NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र पुलिस पर उठाये सवाल, सुप्रीम कोर्ट ने दी राहत
परसों हुई गिरफ्तारियों के बाद ,राज्य गिरफ्तारियों के लिए कोई पुख्ता सबूत नहीं पेश कर पाया है।
विवान एबन
30 Aug 2018
Translated by ऋतांश आज़ाद
human rights

पाँच सामाजिक कार्यकर्ताओं की गिरफ्तारी के बाद सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की गयी थी , जिसमें कोर्ट ने अब राहत दे दी है। पाँचों को कोर्ट ने नज़रबंद करने का फैसला सुनाया और इस मामले में महाराष्ट्र सरकार को नोटिस भेजा गया है। यह याचिका रोमिला थापर , प्रभात पटनायक ,देवकी जैन, सतीश देशपांडेय और माजा दारुवाला ने दायर की थी। याचिकाकर्ताओं ने एक निष्पक्ष जाँच की माँग के साथ ही यह माँग की कि महाराष्ट्र सरकार इन  इन  गिरफ्तारीयों के बारे में सफाई देI। याचिकाकर्ताओं ने यह भी माँग की कि कोर्ट भीमा कोरेगाँव के मामले में गिरफ्तार किये गए सभी लोगों को रिहा करे और इस मामले में सभी गिरफ्तारियों को तब तक रोक दिया जाये, जब तक कोर्ट मामले की जाँच न करेI

महाराष्ट्र सरकार ने इस याचिका को चुनौती देते हुए कहा कि अनजान लोग इस तरह की याचिका नहीं दायर कर सकते हैं। लेकिन इस तरह की याचिका दायर करने के अधिकारों के दायरे को पहले ही बढ़ा दिया गया है। इस मामले पर बात करते हुए जस्टिस चंद्रचूड़ ने कहा "प्रतिरोध से ही जनतंत्र बचा रहता है।" सुप्रीम कोर्ट में दायर की गयी याचिका से पहले दिल्ली हाई कोर्ट में गौतम नवलखा के पक्ष में और पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट में सुधा भारद्वाज के पक्ष में हबस कॉर्पस याचिका दायर की गयी। कल दोनों हाईकोर्टों ने ट्रांज़िट आदेशों पर रोक लगा दी। नवलखा के हबस कॉर्पस मामले में दिल्ली हाई कोर्ट ने कल सुबह 10.30 बजे गिरफ्तारी से सम्बंधित अनुवादित कॉपियां माँगी। 

लेकिन जब सुनवाई चल रही थी तब पुलिस अफसरों के पास मराठी से हिंदी की अनुवादित कॉपियां नहीं थी। इसीलिए कल इस मामले को दोपहर 2.15 पर स्थगित कर दिया गया। इस समय काउंसल की याचिकाकर्ता नित्या रामाकृष्णन दूसरी सुनवाई में मौजूद थीं। इसीलिए कोर्ट की कार्यवाही 2.45 बजे शुरू हुई। कार्यवाही को दो बार रोके जाने के बावजूद सिर्फ FIR और मुख्यमंत्री के द्वारा जारी किये गए ज्ञापन को ही अनुवादित किया गया , गिरफ्तारीका ज्ञापन अनुवादित नहीं किया गया।  

याचिकाकर्ता की कॉउन्सिल नित्या रामकृष्णन ने गिरफ्तारी पर सवाल उठाते हुए कहा कि अगर दस्तावेज़ मराठी हैं तो मराठी न जानने वाले यह कैसे जानेंगे कि गिरफ्तारी किस बिनाह पर हुई है ?उन्होंने यह पूछा कि क्या पुलिस ने गिरफ्तारी के समय यूनिफार्म पहनी भी थी या नहीं ? कोर्ट ने फिर अभियोजन पक्ष के  वकील को कहा कि उन्हें यह मानकर नहीं चलना चाहिए कि मेजिस्ट्रेट को मराठी आती होगी। इसपर जवाब देते हुए अमन लेखी जो  सरकारी अभियोक्ता हैं ,ने उन सभी घटनाओं की कड़ी के बारे में बताया जिनकी  गिरफ्तारियां हुई, इन गिरफ्तारियों की वजहों को गौतम नवलखा के लिए हिंदी में लिखा गया। लेकिन कोर्ट ने सरकारी अभियोक्ता को दस्तावेज़ों को अनुवादित करने में देरी के लिए लताड़ा। 

