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भारत
राजनीति
हमारा लक्ष्य केंद्र में एक वैकल्पिक धर्मनिरपेक्ष सरकार सुनिश्चित करना है : पिनारयी विजयन
आज़ाद भारत में मोदी सरकार को "अब तक की सबसे अधिक जन-विरोधी सरकार" क़रार देते हुए, केरल के मुख्यमंत्री ने कहा कि यह सुनिश्चित करना होगा कि संसद में वामपंथ की ताक़त बढ़े, ताकि भारत को कॉर्पोरेट-राजनीतिक गठजोड़ के द्वारा बेचे जाने से रोका जा सके।
न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
29 Mar 2019
Translated by महेश कुमार
Kerala Chief Minister Pinarayi Vijayan

केरल के मुख्यमंत्री के रूप में, 75 वर्षीय पिनारयी विजयन भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के पोलिट ब्युरो सदस्य भी हैं, जो वाम लोकतांत्रिक मोर्चा (एलडीएफ़) द्वारा दो बड़ी चुनौतियों का सामना करने के लिए चर्चा में रहे हैं– एक तो अब तक की सबसे भीषण बाढ़ से राज्य में तबाही का सामना करने, और सबरीमाला मंदिर में महिलाओं के प्रवेश के मुद्दे पर हिंसा को रोकने के लिए संघ परिवार और उसके संगठनों के सांप्रदायिक एजेंडे का मुक़ाबला करने के लिए । केरल में एलडीएफ़ के उम्मीदवारों के चुनाव अभियान का नेतृत्व कर रहे केरल के सीएम ने एक इंटरव्यू में न्यूज़क्लिक को बताया, कि लोगों की समझ और लेफ़्ट पार्टियों और एलडीएफ़ सरकार के प्रगतिशील हस्तक्षेप की वजह से  "केरल एक शांतिपूर्ण जगह बनी हुई है।"

प्र. केरल में लोक सभा चुनावों के दौरान लोगों से संपर्क करने के लिए एलडीएफ़ का प्रमुख अभियान क्या है? 

उ.  जहाँ तक भारतीय लोकतंत्र का संबंध है आगामी आम चुनाव निर्णायक हैं। हमने देखा है कि कैसे राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) ने हमारे धर्मनिरपेक्ष मूल्यों, संवैधानिक निकायों और स्वायत्त संस्थानों सहित आधुनिक भारत के हर सकारात्मक तत्व को बदलने की कोशिश की है। इसलिए, यह भारत के विचार को बनाए रखने के लिए एक अवसर है। यह भारत की आत्मा को बचाने की लड़ाई है, यह सुनिश्चित करने का साधन है कि भारत सभी भारतीयों का है।

वामपंथियों ने वर्तमान केंद्र सरकार को बेनक़ाब करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, जो अब तक की स्वतंत्र भारत की सबसे अधिक जन-विरोधी सरकार है। इस प्रकार अल्पसंख्यकों, दलितों, किसानों, छात्रों, लेखकों और वर्तमान शासन का ख़ामियाज़ा भुगतने वाले सभी लोग अपने अधिकारों और जीवन के लिए संघर्ष कर रहे हैं। निश्चित रूप से, भारतीय जन आगामी आम चुनावों में इस निर्दयी सरकार के ख़िलाफ़ अपना ग़ुस्सा निकालेंगे।

वाम लोकतांत्रिक मोर्चा(एलडीएफ़) के लिए, हमारा पहला लक्ष्य केंद्र में आरएसएस के नेतृत्व वाली भाजपा सरकार को हराना है। दूसरा, हम लोगों से यह सुनिश्चित करने की अपील कर रहे हैं कि लोकसभा में वाम दलों की ताक़त बढ़े। हमारा अंतिम लक्ष्य यह सुनिश्चित करना है कि केंद्र में एक वैकल्पिक धर्मनिर्पेक्ष सरकार बने।

प्र. कांग्रेस दावा कर रही है कि चूंकि केंद्र में वामपंथी सरकार के सत्ता में आने का कोई मौक़ा नहीं है, इसलिए एलडीएफ़ को वोट देना व्यर्थ है। इस पर आपकी क्या प्रतिक्रिया है? संसद में वामपंथी सांसदों का होना क्यों आवश्यक है?

