NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
पर्यावरण
भारत
राजनीति
हरियाली और विकास के बीच मसूरी रोपवे
“...एक दिन मैंने देखा कि नरोता नदी के ऊपर जेसीबी चल रही है। नदी की धार के बीच में जो पेड़-पौधे मिट्टी को पकड़कर रखते थे, उन्हें उजाड़ दिया गया और वहां सड़क बनानी शुरू कर दी। वो सड़क जंगल के बीच से ऊपर पहाड़ी की ओर जा रही थी। नदी खत्म हो रही है। मुझे लगता है कि किसी को इसकी परवाह नहीं है”।
वर्षा सिंह
25 Aug 2021
पुरुकुल गांव और मसूरी रोपवे के टर्मिनल के नज़दीक नरोता नदी।
पुरुकुल गांव और मसूरी रोपवे के टर्मिनल के नज़दीक नरोता नदी।

देहरादून के मशहूर राजपुर रोड से आगे मसूरी की पहाड़ियों की ओर ले जाता रास्ता अपनी हरियाली और शांति के लिए जाना जाता है। इस रास्ते पर कुछ बहुमंज़िला इमारतें हैं। जहां बहुत से बुजुर्ग जीवन की थकान उतारने के लिए रहने आते हैं। पुरुकुल रोड पर बगरल गांव में रह रहीं 65 वर्ष की सुनिति सेठ भी इनमें से एक हैं।

इन पहाड़ियों के बीच सुनिति रोज़ सुबह सैर को निकलती हैं। स्वच्छ हवा और मसूरी की पहाड़ियों से उतरती बरसाती नदी नरोता की पतली धार के बीच ये जगह उनके रहने के लिए मुफीद है। लेकिन पिछले वर्ष की गर्मियों से पुरुकुल रोड पर जेसीबी गाड़ियों की आवाज़ बढ़ने लगी।

वह बताती हैं “मैं पिछले वर्ष से इस जगह को बदलते हुए देख रही हूं। मुझे बुरा लग रहा है कि एक सुंदर जगह जहां पशु-पक्षी दिखते थे, अलग-अलग प्रजातियों के पौधे दिख रहे थे, धीरे-धीरे नष्ट हो रहा है। एक दिन मैंने देखा कि नरोता नदी के उपर जेसीबी चल रही है। नदी की धार के बीच में जो पेड़-पौधे मिट्टी को पकड़कर रखते थे, उन्हें उजाड़ दिया गया और वहां सड़क बनानी शुरू कर दी। वो सड़क जंगल के बीच से ऊपर पहाड़ी की ओर जा रही थी। नदी खत्म हो रही है। मुझे लगता है कि किसी को इसकी परवाह नहीं है”।

निर्माण कार्य के लिए नरोता नदी को रास्ते के तौर पर इस्तेमाल किया गया। फोटो: सुनिति सेठ

हर रोज़ सुबह की ख़ुशनुमा सैर अब सुनिति को तकलीफ़ देने लगी। अपने कैमरे में वो इस बदलती जगह की तस्वीरें रिकॉर्ड कर रही थीं। उन्होंने वर्ष 2020 की नरोता नदी की तस्वीरें दिखाई। सीमेंट से पाटकर जिसकी हरियाली छीन ली गई थी। तस्वीर देखकर ये कह पाना भी मुश्किल लग रहा था कि ये नदी की जगह है।

नरोता नदी का पानी भरने के लिए लगी मशीन

नदी को सड़क पर ला दिया

18 अगस्त-2021 की इस बरसात में नरोता नदी कल-कल की आवाज़ करती बह रही है। इसका शोर दूर तक सुनायी देता है। नदी के रास्ते के बीचोंबीच पक्की सड़क लहराती हुई गुज़र रही है। नदी का पानी इस समय सड़क को पार करता हुआ तकरीबन 5 फुट गहराई पर गिरता है। जो किसी झरने सा नज़र आता है। इसके एक कोने पर कचरे का ढेर है। वहीं कुछ 50 मीटर आगे बड़ा सा पंप लगा हुआ है। जिससे नदी का पानी टैंकरों में भरा जाता है। ये टैंकर देहरादून में पानी सप्लाई करते हैं।

