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भारत
राजनीति
‘हायर एंड फायर’ और ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ नीति का ही नतीजा है हाईपैड कंपनी विवाद!
“नोएडा व दिल्ली एनसीआर में तमाम ऐसी फैक्ट्रियां व उद्योग हैं जहाँ श्रम कानून तो छोड़िए न्यूनतम मानवीय अधिकार भी लागू नहीं होते। ये कंपनियां खुलेआम मजदूरों का शोषण करते हुए उनसे काम लेती हैं।”
मुकुंद झा
03 Dec 2018
 हाईपैड कंपनी विवाद

दिल्ली से लगे उत्तर प्रदेश के नोएडा के सेक्टर 63 में स्थित हाईपैड टेक्नोलॉजी इंडिया के प्लांट में आज सोमवार को काम तो शुरू हुआ लेकिन अभी मजदूरों व प्रबंधन में सबकुछ सामान्य नहीं हुआ है। अभी भी फैक्ट्री के बाहर भारी पुलिसबल तैनात है।

आपको बता दें कि हाईपैड टेक्नोलॉजी इंडिया नाम की कंपनी चीन की कंपनी है। इस कंपनी में कई कंपनियों के मोबाइल फोन को एसेंबल किया जाता है जिसमें शाओमी और ओप्पो जैसी फोन कंपनियां शामिल हैं। नोएडा स्थिति कंपनी में करीब 1200 लोग काम करते हैं।

पिछले गुरुवार, 29 नवंबर को हाईपैड टेक्नोलॉजी इंडिया के लगभग 200 श्रमिकों को बिना किसी नोटिस के "बर्खास्त" किए जाने के बाद पहले ही लंबे समय से प्रबंधन के द्वारा शोषण झेल रहे मजदूरों का गुस्सा भड़क गया और तकरीबन 1200 मजदूर ने फैक्ट्री के बाहर प्रदर्शन किया। जब प्रबंधन की तरफ से कोई सकारत्मक रुख नहीं दिखाया गया तो मजदूर फैक्ट्री के अंदर घुस गए। प्रबंधन के मुताबिक वहां स्थति बेकाबू हो गई। फिर पुलिस आई और उसने मजदूरों को नियंत्रित किया। कई मजदूरों को पूछताछ के नाम पर पुलिस ले गई परन्तु अबतक उनको रिहा नहीं किया गया है। गिरफ्तार किए गए मजदूरों के बारे में मजदूर यूनियन के नेताओ ने जानने कि कोशिश की परन्तु पुलिस ने कोई भी जानकारी देने से इंकार कर दिया है।

अब सवाल उठता है कि अचानक स्थति इतनी गंभीर कैसे हो गई। कई मजदूरों ने प्रबंधन के खिलाफ विद्रोह क्यों किया। इसके कई कारण हैं जो इस प्लांट में काफी लंबे समय से चल रहे थे। इस प्लांट के जानकर बताते हैं कि दिवाली से अबतक तकरीबन दो हज़ार से अधिक कर्मचारियों को इस तरह बिना किसी नोटिस के जबरन निकाल दिया गया है। कंपनी में काम करने वाले एक मजदूर ने बताया कि कंपनी मजदूरों से जबरदस्ती उनका कार्ड छीनकर उन्हें भगा देती है। ऐसा करने के लिए कंपनी ने कई बाउंसर रखे हैं।

श्रम कानूनों का पालन नहीं

देश के कई अन्य उद्योग प्लांट कि तरह यहाँ भी श्रम कानूनों को जूते की नोक पर रखकर मजदूरों से काम कराया जाता है। किसी भी प्रकार के अधिकार मजदूरों को नहीं हैं। उनके मौलिक अधिकारों का भी हनन होता है।

नोएडा के ही एक और कारखाने सैमसंग के श्रमिक ने वहां की  स्थितियों के बारे में बात करते हुए कहा कि कर्मचारियों को अक्सर 12 घंटे तक काम करने के लिए मज़बूर किया जाता है। कारखाने में लगभग 1000अनुबंध कर्मचारी हैं, जिन्हें न्यूनतम मजदूरी भी नहीं दी जाती है और स्थायी श्रमिकों को दिए जाने वाला किसी भी प्रकार का लाभ नहीं दिया जाता है। जिन श्रमिकों ने अतीत में संगठन बनाने का प्रयास किया है, वे कंपनी द्वारा निकाल दिए गए थे और वर्तमान में कारखाने में कोई संघ नहीं है।

ग्रेटर नोएडा में एक अन्य फैक्ट्री एलजी इलेक्ट्रॉनिक्स फैक्ट्री में श्रमिकों की स्थितियों के बारे में, पीयूडीआर ने 2016 में एक रिपोर्ट जारी की थी। रिपोर्ट में, पीयूडीआर ने वहां काम करने वाले लोगों की स्थितियों के बारे में बताया था। रिपोर्ट के अनुसार मजदूरों को उनके काम का पूरा वेतन नहीं दिया जाता है और उनके मौलिक अधिकारों का हनन किया जाता है|

