NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
SC ST OBC
आंदोलन
भारत
राजनीति
दलितों पर बढ़ते अत्याचार, मोदी सरकार का न्यू नॉर्मल!
दलित परिप्रेक्ष्य से देखें तो इन आठ सालों में दलितों पर लगातार अत्याचार बढ़े हैं। दलित हत्याओं के मामले बढ़े हैं। दलित महिलाओं पर बलात्कार बढ़े हैं। जातिगत भेदभाव बढ़े हैं।
राज वाल्मीकि
27 May 2022
protest

26 मई, 2022 को केंद्र में मोदी सरकार के 8 साल पूरे हुए। दलित परिप्रेक्ष्य से देखें तो इन आठ सालों में दलितों पर लगातार अत्याचार  बढ़े हैं। दलित हत्याओं के मामले बढ़े हैं। दलित महिलाओं पर बलात्कार बढ़े हैं। जातिगत भेदभाव बढ़े हैं। धार्मिक आस्था या धार्मिक भावनाएं ‘आहत’ होने के नाम पर दलितों पर जुल्मो-सितम बढ़े हैं।

पहले लखनऊ विश्वविद्यालय के हिंदी के  दलित प्रोफ़ेसर रविकांत चंदन और अब  दिल्ली विश्वविद्यालय के इतिहास के प्रोफेसर रतनलाल -  इसका ताज़ा-तरीन उदाहरण हैं। बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के विचारों से प्रभावित होकर संवैधानिक मूल्यों के साथ जब दलित गरिमा से, इज्जत से अपनी जिंदगी जीना चाह रहे हैं, तो मनुवादी मानसिकता वाले दबंग ये बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। आंबेडकर से तो उन्हें इतनी चिढ़ है कि वे उनकी मूर्ति को भी बर्दाश्त नहीं कर पा रहे हैं। इसका ताज़ा उदाहरण 26 मई 2022 का ही है जब उत्तर प्रदेश के महोबा में बाबा साहब की मूर्ति तोड़ दी गई। गौरतलब है कि बाबा साहेब की मूर्ति तोड़ने की न तो ये पहली घटना है और न आखिरी।  

इसे भी पढ़ें: ‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार

इसके अलावा कथित उच्च जाति के कुछ डोमिनेंट लोगों का ईगो इस बात को बर्दाश्त ही नहीं कर पाता कि कोई दलित उनके जैसी मूंछे रखें। ये वर्चस्वशाली लोग दलितों की हत्या करने से नहीं चूकते। दलित दूल्हा घोड़ी पर चढ़कर बरात लेकर दुल्हन के यहाँ जाए –ये भी इन्हें बर्दाश्त नहीं। दलित अधिक धन कमाए, अच्छा मकान बनवाए। रौब से रहे। बाइक से या कार से इनके सामने से गुजरे तो उसे नीचा दिखाने से लेकर, उस पर तरह-तरह के अमानवीय  अत्याचार ही नहीं बल्कि उसकी हत्या तक कर देते हैं।

इसे भी पढ़ें- मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

दलितों पर इन दबंगों के अत्याचारों की सूची इतनी लम्बी है कि इस पर पूरी पुस्तक ही लिखी जा सकती है। बिहार के बथानी  टोला से,  महाराष्ट्र  के खैरलांजी, हरियाणा के मिर्चपुर, गुजरात के  ऊना जैसे अनेक उदाहरण दिए जा सकते हैं। दलितों पर अत्याचारों का ये अंतहीन  सिलसिला अभी भी जारी है.... ।  

कथित उच्च जाति के दबंगों के लिए दलित महिलाएं और दलित लड़कियां इजी टारगेट होती हैं। 23 मई 2022 की ‘हिंदी खबर’ के अनुसार उत्तर प्रदेश के पीलीभीत में सुनगढ़ी थाने के अंतर्गत एक नाबालिग दलित लड़की को नौकरी दिलाने के बहाने आयुर्वेदिक कॉलेज के  क्लर्क संदीप लाला ने न केवल उससे बलात्कार किया बल्कि उसका अश्लील वीडियो बना लिया और उसे सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देकर उसे ब्लैकमेल कर बलात्कार करता रहा। अंत में लडकी ने अपनी मां को बताया तब जाकर ,एफ़आईआर  दर्ज हुई और संदीप को गिरफ्तार किया गया। पिछली 11 मई को 26 वर्षीया दलित हरियाणवी गायिका का दो  लोगों ने मर्डर कर दिया।

हाल ही में हरियाणा में स्वाभिमान सोसाइटी और इक्वालिटी नाउ ने संयुक्त रूप से सर्वे किया। पिछले 12 वर्षों (2009-2020) की एक सर्वे रिपोर्ट नेशनल हेराल्ड में 25 मई 2022 को प्रकाशित हुई जिसके अनुसार दलित महिलाओं और लड़कियों पर कम से कम 80% यौन हिंसा दबंग जाति के पुरुषों द्वारा की जाती है।

भेदभाव के रूप अनेक

हम अक्सर समाचार पत्रों  में पढ़ते हैं कि दलितों का मंदिर में प्रवेश निषेध है, दलित दूल्हे को नहीं करने दिया मंदिर में प्रवेश।

6 मई 2022 के दैनिक जागरण की एक खबर का शीर्षक है – पंचायत का फैसला : गाँव के यज्ञ में शामिल नहीं हो सकते अनुसूचित जाति के लोग। (बिहार, जिला शेखपुरा, मालदह पंचायत, फेदालिबीघा गाँव।)

