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गिउलिअनो ब्रुनेटी: “नाटो के ख़िलाफ़ हमारा संघर्ष साम्राज्यवादी ताकतों के ख़िलाफ़ संघर्ष है”
आक्रामक सैन्य गठबंधन हमेशा से ही यूक्रेन में चल रहे संघर्ष का केंद्र रहा है, जिसके चलते कई लोगों ने गठबंधन पर सवालिया निशान लगाकर पूछना शुरू कर दिया है कि इसका हिस्सा बने रहने का क्या मतलब है। पोटेरे अल पोपोलो के गिउलिअनो ब्रुनेटी ने इतालवी वामपंथी दृष्टिकोण पर अपनी बात रखी। 
ज़ो एलेक्जेंड्रा
25 Mar 2022
Giuliano Brunetti
पोटेरे अल पोपोलो एवं अन्य वामपंथी संगठन नाटो और देश पर सैन्य कब्जे के खिलाफ रोम में लामबंद हुए। चित्र: पोटेरे अल पोपोलो 

नाटो के विरोध में हजारों की संख्या में लोग समूचे इटली में सड़कों पर उतर आये हैं और उन्होंने शांति का आह्वान किया है, क्योंकि यूक्रेन में युद्ध को चौथा सप्ताह पूरा होने जा रहा है। एक ऐसे समय में जब सभी सरकारों ने वर्तमान हालात के लिए सिर्फ रूस की निंदा पर ही अपने ध्यान को केंद्रित कर रखा है, वहीँ वामपंथी कार्यकर्ताओं ने रुसी आक्रमण से पहले के दिनों में दोनों देशों के बीच में तनाव को बढ़ाने में नाटो की महत्वपूर्ण भूमिका को इंगित किये जाने की मांग रखी है। अब नाटो की ओर से शांति और कूटनीति का आह्वान करने के बजाय युद्ध की लपटों को हवा देने का काम किया जा रहा है। 

नाटो की ऐतिहासिक भूमिका को लेकर भी सवाल खड़े किये जा रहे हैं। कई लोग इस दावे को ख़ारिज करते हैं कि यह एक रक्षात्मक सैन्य साझेदारी है और उनका तर्क है कि यह यूरोप एवं समूचे विश्व भर में अमेरिकी दबदबे का एक औजार मात्र है, जो अफगानिस्तान, लीबिया, यूगोस्लाविया सहित अन्य देशों के विनाश में इसकी प्रत्यक्ष भागीदारी की ओर इशारा करता है, ताकि अमेरिकी वर्चस्व को बरकरार रखने में मदद मिल सके।

आज समूचे इटली में नाटो विरोधी माहौल तेजी से उभर रहा है, जो इस गठबंधन और सैन्यवाद के अमेरिकी मॉडल को थोपने और इसकी विदेश नीति को लागू करने के खिलाफ दशकों से चल रहे लंबे संघर्ष पर आधारित है। यूक्रेन में चल रहे युद्ध के प्रति इटली की आक्रामक प्रतिक्रिया सीधे तौर पर नाटो और अमेरिका के प्रति इसकी निष्ठा में नजर आती है और ऐसा प्रतीत होता है कि यह आम लोगों की अमन-शांति की इच्छा के विरुद्ध है। 

अस्त्र-शस्त्र और प्रतिबंध, युद्ध का गहराना 

यूक्रेन पर रुसी आक्रमण के बाद, इटली ने शपथ ली कि वह अपने “नाटो सहयोगियों के साथ मिलकर फौरन एकताबद्ध होने और दृढ़ संकल्प के साथ जवाब देने पर” काम करेगा। यह 26 फरवरी को इस घोषणा के साथ आगे बढ़ा कि यह आर्थिक प्रतिबंधों को लागू करने में यूरोपीय संघ की ओर से रुसी बैंकों को स्विफ्ट प्रणाली से हटाने, रुसी सेंट्रल बैंक पर प्रतिबंधों को लगाने, व्यक्तियों और संस्थाओं के खिलाफ लक्षित प्रतिबंधों को जारी करने, और यह घोषणा करने कि वह “दुष्प्रचार और हाइब्रिड युद्ध के अन्य स्वरूपों” का मुकाबला करने के लिए इसमें शामिल हो रहा है।