उ. कई राज्यों में, केंद्र में इस घातक आरएसएस-भाजपा गठबंधन के ख़िलाफ़ क्षेत्रीय दलों ने लड़ाई का मोर्चा संभाल लिया है, जहाँ तक चुनावी गठबंधन का सवाल है। इसलिए, यह देखा जाना बाक़ी है कि अगली केंद्र सरकार में कांग्रेस की वास्तव में कोई भूमिका होगी या नहीं।

जैसा कि मैंने पहले उल्लेख किया है, वामपंथियों ने इस वर्तमान जन-विरोधी शासन के ख़िलाफ़ लोगों के संघर्षों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भविष्य में भी, श्रमिक वर्ग और वंचित तबक़े - जिनमें अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, महिलाएँ और बहुत से अन्य लोग शामिल हैं - वामपंथियों पर भरोसा कर सकते हैं कि वे उनके मुद्दों को ईमानदारी से उठाएंगे और उनके साथ दृढ़ता से खड़े रहेंगे। भारत को धर्मनिर्पेक्ष लोकतंत्र बने रहने के लिए, जहाँ सभी वर्गों के लोगों के अधिकारों को बरक़रार रखा जाए, संसद में वामपंथी सांसदों का होना आवश्यक है।

वामपंथी भारत की संप्रभुता को बनाए रखने के लिए लड़ रहे हैं। हम अपने प्राकृतिक और राष्ट्रीय संसाधनों की सुरक्षा के लिए संघर्षों में भी सबसे आगे रहे हैं। साथ ही, केंद्र में कांग्रेस और भाजपा के नेतृत्व वाली दोनों सरकारों ने केवल हमारी संप्रभुता के साथ समझौता करने और सार्वजनिक संपत्तियों को बेचने की कोशिश की है। यह सुनिश्चित करने के लिए कि भारत को कॉरपोरेट-राजनीतिक गठजोड़ को न बेचा जाए, जो नव-उदारवादी एजेंडे को निर्धारित करता है और चलाता है, संसद में वामपंथियों का महत्वपूर्ण प्रतिनिधित्व होना आवश्यक है।

प्र. भाजपा समाज के ध्रुवीकरण के उद्देश्य से एक सांप्रदायिक रणनीति का पालन कर रही है। कांग्रेस ने केरल में भी ऐसी ही भुमिका निभायी है। एलडीएफ़ ने इस अभियान का मुक़ाबला करने के लिए किस तरह की योजना बनाई है?

उ. दुख की बात है कि यह सच है कि कांग्रेस, जो एक धर्मनिर्पेक्ष राजनीतिक पार्टी होने का दावा करती है, भाजपा के द्वारा साम्प्रदायिक एजेंडे के साथ चली गई। हालांकि, केरल का समाज ऐसा नहीं है जो सांप्रदायिक रूप से सोचता हो। केरल का पुनर्जागरण और धर्मनिर्पेक्षता का एक लंबा और समृद्ध इतिहास है और केरल के लोग यह सुनिश्चित करने के लिए उत्सुक हैं कि हमारा समाज ऐसा बना रहे।

पिछले कुछ महीनों में, केरल समाज ने अच्छी तरह से महसूस किया है, जो उन पोषित मूल्यों को बनाए रखने और सभी को भविष्य में प्रगति की ओर ले जाने में सक्षम है। यहाँ तक कि जब सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने और दंगे कराने के लिए कट्टरपंथी प्रयास हुए, तो केरल एक शांतिपूर्ण स्थान बना रहा, जिसकी वजह लोगों के चेतना के स्तर की निरंतरता और वामपंथी दलों और एलडीएफ़ सरकार के प्रगतिशील हस्तक्षेप हैं।

हम यह सुनिश्चित करने में सक्षम हैं कि सांप्रदायिक और निहित स्वार्थों द्वारा उत्पन्न विभिन्न चुनौतियों पर क़ाबू पाने के लिए केरल समाज प्रगतिशील बना रहे, जो हमारी एकता को नष्ट करना चाहते हैं। हमारी एकता ने हमें प्राकृतिक और मानव निर्मित चुनौतियों से उबरने में मदद की है और केरल के लोगों को एहसास है कि यह माकपा और एलडीएफ़ की उपस्थिति ही है जिसने हमारी एकता को बरक़रार रखा है।

प्र. विपक्ष का दावा है कि राज्य सरकार केवल पिछली सरकार द्वारा शुरू की गई परियोजनाओं को पूरा कर रही है। आप इस दावे पर कैसी प्रतिक्रिया देंगे? विकास पर पिछली सरकारों से अलग एलडीएफ़ सरकार का दृष्टिकोण कैसा रहा है?

