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दिल्ली दंगा: चार्जशीट में बुद्धिजीवियों-सामाजिक कार्यकर्ताओं के नाम, पर पुलिस कह रही है कि वे आरोपी नहीं हैं
चार्जशीट में CAA विरोधी आंदोलन पर पुलिस की वही राय सामने आ रही है, जो बीजेपी इस आंदोलन पर अपने आरोपों में जताती रही है।
तारिक़ अनवर
14 Sep 2020
दिल्ली दंगा

दिल्ली पुलिस ने उत्तरपूर्व-दिल्ली में हुई हिंसा के मामले में ख्यात बुद्धिजीवियों, सामाजिक कार्यकर्ताओं और राजनीतिक नेताओं के नाम सप्लीमेंट्री चॉर्जशीट में डाले हैं। पुलिस के मुताबिक़़, इन लोगों ने उन "प्रदर्शनकारियों" को उकसावा दिया, जिन्होंने नागरिकता संशोधन कानून (CAA) और प्रस्तावित NRC (नेशनल रजिस्टर ऑफ़ सिटीज़न) के खिलाफ़ "ग़ैरक़ानूनी" धरना दिया। इतना सब करने के बाद अब दिल्ली पुलिस कह रही है कि "डिसक्लोजर स्टेटमेंट में नाम डाले जाने से कोई व्यक्ति आरोपी नहीं बन जाता।"

दिल्ली पुलिस के प्रवक्ता अनिल मित्तल ने एक वक्तव्य में कहा, "यह बताना जरूरी है कि डिसक्लोज़र स्टेटमेंट को आरोपी व्यक्ति द्वार कहे अनुसार शब्दश: रिकॉर्ड किया जाता है। डिसक्लोजर स्टेटमेंट में नाम आने पर कोई व्यक्ति आरोपी नहीं बन जाता। इसके आगे कानूनी कार्रवाई करने के लिए पुष्टिकारक सबूतों की जरूरत होती है। फिलहाल मामला न्यायालय में विचाराधीन है।"

दिल्ली यूनिवर्सिटी की छात्रा गुलफिशा फातिमा ऊर्फ गुल, JNU की शोधार्थी देवांगना कलिता और नताशा नरवाल के डिसक्लोज़र स्टेटमेंट के आधार पर दिल्ली पुलिस ने CPM के जनरल सेक्रेटरी सीताराम येचुरी, आम आदमी पार्टी के विधायक अमानतुल्लाह खान, पूर्व कांग्रेस विधायक मतीन अहमद, स्वराज अभियान के नेता योगेंद्र यादव, DU के प्रोफेसर और सामाजिक कार्यकर्ता अपूर्वानंद और मशहूर अर्थशास्त्री जयती घोष के साथ-साथ फिल्मकार राहुल रॉय का नाम जाफराबाद पुलिस स्टेशन में 26 फरवरी, 2020 में दर्ज की गई FIR No। 50/2020 की सप्लीमेंट्री चॉर्जशीट में डाला है। यह FIR हत्या के प्रयास, हत्या, आपराधिक साजिश समेत अन्य गंभीर अपराधों के लिए दर्ज की गई है।

चार्जशीट के मुताबिक़, तीन में से दो आरोपी कलिता और नरवाल ने CrPC की धारा 161 के तहत अपने डिसक्लोज़र स्टेटमेंट पर हस्ताक्षर करने से इंकार कर दिया है। अब यह डिसक्लोज़र स्टेटमेंट कोर्ट में मान्य नहीं है। यह लड़कियां, महिलाओं के पिंजरा तोड़ आंदोलन से भी जुड़ी रही हैं।

मजेदार बात यह है कि कलिता और नरवाल के "डिसक्लोज़र" स्टेटमेंट समान हैं। यहां तक कि दोनों में वर्तनी और व्याकरण की गलतियां तक समान हैं। जैसे अंग्रेजी में Message को Massage और जयती घोष की जगह जयदी घोष लिखा गया है।