उत्तराखंड के प्राकृतिक जलस्रोत, बरसाती नदियां संकट के दौर से गुज़र रही हैं। कोसी, रिस्पना, सुसवा समेत कई नदियों के लिए  पुनर्जीवन के लिए अभियान चलाया जा रहा है। नरोता नदी आज जीवित है। कल रहेगी या नहीं? पुरुकुल गांव के नज़दीक इस जगह पर आप ये सवाल भी पूछ सकते हैं कि हम सड़क पर खड़े हैं या नदी पर?

नदी के रास्ते से गुज़रती इस सड़क के साथ मेरी ये यात्रा कुछ ऊंचाई पर आगे बढ़ती है। करीब एक-दो किलोमीटर के दरमियान नरोता और सड़क के बीच खाई जितना फ़ासला आ जाता है। ऊपर से झांकने पर नदी पर एक और निर्माण कार्य होता दिखाई देता है। नदी के ठीक किनारे की जगह जेसीबी से समतल की जा चुकी है और चारदीवारी खड़ी कर दी गई है। यहां कुछ निर्माण कार्य चल रहा है। सैलानियों के लिए कोई रिजॉर्ट शायद।

नरोता नदी के ठीक किनारे चल रहा निर्माण कार्य।

पुरुकुल गांव

इसी रास्ते पर मैं आगे पुरुकुल गांव की ओर बढ़ती हूं। शाम के करीब 4 बज गए हैं। पंचायत घर पर ताला लगा था। इससे थोड़ा ही आगे चाय की एक छोटी सी दुकान पर कुछ लोग बैठे मिले। ये दुकान तकरीबन 30 वर्षों से यहां है। पत्थर के चबूतरे, पेड़ के नीचे लकड़ी की बेंच और कुछ प्लास्टिक की कुर्सियों के साथ यहां बैठने का इंतज़ाम है। दुकान के पास ही ईंट-सीमेंट और लोहे की जालियों के ढेर लगे हुए मिले। जो किसी निर्माण कार्य का संकेत दे रहे हैं। यहीं हमने मसूरी रोपवे, बदलती जगह, विकास कार्य और उससे जुड़ी उम्मीदों पर लोगों से बातचीत की।

पुरुकुल में ही वर्ष 1979 में उत्तर प्रदेश कार्बाइड एंड कैमिकल्स लिमिटेड शुरू की गई थी। तब गांव के लोगों ने फैक्ट्री के लिए अपनी ज़मीनें दी थीं। भारी प्रदूषण के चलते तकरीबन 20 वर्षों बाद फैक्ट्री बंद कर दी गई।

चाय की दुकान पर मौजूद एक सज्जन बताते हैं कि फैक्ट्री के लिए तब हमने अपनी ज़मीनें बेहद सस्ते में 2600 रुपये बीघे के हिसाब से दी थीं। आज यहां ज़मीन की कीमत 1.5 करोड़ रुपये बीघा है। फैक्ट्री में पुरुकुल गांव समेत आसपास के लोगों को रोजगार मिला था। फैक्ट्री बंद होने से बेरोज़गारी की चुनौती आ गई।

अब इसी गांव के पास मसूरी रोपवे का निर्माण किया जाएगा। रोपवे पर जनता का पक्ष जानने के लिए 17 अगस्त को उत्तराखंड पर्यटन विकास परिषद के अधिकारियों ने गांव में जन-सुनवाई की। रोज़गार की शर्त पर ज्यादातर लोगों ने रोपवे के लिए हामी भरी।