उ. विकास के बारे में हमारा विचार केवल चुनिंदा क्षेत्रों या कुछ क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करना नहीं है, हमारा विकास पर एक व्यापक क़दम है, जो स्थिरता और सामाजिक न्याय में निहित है। जब पिछली सरकार के दौरान विकास पर इस तरह का सर्वव्यापी दृष्टिकोण ग़ायब था, इसलिए वे सिर्फ़ झूठे दावों का ही सहारा ले सकते हैं।

हमने जो किया है उसमें नई परियोजनाओं को शुरू करना है जो राज्य के समग्र विकास के लिए बिल्कुल आवश्यक हैं, और पिछली सरकार द्वारा छोड़ी गई परियोजनाओं को भी पूरा किया है। हमारे चार मिशन हैं जो राज्य की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए दर्ज़ हैं - हरित केरलम, अद्रम, लाइफ़ और पोथू विद्याभ्यास समरक्षण यज्ञमजम – जिसे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सराहा गया है, और मुझे यक़ीन है कि आपने प्रत्येक की कहानी सुनी और पढ़ी होगी जिन्होंने केरल के समाज में महत्वपूर्ण बदलाव किए हैं।

विकास के लिए की गई पहल पर, एलडीएफ़ सरकार का प्रदर्शन अनुकरणीय रहा है। हमने राष्ट्रीय राजमार्ग, राष्ट्रीय जलमार्ग, गेल पाइपलाइन, एलएनजी टर्मिनल, कोच्चि मेट्रो, जल मेट्रो, कन्नूर हवाई अड्डा, तटीय राजमार्ग, पहाड़ी राजमार्ग और इस तरह की प्रमुख परियोजनाओं को हासिल करने में कोई क़सर नहीं छोड़ी है। हमने अपने सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों को लाभकारी संस्थाओं में तब्दील किया है और अपने पारंपरिक उद्योगों को मज़बूत किया है। बेरोज़गारी के एक राष्ट्रीय परिदृश्य में, हम राज्य में नए रोज़गार पैदा कर रहे हैं, 20,000 अतिरिक्त पद सृजित किए हैं और अकेले लोक सेवा आयोग के माध्यम से लगभग 100,000 युवाओं को नियुक्त कर रहे हैं।

हमने आईटी क्षेत्र पर भी ध्यान केंद्रित किया है; राज्य में कार्यालय/दुकान स्थापित करने के लिए निसान और फुजित्सु जैसे अंतरराष्ट्रीय दिग्गजों को आकर्षित किया है। हमने इंटरनेट को अपने नागरिकों के अधिकार के रूप में घोषित किया है और राज्य के सभी कार्यालयों और घरों को एक उच्च गति वाले ऑप्टिकल फ़ाइबर नेटवर्क के साथ जोड़ रहे हैं। हम सार्वजनिक स्थानों पर मुफ़्त वाईफ़ाई भी प्रदान कर रहे हैं, ताकि लोगों को डिजिटल दुनिया के साथ जोड़ा जा सके।

साथ ही, हम पुरे देश के मुक़ाबले उच्चतम कल्याणकारी पेंशन प्रदान करने में सक्षम रहे हैं, एससीपी (अनुसूचित जातियों के लिए विशेष घटक योजना) और जनजातीय उप-योजना को बनाए रखा गया है, लिंग बजट को लागू किया जा रहा है, ट्रांसजेंडरों के लिए एक नीति बनाई है, और सार्वजनिक स्थानों को विकलांग लोगों के लिए मिलनसार बनाया जा रहा है।

हमने राज्य में देवासम बोर्ड के मंदिरों में दलितों और पिछड़े वर्गों के लोगों को पुजारियों के रूप में नियुक्त करने का क्रांतिकारी क़दम उठाया है। कल्याणकारी उपायों और सामाजिक न्याय पर हमारे हस्तक्षेप स्वयं ही बोलते हैं। हमारे मुताबिक़, ऐसे सर्वांगीण दृष्टिकोण के बिना, वास्तविक विकास नहीं हो सकता।

प्र. बाढ़ और उसके बाद केरल के पुनर्निर्माण में लोगों की भागीदारी और आपकी सरकार की प्रमुख उपलब्धियाँ क्या रही हैं? कांग्रेस और भाजपा ने आरोप लगाया है कि क्षति के लिए सरकार ज़िम्मेदार थी। आपकी टिप्पणी?

