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भारत
राजनीति
गुजरात चुनाव : बीजेपी के कार्यकर्ताओं को प्रचार के दौरान भगाया गया
चुनावों में जीत तो दूर की बात है पार्टी को बहुत से चुनाव क्षेत्रों में प्रचार करने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को कई कॉलोनियों से बाहर खदेड़ा जा रहा है.
तारिक़ अनवर
22 Nov 2017
Translated by ऋतांश आज़ाद
गुजरात चुनाव

कोई भी चीज़ स्थायी नहीं रहती ये कहावत गुजरात में बीजेपी के लिए सच साबित होती दिख रही है. ये कल्पना करना भी मुश्किल था कि बीजेपी उस राज्य में मुश्किल में पड़ सकती है जहाँ वो पिछले 2 दशक से राज कर रही है.

चुनावों में जीत तो दूर की बात है पार्टी को बहुत से चुनाव क्षेत्रों में प्रचार करने में भी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है. चुनाव प्रचार के दौरान बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को कई कॉलोनियों से बाहर खदेड़ा जा रहा है.

कुछ कॉलोनियों के दरवाज़े पर तो बीजेपी के कार्यकर्ताओं को चेतावनी देते हुए लिखा गया है कि उनका प्रवेश यहाँ निषेध है और बीजेपी के लोगों के लिए यहाँ धारा 144 लगी हुई है. अगर बीजेपी के कार्यकर्ता फिर भी सोसाइटी में दाखिल हो जाते हैं तो उनके पर्चे फाड़े जा रहे हैं और उनके खिलाफ नारे भी लगाये जा रहे हैं.

इसी तरह का एक बैनर सूरत के वराचा इलाके की अवन्ती सोसाइटी में देखा गया जो कि एक पटेल बहुल इलाके में हैं. बैनर पर लिखा था “वोट माँगने आये बीजेपी के भिखारियों को सूचित किया जाता है कि अवन्ती सोसाइटी में उनका प्रवेश निषेध है, यहाँ उनपर धारा 144 लगी हुई है. क्योंकि बीजेपी का कोई कॉर्पोरटर, MLA या MP यहाँ 5 सालों में नहीं आया, इसीलिए उनका वोट माँगने के लिए यहाँ आना मना है.”

न्यूज़क्लिक के पास उपलब्ध एक विडियो में बीजेपी नेताओं और कार्यकर्ताओं को पाटीदारों द्वारा नारे देते हुए भगाया जा रहा है. पाटीदार प्रदर्शनकारी “बीजेपी वापस जाओ” , “सरदार लड़े थे गोरों से, हम लड़ेंगे चोरों से’’ और “सरदार तुम्हारा शेर है, हम तुम्हारे बाप हैं”, “और जय सरदार, जय पाटीदार” के नारे लगाते हुए दिख रहे हैं.

 

वरच्छा क्षेत्र में तीन विधानसभा सीटें हैं - वरच्छा, करंज और कामरेज - सभी भाजपा के गढ़ हैं. 2015 में पाटीदार आंदोलन पर हुई बड़े पैमाने पर हुए पुलिस दमन में 10 युवाओं की मौत हुई. इसके बाद राज्य के 13% मतदाता - पाटीदारों ने बीजेपी को आगामी चुनावों में सबक सिखाने का फैसला किया है।

मेहसाना जिले के निवासी भावेश पटेल ने न्यूज़क्लिक को बताया  "हम भाजपा के पारंपरिक मतदाता थे. हम पार्टी चुनाव के लिए चंदा दिया करते थे और उन्हें ज़रूरत के समय हर तरह का समर्थन देते थे। सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में आरक्षण की हमारी माँगों को सुनने के बजाय,  भाजपा ने हमारे विरोध प्रदर्शन को कुचलने के लिए बल का इस्तेमाल किया। पुलिस ने हमारे घरों में प्रवेश किया और महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार किया। हम इसे बर्दाश्त नहीं कर सकते हैं और इस चुनाव में, हम भाजपा को सबक सिखाएंगे.”

मेहसाणा, जहाँ पाटीदार अनामत आंदोलन समीति (पीएएएस) के नेता हार्दिक पटेल ने राज्यव्यापी कोटा आंदोलन शुरू किया था.  इसका सात विधानसभा क्षेत्रों - मेहसाना (शहर), विसनगर, ऊंझा, विजापुर, कडी, बेचराजी और खेरालू में बहुत असर था।
इन सभी सीटों पर पाटीदारों का वर्चस्व रहा है और इस इलाके में दशकों से कोई कांग्रेस विधायक नहीं चुना गया है। आरक्षण के विरोध के बाद उठे राजनीतिक ज्वार के बाद चीज़ें बदल गई हैं। गुजरात में पाटीदारों के सीटों पर दबदबे वाली भाजपा के गढ़ में सेंध लग गयी और कांग्रेस को पुनर्जीवन मिल गया है। अनुमानों के अनुसार पटेल-वर्चस्व वाले निर्वाचन क्षेत्र 40 से अधिक माने जाते हैं. गुजरात में लगभग 40 से ज़्यादा निर्वाचन क्षेत्र पटेल बहुल हैं.

ऐसी खबर आयी हैं कि बीजेपी की राज्य इकाई ने 25 पटेल-वर्चस्व वाली सीटों पर हार की आशंका ज़ाहिर करते हुए हाई कमान को एक रिपोर्ट सौंपी है। यह रिपोर्ट गुजरात गौरव लोक संपर्क यात्रा में शामिल काडर के इनपुट पर आधारित थी। पार्टी को राजकोट, अमरेली, महेसाणा और सूरत जिले में अपने कुछ गढ़ों में सत्ता खो देने का डर है।

पुलिस की कार्यवाही शुरू करने के बाद आंदोलन की अगवाही करने वाले हार्दिक को देशद्रोह के कानून के तहत गिरफ्तार किया. इसके बाद यह 22 साल की उम्र का यह युवा प्रसिद्धि के शिखर पर चढ़ गया. जब हर्दिक की लोकप्रियता में वृद्धि हुई,  उन्हें उत्तर और दक्षिण गुजरात में अभूतपूर्व समर्थन प्राप्त हुआ। पटेल, जिनमें से ज़्यादातर हीरा और कपड़ा व्यापारी हैं  गुजरात का एक प्रभावशाली समुदाय है और वो बीजेपी के पारंपरिक वोट बैंक हुआ करते थे। पाटीदार समुदाय की दोनों उपजातियाँ - कडव और लेउवा पटेलों ने - एक बैनर के नीचे आकर उन्हें समर्थन दिया।

 

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