चार्जशीट में जांचकर्ताओं ने दावा किया है कि कलिता और नरवाल ने ना केवल सांप्रदायिक हिंसा में अपनी भूमिका को माना है, बल्कि बताया है कि कैसे घोष, अपूर्वानंद और रॉय ने उन्हें 'साजिश' के हिस्से के तौर पर CAA विरोधी प्रदर्शन करने के लिए मार्गदर्शन दिया। चार्जशीट में JNU के पूर्व छात्र उमर खालिद पर भी विरोध प्रदर्शनों को करने के लिए 'सुझाव (टिप्स)' देने और प्रदर्शनकारियों को भड़काने का आरोप है।

जैसा चार्जशीट में उल्लेख है, "आरोपी देवांगना कलिता ने पुलिस को बताया है कि 'CAA पास होने के बाद जयदी घोष, प्रोफेसर अपूर्वानंद, राहुल रॉय ने कहा कि अब हमें CAA/NRC के खिलाफ प्रदर्शन करना होगा, इनमें सरकार को उखाड़ने के लिए हम किसी भी हद तक जा सकते हैं। उमर खालिद ने भी CAA/NRC के खिलाफ प्रदर्शन करने के लिए कुछ सुझाव दिए थे।'

चार्जशीट में आगे कलिता के हवाले से कहा गया है, "इन लोगों के निर्देश पर उमर खालिद के यूनाइटेड अगेंस्ट हेट समूह, JCC (जामिया कोर्डिनेशन कमेटी) और पिंजड़ा तोड़ के सदस्यों ने दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में 20/12/2019 को प्रदर्शन शुरू कर दिए थे। पिंजड़ा तोड़ के दूसरे सदस्यों के साथ मिलकर मैंने चंद्रशेखर "रावण" द्वारा दरियागंज में बुलाए प्रदर्शन में हिस्सा लिया।  जब पुलिस ने जंतरमंतर की तरफ जाने की कवायद को रोकने की कोशिश की, तो हमने प्रदर्शनकारियों को हिंसक होने के लिए उकसाया, जिसके चलते वे उग्र हो गए और कुछ लोग घायल हो गए।"

चार्जशीट के मुताबिक नरवाल ने भी यही कहानी बताई।

चार्जशीट में अपूर्वानंद की भूमिका के बारे में पिंजड़ा तोड़ की दोनों संस्थापक सदस्याओं ने बताया है, "प्रोफेसर अपूर्वानंद ने उन्हें बताया है कि JCC दिल्ली में 20-25 जगहों पर प्रदर्शन शुरू करने वाली है। उमर खालिद और दूसरे लोगों के निर्देशानुसार हमने उत्तरपूर्व दिल्ली के स्थानीय लड़की गुलफिशा ऊर्फ गुल को चुना, उसके साथ तस्लीम और दूसरों ने CAA/NRC के विरोध में भीड़ इकट्ठा करने की जिम्मेदारी ली। हमने उनसे कहा कि रोड ब्लॉक करने के लिेए महिलाओं और बच्चों को भी साथ लाना होगा। इन प्रदर्शनों के चलते हम यह दिखाने में कामयाब रहेंगे कि सरकार मुस्लिम समुदाय के खिलाफ है और सरकार की छवि खराब करने में भी कामयाबी मिलेगी।"

पुलिस के मुताबिक़ गुलफिशा पिंजड़ा तोड़ के कार्यकर्ताओं के साथ शाहीन बाग, जंतर-मंतर और ITO में हुए CAA विरोधी प्रदर्शनों में आई।

पुलिस ने चार्जशीट में दावा किया है कि कलिता और नरवाल ने जांचकर्ताओं को बताया है कि घोष, अपूर्वानंद और रॉय ने पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI) और JCC के साथ समन्वय कर पिंजड़ा तोड़ की सदस्यों को उनका विरोध प्रदर्शन आगे बढ़ाने में मदद की।

