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भारत
राजनीति
गौतम का संदेश : ‘हम लड़ेंगे साथी कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता’
"मेरे सभी करीबी और प्यारे साथियो, आइए हम सभी अपनी संवैधानिक आजादी लागू करने और हर तरह के उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ लगातार आवाज़ बुलंद करते रहें..."
न्यूजक्लिक रिपोर्ट
02 Oct 2018
गौतम नवलखा

एक अर्बन नक्सल का बयान

(नज़रबंदी से रिहाई के बाद गौतम नवलखा का संदेश)

मैं  सुप्रीम कोर्ट के सहमत और असहमत न्यायाधीशों को उनके फैसले के लिए शुक्रिया अदा करना चाहता हूं जिनकी वजह से इस मामले में राहत पाने के लिए हमें चार सप्ताह का समय दिया गया और मैं जन भावना से जुड़े उन वकीलों और नागरिकों का भी शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ जिन्होनें हमारी तरफ से एक साहसिक लड़ाई लड़ी। इन यादों को मैं हमेशा संजोकर रखूंगा। इस एकजुट प्रतिबद्धता से मैं अभिभूत हूँ जो सीमाओं के पार जाकर हमारे समर्थन में गोलबंद हुईं।

दिल्ली उच्च न्यायालय से मैंने अपनी आजादी जीती है। मैं इससे रोमांचित महसूस कर रहा हूं।

मेरे सबसे अजीज दोस्तों और वकीलों ने, जिनकी अगुआई कानूनी और लॉजिस्टिक टीम के अन्य दोस्तों के साथ नित्य रामकृष्णन, वारिसा फरासत, अश्वत्थ  कर रहे थे, मेरी आजादी के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया। मुझे नहीं पता कि मैं अपने दोस्तों और उन वरिष्ठ वकीलों का, जिन्होंने शीर्ष अदालत में मेरे पक्ष में खड़े होकर लड़ाई लड़ी, का कर्ज कभी चुका पाऊंगा? घर में नजरबंद होने की अवधि को प्रतिबंधों के बावजूद मैंने अच्छी तरह से इस्तेमाल किया है, इसलिए मेरे भीतर कोई गिला-शिकवा भी नहीं है।

हालांकि, मैं भारत में अपने सह आरोपियों और हजारों अन्य राजनीतिक कैदियों को नहीं भूल सकता जो अपने वैचारिक प्रतिबद्धतों की वजह से या गैरकानूनी गतिविधि (रोकथाम) अधिनियम- यूएपीए के तहत झूठे आरोपों में जेलों में कैद करके रखे गए हैं। ऐसे मामलों में कैद अन्य साथी आरोपी जेलों के भीतर हो रही अपनी बदसलुकियों के खिलाफ भूख हड़ताल पर चले गए हैं और मांग की है कि उन्हें पूरी सूझबूझ के साथ बने राजनीतिक कैदी/ कैदियों के रूप में पहचाना जाए। अन्य राजनीतिक कैदियों ने भी बार-बार भूख हड़ताल पर बैठकर इसकी मांग की है। उनकी आजादी और उनके अधिकार नागरिक स्वतंत्रता और लोकतांत्रिक अधिकार आंदोलन के लिए बेशकीमती हैं।

बावजूद इसके जश्न मनाने का एक सबब है।

मैं एलजीबीटी के कामरेडों को सलाम करता हूं कि एक लंबी जद्दोजहद के बाद हाल में उन्हें ऐतिहासिक कामयाबी मिली जिसने एक ऐसे शानदार सामाजिक आंदोलन का रास्ता खोल दिया जैसा बाबा साहेब आंबेडकर ने जाति प्रथा के सफाये के लिए खोला था जिसने हम सब को ‘शिक्षित होने, संगठित होने और आंदोलन करने’ की प्रेरणा दी। आप तक हमारी एकजुटता पहुंचने में थोड़ी देर जरूर हुई लेकिन आपकी दृढ़ता ने हमें खुद को बदलने के लिए मजबूर किया। आपने हमारे चेहरों पर मुस्कान वापस लौटा दी और हमारी जिंदगी में इंद्रधनुष के रंगों को बिखेर दिया।

इसके साथ ही भीम आर्मी के चंद्रशेखर रावण और उनके साथी सोनू और शिवकुमार की निवारक हिरासत (रासुका) से आजादी से हमें खासतौर पर बहुत राहत मिली क्योंकि इससे हमारे समाज में जड़ जमा कर बैठे जातिवादी अत्याचार के खिलाफ प्रतिरोध की जमीनी ताकत का शिद्दत के साथ एहसास होता है।

मैं जेएनयू छात्र संघ के अपने दोस्तों के संयुक्त वामपंथी पैनल की ऐतिहासिक जीत को सलाम करता हूं जिसने एक बार फिर साबित किया कि मिलजुल कर प्रतिरोध करना ही आज के वक़्त की जरूरत है। केवल इस तरीके से ही हम किसी भी उत्पीड़न का सामना कर सकते हैं और इसके लिए जबरदस्त जन समर्थन जुटा सकते हैं।

दोस्तों, सच्चाई और ईमानदारी से लड़े शब्द गोली और गाली से ज़्यादा ताकतवर होते हैं, आज ये साबित हो रहा है। हमारे गीत और कविताओं  में जोश है, और हमरे काम और लेखनी का आधार तर्क और तथ्य हैं।मेरे सभी करीबी और प्यारे साथियो, आइए हम सभी अपनी संवैधानिक आजादी लागू करने और हर तरह के उत्पीड़न और शोषण के खिलाफ लगातार आवाज़ बुलंद करते रहें...

एक बार फिर पाश  के ये अनमोल बोल याद करें :

‘हम लड़ेंगे साथी

कि लड़े बगैर कुछ नहीं मिलता

हम लड़ेंगे

कि अभी तक लड़े क्यों नहीं

हम लड़ेंगे

अपनी सजा कबूलने के लिए

लड़ते हुए मर जाने वालों की

याद जिन्दा रखने के लिए

हम लड़ेंगे साथी।’ 

लाल सलाम!

गौतम

सोमवार, 1 अक्टूबर 2018 

gautam navlakha
human rights activists
arban naxal
bheema koregaon

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