28 फरवरी को, प्रधानमंत्री मारिओ ड्रैघी ने “यूक्रेनी सरकार के लिए सैन्य वाहनों, साजो-सामान एवं उपकरण” भेजने के लिए हुक्मनामे को प्रस्तावित किया था, और अन्य नाटो देशों की तरह आग में घी डालने के प्रयासों में कूद पड़ा। इस हुक्मनामे को वामपंथी पार्टी पोटेरे अल पोपोलो के माटेओ मातेओ मंटेरो सहित सांसदों के एक बेहद अल्पसंख्यक हिस्से को यदि अपवादस्वरुप मान लें तो इसके अलावा लगभग पूर्ण सर्वसम्मति से संसद द्वारा इसका अनुमोदन कर दिया गया। पीपुल्स डिस्पैच से अपनी बातचीत में, पोटेरे अल पोपोलो के गिउलिअनो ब्रुनेटी ने इंगित किया है कि “उन इक्का-दुक्का आवाजों के सिवाय, सत्ता प्रतिष्ठान में शामिल लगभग सभी राजनीतिक दल यूक्रेन को हथियार भेजने के मामले में एकमत थे।”

वामपंथियों और प्रगतिशील समूहों ने यूक्रेन को हथियार भेजने के बारे में चेताया है और शिपमेंट को रोकने के लिए बंदरगाहों पर कई विरोध प्रदर्शन तक आयोजित किये गए हैं। ब्रुनेटी ने कहा कि हथियारों को भेजने से इसके खतरनाक परिणाम देखने को मिल सकते हैं क्योंकि “हमें इस बारे में कोई खबर नहीं है कि उन हथियारों को किन लोगों को सौंपा जा रहा है।”

जहाँ एक तरह इतालवी राजनीतिक सत्ता प्रतिष्ठान पूरी तरह से खुद को नाटो की दिशा में जकड़ चुका था, वहीँ प्रगतिशील तबकों की ओर से इसके विरोध में आवाज उठाई जा रही थी, यहाँ तक कि इतालवी सेना के कुछ सदस्यों तक ने इस पर चिंता व्यक्त की थी। ब्रुनेटी ने इस बात को विशेष रूप से उल्लखित किया: “इतालवी सेना के महत्वपूर्ण लोगों ने हथियारों की आपूर्ति का विरोध किया है क्योंकि उन्हें अच्छी तरह से पता है कि ये हथियार किसी काम के नहीं हैं और असल में हम लोग इस परिस्थिति में और भी ज्यादा खून-खराबे की स्थितियों को पैदा करने में अपना योगदान कर रहे हैं।”

नाटो में इटली की भूमिका 

नाटो में इटली की भागीदारी का प्रभाव यूक्रेन के प्रति उसकी प्रतिक्रिया में आज देखे जाने वाले परिणामों से कहीं अधिक होने जा रहा है। नाटो में इसका प्रवेश ही अपनेआप में इसे अपने पूर्व सहयोगी सोवियत संघ के प्रभाव क्षेत्र से बाहर रखने के लिए अपने पुराने शत्रुओं को अपने अधीन बनाने के लिए अमेरिका की द्वितीय विश्व युद्ध के बाद की रणनीति का हिस्सा रहा था: “भूमध्य सागर में इटली की रणनीतिक स्थिति के अलावा, इटली में अमेरिकी हस्तक्षेप के पीछे कम्युनिस्ट पार्टी की शक्ति एक मुख्य कारक थी। संयुक्त राज्य अमेरिका किसी भी कीमत पर रणनीतिक तौर पर स्थापित यूरोपीय देश को सोवियत संघ के हाथों खोना नहीं चाहता था।”

नाटो ने खुद स्वीकारा है कि कम्युनिस्ट पार्टी, जो कि लगातार नाटो के खिलाफ थी, ने “द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान प्रतिरोध में एक अहम भूमिका निभाने का काम किया था और युद्ध के बाद की अवधि में यह दूसरी सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी थी।”

1948 के चुनावों में रूढ़िवादी ईसाई डेमोक्रेट की जीत के साथ, अमेरिका ने अपने लक्ष्य को हासिल कर लिया था और 4 अप्रैल, 1949 को इटली उन 12 देशों में से एक था, जिन्होंने उत्तरी अटलांटिक संधि पर हस्ताक्षर किए, और जिसके चलते नाटो का गठन हो सका।