पुरुकुल गांव के लोग विकास की उम्मीद में मसूरी रोपवे का इंतज़ार कर रहे हैं

मसूरी रोपवे और रोज़गार

पुरुकुल गांव के मूल निवासी बुजुर्ग देवी सिंह थापली कार्बाइड फैक्ट्री में काम कर चुके थे। फैक्ट्री बंद होने के बाद वे बेरोज़गार हो गए। रोपवे को लेकर वह कहते हैं “यहां ज्यादातर लोग बेरोज़गार हैं। पहले हम खेती किया करते थे। लेकिन फैक्ट्री खुलने पर लोगों ने वहीं काम करना शुरू किया और खेत छूट गए। मसूरी रोपवे प्रोजेक्ट शुरू होता है तो गांव के युवाओं को रोज़गार मिलेगा”।

इसी बातचीत में आगे देवी सिंह कहते हैं “कार्बाइड फैक्ट्री खुलने पर पहलेपहल हमें बहुत ख़ुशी हुई। लेकिन धीरे-धीरे हमें पता चला कि बहुत जबरदस्त प्रदूषण हो रहा है। इसका असर हमारी सेहत पर पड़ रहा है। एक समय ऐसा आ गया जब हमें लगने लगा कि ये फैक्ट्री कल की जगह आज ही बंद हो जाए। हमें अपनी नौकरियों की परवाह नहीं रह गई थी। अगर वो फैक्ट्री चल रही होती तो आज मैं इस दुनिया में नहीं होता। गांव के बहुत से लोग प्रदूषण के चलते समय से पहले दुनिया छोड़ चुके होते”।

पुरुकुल के महेंद्र सिंह थापली भी इस बातचीत में शामिल हैं। मसूरी रोपवे को लेकर वह कहते हैं “रोजगार के खातिर हमें कुछ कीमत तो चुकानी होगी”।

रोपवे के लिहाज से गांववालों ने तैयारियां करनी शुरू कर दी हैं। जल्द ही यहां कई नए होम-स्टे नज़र आएंगे। गांव के ही एक व्यक्ति ने दो कमरों का होम स्टे तैयार कर लिया है। वह अपना नाम जाहिर नहीं करना चाहते। कहते हैं “हमें भी तो रोजगार चाहिए। रोपवे से क्षेत्र में भीड़भाड़ बढ़ेगी। पर्यटक आएंगे। उनकी गाड़ियों के लिए यहां पार्किंग बनेगी। फैक्ट्री की खाली जमीन का भी इस्तेमाल होगा। हमें साफ-सफ़ाई की व्यवस्था रखनी होगी। अब सरकार देखे कि वो कैसे पर्यटकों को संभालती है। साफ-सफाई कैसे करवाती है”।

सड़क से गुजरती एक गाड़ी की ओर इशारा कर वह बताते हैं कि ये लोग नोएडा से यहां आए हैं। इन्होंने भी अपना होम स्टे शुरू किया है।

पहाड़ और हरियाली के बीच बसे पुरुकुल गांव के बहुत से लोगों की उम्मीदें इस प्रोजेक्ट से जुड़ गई हैं।

पुरुकुल गांव में होम स्टे, रेस्टोरेंट बनने लगे हैं

मसूरी रोपवे

मसूरी रोपवे उत्तराखंड की महत्वकांक्षी परियोजना रही है। वर्ष 2009 में ही प्रोजेक्ट को पर्यावरणीय स्वीकृति दी गई थी। 5.5 किलोमीटर लंबे रोपवे से देहरादून से मसूरी पहुंचने में मात्र 20 मिनट का समय लगने की बात कही जा रही है। पुरुकुल में समुद्र तट से तकरीबन 958.2 मीटर ऊंचाई पर रोपवे का एक टर्मिनल होगा। दूसरा टर्मिनल मसूरी में समुद्र तट से तकरीबन 1996 मीटर की ऊंचाई पर बनाया जाना प्रस्तावित है।

6.35 हेक्टेअर का प्रस्तावित प्रोजेक्ट दून घाटी के इको सेंसेटिव ज़ोन में आता है। भूकंप के लिहाज़ से संवेदनशील सेसमिक ज़ोन-4 में आता है।

उत्तराखंड पर्यावरण संरक्षण एवं प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने इस रोपवे से जुड़ी अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि देहरादून-मसूरी की ये पहाड़ियां बेहद अस्थिर और संवेदनशील हैं। 

