NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
आख़िर आज की अयोध्या कितनी धार्मिक और पवित्र है?
नई किताब से पता चलता है कि आरएसएस अयोध्या के धार्मिक रहस्यवाद को हिंसक बना रहा है।
टिकेंदर सिंह पंवार
17 Oct 2019
ayodhya

एक समय अयोध्या को हिंदू धर्म को मानने वालों का पवित्र शहर माना जाता था, लेकिन पिछले कुछ सालों में यह पूरी तरह बदल चुका है। यह अब हिंदू धार्मिक प्रयोगशाला से होते हुए दक्षिणपंथियों की राजनीतिक और धार्मिक राजधानी बन चुकी है। 

राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के चलते अयोध्या अब धर्म, राजनीति, अपराध और ज़मीन के लिए होने वाली लड़ाई के गठजोड़ का पर्याय बन चुका है। इसकी पुष्टि धीरेन्द्र के झा की एक अच्छे शोध के बाद 2009 में प्रकाशित हुई किताब  

Ascetic Games: Sadhus, Akharas and the Making of the Hindu Vote में होती है। पिछले दो दशकों में यह खेल साधुओं की हत्याओं की ज़मीन बन चुके हैं।  

अयोध्या उस वक्त चर्चा में आया जब आरएसएस और इसके अनुषांगिक संगठनों ने 1980 के दशक में इस शहर पर आधारित राम मंदिर आंदोलन शुरू किया। शताब्दियों से अयोध्या की ज़मीनों पर साधुओं के अलग-अलग अखाड़ों का अधिकार रहा है। यह अखाड़े हिंदुओं के अलग-अलग संप्रदायों से हैं, जैसे- शैव, वैष्णव और सिख तक। महंत इन अखाड़ों का नियंत्रण करते हैं और साधुओं के गुरू होते हैं। इसलिए अयोध्या की धार्मिक राजनीति में मंहत की भूमिका अहम होती है।

आरएसएस ने ख़ासकर इन्हें एक राजनीतिक हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया है। अतीत में आरएसएस और बीजेपी के पास मंहतों का उतना समर्थन नहीं था, इसलिए राम मंदिर आंदोलन का समर्थन जुटाना आसान नहीं था। अखाड़ों द्वारा इस आंदोलन को समर्थन न देने के अलग-अलग कारण थे।

संघ परिवार ने प्रलोभन के तहत युवा साधुओं का अलग-अलग अखाड़ों में एक समूह बनाया और उन्हें महंतों के ख़िलाफ़ सिर्फ़ भड़काया ही नहीं, बल्कि धोखा देने और उन्हें जान से मारने के लिए भी प्रेरित किया। चेलों को गुरुओं के ख़िलाफ़ साज़िश रचने के लिए मजबूर किया गया। अयोध्या में किसी भी संप्रदाय का अखाड़ा कोर्ट-कचहरी से नहीं बच सका। कई महंत डर से अपने अखाड़ों के बाहर रहने लगे और कुछ ने सुरक्षाकर्मियों की मदद ली।  

संघ के साथ मिलकर शिष्यों ने महंतों की बड़ी संख्या में हत्या की। यह सब झा की किताब में है। फिर भी ऐसी हत्याओं के ख़िलाफ़ कोई मामला दर्ज नहीं किया गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि महंतों के शवों का न तो अंतिम संस्कार हुआ और न ही उन्हें दफ़नाया गया। हिंदू धर्म के मिथकों और विश्वास के अनुसार उन्हें सरयू में बहाया गया, ताकि भगवान विष्णु के धाम वैकुंठ पहुंचाया जा सके। 

पोस्टमार्टम की क़ानूनी प्रक्रिया का अयोध्या के धार्मिक संस्थानों ने जमकर विरोध किया। शायद ही कभी किसी महंत का मामला पुलिस तक पहुंचा हो। इसलिए अखाड़ों में नए महंतों की नियुक्ति प्रकृति न होकर हिंसा से भरी हुई है।

जैसा किताब में बताया गया है, अयोध्या में एक प्रसिद्ध लोकोक्ति है:

चरण दबा के संत बने हैं,

गर्दन दबा महंत;

परंपरा सब भूल गए हैं,

भूल गए हैं ग्रंथ

दे दो इनको भी कुछ ज्ञान, धरा पर एक बार फिर आओ तुम

हे राम...