इटली पर नाटो का कब्ज़ा

नाटो के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के हिस्से के तौर पर, इटली अब अमेरिकी सेना के लिए एक सामरिक सैन्य मंच बनकर रह गया है। पिछले कई दशकों के दौरान, इस देश में कम से कम सात अमेरिकी सैन्य ठिकाने ही नहीं स्थापित किये गये बल्कि इसके साथ-साथ 100 से उपर सैन्य प्रतिष्ठान भी स्थापित किये जा चुके हैं। अमेरिकी नौ सेना के छठे बेड़े की रणनीतिक कमान जो समूचे भूमध्य सागर को नियंत्रित करती है, का मुख्यालय इटली के दक्षिण में नेपल्स में स्थित है। सिसली अमेरिकी सेना के हाई टेक सिस्टम्स का घर है और सार्डिनिया द्वीप पर अमेरिकी सैन्य परीक्षण तोपखाने, जिसमें यूरेनियम की गोलियां भी शामिल हैं, जो कि उनकी सार-संभाल करने वालों और आस-पास के इलाकों में रहने वाले लोगों के लिए अत्यंत हानिकारक हैं।

नेपल्स, इटली में नाटो ठिकाने के बाहर पोटेरे अल पोपोलो के सदस्यगण। चित्र: पोटेरे अल पोपोलो 

इसने इटली को सैन्य हमले के लिए मुख्य लांचपैड के तौर पर तब्दील कर दिया है। ब्रुनेटी ने कहा कि “पिछले दशकों के दौरान इटली का इस्तेमाल अन्य देशों के खिलाफ नाटो अभियानों के लिए एक विशाल हवाई बेड़े के वाहक के तौर पर किया जाता रहा है। उदाहरण के लिए, जब नाटो ने 1999 में यूगोस्लाविया पर नाटो ने बमबारी की थी तो इन सामरिक बमवर्षकों ने इटली से उड़ान भरी थी।”

इसके अलावा, यह देश अमेरिका के विशाल परमाणु हथियारों के जखीरे के हिस्से के लिए एक मेजबानी करने की जमीन बन गया है, इसके बावजूद कि इटली को खुद इसके उत्पादन से प्रतिबंधित कर दिया गया है। विशेष रूप से यह 1980 के दशक से इटली में बड़े पैमाने पर परमाणु विरोधी जन-आंदोलनों को देखते हुए टकराव का एक प्रमुख बिंदु बना हुआ है। ब्रुनेटी ने कहा, “भले ही हमने जनमत संग्रह में परमाणु संयंत्रों को बंद किये जाने के पक्ष में मतदान किया था, इसके बावजूद हमारी जमीन पर आज भी परमाणु हथियार तैनात हैं।”

ब्रुनेटी के लिए यह एक कब्जे वाली स्थिति है। उन्होंने कहा, “हम पर अमेरिकी नौसेना का कब्जा है। हम पर अमेरिकी थल सेना का कब्जा है। हम पर अमेरिकी वायुसेना का कब्जा है। हमारे देश के भीतर 100 के करीब परमाणु हथियार तैनात हैं।”

गठबंधन में दोयम दर्जे के साझीदार के रूप में इटली की भूमिका का अर्थ है कि इटली वासियों की साम्यता उन लोगों के साथ कहीं अधिक है, जिनपर नाटो हमला करता है न कि जो इसे नियंत्रित करते हैं। नाटो के एवियानो एयर बेस के दो लापरवाह अमेरिकी समुद्री सैन्य-दल के पायलटों के हाथों मारे गए सेर्मिस हत्याकांड के 20 पीड़ितों को न्याय से मरहूम कर दिया गया, क्योंकि इन पायलटों को अमेरिकी सैन्य अदालत में ले जाया गया और वहां पर इन्हें दोषी नहीं पाया गया।

ब्रुनेटी ने ध्यान दिलाया कि “हम नाटो को एक रक्षात्मक गठबंधन के तौर पर नहीं देखते हैं, बल्कि असल में उस बूट के तौर पर देखते हैं जो दुनिया भर के लोगों के सिर पर लगातार घिसट रहा है। यह संयुक्त राज्य अमेरिका के द्वारा महासागरों पर अपने आधिपत्य के लिए एक औजार बनकर रह गया है, और हम इस सैन्य कब्जे से मुक्त होना चाहते हैं।”