चमोली में नीति बॉर्डर पर एक हफ्ते से अधिक समय से भूस्खलन हो रहा है, गांव अलग-थलग पड़ गए हैं

बढ़ते भूस्खलन

उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाएं कई गुना बढ़ गई हैं। मानसून के समय चमोली, नैनीताल समेत राज्य के कई हिस्सों से भीषण भूस्खलन की तस्वीरें आ रही हैं। ऐसा लग रहा है मानो पहाड़ भरभरा कर सड़क पर गिर रहे हों।

उत्तराखंड राज्य आपदा प्रबंधन विभाग के मुताबिक वर्ष 2015 में राज्य में भूस्खलन की 33 घटनाएं हुई थीं। जिसमें 12 लोग मारे गए थे। वर्ष 2020 में भूस्खलन की 972 घटनाएं और इसके चलते 25 मौतें दर्ज की गईं। वर्ष 2021 में 15 अगस्त तक 132 घटनाएं हो चुकी हैं। जिसमें 12 मौतें हो चुकी हैं।

वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी में जियो-फिजिक्स विभाग के अध्यक्ष डॉ सुशील कुमार कहते हैं संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में किसी भी विकास परियोजना से जुड़े निर्माण कार्य में वैज्ञानिकों की सलाह बेहद जरूरी है। लेकिन डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के मामले में सरकार ऐसा नहीं करती। वह बताते हैं कि मसूरी रोपवे के लिए वाडिया संस्थान से कोई वैज्ञानिक सलाह नहीं ली गई है।

बढ़ते भूस्खलन को लेकर सीएसआईआर-नेशनल जियोफिजिकल रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक डॉ. वीरेंद्र तिवारी उदाहरण देते हैं “किसी क्षेत्र के लैंड-स्लाइड या रॉक-स्लाइड के बारे में हमने आज से 20 साल पहले कोई अध्ययन किया था तो अब उस अध्ययन को दोबारा करने की जरूरत है। क्योंकि मानवीय और जलवायु परिवर्तन जैसी वजहों से हालात बदल गए हैं। मान लीजिए चारधाम सड़क के लिए 20 साल पहले किया गया अध्ययन अब बहुत मायने नहीं रखता। अब आपको दोबारा उन क्षेत्रों का अध्ययन करना होगा। ताकि बदलते समय के साथ हम समझ सकें कि कौन-कौन से क्षेत्र भू-स्खलन के लिहाज से संभावित क्षेत्र बन गए हैं। उन्हें मॉनीटर किया जा सके और उनकी सुरक्षा के उपाय किये जा सकें”।

डॉ. वीरेंद्र संवेदनशील हिमालयी क्षेत्र में अधिक मानवीय गतिविधियों वाली जगह पर अर्ली वॉर्निंग सिस्टम जैसी व्यवस्था बनाने की जरूरत पर भी ज़ोर देते हैं। भूस्खलन के लिहाज से संवेदनशील जगह पर कोई पर्यटन स्थलन हो, होटल या गांव हो तो लोगों को समय रहते चेतावनी जारी की जा सके।

मसूरी की संवेदनशील पहाड़ियों के बीच बन रहा है पुरुकुल प्रोजेक्ट

एक नए राज्य के तौर पर उत्तराखंड के सामने आर्थिक विकास को लेकर बड़ी चुनौतियां हैं। हिमालयी राज्य होने की वजह से पर्यावरणीय मुश्किलें भी हैं। यहां किसी भी तरह के विकास कार्य को वैज्ञानिक तरीके से अंजाम देने की जरूरत है। लेकिन ऑल वेदर रोड जैसी परियोजनाओं में हमें ये देखने को नहीं मिला। अवैज्ञानिक तरीके से काटे गए पहाड़ और नदियों में उड़ेले गये मलबे ने सुप्रीम कोर्ट का ध्यान भी अपनी ओर खींचा। 

