NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
गुजरात: नगर निगमों ने मांसाहारी खाद्य पदार्थ बेचने वाले ठेलों को प्रतिबंधित किया, हॉकर्स पहुंचे हाई कोर्ट
अकेले अहमदाबाद में ही 6000 से ज्यादा, ठेले पर मांसाहारी खाद्य पदार्थ बेचने वाले विक्रेता हैं। इनमें से ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा से आए लोग हैं, जिनका परिवार इस आय पर निर्भर है।
दमयन्ती धर
06 Dec 2021
street
Image courtesy : PTI

इस साल 9 नवंबर को राजकोट के मेयर प्रदीप दव ने शहर के बड़े हिस्सों से मांसाहारी फूड स्टॉलों को हटाने की कवायद शुरू की थी। राजकोट गुजरात के 6 नगर निगमों में से एक है।

दो दिन बाद, वडोदरा नगर निगम की स्थायी समिति के अध्यक्ष हिरेंद्र पटेल ने मौखिक तौर पर नगर निगम को अगले 15 दिन में सभी मांसाहारी स्टॉल हटाने को कहा। अपनी आजीविका पर खतरा देखते हुए अब वेंडर हाई कोर्ट पहुंच गए हैं।

पटेल ने कहा, "मांस, मछली, अंडे के सार्वजनिक प्रदर्शन से धार्मिक भावनाएं आहत होती है। इसे दिखाई नहीं देना चाहिए।" 11 नवंबर को नगर निगम अधिकारियों के साथ बैठक में पटेल ने कहा कि मांसाहारी भोजन बेचने वाले वेंडरों या रेस्त्रां को इनपर पर्देदारी करनी चाहिए। उन्होंने कहा कि इसके सार्वजानिक प्रदर्शन की प्रथा कई दशकों से जारी रही होगी, लेकिन अब इसे बंद करना होगा।"

दोनों नगर निगमों के काम को राजस्व मंत्री राजेन्द्र त्रिवेदी ने भी समर्थन दिया। उन्होंने कहा, "इन मांसाहारी स्टॉल से जो धुआं और बदबू  आती है, वो स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है।"

एक हफ्ते बाद अहमदाबाद और भावनगर ने भी यही प्रक्रिया अपनाते हुए, स्कूल, कॉलेज, बगीचों, धार्मिक जगहों और शहर की मुख्य जगहों पर मांसाहार बेचने पर प्रतिबंध लगा दिया।

दिलचस्प है कि दोनों नगर निगमों ने कहा है कि मांसाहारी स्टालों को सड़कों से अतिक्रमण हटाने और कुछ स्वच्छता संबंधी शिकायतों के चलते हटाया जा रहा है।

गुजरात में स्ट्रीट वेंडर्स के लिए काम करने वाले संगठन लड़ी गल्ला संगठन के अध्यक्ष राकेश महेरिया ने हमसे कहा, "नगर निगम द्वारा मांसाहारी स्टॉल हटाए जाने के अब 10 दिन से भी ज्यादा हो चुके हैं। जहां कुछ विक्रेताओं ने नई कार्ट खरीदकर अहमदाबाद, वडोदरा, भावनगर में बिक्री दोबारा शुरू कर दी है। लेकिन राजकोट में बिक्री शुरू नहीं हो पाई है। कई ऐसे वेंडर है जो नई कार्ट का खर्च वहन नहीं कर सकते। उन्होंने दैनिक मजदूरी करना शुरू कर दिया है। लेकिन उनकी आय रोजाना 400-1000 रुपए से गिरकर 200 रुपए रह गई है।

उन्होंने आगे कहा, "गुजरात में अहमदाबाद में ही कम से कम 6000 फूड कार्ट विक्रेता हैं, जो सिर्फ अंडे बेचते हैं। इनमे से ज्यादातर उत्तर प्रदेश, बिहार और ओडिशा से आए हैं, जिनका परिवार इसी बिक्री और निर्भर है। अगर नगर निगम अपने निर्णय पर बना रहता है तो इन लोगों की आजीविका का एकमात्र साधन नहीं बचेगा। इसलिए हमने हाई कोर्ट में याचिका लगाई है।

याचिका में कहा गया "याचिकाकर्ता उस वर्ग के लोग हैं जो सबसे निचले आर्थिक पायदान पर हैं। वे इन्हीं चीजों की बिक्री से अपना लालन पोषण करते हैं। याचिकाकर्ताओं ने हाल में कुछ अप्रिय घटनाओं के चलते याचिका लगाई है, जिनकी शुरुआत 9/11/2021 को राजकोट के मेयर प्रदीप दव के यह कहने के बाद हुई थी कि मांसाहारी भोजन वाले कार्ट को हटाया जाएगा, क्योंकि इनसे आसपास रहने वाले और गुजरने वालों की धार्मिक भावनाएं आहत होती है। इसके बाद तेजी से सूरत, वडोदरा, भावनगर, जूनागढ़ और अहमदाबाद ने भी इसी प्रक्रिया को अपनाया। हजारों ठेलों को हटा दिया गया या जब्त कर लिया गया। इसके लिए राज्य की तरफ से कोई कारण भी नहीं बताया गया। 2020-21 की अवधि ने इन लोगों की आर्थिक स्थिति बदतर कर दी है। क्योंकि इस दौरान यह लोग व्यापार नहीं कर पा रहे थे और  पिछले 2-3 महीने में ही चीजों के सामान्य हालात बने हैं। लेकिन नगर निगमों ने इनका जीवन नर्क बनाने की ठान ली है और उनके ठेले व दूसरे समान जब्त कर लिए। इससे उनके आजीविका के अधिकार पर प्रतिबंध लगता है जो संविधान के अनुच्छेद 21 में दिया गया है।

