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राजनीति
गुजरात: नगर निगमों ने मांसाहारी खाद्य पदार्थ बेचने वाले ठेलों को प्रतिबंधित किया, हॉकर्स पहुंचे हाई कोर्ट
अकेले अहमदाबाद में ही 6000 से ज्यादा, ठेले पर मांसाहारी खाद्य पदार्थ बेचने वाले विक्रेता हैं। इनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा से आए लोग हैं, जिनका परिवार इस आय पर निर्भर है।
दमयन्ती धर
06 Dec 2021
street
Image courtesy : PTI

इस साल 9 नवंबर को राजकोट के मेयर प्रदीप दव ने शहर के बड़े हिस्सों से मांसाहारी फूड स्टॉलों को हटाने की कवायद शुरू की थी। राजकोट गुजरात के 6 नगर निगमों में से एक है।

दो दिन बाद, वडोदरा नगर निगम की स्थायी समिति के अध्यक्ष हिरेंद्र पटेल ने मौखिक तौर पर नगर निगम को अगले 15 दिन में सभी मांसाहारी स्टॉल हटाने को कहा। अपनी आजीविका पर खतरा देखते हुए अब वेंडर हाई कोर्ट पहुंच गए हैं।

पटेल ने कहा, "मांस, मछली, अंडे के सार्वजनिक प्रदर्शन से धार्मिक भावनाएं आहत होती है। इसे दिखाई नहीं देना चाहिए।" 11 नवंबर को नगर निगम अधिकारियों के साथ बैठक में पटेल ने कहा कि मांसाहारी भोजन बेचने वाले वेंडरों या रेस्त्रां को इनपर पर्देदारी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके सार्वजानिक प्रदर्शन की प्रथा कई दशकों से जारी रही होगी, लेकिन अब इसे बंद करना होगा।"

दोनों नगर निगमों के काम को राजस्व मंत्री राजेन्द्र त्रिवेदी ने भी समर्थन दिया। उन्होंने कहा, "इन मांसाहारी स्टॉल से जो धुआं और बदबू  आती है, वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।"

एक हफ्ते बाद अहमदाबाद और भावनगर ने भी यही प्रक्रिया अपनाते हुए, स्कूल, कॉलेज, बगीचों, धार्मिक जगहों और शहर की मुख्य जगहों पर मांसाहार बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया।

दिलचस्प है कि दोनों नगर निगमों ने कहा है कि मांसाहारी स्टालों को सड़कों से अतिक्रमण हटाने और कुछ स्वच्छता संबंधी शिकायतों के चलते हटाया जा रहा है।

गुजरात में स्ट्रीट वेंडर्स के लिए काम करने वाले संगठन लड़ी गल्ला संगठन के अध्यक्ष राकेश महेरिया ने हमसे कहा, "नगर निगम द्वारा मांसाहारी स्टॉल हटाए जाने के अब 10 दिन से भी ज्यादा हो चुके हैं। जहां कुछ विक्रेताओं ने नई कार्ट खरीदकर अहमदाबाद, वडोदरा, भावनगर में बिक्री दोबारा शुरू कर दी है। लेकिन राजकोट में बिक्री शुरू नहीं हो पाई है। कई ऐसे वेंडर है जो नई कार्ट का खर्च वहन नहीं कर सकते। उन्होंने दैनिक मजदूरी करना शुरू कर दिया है। लेकिन उनकी आय रोजाना 400-1000 रुपए से गिरकर 200 रुपए रह गई है।

उन्होंने आगे कहा, "गुजरात में अहमदाबाद में ही कम से कम 6000 फूड कार्ट विक्रेता हैं, जो सिर्फ अंडे बेचते हैं। इनमे से ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा से आए हैं, जिनका परिवार इसी बिक्री और निर्भर है। अगर नगर निगम अपने निर्णय पर बना रहता है तो इन लोगों की आजीविका का एकमात्र साधन नहीं बचेगा। इसलिए हमने हाई कोर्ट में याचिका लगाई है।

