NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गुजरात चुनाव: मुस्लिम बस्ती 'जुहापुरा' राजनीतिक उपेक्षा की एक तस्वीर
वर्ष 2002 में हुए भीषण दंगे के 15 साल बाद भी बीजेपी चुनाव जीतने के लिए हिंदू-मुस्लिम विभाजन का अब भी शोषण किया जा रहा है।
तारिक़ अनवर
27 Nov 2017
gujarat elections

समृद्ध आर्थिक और राजनीतिक राजधानी अहमदाबाद से महज़ सात किलोमीटर दूर गुजरात का जुहापुरा इलाक़ा जहां अल्पसंख्यक समुदाय के लोग रहते हैं। ये इलाक़ा उपेक्षा का शिकार है। यह इलाका बुनियादी ढाँचे और सार्वजनिक सेवाओं से वंचित है। मलबे के ढ़ेर और चारों ओर फ़ैले कचरे यहाँ आम बात है। यहाँ के लोग शिक्षा, परिवहन, जल आपूर्ति और सीवरेज की दयनीय स्थिति के बारे में बताते हैं। 

बीजेपी का मंत्र 'विकास' वहाँ बिल्कुल थम सा जाता है जहाँ से जुहापुरा शुरू होता है। यहाँ तक कि बीआरटीएस का प्रस्तावित आख़िरी स्टॉप सिर्फ़ एक किलोमीटर दूर है। लेकिन बेहतर मुख्य मार्ग अहमदाबाद-वड़ोदरा एक्सप्रेसवे के लिए जुहापुरा की आंतरिक सड़कें उपेक्षित हैं। ये इलाक़ा अहमदाबाद नगर निगम का भाग वर्ष 2007 में बना जो उपेक्षा का शिकार रहा। 

जुहापुरा में मुस्लिमों की बेहद घनी आबादी है। इसके अनुमानित 1.07 लाख पंजीकृत मतदाता वेजलपुर विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र के कुल मतदाताओं की 35% हिस्सेदारी है, जिसका एक भाग जुहपुरा भी है। अहमदाबाद एक ध्रुवीकृत शहर है और इसका विकास पूरी तरह से जुहापुरा जाने के बाद ही समझा जा सकता है।

जुहापुरा वर्ष 1973 में उस समय अस्तित्व में आया जब भीषण बाढ़ के बाद साबरमती के किनारे करीब 2,200 से अधिक परिवारों का पुनर्वास किया गया। इससे पहले यह मूल रूप से अहमदाबाद के पश्चिमी उपनगर में स्थित एक स्लम था जिसमें हिंदू और मुस्लिम दोनों ही समुदाय के लोग रहते थें। लेकिन वर्ष 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के दौरान हुए सांप्रदायिक हिंसा के बाद हिंदुओं ने इलाक़ा छोड़ दिया और यह एक मुस्लिम क्षेत्र में बदल गया। फिर वर्ष 2002 के दंगों के एक साल बाद नरोडा पटिया, असारवा और अन्य दंगा प्रभावित इलाकों से लगभग 180 परिवारों को यहाँ स्थानांतरित कर दिया गया।

समयांतर में हिंदुओं के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में असुरक्षा की भावना के कारण ज़्यादातर मुस्लिम जुहापुरा में बसने चले आए। गुजरात उच्च न्यायालय के न्यायाधीश अकबर दिवेचा जो जुहापुरा से चले गए थें वर्ष 2002 में भीड़ की हिंसा का निशाना बने।

ये इलाक़ा अब शहरी मुस्लिम स्लम बस्ती में बदल गया है और यह पुराने हैदराबाद के बाद भारत की दूसरी बड़ी मुस्लिम बस्ती हो गई। क्रिस्टोफ़ जफ्रेलॉट ने अपनी हाल की किताब 'मुस्लिम इन इंडियन सिटी' में जुहापुरा को "शहर के भीतर शहर" के रूप में वर्णित किया है।

बीजेपी अल्पसंख्यक मोर्चा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष इरफान अहमद से यह पूछे जाने पर कि जुहापरा को प्रधानमंत्री मोदी के विकास का लाभ नहीं मिला तो उन्होंने निवासियों पर ही इसका आरोप लगा दिया। उन्होंने कहा कि "यहाँ के लोग बदलाव नहीं चाहते हैं। जब बिरयानी की पेशकश की जाती है तो कई लोग दाल ही मांगते हैं, तो कोई क्या कर सकता है? 

