रहे और भ्रष्टाचार की गंगोत्री बहती रहे। खनन प्रभावित लोगों के लिए बनाई गयी डीएमएफ देश में लागू हो रहे अन्य सरकारी नीतियों की तरह ही काम कर रही है। इसे मिलने वाली राशि उन जगहों पर खर्च नहीं हो रही है, जिन जगहों पर ख़र्च होनी चाहिए। प्रभावित इलाकों में डीएमएफ का अधिकांश हिस्सा  पेयजल ,स्वास्थ्य सुविधाओं ,पोषण और आजीविका के साधनों  पर खर्च होना चाहिए लेकिन ऐसा नहीं हो रहा है। इस तरह से खनन क्षेत्र के लोगों की वंचनाओं को कम करने के लिए बनी डिस्ट्रिक्ट मिनरल फाउंडेशन की ज़मीनी हकीकत भ्रष्टाचार के ऐसे स्वरुप को दर्शाती है जिसमें सरकार और बड़े अधिकारी लोगो के भोलेपन का फायदा उठाकर वह काम करते हैं जिसका जुड़ाव खनन के वजह से पैदा हुई परेशानियों के हल से नहीं है।  

Mineral mining
coal mines
Khanan

Related Stories

कोयले की कमी? भारत के पास मौजूद हैं 300 अरब टन के अनुमानित भंडार

ग्राउंड रिपोर्ट: देश की सबसे बड़ी कोयला मंडी में छोटी होती जा रही मज़दूरों की ज़िंदगी

भू-विस्थापितों के आंदोलन से कुसमुंडा खदान बंद : लिखित आश्वासन, पर आंदोलन जारी

देश के कई राज्यों में कोयले का संकट, मध्यप्रदेश के चार पॉवर प्लांट में कोयले की भारी कमी

हसदेव अरण्य: केते बेसन पर 14 जुलाई को होने वाली जन सुनवाई को टाले जाने की मांग ज़ोर पकड़ती जा रही है

कोयला खदानों की नीलामी और मज़दूर विरोधी नीतियों के ख़िलाफ़ तीन दिन की हड़ताल का व्यापक असर

झारखंड: कोल ब्लॉक नीलामी के ख़िलाफ़ झारखंड सरकार गई सुप्रीम कोर्ट, वामदलों ने दिया समर्थन

कोल खदानों के निजीकरण के खिलाफ हड़ताल पर जाएंगें कोयला श्रमिक

कोयला घोटाला : नवीन जिंदल सहित पांच के खिलाफ आरोप तय करने का आदेश

ऑस्ट्रेलिया के विवादित कोयला खदान में अडानी को हरी झंडी


बाकी खबरें

  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    मलियाना नरसंहार के 35 साल, क्या मिल पाया पीड़ितों को इंसाफ?
    22 May 2022
    न्यूज़क्लिक की इस ख़ास पेशकश में वरिष्ठ पत्रकार नीलांजन मुखोपाध्याय ने पत्रकार और मेरठ दंगो को करीब से देख चुके कुर्बान अली से बात की | 35 साल पहले उत्तर प्रदेश में मेरठ के पास हुए बर्बर मलियाना-…
  • Modi
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: मोदी और शी जिनपिंग के “निज़ी” रिश्तों से लेकर विदेशी कंपनियों के भारत छोड़ने तक
    22 May 2022
    हर बार की तरह इस हफ़्ते भी, इस सप्ताह की ज़रूरी ख़बरों को लेकर आए हैं लेखक अनिल जैन..
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : 'कल शब मौसम की पहली बारिश थी...'
    22 May 2022
    बदलते मौसम को उर्दू शायरी में कई तरीक़ों से ढाला गया है, ये मौसम कभी दोस्त है तो कभी दुश्मन। बदलते मौसम के बीच पढ़िये परवीन शाकिर की एक नज़्म और इदरीस बाबर की एक ग़ज़ल।
  • diwakar
    अनिल अंशुमन
    बिहार : जन संघर्षों से जुड़े कलाकार राकेश दिवाकर की आकस्मिक मौत से सांस्कृतिक धारा को बड़ा झटका
    22 May 2022
    बिहार के चर्चित क्रन्तिकारी किसान आन्दोलन की धरती कही जानेवाली भोजपुर की धरती से जुड़े आरा के युवा जन संस्कृतिकर्मी व आला दर्जे के प्रयोगधर्मी चित्रकार राकेश कुमार दिवाकर को एक जीवंत मिसाल माना जा…
  • उपेंद्र स्वामी
    ऑस्ट्रेलिया: नौ साल बाद लिबरल पार्टी सत्ता से बेदख़ल, लेबर नेता अल्बानीज होंगे नए प्रधानमंत्री
    22 May 2022
    ऑस्ट्रेलिया में नतीजों के गहरे निहितार्थ हैं। यह भी कि क्या अब पर्यावरण व जलवायु परिवर्तन बन गए हैं चुनावी मुद्दे!
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License