याचिका में कहा गया "याचिकाकर्ता उस वर्ग के लोग हैं जो सबसे निचले आर्थिक पायदान पर हैं। वे इन्हीं चीजों की बिक्री से अपना लालन पोषण करते हैं। याचिकाकर्ताओं ने हाल में कुछ अप्रिय घटनाओं के चलते याचिका लगाई है, जिनकी शुरुआत 9/11/2021 को राजकोट के मेयर प्रदीप दव के यह कहने के बाद हुई थी कि मांसाहारी भोजन वाले कार्ट को हटाया जाएगा, क्योंकि इनसे आसपास रहने वाले और गुजरने वालों की धार्मिक भावनाएं आहत होती है। इसके बाद तेजी से सूरत, वडोदरा, भावनगर, जूनागढ़ और अहमदाबाद ने भी इसी प्रक्रिया को अपनाया। हजारों ठेलों को हटा दिया गया या जब्त कर लिया गया। इसके लिए राज्य की तरफ से कोई कारण भी नहीं बताया गया। 2020-21 की अवधि ने इन लोगों की आर्थिक स्थिति बदतर कर दी है। क्योंकि इस दौरान यह लोग व्यापार नहीं कर पा रहे थे और  पिछले 2-3 महीने में ही चीजों के सामान्य हालात बने हैं। लेकिन नगर निगमों ने इनका जीवन नर्क बनाने की ठान ली है और उनके ठेले व दूसरे समान जब्त कर लिए। इससे उनके आजीविका के अधिकार पर प्रतिबंध लगता है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में दिया गया है।

 याचिका में आगे कहा गया, "स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट, 2014 एक समग्र कानून है, जो याचिकाकर्ताओं और इसी तरह के लोगों के कल्याण के लिए बनाया गया था। यह कानून सभी ठेले पर खाना बेचने वालों को सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें ठेले पर बिकने वाले खाने की प्रकृति में अंतर नहीं किया गया है।"

यहां यह भी दिलचस्प है कि गुजरात बीजेपी के प्रमुख  सी आर पाटिल ने शहरों के महापौरों से ठेले पर खाना बेचने वालों के खिलाफ, धार्मिक भावनाएं आहत करने की आड़ में कड़ी कार्रवाई ना करने को कहा है।

राजकोट की यात्रा के दौरान पाटिल ने कहा, "इस देश में हर किसी को अपनी पसंद का खाना खाने की छूट है। अगर लोग किसी वेंडर से खाना खरीद रहे हैं तो उसे हटाना सही नहीं है।कानून में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। जो भी चीज प्रतिबंधित नहीं है, वेंडर उसे बेचने के लिए स्वतंत्र हैं।"

लेकिन गुजरात में शाकाहार को बढ़ावा देने की कवायद नई नहीं है। गुजरात के कई शहरों में नवरात्रि और जैन पर्वो के दौरान मांसाहारी खाद्य पदार्थ बेचने वाले ठेले बंद हो जाते हैं।

2016 में गुजरात सरकार ने एक जैन त्योहार पर्शुयान के दौरान जानवरों और पक्षियों के  वध और मछली मांस व अंडा बेचने पर पांच दिन के दौरान प्रतिबंध लगा दिया था। इस कदम के बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था।

उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट के आदेश (2008) की पृष्ठभूमि में, जिसमें जैन त्योहारों के दौरान पशुवध पर प्रतिबंध को जायज ठहराया गया था, उसके तहत सरकार ने यह फैसला लिया था।

दिलचस्प है कि केंद्र सरकार के 2014 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे के मुताबिक गुजरात शाकाहारी बहुसंख्यक राज्य नहीं है। सर्वे में पाया गया कि राज्य की 40 फीसदी आबादी मांस खाती है। गुजरात में हरियाणा की तुलना में ज्यादा मांसाहारी लोग रहते हैं, जहां 31.5 फीसदी पुरुष और 30 फीसदी महिलाएं मांसाहारी हैं। वहीं पंजाब में 34.5 फीसदी पुरुष और 32 फीसदी महिलाएं, राजस्थान में 26.8 फीसदी पुरुष और 23.4 फीसदी महिलाएं मांसाहारी हैं।

रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि गुजरात में मांस का उत्पादन 2004-05  में 13000 टन की तुलना में, 2018-19 तक दोगुना हो गया।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
Gujarat Civic Bodies Ban Non-Veg Food Carts, Hawkers Move HC

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