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एयर इंडिया की बिक्रीः कैसे सार्वजनिक क्षेत्र के उद्यमों को योजनाबद्ध तरीके से बर्बाद किया जाये
कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार के विनाशकारी फैसले के विरोध के बावजूद बीजेपी की एनडीए सरकार द्वारा एयर इंडिया को बेचा जा रहा है। कंपनी के कर्मचारियों का कहना है कि इसके ख़िलाफ़ वे संघर्ष जारी रखेंगे।
प्रणेता झा
31 Mar 2018
एयर इंडिया बिक्री
Newsclick Image by Nitesh

65 वर्ष पुराने राष्ट्रीय विमानन कंपनी एयर इंडिया की कहानी इस बात का सबूत है कि किस तरह कोई कंपनी पहले तबाह हो जाती है और फिर उसे बेच दिया जाता है।

उधर वर्ष 1953 में किए गए इस एयरलाइन के राष्ट्रीयकरण के कर्मचारी निजीकरण का लगातार विरोध कर रहे हैं।

28 मार्च को बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार ने एआई के 76 प्रतिशत हिस्सेदारी बेचने की घोषणा की है जो भारत सरकार का था। साथ ही एआई की सहायक कंपनी एयर इंडिया एक्सप्रेस लिमिटेड का 100 % और 50% इक्विटी एआईएसएटीएस के संयुक्त उद्यम के बेचने की घोषणा की है। इस प्रस्ताव में ज़ाहिर तौर पर प्रबंधन नियंत्रण का हस्तांतरण भी शामिल है।

क़रीब 52,000 करोड़ रुपए का भारी कर्ज और भारी शुद्ध घाटे (कर के बाद) को तथाकथित कारण बताया गया है। हालांकि, एयर इंडिया पिछले तीन वर्षों से (2016-17 में 29.7 करोड़ रुपए) परिचालन लाभ में बढ़ोतरी दर्ज कर रही है और अपना ऋण चुकाने में कभी भी चूक नहीं किया है।

इस क़र्ज़ में क़रीब 22,000 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ बेवजह विमानों की ख़रीद की वजह से हुई है जो कि यूपीए-1 के शासनकाल में नागरिक विमानन मंत्री प्रफुल्ल पटेल के अधीन की गई थी। इसके अलावा इसी सरकार के अधीन स्पष्ट रूप से कई घातक नीतिगत फैसले संचित घाटे के लिए ज़िम्मेदार हैं। कंपनी के प्रबंधन की इसमें कोई ग़लती नहीं है।

इस बीच बीजेपी की अगुवाई वाली एनडीए सरकार इस सौदे को निजी खरीदार - भारतीय या विदेशी (सीपीएसई या केंद्र सरकार के स्वामित्व वाली सहकारी समितियां इस निलामी से दूर है) के लिए आसान कर रही है। इस क्रम में सरकार क़र्ज़ के बोझ का 50% सहन करेगी।

भारत सरकार के स्वामित्व वाली अन्य ईकाई एयर इंडिया इंजीनियरिंग सर्विस, एयर इंडिया एयर ट्रांसपोर्ट सर्विस, एयरलाइन एलाइड सर्विस और होटल कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया को एसपीवी को स्थानांतरित कर दिया जाएगा।

इस रिपोर्ट के अनुसार वास्तव में एआई को कम क़ीमत पर बेचे जाने की संभावना है। रिपोर्ट में एआई का एंटरप्राइज वैल्यू (ईवी) 45,000 करोड़ रुपए का अनुमान लगाया गया है,जिसमें से ज्यादातर ऋण और पट्टे के किराये के पूंजीगत मूल्य से संतुलित किया जाएगा।

इच्छुक बोलीदाताओं के लिए पात्रता मानदंड 5000 करोड़ रूपए की न्यूनतम संपत्ति और तीन पूर्ववर्ती वर्षों के लिए शुद्ध लाभ है। हालांकि, भारतीय कंपनियों के लिए नियम में छूट दिए गए हैं जो कि अकेले या एक संघ बनाकर बोली लगा सकते हैं।

वास्तव में यह कहा जाता है कि इंडिगो एयरलाइंस अकेले बोली लगाने योग्य होगा और वास्तव में यह सार्वजनिक रूप से कुछ समय पहले एआई एयरलाइन के संचालन को खरीदने में दिलचस्पी व्यक्त कर चुका है। बताया जाता है कि इंडिगो एयरलाइंस में प्रफुल्ल पटेल की हिस्सेदारी है।

इस सरकार ने अपनी वेबसाइट पर एक प्रारंभिक सूचना ज्ञापन अपलोड कर दिया है जिसमें इच्छुक बोलीदाताओं से उनकी मर्ज़ी जानने की कोशिश की गई है।

एआई को 30,000 करोड़ रुपए का बेलआउट पैकेज मिला है जो सालाना 3,000 करोड़ रुपए मिल रहा है। साल 2012 में यूपीए सरकार ने बेलआउट पैकेज का ऑफर दिया था। और फिर भी एआई लाभ हासिल कर रहा है और "अपने समग्र वित्तीय और परिचालन प्रदर्शन में लगातार सुधार" कर रहा है। इस साल फरवरी में लोकसभा में वर्तमान नागरिक उड्डयन मंत्री जयंत सिन्हा ने इसे स्वीकार किया था।

लेकिन एयर इंडिया के साथ आखिर ग़लत क्या हुआ?

