NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
राजनीति
अंतरराष्ट्रीय
IMF दंगों की वापसी, पाकिस्तान से इक्वाडोर तक छाई अशांति
IMF की नई भाषणबाज़ी मीठी है, लेकिन इसकी नीतियां पहले से कहीं ज़्यादा कठोर हो चली हैं।
विजय प्रसाद
16 Oct 2019
पाकिस्तान से इक्वाडोर तक छाई अशांति

हर साल अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) का बोर्ड वाशिंगटन डीसी स्थित अपने मुख्यालय में मिलता है। इस साल यह बोर्ड नई अध्यक्ष क्रिस्टलिना जॉरजिएवा के नेतृत्व में मिलेगा। वर्ल्ड बैंक से आईं क्रिस्टलिना ने IMF में क्रिस्टीन लेगार्ड की जगह ली है। वहीं लेगार्ड अब अटलांटिक पार जाकर यूरोपियन सेंट्रल बैंक की कमान संभालेंगी। कुल मिलाकर यह बस कुर्सी की अदला-बदली का खेल है। मुट्ठी भर अफ़सर ही इन नौकरियों में यहां-वहां होते रहते हैं। 

IMF के इस क्रम को अगर बदलने की कोशिश होती है, तो संगठन संबंधित देश पर बड़े प्रतिबंध लगाता है। IMF अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उधार देने वालों को संबंधित देश की मदद को मनाही कर देता है। परेशान देशों को तभी मदद मिलती है, जब वे ऐसी नीति बनाएं, जो वाशिंगटन में IMF के अर्थशास्त्रियों द्वारा तय की गई हो, न कि उन देशों में जनप्रतिनिधियों द्वारा।

पिछले चार दशकों में जो देश IMF के पास पहुंचे और अपने लोगों पर कठोरता दिखाई, उनकी सड़कों पर दंगे हुए हैं। 80 के दशक में इन दंगों के लिए 'IMF दंगे' नाम का शब्द इस्तेमाल किया गया। सभी जानते थे कि IMF की नीतियों के चलते परेशान लोग सड़कों पर उतर आए हैं। इसलिए यह नाम बिलकुल सटीक था। इसमें दंगों पर नहीं, बल्कि IMF पर ज़ोर था।

इनमें सबसे प्रसिद्ध वेनेज़ुएला में 1989 में हुआ काराकाजो का दंगा है, इसी से वह प्रक्रिया चालू हुई जिससे हयूगो शावेज़ सत्ता में आए और वोलिवियन क्रांति का रास्ता खुला। 2011 में हुई अरब क्रांति को भी IMF दंगे कहना सही होगा। क्योंकि इसकी शुरुआत IMF की कठोर नीतियों और बढ़ते खाने की क़ीमतों के चलते ही हुई थी। हाल में पाकिस्तान से लेकर इक्वाडोर तक फैली अशांति को भी IMF दंगों के तहत रखना होगा।

इन दंगों की प्रतिक्रिया में पुरानी नीतियों के लिए IMF ने नए शब्द गढ़े। इनमें हम ''सोशल काम्पैक्ट'', स्ट्रक्चरल एडजस्टमेंट 2.0 और अजीबो-ग़रीब एक्पेंशनरी ऑउस्टेरिटी (विस्तारवादी कठोरता) को सुनते आए हैं। लैंगिक और पर्यावरण के मुद्दों पर IMF में बात होती है, लेकिन यह केवल शब्दों का खेल है, जो IMF आर्टिकल IV के सुझाव और स्टाफ काग़ज़ातों की सजावट के लिए इस्तेमाल होते हैं। इस चोले के नीचे IMF का असली चेहरा है, जिसमें मज़दूरी की पगार को कम कर, सार्वजनिक क्षेत्रों को सिकोड़कर और सार्वजनिक ख़र्च पर बंदिश लगाकर उद्योगपतियों के लिए नीतियां बनाई गई हैं। मीठे शब्दों से इन नीतियों पर कोई फ़र्क़ नहीं आया है। 