इस रिपोर्ट में इस बात का भी जिक्र है कि कैसे फैक्ट्री मालिक मजदूरों के मौलिक अधिकार यानी कि यूनियन बनाने के अधिकार को कुचलते हैं। क्योंकि वो जानते हैं की मज़दूर संगठित होंगे तो अपने अधिकारों के लिए संघर्ष करेंगे। इसलिए जैसे ही कोई संगठन निर्माण की कोशिश करता है तो कंपनियां उसे चिह्नित कर परेशान और प्रताड़ित करती हैं।

कंपनी अपना पल्ला झाड़ रही है

ओप्पो कम्पनी ने एक बयान जारी कर सफाई  दी कि "हम यह स्पष्ट करना चाहते हैं कि मीडिया रिपोर्ट में जो सवाल किये जा रहे  हैं वे सही नहीं हैं, और शिकायत करने वाले उसके कर्मचारी नहीं हैं, वे स्वतंत्र हैं।हमारी कंपनी अपने कर्मचारियों का बहुत सम्मान करती है।”

जानकारों का कहना है कि ओप्पो या शाओमी जैसी कंपनियां अन्य कंपनियों को अपना काम अनुबंधित करती हैं ताकि वे कुछ होने पर अपना पल्ला झाड़ सके और आसानी से कह सकें कि वो स्वतंत्र हैं हमारा उनसे कोई संबंध नहीं है। हमें ध्यान रखन चाहिए कि देश का सबसे अधिक बिकने वाला फोन शाओमी है। इसमें काम करने वाले अधिकतर मजदूर संविदा कर्मचारी हैं या आउटसोर्स कर्मचारी हैं।

‘ईज ऑफ़ डूइंग’ बिजेनस के नाम पर मजदूरों को शोषण

गौरतलब है कि मोदी सरकार द्वारा ईज ऑफ़ डूइंग बिजनेस के नाम पर लगातार लेबर लॉ में फैक्ट्री एक्ट और अप्रेंटिसेज एक्ट में भारी बदलाव कर रही है जिसके कारण अब फैक्ट्रियां मनमाने तरीके से मजदूरों को रखती व निकलती हैं। एप्रेंटिस कर्मचारियों के नियमों में बदलाव, फिक्स टर्म जॉब और हायर एंड फायर जैसी नीतियों से मजदूर अपने मजदूर होने के मौलिक अधिकार खोता जा रहा है।

मजदूर संगठनों व मजदूरों के बीच काम करने वाले कार्यकर्ताओं ने बताया कि इस मामले में भी यही हुआ था। जैसा कि हम सभी जानते है कि दिवाली के समय बाजार में फोन व अन्य इलेक्ट्रॉनिक वस्तुओं की मांग बढ़ जाती है। इसी को देखते हुए इन कंपनियों ने उस समय नए कर्मचारियों की भर्ती की और अब जब उनकी जरूरत पूरी हो गई तो मजदूरों को बिना किसी नोटिस व चेतावनी दिए बिना निकला शुरू कर दिया।

ये कार्यकर्ता कहते हैं कि मोदी सरकार के इन नीतियों के खिलाफ ही हमारा संघर्ष है।

मज़दूर संगठन सीटू के नेता गंगेश्वर दत्त शर्मा ने न्यूज़क्लिक से बात करते हुए कहा कि नोएडा व दिल्ली एनसीआर में तमाम ऐसी फैक्ट्रियां व उद्योग हैं जहाँ श्रम कानूनों को तो छोड़िए न्यूनतम मानवीय अधिकार भी लागू नहीं होते। कंपनियां खुलेआम मजदूरों का शोषण करते हुए उनसे काम लेती हैं। यह तो एक घटना है जो हमारे सामने आई है, ऐसी तमाम घटनाएं होती हैं, जहाँ मजदूरों को साल साल भर काम करने के बाद बिना किसी जानकारी के निकाल दिया जाता है।

आगे वो कहते है कि मजदूरों को न तो न्यूनतम वेतन दिया जाता है  और न यूनियन बनाने दिया जाता है। हमारे पास कई ऐसे उदाहरण हैं जहाँ मजदूरों ने यूनियन बनाने की कोशिश की और उन्हें ही बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। यह सीधे मौलिक अधिकारों का हनन है। यह पूरे देश कि स्थति है। इसलिए देश कि दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों ने 8- 9 जनवरी को न्यूनतम वेतन, हायर एंड फायर नीति के खिलाफ फिक्स टर्म जॉब व अन्य मांगों के साथ पूरे देश में हड़ताल बुलाई है।

 

 

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