जुहापुरा में अल-अशद पार्क आवासीय परिसर उसी निर्वाचन क्षेत्र के एक पॉश हिंदू इलाक़े वेजलपुर सीमाओं से लगा है। 9 नवंबर को केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी ने वेजलपुर में केवल हिंदू क्षेत्रों का दौरा किया जो अत्यधिक ध्रुवीकृत है।

ये रुझान उनके पूर्ववर्ती नेता अमित शाह द्वारा कथित रूप क़ायम किया गया जो अभी भी बरक़रार है। शाह ने सर्केज निर्वाचन क्षेत्र को जीतने के लिए हिंदू-मुस्लिम विभाजन का चतुराई से इस्तेमाल किया था। उन्होंने जुहपुरा को "मिनी-पाकिस्तान" भी कहा, एक ऐसा नाम जिसे स्थानीय हिंदू अक्सर इस मुस्लिम बस्ती को बताने के लिए इस्तेमाल करते हैं।

बॉलीवुड की फिल्म 'डी-डे', जो दाऊद इब्राहिम पर आधारित थी वर्ष 2013 में प्रदर्शित की गई और इसके कराची का सीन जुहापुरा और इसके पड़ोसी सरखेज रौज़ा में लिया गया। सरखेज रौज़ा एक प्रमुख दरगाह है।

इस इलाक़े के एक निवासी 36 वर्षीय शकील अहमद कहते हैं "किसी भी राजनीतिक दल के कोई नेता कभी भी इस क्षेत्र की दौरा नहीं करते। हम दशकों से उपेक्षित हैं। 

सिद्दीक़ाबाद के निवासी कहते हैं उनकी स्थिति दयनीय है। इसको लेकर सरकारी अधिकारी बिल्कुल ही चिंतित नहीं हैं।सिद्दीक़ाबाद में दँगा प्रभावित लोगों को जमात-ए-इस्लामी-ए-हिंद (जेआईएच) जैसे धार्मिक निकायों द्वारा पुनर्वास किया गया है। इस इलाक़े की एक महिला निवासी कहती हैं "चुनाव आते-जाते हैं लेकिन हमारी ज़िंदगी में कोई बदलाव नहीं आया है। हम अपनी आजीविका के लिए जूझ रहे हैं, अपने बच्चों की शिक्षा भूल जाइए।"

महिला की यही बातें एक अन्य महिला ने भी दोहराई। उन्होंने कहा "हमारे पति दिहाड़ी मज़दूर हैं और हम घरेलू सहायिका के रूप में काम करते हैं। तब बहुत मुश्किल से हम अपने परिवार को चलाने का प्रबंधन करते हैं। हमारे लिए चुनावों का कोई मायने भी नहीं है। 

गुजरात विद्यापिठ के सामाजिक कार्य विभाग की सहायक प्रोफेसर डॉ दमिनी शाह कहती हैं कि मुसलमानों की उपेक्षा करना आसान है क्योंकि उन्हें राज्य के कुछ इलाकों की मुस्लिम बस्तियों रहने को मजबूर किया गया है। 

डॉ शाह जिन्होंने राज्य में मुस्लिम बस्तियों पर एक पुस्तक लिखा है, कहती हैं "यहां हिंदुओं और मुसलमानों के बीच एक तीव्र अलगाव है। मुख्यधारा के समाज के साथ उनका जुड़ाव नगण्य है। मुस्लिम बहुसंख्यक क्षेत्रों सुरक्षा अहम मुद्दा है और कुछ नहीं। उनके विकास का कोई गुंजाइश नहीं है क्योंकि राज्य में दंगा पीड़ितों के जीवन को सुधारने में सरकार काफी हद तक विफल रही है।"

उन्होंने कहा कि "2002 के बाद हुए पलायन में कम से कम 66 मुस्लिम कॉलोनियाँ अस्तित्व में आई। इन सभी कॉलोनियों को धार्मिक संगठनों द्वारा निर्माण किया गया था। नतीजतन, आप मस्जिदों की अधिक संख्या यहां देख पाएंगे लेकिन यहां एक भी शैक्षणिक संस्थान नहीं मिलेंगे। यह नागरिक समाज पर एक कलंक है। अगर यह आगे आए, तो उसने शिक्षा और आजीविका की व्यवस्था करके पीड़ितों को मुख्यधारा में लाने का प्रयास किया होगा। "

राज्य में मुस्लिम बस्तियों के इतिहास के बारे में पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि यहाँ कुछ भी नया नहीं है। लेकिन दो प्रकार की बस्तियां हैं- एक अनैच्छिक है जो भय और असुरक्षा की वजह से है और दूसरा स्वैच्छिक है जो लोगों की आर्थिक स्थितियों और उनकी जाति तथा वर्ग के आधार पर है।

उन्होंने कहा कि "पाटीदार, जैन और ब्राह्मण अहमदाबाद के नारनपुरा, सीजी रोड और ओल्ड पोल क्षेत्रों के पॉश इलाके में रहना सिर्फ़ इसलिए पसंद करते हैं क्योंकि वे उन लोगों के साथ नहीं रहना चाहेत हैं जो उनके स्तर से नीचे हैं। ये स्वैच्छिक बस्तियां हैं। लेकिन वर्ष2002 के बाद ये प्रवास अनैच्छिक था जो भय और असुरक्षा के कारण हुआ था।" 

उन्होंने कथित तौर पर कहा कि वर्ष 2008 के परिसीमन के बाद मुस्लिम बहुल निर्वाचन क्षेत्रों को अलग-अलग हिस्सों में बांटा दिया गया और मुस्लिम समुदाय को "राजनीतिक रूप से तुच्छ" बनाने के प्रयास में हर छोटा हिस्सा हिंदू बहुल क्षेत्रों में जोड़ दिया गया। 