इक्वाडोर के लोग अपने राष्ट्रपति लेनिन मोरेनो की IMF के साथ हुई डील के ख़िलाफ़ खड़े हो गए। उन्हें ईंधन सब्सिडी पर की गई कटौती को वापस लेना पड़ा। मोरेनो के पास कोई विकल्प नहीं था। अगर वो नहीं मानते तो प्रदर्शनकारी उन्हें हटा देते। लेकिन अब मोरेनो को IMF के पास वापस लौटना है। अगर लोकतांत्रिक नियम चलते रहते हैं तो IMF को इक्वाडोर के जनमत का सम्मान करना होता। लेकिन IMF में तो लोकतंत्र है नहीं। तब यह अपने मुख्य निवेशक अमेरिका के पास वापस लौटता है। 

फ़िलहाल अमेरिका 16.52 फ़ीसदी वोट शेयर के साथ IMF बोर्ड में सबसे ज़्यादा वोट रखता है। इससे बहुत पीछे दूसरे नंबर पर जापान (6.15 फ़ीसदी), चीन(6.09 फ़ीसदी), जर्मनी (5.32 फ़ीसदी) हैं। इसके बाद ब्रिटेन और फ़्रांस का नंबर है। दोनों के पास 4.03 फ़ीसदी हिस्सेदारी है। ''कंवेंशन'' के मुताबिक़ IMF का अध्यक्ष एक यूरोपीय होगा। लेकिन IMF में यूरोपीय लोगों के पास नियंत्रण नहीं है। 1998 में न्यूयॉर्क टाइम्स ने छापा- "IMF अमेरिकी राजकोष की रखवाली करने वाले कुत्ते की तरह बर्ताव करता है।"

IMF में अमेरिका के पास प्रभावी वीटो है। जब अमेरिका के हित में होता है तो IMF का रूढ़ीवाद ख़त्म हो जाता है, जैसा मुबारक के शासनकाल वाले मिस्र के लिए 1987 और 1991 में हुआ। अगर अमेरिका को किसी देश पर नकेल लगानी होती है, तो IMF वैसा ही करता है। ऐसे में इक्वाडोर में लोकतंत्र मायने नहीं रखता, मायने ये रखता है कि इक्वाडोर सही या ग़लत तरीक़े से IMF और अमेरिका के सामने झुके। मोरेनो ने सब्सिडी पर की गई कटौती को वापस ले लिया है। लेकिन हो सकता है कि भविष्य में किसी दूसरे नाम की आड़ में वे इसे दोबारा लाएं। IMF इससे कम मंज़ूर ही नहीं करेगा।

IMF की इस रूढ़ीवादिता का कई बार बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। मलावी का मामला बहुत ही दुखदायी है। 1996 में IMF ने वहां की सरकार पर ''एग्रीकल्चर डिवेल्पमेंट और मार्केटिंग कॉरपोरेशन'' के निजीकरण करने का दवाब डाला। यह संस्था मलावी के अनाज भंडार को भी देखती थी और देश में अनाज के वितरण मूल्य को भी निर्धारित करती थी। इस संस्था के निजीकरण के बाद मलावी की सरकार के पास आपात स्थिति में अपने लोगों को बचाने के लिए कोई औज़ार ही नहीं बचा। 2001 के अक्टूबर से 2002 में मार्च तक मक्के की क़ीमत में 400 फ़ीसदी का इज़ाफ़ा हो गया। 2000 और 2001 में आई बाढ़ से देश का अनाज उत्पादन बुरी तरह प्रभावित हुआ। लोग भूख से मरने लगे। 3000 लोग मारे गए। पर IMF ने तरस नहीं खाया। मलावी को अपने उधार को चुकाना जारी रखना था। 2002 में इसने अपने बजट का 20 फ़ीसदी हिस्सा (70 मिलियन डॉलर) उधार चुकाने में ख़र्च किया। अगर मलावी के स्वास्थ्य, शिक्षा और कृषि के खर्च को इकट्ठा कर दिया जाए, तो भी यह उधार चुकाने में हुए ख़र्च से कम था। 

मलावी के पास कोई सहारा नहीं था, आज तक यह संकट जारी है। उस वक़्त मलावी के राष्ट्रपति बकिली मुलुजी ने कहा था, "खाद्यान्न संकट के लिए IMF ज़िम्मेदार है।" IMF की तलवार की धार पर चलने वाले कई दूसरे देशों के साथ भी मलावी जैसा हुआ।