अब तक यह व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि प्रफुल्ल पटेल इस राष्ट्रीय एयरलाइेंस को नुकसान पहुंचाने के ज़िम्मेदार माने जाते हैं।

नेशनलिस्ट कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के एक नेता और वर्तमान में अखिल भारतीय फुटबॉल महासंघ के अध्यक्ष पटेल ने साल 2004 में नागरिक उड्डयन राज्य मंत्री के रूप में पदभार ग्रहण किया था।

साल 2005 में एआई के तत्कालीन सीएमडी वी थुलासीदास ने एक इंटरव्यू में कहा था कि "... ये सरकार विमान हासिल करने के लिए एआई की योजनाओं को सहयोग करती है। यह चाहती है कि एआई का विकास हो। इसके लिए नागरिक उड्डयन मंत्रालय और प्रधानमंत्री से निर्देश मिला है।"

थुलासीदास ने कहा था कि "पहले की योजना के अनुसार हमें 28 विमानों का अधिग्रहण करना था जिसमें कम क्षमता वाली 18 विमान और अधिक क्षमता वाली 10 विमान थें। यह अब वैध नहीं है। हमारी वर्तमान योजना में 68 विमानों का अधिग्रहण करना है जिनमें से एआई के लिए 50 बड़े विमान और एअर इंडिया एक्सप्रेस के लिए 18 छोटे विमान होंगे।

थुलसीदास ने एआई के विस्तार और प्रतिस्पर्धी बनने को लेकर भी बातचीत की। उन्होंने कहा कि 'अगर यह प्रतिस्पर्धा को स्वीकर नहीं कर सकता है तो उसे इस व्यवसाय में बने रहने का कोई अधिकार नहीं है।'

वास्तव में, सरकार न केवल "मददगार" थी बल्कि एआई को 50,000 करोड़ रुपए की लागत से 68 विमानों के लिए ऑर्डर देने के लिए कुछ मजबूर किया था। वह भी ऐसे समय में जब कंपनी का सालाना कारोबार 7,000 करोड़ रुपए था।

बाद में इसे साल 2011 में भारत के नियंत्रक तथा महालेखा परीक्षक (सीएजी) की एक रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया और आलोचना की गई।

अब भी आईए पर सालाना 4,000 करोड़ रुपए के ब्याज का बोझ है- और यह भी कहा जाता है कि एआई कभी ब्याज भुगतान करने में चूक नहीं की है।

तब साल 2006 में सरकार ने सरकार द्वारा संचालित दो एयरलाइनों को विलय करने की प्रक्रिया शुरू कर दी थी। हालांकि दोनों ही- एआई और घरेलू सेवा देने वाली कंपनी इंडियन एयरलाइंस (आईए) लाभ अर्जित कर रही थी। दोनों ही इसके विरोध में थी।

वास्तव में इंडियन एयरलाइंस 42% शेयर के साथ बाजार में अग्रणी था। साल 2007 में इस महाविलय सौदे की शुरूआत 10,000 करोड़ रुपए के नुकसान के साथ हुई।

न्यूज़क्लिक से बात करते हुए एयर कॉर्पोरेशन कर्मचारी संघ (8,000 से अधिक एआई कर्मचारियों का एक पंजीकृत संघ) के जनरल सेक्रेटरी जेबी कादियन ने कहा, "इंडियन एयरलाइंस और एयर इंडिया का विलय एआई के ताबूत में आख़िरी कील के तौर पर था।"

कादियान ने कहा "इंडियन एयरलाइंस काफी सशक्त था। लेकिन सरकार घरेलू सरकारी मज़बूत एयरलाइन नहीं चाहती थी। अन्यथा निजी एयरलाइंस लाभ कैसे करेगी? यही एक रास्ता था निजी कंपनियों को बढ़ावा देने का ताकि भारतीय विमान के बाज़ार से भारतीय एयरलाइंस का नाम ग़ायब हो जाए।"

ठीक इसी समय (2004-2005) सरकार सबसे आकर्षक अंतरराष्ट्रीय मार्गों - विशेष रूप से खाड़ी मार्गों - को निजी और विदेशी एयरलाइंस के लिए "द्विपक्षीय" उदारीकरण के नाम पर छोड़ने के लिए काम कर रही थी (दो देशों के बीच व्यावसायिक हवाई यात्रा समझौता दोनों को निश्चित संख्या में उड़ान संचालित का अधिकार देता है।)

कादियान ने कहा कि "इंडियन एयरलाइंस को खाड़ी मार्गों से अपनी आय का 40% राजस्व मिलता था। यह 10%,तक रह गया।"

उन्होंने कहा, "परिणामस्वरूप, द अमीरात की तरह विदेशी एयरलाइंस और यहां तक कि निजी भारतीय कंपनियां जैसे जेट एयरवेज हावी होने लगी।"