दोनों आरोपियों के वक्तव्यों के मुताबिक़, "हमने अपनी शैक्षणिक योग्यताओं का फायदा आम मु्स्लिमों को भ्रमित करने में उठाया, हमने उनसे कहा कि हमें CAA/NRC के बारे में जानकारी है और यह मुस्लिमों के खिलाफ है।"

पुलिस के मुताबिक़, येचुरी और यादव का नाम गुलफिशा के डिसक्लोजर स्टेटमेंट में सामने आया है। इसमें कहा गया है कि इन लोगों ने CAA विरोधी प्रदर्शनों में हिस्सा लिया, ताकि भीड़ को उकसाया और इकट्ठा किया जा सके। पुलिस ने बताया कि गुलफिशा ने भीम आर्मी के प्रमुख चंद्रशेखर आजाद, वकील महमूद प्राचा, उमर खालिद और अमानतुल्लाह खान, मतीन अहमद और सदफ जैसे मुस्लिम नेताओं का नाम भी हिंसा के सह-साजिशकर्ताओं के तौर पर बताया।

पुलिस ने चार्जशीट में दावा किया कि फातिमा को पिंजड़ा तोड़ और JCC के कार्यकर्ताओं ने भड़काया था और 15 जनवरी से सीलमपुर में प्रदर्शन आयोजित किया गया। पुलिस के मुताबिक़ फातिमा से विरोध प्रदर्शन करने के लिए कहा गया ताकि "सरकार की छवि धूमिक की जा सके।"

जांचकर्ताओं ने फातिमा के हवाले से लिखा है, "भीड़ बढ़ना शुरू हो गई थी और योजना के मुताबिक, बड़े नेता और वकील इस भीड़ में आना शुरू हो गए, ताकि इस भीड़ को उकसाया और इकट्ठा किया जा सके। इन लोगों में उमर खालिद, चंद्रशेखर रावण, योगेंद्र यादव, सीताराम येचुरी, वकील महमूद प्राचा, चौधरी मतीन आदि शामिल थे। वकील प्राचा ने लोगों से कहा कि प्रदर्शन के लिए बैठना तुम्हारा लोकतांत्रिक अधिकार है, बाकी नेताओं ने भी CAA/NRC को मुस्लिम विरोधी बताकर समुदाय में असंतोष पैदा किया।"

दोनों डिसक्लोज़र स्टेटमेंटे के पूरी तरह से एक जैसे होने के बाद, कानूनी विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कलिता और नरवाल की जो अपराध स्वीकृति है, दरअसल उसे पुलिस ने खुद लिखा है।

एक सबसे अहम चीज पर ध्यान दिया जाना जरूरी है, चार्जशीट से जैसा पता चलता है, पुलिस ने CAA विरोधी प्रदर्शनों पर वह राय बनाई है, जो इन प्रदर्शनों के खिलाफ़ सत्ताधारी बीजेपी की थी। उदाहरण के लिए, गृहमंत्री अमित शाह समेत कुछ बीजेपी नेताओं ने कई मौकों पर कहा कि मासूम मुस्लिम लोगों को प्रदर्शनकारियों के नफरती भाषणों के जरिये, उनके मन में जहर भरकर बहकाया जा रहा है।" चार्जशीट में पुलिस ने पिंजड़ा तोड़ और JCC के कार्यकर्ताओं समेत दूसरे प्रदर्शनकारियों के लिए "देशद्रोही","दंगाई" जैसे शब्दों का तक इस्तेमाल किया है। बीजेपी नेताओं की तरह, चार्जशीट में पुलिस वालों ने भी आरोप लगाया है कि प्रदर्शनकारियों ने CAA के प्रावधानों की गलत व्याख्या कर यह दावा किया कि अगर CAA-NRC लागू होता है, तो मुस्लिमों को देश से बाहर फेंक दिया जाएगा।"