कोई भी IMF की बोर्ड मीटिंग में लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का पालन नहीं करेगा। चाहे वो ख़ुद संगठन के भीतर की बात हो या IMF के दूसरे देशों से संबंधों की। इक्वाडोर के प्रदर्शन ने IMF से समझौते को रद्द करवा दिया। अर्जेंटीना के मतदाता भी कुछ ही हफ़्तों में ऐसा करेंगे। क्या अब ऐसी स्थिति बनेगी कि IMF की नीतियों और लोकतंत्र में फ़र्क़ पर बात की जा सके? हाल के प्रदर्शनों का मुख्य उद्देश्य ईंधन सब्सिडी या स्थिर मुद्रा की मांग नहीं थी। दरअसल अब लोग अपनी अर्थव्यवस्था पर लोकतांत्रिक नियंत्रण चाहते हैं।

विजय प्रसाद Leftword Books के चीफ एडिटर हैं और इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट के प्रोजेक्ट, Globetrotter के मुख्य संवाददाता और राइटिंग फ़ैलो हैं। 

स्रोत: इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट

यह लेख इंडिपेंडेंट मीडिया इंस्टीट्यूट के प्रोजेक्ट, Globetrotter ने छापा है।

Austerity
Ecuador rejects IMF
Argentina IMF
Democracy versus IMF
IMF riots
Anti-IMF uprisings

Related Stories

"यह हमारे अमेरिका का वक़्त है" : एएलबीए अर्जेंटीना में करेगा तीसरी महाद्वीपीय बैठक

प्यूर्टो रिको में शिक्षकों ने की वेतन और सुविधाओं की मांग के साथ देशव्यापी हड़ताल

पाकिस्तान में राजनीतिक अशांति की आर्थिक जड़ों को समझना ज़रूरी है

ट्यूनीशिया के राष्ट्रपति चुनावों में दांव पर आख़िर क्या है?


बाकी खबरें

  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    दिल्ली उच्च न्यायालय ने क़ुतुब मीनार परिसर के पास मस्जिद में नमाज़ रोकने के ख़िलाफ़ याचिका को तत्काल सूचीबद्ध करने से इनकार किया
    06 Jun 2022
    वक्फ की ओर से प्रस्तुत अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि यह एक जीवंत मस्जिद है, जो कि एक राजपत्रित वक्फ संपत्ति भी है, जहां लोग नियमित रूप से नमाज अदा कर रहे थे। हालांकि, अचानक 15 मई को भारतीय पुरातत्व…
  • भाषा
    उत्तरकाशी हादसा: मध्य प्रदेश के 26 श्रद्धालुओं की मौत,  वायुसेना के विमान से पहुंचाए जाएंगे मृतकों के शव
    06 Jun 2022
    घटनास्थल का निरीक्षण करने के बाद शिवराज ने कहा कि मृतकों के शव जल्दी उनके घर पहुंचाने के लिए उन्होंने रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह से वायुसेना का विमान उपलब्ध कराने का अनुरोध किया था, जो स्वीकार कर लिया…
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    आजमगढ़ उप-चुनाव: भाजपा के निरहुआ के सामने होंगे धर्मेंद्र यादव
    06 Jun 2022
    23 जून को उपचुनाव होने हैं, ऐसे में तमाम नामों की अटकलों के बाद समाजवादी पार्टी ने धर्मेंद्र यादव पर फाइनल मुहर लगा दी है। वहीं धर्मेंद्र के सामने भोजपुरी सुपरस्टार भाजपा के टिकट पर मैदान में हैं।
  • भाषा
    ब्रिटेन के प्रधानमंत्री जॉनसन ‘पार्टीगेट’ मामले को लेकर अविश्वास प्रस्ताव का करेंगे सामना
    06 Jun 2022
    समिति द्वारा प्राप्त अविश्वास संबंधी पत्रों के प्रभारी सर ग्राहम ब्रैडी ने बताया कि ‘टोरी’ संसदीय दल के 54 सांसद (15 प्रतिशत) इसकी मांग कर रहे हैं और सोमवार शाम ‘हाउस ऑफ कॉमन्स’ में इसे रखा जाएगा।
  • न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    कोरोना अपडेट: देश में कोरोना ने फिर पकड़ी रफ़्तार, 24 घंटों में 4,518 दर्ज़ किए गए 
    06 Jun 2022
    देश में कोरोना के मामलों में आज क़रीब 6 फ़ीसदी की बढ़ोतरी हुई है और क़रीब ढाई महीने बाद एक्टिव मामलों की संख्या बढ़कर 25 हज़ार से ज़्यादा 25,782 हो गयी है।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License