एक महंत इसलिए भी ताक़तवर होता है क्योंकि वह अखाड़े की ज़मीन का संरक्षक होता है। वह देवताओं के नाम पर इस ज़मीन को अपने मुताबिक़ बेच और इस्तेमाल कर सकते हैं। इन ज़मीनों पर अधिकार के चलते महंत एक ताक़तवर आदमी हो जाता है। इसी वजह से संघ परिवार मठ और अखाड़ों में अपनी पहुंच बनाने में कामयाब रहा। राम मंदिर आंदोलन के इस छुपे हुए फ़लक पर किताब में बहुत काम हुआ है।

आरएसएस और इससे संबंधित विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों ने हिंदू रहस्यवाद की गुरू-शिष्य परंपरा को बहुत नुकसान पहुंचाया है। आज अयोध्या के अखाड़ों की राजनीति ताक़त, पैसे, संपत्ति और सुरक्षाकर्मियों जैसे साज-सज्जा के लालच से चलती है। वे उस रहस्यवाद पर आधारित नहीं हैं, जिन्हें एक धार्मिक हिंदू भरोसे के साथ देख सके। हिंदुत्व राजनीति के चलते, अयोध्या का माहौल हिंदू तप और रहस्यवाद से पूरी तरह राजनीति की ओर मुड़ चुका है।

इस वक्त अयोध्या में सुप्रीम कोर्ट में अंतिम चरण में चल रहे बाबरी-राम मंदिर विवाद पर बात चल रही है। विमर्श का बड़ा मुद्दा है कि क्या फ़ैसला राम मंदिर के पक्ष में आएगा? भू-माफ़िया शहर के भीतर और बाहर बड़ी मात्रा में ज़मीन ख़रीद रहा है। माना जा रहा है कि केंद्र सरकार इस इलाक़े में क़ीमतों को बढ़ाने और क्षेत्र की ज़मीन से पैसा बनाने के लिए बड़ा निवेश करेगी। बताया जा रहा है कि ज़्यादातर ख़रीद़दार बीजेपी और संघ से संबंधित हैं। निवेश की आस में कुछ गुजराती निवेशकों ने भी ज़मीनें ख़रीद ली हैं। 

क्षेत्र में दूसरी घटनाएं काफ़ी राजनीतिक हैं। यह सब आरएसएस के उस प्रोजेक्ट से जुड़ा है, जिसमें वो अयोध्या को राजनीतिक-धार्मिक राजधानी बनाना चाहता है, जो हिंदू-भारत का मॉडल है। संगठन ने पहले ही शहर में चार मालों वाले 40,000 हजार वर्गफ़ुट के ऑफ़िस को बनाना शुरू कर दिया है। आख़िर आरएसएस को इतनी जगह की क्या ज़रूरत है? सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसला देने से पहले ही इस नई धार्मिक नगरी में आरएसएस का मुख्यालय तैयार हो चुका होगा। संगठन के अतीत में किए गए रणनीतिक हस्तक्षेप से साफ़ हो जाता है कि यह आगे हिंदुत्व प्रोजेक्ट को आगे ले जाने में भरोसा रखता है। 

राम मंदिर आंदोलन की दो परतें हैं। पहले वो धार्मिक हिंदू हैं, जो वाकई में अयोध्या के रहस्यवाद में यक़ीन रखते हैं और मानते हैं कि यह राम के जन्म का स्थान है।  इससे यह भी पता चलता है कि लोकतांत्रिक आंदोलन, जब शहर में धार्मिक मामलों की बात आती है तो एक प्रगतिशील और लोकतांत्रिक नज़रिया बनाने में नाकामयाब रहे हैं। 