कोर्ट ने मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट द्वारा दिए गए ट्रांजिट आदेश पर सवाल उठाये क्योंकि उस समय सभी दस्तावेज़ मराठी में थे। सरकारी अभियोक्ता ने फिर कोर्ट को बताया कि  उन्होंने मेजिस्ट्रेट से 10 से 15 मिनट बात की और उन्हें गिरफ्तारियों की वजहों के बारे में बताया गया,इसके बाद ही ट्रांज़िट आदेश दिए गए।  

कोर्ट ने फिर अनुवादित FIR का पहला वाक्य पढ़ा जिसमें एल्गार परिषद के पिछले साल 31 दिसंबर के आयोजन के बारे में बात की गयी थी। इसपर कोर्ट ने कहा कि नवलखा तो उस कार्यक्रम में मौजूद ही नहीं थे। कोर्ट ने पूछा कि क्या मेजिस्ट्रेट ने एक वाक्य के आधार पर गिरफ्तारी का फरमान जारी किया? कोर्ट ने कहा कि अगर दूसरी गिरफ्तारियां जायज़ भी हैं तो यह नहीं माना जा सकता कि बिना सही दस्तावेज़ों के यह गिरफ्तारी भी जायज़ है। अब जब सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सभी सामाजिक कार्यकर्ताओं को राहत दी है हाई फिलहाल इस मामले में कोई फैसला नहीं सुना सकता। सुप्रीम कोर्ट में  इस याचिका पर 6 सितम्बर को सुनवाई होगी। 
 

human rights activists
bheema koregaon
Delhi High court
Supreme Court

Related Stories

दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया

ज्ञानवापी मस्जिद के ख़िलाफ़ दाख़िल सभी याचिकाएं एक दूसरे की कॉपी-पेस्ट!

आर्य समाज द्वारा जारी विवाह प्रमाणपत्र क़ानूनी मान्य नहीं: सुप्रीम कोर्ट

समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल

मायके और ससुराल दोनों घरों में महिलाओं को रहने का पूरा अधिकार

जब "आतंक" पर क्लीनचिट, तो उमर खालिद जेल में क्यों ?

विचार: सांप्रदायिकता से संघर्ष को स्थगित रखना घातक

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

बग्गा मामला: उच्च न्यायालय ने दिल्ली पुलिस से पंजाब पुलिस की याचिका पर जवाब मांगा

तेलंगाना एनकाउंटर की गुत्थी तो सुलझ गई लेकिन अब दोषियों पर कार्रवाई कब होगी?


बाकी खबरें

  • एम. के. भद्रकुमार
    पुतिन की अमेरिका को यूक्रेन से पीछे हटने की चेतावनी
    29 Apr 2022
    बाइडेन प्रशासन का भू-राजनीतिक एजेंडा सैन्य संघर्ष को लम्बा खींचना, रूस को सैन्य और कूटनीतिक लिहाज़ से कमज़ोर करना और यूरोप को अमेरिकी नेतृत्व पर बहुत ज़्यादा निर्भर बना देना है।
  • अजय गुदावर्ती
    भारत में धर्म और नवउदारवादी व्यक्तिवाद का संयुक्त प्रभाव
    28 Apr 2022
    नवउदारवादी हिंदुत्व धर्म और बाजार के प्रति उन्मुख है, जो व्यक्तिवादी आत्मानुभूति पर जोर दे रहा है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जहाँगीरपुरी हिंसा : "हिंदुस्तान के भाईचारे पर बुलडोज़र" के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन
    28 Apr 2022
    वाम दलों ने धरने में सांप्रदायिकता के ख़िलाफ़ व जनता की एकता, जीवन और जीविका की रक्षा में संघर्ष को तेज़ करने के संकल्प को भी दोहराया।
  • protest
    न्यूज़क्लिक टीम
    दिल्ली: सांप्रदायिक और बुलडोजर राजनीति के ख़िलाफ़ वाम दलों का प्रदर्शन
    28 Apr 2022
    वाम दलों ने आरएसएस-भाजपा पर लगातार विभाजनकारी सांप्रदायिक राजनीति का आरोप लगाया है और इसके खिलाफ़ आज(गुरुवार) जंतर मंतर पर संयुक्त रूप से धरना- प्रदर्शन किया। जिसमे मे दिल्ली भर से सैकड़ों…
  • ज़ाकिर अली त्यागी
    मेरठ : जागरण की अनुमति ना मिलने पर BJP नेताओं ने इंस्पेक्टर को दी चुनौती, कहा बिना अनुमति करेंगे जागरण
    28 Apr 2022
    1987 में नरसंहार का दंश झेल चुके हाशिमपुरा का  माहौल ख़राब करने की कोशिश कर रहे बीजेपी नेताओं-कार्यकर्ताओं के सामने प्रशासन सख़्त नज़र आया।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License