 याचिका में आगे कहा गया, "स्ट्रीट वेंडर्स एक्ट, 2014 एक समग्र कानून है, जो याचिकाकर्ताओं और इसी तरह के लोगों के कल्याण के लिए बनाया गया था। यह कानून सभी ठेले पर खाना बेचने वालों को सुरक्षा प्रदान करता है। इसमें ठेले पर बिकने वाले खाने की प्रकृति में अंतर नहीं किया गया है।"

यहां यह भी दिलचस्प है कि गुजरात बीजेपी के प्रमुख  सी आर पाटिल ने शहरों के महापौरों से ठेले पर खाना बेचने वालों के खिलाफ, धार्मिक भावनाएं आहत करने की आड़ में कड़ी कार्रवाई ना करने को कहा है।

राजकोट की यात्रा के दौरान पाटिल ने कहा, "इस देश में हर किसी को अपनी पसंद का खाना खाने की छूट है। अगर लोग किसी वेंडर से खाना खरीद रहे हैं तो उसे हटाना सही नहीं है।कानून में भी ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। जो भी चीज प्रतिबंधित नहीं है, वेंडर उसे बेचने के लिए स्वतंत्र हैं।"

लेकिन गुजरात में शाकाहार को बढ़ावा देने की कवायद नई नहीं है। गुजरात के कई शहरों में नवरात्रि और जैन पर्वो के दौरान मांसाहारी खाद्य पदार्थ बेचने वाले ठेले बंद हो जाते हैं।

2016 में गुजरात सरकार ने एक जैन त्योहार पर्शुयान के दौरान जानवरों और पक्षियों के  वध और मछली मांस व अंडा बेचने पर पांच दिन के दौरान प्रतिबंध लगा दिया था। इस कदम के बाद हाई कोर्ट ने राज्य सरकार से जवाब मांगा था।

उप मुख्यमंत्री नितिन पटेल ने कहा था, "सुप्रीम कोर्ट के आदेश (2008) की पृष्ठभूमि में, जिसमें जैन त्योहारों के दौरान पशुवध पर प्रतिबंध को जायज ठहराया गया था, उसके तहत सरकार ने यह फैसला लिया था।

दिलचस्प है कि केंद्र सरकार के 2014 के सैंपल रजिस्ट्रेशन सिस्टम बेसलाइन सर्वे के मुताबिक गुजरात शाकाहारी बहुसंख्यक राज्य नहीं है। सर्वे में पाया गया कि राज्य की 40 फीसदी आबादी मांस खाती है। गुजरात में हरियाणा की तुलना में ज्यादा मांसाहारी लोग रहते हैं, जहां 31.5 फीसदी पुरुष और 30 फीसदी महिलाएं मांसाहारी हैं। वहीं पंजाब में 34.5 फीसदी पुरुष और 32 फीसदी महिलाएं, राजस्थान में 26.8 फीसदी पुरुष और 23.4 फीसदी महिलाएं मांसाहारी हैं।

रिजर्व बैंक की एक रिपोर्ट बताती है कि गुजरात में मांस का उत्पादन 2004-05  में 13000 टन की तुलना में, 2018-19 तक दोगुना हो गया।

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।
Gujarat Civic Bodies Ban Non-Veg Food Carts, Hawkers Move HC

Non-Veg Ban
Gujarat
Animal Slaughter
Meat Consumption
Meat Ban
CR Patil
BJP
Gujarat High Court

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • मनोलो डी लॉस सैंटॉस
    क्यूबाई गुटनिरपेक्षता: शांति और समाजवाद की विदेश नीति
    03 Jun 2022
    क्यूबा में ‘गुट-निरपेक्षता’ का अर्थ कभी भी तटस्थता का नहीं रहा है और हमेशा से इसका आशय मानवता को विभाजित करने की कुचेष्टाओं के विरोध में खड़े होने को माना गया है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट
    03 Jun 2022
    जस्टिस अजय रस्तोगी और बीवी नागरत्ना की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि आर्यसमाज का काम और अधिकार क्षेत्र विवाह प्रमाणपत्र जारी करना नहीं है।
  • सोनिया यादव
    भारत में धार्मिक असहिष्णुता और पूजा-स्थलों पर हमले को लेकर अमेरिकी रिपोर्ट में फिर उठे सवाल
    03 Jun 2022
    दुनिया भर में धार्मिक स्वतंत्रता पर जारी अमेरिकी विदेश मंत्रालय की रिपोर्ट भारत के संदर्भ में चिंताजनक है। इसमें देश में हाल के दिनों में त्रिपुरा, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर में मुस्लिमों के साथ हुई…
  • बी. सिवरामन
    भारत के निर्यात प्रतिबंध को लेकर चल रही राजनीति
    03 Jun 2022
    गेहूं और चीनी के निर्यात पर रोक ने अटकलों को जन्म दिया है कि चावल के निर्यात पर भी अंकुश लगाया जा सकता है।
  • अनीस ज़रगर
    कश्मीर: एक और लक्षित हत्या से बढ़ा पलायन, बदतर हुई स्थिति
    03 Jun 2022
    मई के बाद से कश्मीरी पंडितों को राहत पहुंचाने और उनके पुनर्वास के लिए  प्रधानमंत्री विशेष पैकेज के तहत घाटी में काम करने वाले कम से कम 165 कर्मचारी अपने परिवारों के साथ जा चुके हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License