चार्जशीट की तरह ही पुलिस ने अंतिम रिपोर्ट में भी अपनी सहूलियत के हिसाब से कपिल मिश्रा जैसे बीजेपी नेताओं के भड़ाकाऊ भाषणों को नजरंदाज कर दिया और पूरी जिम्मेदारी CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों पर डाल दी। कपिल मिश्रा ने CAA विरोधी प्रदर्शनकारियों के ना हटने की दशा में खुलेआम हिंसा की धमकी दी थी।

बल्कि पुलिस के डिप्टी कमिश्नर की मौजूदगी में कपिल मिश्रा द्वारा हिंसा की धमकी दिए जाने के बाद जाफराबाद प्रदर्शन स्थल से ही 23 फरवरी की दोपहर को पहली सांप्रदायिक हिंसा की खबर आई थी। मौजपुर लालबत्ती के पास अपने भाषण में बीजेपी नेता मिश्रा ने कहा था कि अगर पुलिस प्रदर्शनकारियों को जाफराबाद प्रदर्शन स्थल से हटाने में नाकामयाब रहती है, तो खुद वह और उनके साथी मामले को अपने हाथ में ले लेंगे और उन्हें जबरदस्ती हटाएंगे। बता दें जाफराबाद लालबत्ती से जाफराबाद प्रदर्शन स्थल कुछ मीटर की दूरी पर ही था।

इस भाषण के कुछ समय बाद ही हिंसा शुरू हो गई और उत्तर-पूर्व दिल्ली के दूसरे इलाकों में फैल गई। इसके बावजूद कपिल मिश्रा के खिलाफ दिल्ली पुलिस ने कोई FIR दर्ज नहीं की।

दिल्ली दंगों में जैसी जांच हो रही है, अब वह भीमा कोरेगांव की घटना में हुई जांच की दिशा में ही आगे बढ़ रही है। अकादमिक जगत के लोग, बुद्धिजीवी और नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं को सवाल-जवाब के लिए बुलाया जा रहा है और एक के बाद एक उन्हें जेल भेजा जा रहा है। सामाजिक कार्यकर्ता हर्ष मंदर और प्रोफेसर अपूर्वानंद के बाद अब येचुरी और घोष को दंगों की "साजिश" में घसीट लिया गया है।

JNU में अर्थशास्त्र पढ़ाने वाली घोष अकादमिक जगत की एक जानी-मानी हस्ती हैं और उन्होंने कई किताबें लिखी हैं। न्यूयॉर्क टाइम्स ने हाल में भारत की आखिरी क्वार्टर में गिरती GDP पर उनका उद्धरण दिया था। वह फिलहाल JNU में सेंटर फॉर इक्नॉमिक्स स्टडीज़ एंड प्लानिंग की अध्यक्ष हैं। उनके अध्ययन का मुख्य केंद्र अंतरराष्ट्रीय अर्थशास्त्र, विकासशील देशों में रोज़गार की दशा-दिशा, मेक्रोइकनॉमिक्स पॉलिसी और लिंग व विकास से जुड़े मुद्दे हैं।

वह संयुक्त राष्ट्रसंघ और अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन जैसे कई जाने-माने संगठनों की सलाहकार हैं। उन्होंने भारत में कई राज्य और राष्ट्रीय सरकारों को वक़्त-वक़्त पर परामर्श दिया है और उनमें कई पदों पर रही हैं। घोष 2004 में आंध्रप्रदेश कृषक कल्याण आयोग की अध्य थीं। 2005 से 2009 के बीच वे भारतीय राष्ट्रीय ज्ञान आयोग की सदस्य भी थीं, जो उस वक्त के प्रधानमंत्री को रिपोर्ट करता था।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर क्लिक करें।

Delhi Riots: Cops Name Eminent Academics and Activists in Chargesheet, But Say They’re Not Accused

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