दूसरी परत राजनीतिज्ञों की है। ख़ासकर संघ परिवार, जिसने हिंदुत्व की राजनीति को फैलाने के लिए अयोध्या का इस्तेमाल किया। इस परत ने शहर का माहौल ख़राब कर दिया। बाबरी मस्जिद की जगह पर राम मंदिर का निर्माण इनके लिए मुस्लिमों को हराने और पुरातनकालीन बर्बरता की जीत का तरीक़ा है। 

हिंदू रहस्यवाद के आधार, गुरू-शिष्य परंपरा पर हमलों ने अयोध्या को एक पवित्र शहर से माफ़िया और हत्यारों की जगह में बदल दिया है। सवाल उठता है कि क्या ऐसा आंदोलन हिंदुओं का प्रतिनिधि हो सकता है।

अंग्रेजी में लिखा मूल लेख आप नीचे लिंक पर क्लिक करके पढ़ सकते हैं। 

How Pious Is Today’s Ayodhya?

ram temple
ayodhya
Vishv Hindu Parishad
BJP
RSS

Related Stories

भाजपा के इस्लामोफ़ोबिया ने भारत को कहां पहुंचा दिया?

कश्मीर में हिंसा का दौर: कुछ ज़रूरी सवाल

सम्राट पृथ्वीराज: संघ द्वारा इतिहास के साथ खिलवाड़ की एक और कोशिश

हैदराबाद : मर्सिडीज़ गैंगरेप को क्या राजनीतिक कारणों से दबाया जा रहा है?

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

धारा 370 को हटाना : केंद्र की रणनीति हर बार उल्टी पड़ती रहती है

मोहन भागवत का बयान, कश्मीर में जारी हमले और आर्यन खान को क्लीनचिट

मंडल राजनीति का तीसरा अवतार जाति आधारित गणना, कमंडल की राजनीति पर लग सकती है लगाम 

बॉलीवुड को हथियार की तरह इस्तेमाल कर रही है बीजेपी !

गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा
    27 May 2022
    सेक्स वर्कर्स को ज़्यादातर अपराधियों के रूप में देखा जाता है। समाज और पुलिस उनके साथ असंवेदशील व्यवहार करती है, उन्हें तिरस्कार तक का सामना करना पड़ता है। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट के आदेश से लाखों सेक्स…
  • abhisar
    न्यूज़क्लिक टीम
    अब अजमेर शरीफ निशाने पर! खुदाई कब तक मोदी जी?
    27 May 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस एपिसोड में वरिष्ठ पत्रकार अभिसार शर्मा चर्चा कर रहे हैं हिंदुत्ववादी संगठन महाराणा प्रताप सेना के दावे की जिसमे उन्होंने कहा है कि अजमेर शरीफ भगवान शिव को समर्पित मंदिर…
  • पीपल्स डिस्पैच
    जॉर्ज फ्लॉय्ड की मौत के 2 साल बाद क्या अमेरिका में कुछ बदलाव आया?
    27 May 2022
    ब्लैक लाइव्स मैटर आंदोलन में प्राप्त हुई, फिर गवाईं गईं चीज़ें बताती हैं कि पूंजीवाद और अमेरिकी समाज के ताने-बाने में कितनी गहराई से नस्लभेद घुसा हुआ है।
  • सौम्यदीप चटर्जी
    भारत में संसदीय लोकतंत्र का लगातार पतन
    27 May 2022
    चूंकि भारत ‘अमृत महोत्सव' के साथ स्वतंत्रता के 75वें वर्ष का जश्न मना रहा है, ऐसे में एक निष्क्रिय संसद की स्पष्ट विडंबना को अब और नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    पूर्वोत्तर के 40% से अधिक छात्रों को महामारी के दौरान पढ़ाई के लिए गैजेट उपलब्ध नहीं रहा
    27 May 2022
    ये डिजिटल डिवाइड सबसे ज़्यादा असम, मणिपुर और मेघालय में रहा है, जहां 48 फ़ीसदी छात्रों के घर में कोई डिजिटल डिवाइस नहीं था। एनएएस 2021 का सर्वे तीसरी, पांचवीं, आठवीं व दसवीं कक्षा के लिए किया गया था।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License