इसे भी साल 2011 के कैग रिपोर्ट में बताया गया था।

"तो आप देखिए कि शामिल किए गए इन सभी विमानों ने पहले से आईए को क़र्ज़ादार बना दिया था, और इसके बाद मुनाफेवाली उन मार्गों पर निजी एयरलाइंस को अनुमति देकर आईए की उड़ानों में कटौती हुई इस तरह आईए अधिक बोझ तले दब गया।"

वास्तव में यही कारण था कि साल 2013 में 'दि डिसेंट ऑफ एयर इंडिया’ नामक इस पुस्तक को लेखक के ख़िलाफ़ पटेल द्वारा मानहानि मामला दर्ज कराने के बाद वापस लिया गया था। इस पुस्तक के लेखक जितेंद्र भार्गव थें जो कि एयर इंडिया के कार्यकारी निदेशक रह चुके हैं।

पिछले साल मई महीने में एक्टिविस्ट व अधिवक्ता प्रशांत भूषण की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद सीबीआई ने यूपीए सरकार में विमानों की अधिक संख्या में ख़रीदारी की कथित अनियमितताओं, पट्टे पर विमान देने और मुनाफेवाली मार्गों पर संचालन बंद करने को लेकर निजी व्यक्ति और नागरिक उड्डयन मंत्रालय के अज्ञात अधिकारियों के ख़िलाफ़ तीन एफआईआर दर्ज किया था। इसके साथ ही आईए और एआई के 2007 विलय में भी प्रारंभिक जांच शुरू हुई।

पिछले साल मई में ही नीति आयोग ने एयर इंडिया के पूर्ण निजीकरण की सिफारिश की एक रिपोर्ट तैयार की थी, जबकि पिछले साल जून में एनडीए ने एयरलाइंस के रणनीतिक विनिवेश के लिए "सैद्धांतिक अनुमोदन" दिया था।

लेकिन एआई के कर्मचारियों की लड़ाई जारी है। जेबी कादियन ने न्यूज़़क्लिक को बताया कि एयर कॉर्पोरेशन कर्मचारी संघ के साथ-साथ अन्य संघों ने एयर इंडिया के निजीकरण के फ़ैसले का विरोध जारी रखेंगे।

उन्होंने कहा कि "कंपनी में कर्मचारियों की बड़ी हिस्सेदारी है। लेकिन इस दौरान कर्मचारियों के यूनियनों से एक बार भी परामर्श नहीं किया गया है जबकि ये सभी विनाशकारी फैसले लिए जा रहे हैं।"

"किसी निजी कंपनी का अपने श्रमिकों के प्रति कोई दायित्व नहीं होगा, न ही आरक्षण जैसे सामाजिक दायित्व होंगे। लेकिन हम हार नहीं मानेंगे, हम अपने संघर्ष को और तेज़ करेंगे। "

29 मार्च 2018 को सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियंस (सीआईटीयू) ने इस क़दम की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया था। इस बयान में ख़ास तौर से "एयर इंडिया के भावी ख़रीदारों को मौजूदा कर्मचारियों को केवल एक वर्ष के लिए ही रखे जाने का दायित्व होने" को लेकर निंदा की गई।

सीआईटीयू ने कहा कि "श्रमिक और कर्मचारी जो वास्तव में संगठन चला रहे हैं पहले कभी भी ऐसा उनका अपमान नहीं हुआ।"

सीआईटीयू के महासचिव तपन सेन ने प्रेस विज्ञप्ति में कहा कि "राष्ट्रीय विमान को टुकड़ों- टुकड़ों में बेचा जा रहा है, जैसे एयर इंडिया, एआई-सैट, एआई-एक्सप्रेस आदि।"

सीआईटीयू ने कहा कि हालांकि एआई विदेशी कंपनियों के साथ पार्टनरशिप में निजी कंपनियों द्वारा अधिग्रहण कर लिया जाएगा "एआई-सैट, एआई एक्सप्रेस, एलायंस एयर, आदि जो कि लगातार आसानी से मुनाफा कमा रही है वह अब एसयूवी के माध्यम से लाभ अर्जित करने वाली निजी कंपनी हो जाएगी और क़र्ज़ का बड़ा हिस्सा तथा जवाबदेही सरकार पर ही रहेगी।"

"राष्ट्रीय ख़जाने पर भारी नुकसान होने जा रहा है।"

इसके अलावा, "कई प्रमुख निजी कंपनियों, जो बिखरे हुए एयर इंडिया की ख़रीदार होने वाली है, के विपरीत एयर इंडिया ने कभी भी क़र्ज़ चुकाने में चूक नहीं की।"

एकजुट संघर्ष के माध्यम से एआई के निजीकरण के "विनाशकारी" कदम का विरोध करने के लिए कर्मचारियों और लोगों से आह्वान करते हुए सीआईटीयू ने कहा कि "निजीकरण के लिए जारी नीति राष्ट्रीय संपत्तियों को बेचने की प्रक्रिया राष्ट्रीय हितों को नुकसान पहुंचाने के अलावा और कुछ भी नहीं है।"

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