उ. हमारी सबसे बड़ी उपलब्धि यह सुनिश्चित करना थी कि राज्य के लोग एक ऐतिहासिक चुनौती के सामने एकजुट हों और उनमें यह विश्वास पैदा करें कि हम मिलकर आपदा का मुक़ाबला कर सकते हैं। हम अपनी सारी ऊर्जा और संसाधनों का बचाव और पुनर्वास में सक्षम कर रहे हैं, जिस पर कि बाढ़ के बाद हमारा प्राथमिक ध्यान केंद्रित था।

अब हम पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित कर रहे हैं। हमारी पहली प्राथमिकता बाढ़ से प्रभावित सभी लोगों को वित्तीय सहायता देना था। हमने 10,000 रुपये लगभग बाढ़ से प्रभावित 700,000 परिवारों को दिए। फिर हमने सड़कों और घरों के पुनर्निर्माण पर ध्यान केंद्रित किया। यह अब पूरा होने वाला है। पुनर्निर्माण केरल पहल का एक व्यापक कार्य है जिसे पूरा होने में 2-3 साल लगेंगे। सतत आजीविका सुनिश्चित की जाएगी और पुनर्निर्माण केरल पहल के माध्यम से पर्यावरण के अनुकूल निर्माण किया जाएगा।

केरल ने कुछ ही समय में जितनी अधिक वर्षा को अनुभव किया – उसके मुक़ाबले अगस्त 2018 के दूसरे सप्ताह में तीन गुना से अधिक बारिश हुई थी, तब जब हमारे जलाशय पहले से ही पूरी तरह भरे हुए थे - राज्य के इतिहास में यह अद्वितीय घटना थी। यह तथ्य कि हमारा जल और बांध प्रबंधन त्रुटिहीन था, केंद्रीय जल आयोग जैसी राष्ट्रीय एजेंसियों के अलावा और किसी ने इस बारे में नहीं बताया। वास्तव में, इस तरह के सटीक प्रबंधन के कारण बाढ़ से होने वाली तबाही पर काफ़ी हद तक अंकुश लगा लिया गया था। सरकार ने यह सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे काम किया कि क्षति कम से कम हो और समय पर बचाव और राहत कार्य किए गए। ऐसे समय में जब अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों ने भी हमारे प्रयासों की प्रशंसा की है, केरल के लोगों द्वारा इस तरह के कुत्सित राजनीतिक आरोपों को ख़ारिज कर दिया गया है।

प्र. पिछले पांच वर्षों में केंद्र-राज्य संबंधों में गिरावट और संघीय सिद्धांतों पर हमला देखा गया। केरल के लोगों पर इसका क्या असर पड़ा? क्या आपको लगता है कि 2019 के चुनावों के बाद स्थिति बेहतर हो सकती है?

उ. पिछले पांच वर्षों में, हमने राज्यों के अधिकारों पर लगातार हमला होते देखा है। जीएसटी (माल और सेवा कर) एक ऐसा ही क़दम था। अब जब इसे लागू किया गया है, राज्यों के पास अपने स्वयं के राजस्व पैदा करने के लिए काफ़ी सीमित साधन हैं। राज्यों को उन केंद्रीय योजनाओं को लागू करने के लिए मजबूर किया जा रहा है जो 'एक आकार सभी फ़िट' प्रारूप में योजनाबद्ध हैं। और, जब राज्य अपने कार्यक्रमों को बनाने की हिम्मत करता है जो उनकी वास्तविकताओं के अनुकूल होते हैं, तो केंद्र मदद करने से इनकार कर देता है। इस प्रकार, हमें अपनी योजनाओं को चलाने के लिए अपने स्वयं के साधनों को तैयार करने के बजाय, केंद्र से सहायता लेने के लिए मजबूर किया जाता है।