मसूरी रोपवे या अन्य किसी भी परियोजना को तैयार करते समय वहां मौजूद जैव-विविधता, पहाड़, नदियों और जंगल के हक़ की बात भी करनी होगी। नरोता और उसके जैसी तमाम छोटी-बड़ी नदियां और जलधाराएं हमारे विकास की कीमत चुकाने के लिए हरगिज नहीं हैं।

सभी तस्वीरें वर्षा सिंह के सौजन्य से

(लेखिका देहरादून स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं।)

UTTARAKHAND
Development of Uttarakhand
Narotta River
Construction on river
Landslides
Uttarakhand disaster

Related Stories

इको-एन्ज़ाइटी: व्यासी बांध की झील में डूबे लोहारी गांव के लोगों की निराशा और तनाव कौन दूर करेगा

देहरादून: सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्लांट के कारण ज़हरीली हवा में जीने को मजबूर ग्रामीण

उत्तराखंड: लंबित यमुना बांध परियोजना पर स्थानीय आंदोलन और आपदाओं ने कड़ी चोट की

उत्तराखंड के नेताओं ने कैसे अपने राज्य की नाज़ुक पारिस्थितिकी को चोट पहुंचाई

उत्तराखंड के राजाजी नेशनल पार्क में वन गुर्जर महिलाओं के 'अधिकार' और उनकी नुमाइंदगी की जांच-पड़ताल

उत्तराखंड: जलवायु परिवर्तन की वजह से लौटते मानसून ने मचाया क़हर

उत्तराखंड: बारिश ने तोड़े पिछले सारे रिकॉर्ड, जगह-जगह भूस्खलन से मुश्किल हालात, आई 2013 आपदा की याद

उत्तराखंड: विकास के नाम पर 16 घरों पर चला दिया बुलडोजर, ग्रामीणों ने कहा- नहीं चाहिए ऐसा ‘विकास’

'विनाशकारी विकास' के ख़िलाफ़ खड़ा हो रहा है देहरादून, पेड़ों के बचाने के लिए सड़क पर उतरे लोग

उत्तराखंड: विकास के नाम पर विध्वंस की इबारत लिखतीं सरकारें


बाकी खबरें

  • blast
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    हापुड़ अग्निकांड: कम से कम 13 लोगों की मौत, किसान-मजदूर संघ ने किया प्रदर्शन
    05 Jun 2022
    हापुड़ में एक ब्लायलर फैक्ट्री में ब्लास्ट के कारण करीब 13 मज़दूरों की मौत हो गई, जिसके बाद से लगातार किसान और मज़दूर संघ ग़ैर कानूनी फैक्ट्रियों को बंद कराने के लिए सरकार के खिलाफ प्रदर्शन कर रही…
  • Adhar
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: आधार पर अब खुली सरकार की नींद
    05 Jun 2022
    हर हफ़्ते की तरह इस सप्ताह की जरूरी ख़बरों को लेकर फिर हाज़िर हैं लेखक अनिल जैन
  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: सरकार जी के आठ वर्ष
    05 Jun 2022
    हमारे वर्तमान सरकार जी पिछले आठ वर्षों से हमारे सरकार जी हैं। ऐसा नहीं है कि सरकार जी भविष्य में सिर्फ अपने पहनावे और खान-पान को लेकर ही जाने जाएंगे। वे तो अपने कथनों (quotes) के लिए भी याद किए…
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता : एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' का तर्जुमा
    05 Jun 2022
    इतवार की कविता में आज पढ़िये ऑस्ट्रेलियाई कवयित्री एरिन हेंसन की कविता 'नॉट' जिसका हिंदी तर्जुमा किया है योगेंद्र दत्त त्यागी ने।
  • राजेंद्र शर्मा
    कटाक्ष: मोदी जी का राज और कश्मीरी पंडित
    04 Jun 2022
    देशभक्तों ने कहां सोचा था कि कश्मीरी पंडित इतने स्वार्थी हो जाएंगे। मोदी जी के डाइरेक्ट राज में भी कश्मीर में असुरक्षा का शोर मचाएंगे।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License