अटलांटिकवाद या आधा-झूठ 

यूक्रेन में युद्ध को लेकर इतालवी राज्य की राजनीतिक प्रतिक्रिया नाटो के लिए इतालवी राजनतिक वर्ग की अधीनता के समूचे पैटर्न को दर्शाती है। ब्रुनेटी इस तथ्य की आलोचना करते हुए कहते हैं कि “सभी प्रमुख राजनीतिक दल वो चाहे मध्यमार्गी वाम से लेकर मध्य दक्षिणपंथी ही क्यों न हों (इसमें जिन्हें अति दक्षिणपंथी कहा जाता है वे खुद को राष्ट्रवादी मानते हैं और राष्ट्र के हितों के पक्ष में रहते हैं), ने इस हकीकत को स्वीकार कर लिया है कि इटली नाटो का एक सदस्य है और उनके मुताबिक नाटो को छोड़ने की संभावना पर विचार तक नहीं किया जाना चाहिए।”

अमेरिका और नाटो सैन्य प्रतिष्ठानों, सैनिकों, हथियारों और अन्य के द्वारा इसके क्षेत्र पर कब्जा करने के अलावा, इटली के पास एक सदस्य के तौर पर अपनी विशिष्ट राजनीतिक एवं आर्थिक जिम्मेदारियों को पूरा करने की जिम्मेदारी है। इनमें से एक यह है कि राष्ट्रीय जीडीपी के 2% हिस्से को रक्षा पर खर्च किया जाना है, जैसे कि हथियारों और हथियार उद्योग पर किया जाने वाला खर्च। जब नाटो ने 2001 में अफगानिस्तान और 2003 में इराक पर आक्रमण शुरू किया था, तो इटली के पास अपनी स्वतंत्र हैसियत को हासिल करने की स्थिति नहीं थी, लेकिन इसके बावजूद “लाखों इतालवी लोगों की इच्छा के विरुद्ध जाकर” वह इन आक्रमणों में भाग लेने के लिए मजबूर था। 

ब्रुनेटी ने कहा कि “इतालवी आबादी का मूड हमेशा से शांतिप्रिय और तटस्थता वाला रहा है। इसके पीछे की वजह फासीवादी तानशाही के हमारे इतिहास और उपनिवेश में है। लेकिन दुर्भाग्यवश यह शांतिवाद नाटो की छत्रछाया में असंभव है।”

लोगों की इच्छा और शासक वर्ग की कार्यवाहियों के बीच में सामंजस्य के अभाव के पीछे की वजह इटली के अभिजात्य वर्ग की अटलांटिकवाद के प्रति वफादारी के चलते है। ब्रुनेटी के लिए, यह अवधारणा “विशेष संबंध, विशेष संबंधों को संदर्भित करती है जो इटली के रूप में हमारे पास है, वह यह कि हमारा रिश्ता संयुक्त राज्य अमेरिका के आम लोगों के साथ नहीं बल्कि संयुक्त राज्य अमेरिका के शासक अभिजात्य वर्ग के साथ है, नरसंहार करने वाले अभिजात वर्ग और अन्य के साथ।”

जहाँ एक तरफ उदारवादी और रुढ़िवादी ज्ञानियों के द्वारा यूक्रेन में युद्ध का इस्तेमाल नाटो के महत्व पर जोर देने और समूचे यूरोप के देशों की रक्षा में इसकी केंद्रीयता पर जोर देने के लिए किया जा रहा है, वहीं दूसरी तरफ दुनियाभर के लोगों के खिलाफ गठबंधन और इसके हमलों को ख़ारिज करने के लिए जारी संघर्ष भी लगातार तीक्ष्ण होता जा रहा है।

ब्रुनेटी के अनुसार, “नाटो के खिलाफ हमारा संघर्ष कब्जे वाली ताकतों के खिलाफ संघर्ष है, और यह हमारी संप्रभुता के लिए भी एक संघर्ष है। यह एक स्वतंत्र विदेश नीति बनाने में सक्षम बनने का संघर्ष है, जो एकजुटता और आपसी सहयोग पर आधारित है, न कि सैन्य युद्ध पर।”

साभार: पीपल्स डिस्पैच

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