तथ्य यह है कि उन अंतरराष्ट्रीय समझौतों में प्रवेश किया जा रहा है, जो राज्यों के हितों के लिए हानिकारक हैं, ऐसा करना राज्यों से परामर्श के बिना हमारे बहुसंख्यक संघीय सिद्धांतों पर एक और हमला है। रबर की क़ीमतों में गिरावट एक विशेष केस स्टडी है कि कैसे संघीय सिद्धांतों की अवहेलना की जा रही है। हमने लगातार रबर के आयात पर अंकुश लगाने और आयात शुल्क को मज़बूत करने के लिए कहा है। हालांकि, ड्यूटी को लगातार कम कर दिया गया था और अनियमित आयात को प्रोत्साहित किया गया था। इस प्रकार, रबर की क़ीमतें गिर गईं। काली मिर्च का मामला भी ऐसा ही है। केरल ने केंद्र से रबर के लिए मूल्य स्थिरता कोष बनाने का अनुरोध किया। लेकिन हमारा अनुरोध बहरे कानों को कहाँ सुनाई पड़ता है। हालांकि, हमने अपनी पहल पर 500 करोड़ का कोष बनाया है।

जहाँ तक केरल का संबंध है, हमने तटीय क्षेत्रों के विकास के प्रस्ताव पर और बाढ़ के बाद सहायता के लिए हमारे अनुरोध पर केंद्र की बेरुखी को देखा है। हमें स्वैच्छिक मदद से भी वंचित कर दिया गया था जो हमारे मित्र देशों से हमें दी गई थी और राज्य के पुनर्निर्माण में उनकी सहायता लेने के लिए दुनिया भर में मलयाली लोगों को आने से रोका गया था। अनुभव से हम कह सकते हैं कि सामान्य रूप से अस्वस्थ केंद्र-राज्य संबंधों और विशेष रूप से राजकोषीय संबंधों ने हमारे राज्य को एक बड़े नुकसान में डाल दिया है।

इसलिए, केंद्र-राज्य संबंधों के पुनर्गठन के लिए समय की आवश्यकता है, जो केंद्र और राज्यों दोनों को समृद्ध करेगा। अगर आम चुनाव में वामपंथी और क्षेत्रीय दल अच्छा प्रदर्शन करते हैं, तो हम उस दिशा में कुछ सकारात्मक बदलाव की उम्मीद कर सकते हैं।

प्र. चुनाव के बाद 2019 में केंद्र में सत्ता में आने वाली नई सरकार की प्राथमिकताएँ क्या होनी चाहिए?

उ. केंद्र में एक वैकल्पिक धर्मनिपेक्ष सरकार इस रास्ते को तय करेगी। सबसे पहली और सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि भारतीय संविधान सर्वोच्च है और यह स्पष्ट रहना चाहिए कि इसके मूल सिद्धांतों को बदलने का कोई भी प्रयास बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हमारी धर्मनिरपेक्ष साख, संवैधानिक निकायों, स्वायत्त संस्थानों और लोकतांत्रिक लोकाचार में भारतीय जनता का विश्वास बहाल करने की आवश्यकता है। साथ ही और महत्वपूर्ण रूप से पिछले कुछ वर्षों के दौरान किए गए असभ्य सांप्रदायिक और जातिवादी ध्रुवीकरण से पैदा हुए घावों को ठीक करने का कार्य होना ज़रूरी है।

किसानों की दुर्दशा पर विराम लगाना और खेती में सरकारी ख़र्चों को बढ़ाकर खेती को लाभकारी बनाना और सब्सिडी में लगातार कटौती को रोकना ज़रूरी है। हमारे श्रमिकों के अधिकारों, जिन्हें नव उदारवादी नीतियों के अनुसरण के परिणामस्वरूप दबाया गया है, को बहाल करना होगा। 18,000 रुपये प्रति माह न्यूनतम मज़दूरी जैसी मांगें मनवानी होंगी। असंगठित श्रमिकों के लिए सामाजिक सुरक्षा को बिना किसी देरी के लागू करना आवश्यक है।

अंतत: नई सरकार ऐसी होनी चाहिए जो समग्र रूप से भारतीय जनता के हितों का प्रतिनिधित्व करे और हमारे समाज को एक प्रगतिशील आचार-विचार की तरह एकता की भावना से आगे ले जाए।

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