यह परिणाम वेजलपुर निर्वाचन क्षेत्र में देखा जा सकता है। कुल 3.2 लाख मतदाताओं में से मुस्लिम मतदाता 1.07 लाख हैं और ये सभी अल्पसंख्यक वोट जुहापुरा में केंद्रित हैं। बीजेपी के किशोरभाई चौहान ने 2012 के चुनावों में कांग्रेस उम्मीदवार अकबखर पठान को हराया था।

इससे पहले जुहापुरा सरखेज निर्वाचन क्षेत्र का हिस्सा था, जिसका प्रतिनिधित्व बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह ने किया था। परिसीमन से पहले सरखेज के 8-9 लाख मतदाताओं में 1.5 लाख मुस्लिम शामिल थें जिनमें जुहापुरा भी शामिल था। परिसीमन में इस निर्वाचन क्षेत्र को कई हिस्सों में विभाजित करने के बाद यह बीजेपी ही थी जो नए सीटों में से अधिकांश जीत गई थी।

भीषण दंगों के बाद से 15 साल गुज़र चुके हैं लेकिन अभी भी चुनाव जीतने के लिए हिंदू-मुस्लिम विभाजन का फायदा उठाया जा रहा है। लेकिन गुजरात में कई लोग दावा करते हैं कि ध्रुवीकरण ख़त्म हो रही है। एक समय था जब गुजरात में वर्ष 1984 में 15 मुस्लिम विधायक हिंदू समुदाय के मतों से निर्वाचित हुए थें, आने वाले चुनावों में वेजलपुर निर्वाचन क्षेत्र गुजरात की राजनीति के लिए एक धर्मनिरपेक्ष परीक्षा हो सकता है।

gujarat elections 2017
modi sarkar
Gujrat model
minorities

Related Stories

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

संकट की घड़ी: मुस्लिम-विरोधी नफ़रती हिंसा और संविधान-विरोधी बुलडोज़र न्याय

मुसलमानों के ख़िलाफ़ हो रही हिंसा पर अखिलेश व मायावती क्यों चुप हैं?

मेरे मुसलमान होने की पीड़ा...!

हिमाचल प्रदेश के ऊना में 'धर्म संसद', यति नरसिंहानंद सहित हरिद्वार धर्म संसद के मुख्य आरोपी शामिल 

रुड़की : हनुमान जयंती पर भड़की हिंसा, पुलिस ने मुस्लिम बहुल गांव में खड़े किए बुलडोज़र

सर जोड़ के बैठो कोई तदबीर निकालो

देश भर में निकाली गई हनुमान जयंती की शोभायात्रा, रामनवमी जुलूस में झुलसे घरों की किसी को नहीं याद?

अब भी संभलिए!, नफ़रत के सौदागर आपसे आपके राम को छीनना चाहते हैं

देश में पत्रकारों पर बढ़ते हमले के खिलाफ एकजुट हुए पत्रकार, "बुराड़ी से बलिया तक हो रहे है हमले"


बाकी खबरें

  • संदीपन तालुकदार
    वैज्ञानिकों ने कहा- धरती के 44% हिस्से को बायोडायवर्सिटी और इकोसिस्टम के की सुरक्षा के लिए संरक्षण की आवश्यकता है
    04 Jun 2022
    यह अध्ययन अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनिया भर की सरकारें जैव विविधता संरक्षण के लिए अपने  लक्ष्य निर्धारित करना शुरू कर चुकी हैं, जो विशेषज्ञों को लगता है कि अगले दशक के लिए एजेंडा बनाएगा।
  • सोनिया यादव
    हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?
    04 Jun 2022
    17 साल की नाबालिग़ से कथित गैंगरेप का मामला हाई-प्रोफ़ाइल होने की वजह से प्रदेश में एक राजनीतिक विवाद का कारण बन गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    छत्तीसगढ़ : दो सूत्रीय मांगों को लेकर बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दिया
    04 Jun 2022
    राज्य में बड़ी संख्या में मनरेगा कर्मियों ने इस्तीफ़ा दे दिया है। दो दिन पहले इन कर्मियों के महासंघ की ओर से मांग न मानने पर सामूहिक इस्तीफ़े का ऐलान किया गया था।
  • bulldozer politics
    न्यूज़क्लिक टीम
    वे डरते हैं...तमाम गोला-बारूद पुलिस-फ़ौज और बुलडोज़र के बावजूद!
    04 Jun 2022
    बुलडोज़र क्या है? सत्ता का यंत्र… ताक़त का नशा, जो कुचल देता है ग़रीबों के आशियाने... और यह कोई यह ऐरा-गैरा बुलडोज़र नहीं यह हिंदुत्व फ़ासीवादी बुलडोज़र है, इस्लामोफ़ोबिया के मंत्र से यह चलता है……
  • आज का कार्टून
    कार्टून क्लिक: उनकी ‘शाखा’, उनके ‘पौधे’
    04 Jun 2022
    यूं तो आरएसएस पौधे नहीं ‘शाखा’ लगाता है, लेकिन उसके छात्र संगठन अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) ने एक करोड़ पौधे लगाने का ऐलान किया है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License