10 मई 2022 के अमर उजाला की खबर के अनुसार –‘खेत में अनुसूचित जाति का व्यक्ति घुसा तो 5 हजार रुपये जुरमाना और 50 जूते सजा के रूप में मारे जायेंगे’। इसका बदमाश विक्की त्यागी के पिता राजबीर प्रधान ने मुनादी कराकर ऐलान किया। यह घटना चरथावल, मुजफ्फरनगर के गाँव पावटी  खुर्द की है। दबंग प्रधान की नाराजी का कारण यह है  कि अनुसूचित जाति  के लोगों ने उसके खेत में गेहूं की फसल काटने से इनकार कर दिया था।

दैनिक 7 मई 2022  के जागरण के अनुसार उत्तर प्रदेश के महोबा में ‘घड़े से पानी पिया तो शिक्षक ने छात्रा को पीटा, बात करने गए पिता से अभद्रता कर भगाया’। छिकहरा गांव के पूर्व माध्यमिक विद्यालय में परिसर में रखे घड़े से पानी पीने पर गुस्साए शिक्षक ने छात्रा को बुरी तरह पीटा। रोती बिलखती कक्षा सात की छात्रा घर पहुंची तो उसने स्कूल में हुई आपबीती बयां की। बात करने जब पिता विद्यालय पहुंचे तो शिक्षक ने उनसे भी अभद्रता कर दी। आरोप है कि उन्हें जातिसूचक शब्द कहकर विद्यालय से भगा दिया। इस  घटना को पढ़कर  बाबा साहेब भीमराव आंबेडकर के छात्र जीवन का स्मरण हो आया जब उन्हें घड़े से पानी पीने नहीं दिया जाता था क्योंकि वे अछूत थे लेकिन आज इक्कीसवीं सदी में सन 2022 में भी इस तरह की घटनाए घट रही हैं। 

scroll.in की 25 मई 2022 की एक खबर के अनुसार उत्तराखंड में फिर कथित उच्च जाति के बच्चों ने दलित माता के हाथ का खाना खाने से इनकार कर दिया। ऐसा पिछले 5 महीने में दूसरी बार हुआ है। आखिर बच्चों में ये जातिगत भेदभाव के बीज उनके परिवार द्वारा ही उनके कोमल मन-मस्तिष्क में बोए जाते हैं।  

इसे भी पढ़ें: बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

अलीगढ़ में अनुसूचित जाति के लोगों ने 70 से ज्यादा घरों पर लटकाया “यह मकान बिकाऊ है” का बैनर

अमर उजाला की 23 मई 2022 की खबर  के अनुसार अलीगढ़ के सांगवान सिटी में रह रहे अनुसूचित जाति के लोगों ने आंबेडकर जयन्ती के मौके पर भंडारा करने की अनुमति न देने पर अपने घरों पर “यह मकान बिकाऊ है” का बैनर लटका दिया है। उस बैनर में ‘दलित उत्पीड़न से पलायन को मजबूर’ भी लिखा है। सांगवान सिटी में रहने वाले संतोष कुमार ने बताया कि प्रशासन से हमने आंबेडकर जयन्ती पर पार्क में भंडारा कराने की अनुमति मांगी लेकिन अनुमति तो मिली ही नहीं उलटे पार्क में पानी भरवा दिया गया जिससे कि कार्यक्रम न  हो सके। यहाँ हम दलितों  का दलित होने के  कारण बहुत उत्पीड़न होता है इसी से परेशान होकर हमने अपने मकान पर ये बैनर लगवाए हैं।  

संविधान से क्यों चिढ़ता है  मनुविधान

7 मई 2022 के दैनिक भास्कर की खबर के अनुसार सीहोर नर्मदापुरम में प्रसिद्ध कथावाचक पंडित प्रदीप मिश्रा ने देश को हिंदू राष्ट्र बनाने की मांग की। उन्होंने ये बात शुक्रवार को कथा सुनाने के दौरान गीत के माध्यम से की। उनका कहना है कि वे संविधान को बदल कर हिंदू राष्ट्र बनाएंगे। वे इस बात के लिए लोगों को जागरूक करेंगे। बकौल कथावाचक :

सोने की चिड़िया को अब सोने का शेर बनाना है।

संविधान को बदलो… हमको हिंदू राष्ट्र बनाना है।

पंडित  प्रदीप मिश्र जैसी मनुवादी विचारधारा के लोग संविधान को बदलना चाहते हैं। उन्हें संविधान से एक प्रकार की चिढ़ है। क्योंकि संविधान सिर्फ हिन्दुओं की बात नहीं करता बल्कि वह भारत में रहने वाले हर नागरिक की बात करता है चाहे वह किसी भी धर्म या जाति या लिंग का हो। संविधान दलितों को जागरूक और सतर्क करता है। जागरूक दलित जानता है कि आरक्षण को खत्म किया जा रहा है। दलितों के ऊपर अत्याचार हो रहे हैं। उनकी बहन-बेटियों का यौन-उत्पीड़न हो रहा है। जो लोग उसके हक़-अधिकारों की बात कर रहे  हैं उन्हें देशद्रोह के नाम पर जेल में डाला जा रहा है। सरकारी संस्थानों को निजी हाथों में बेचकर दलितों की नौकरियां और आरक्षण खत्म किया जा रहा है। लेटरल एंट्री (पीछे के दरवाजे से भर्ती) के जरिये सरकार संविधान में दिए मौलिक अधिकारों का उल्लंघन कर दलितों के आगे बढ़ने का रास्ता बंद कर रही है।

ज़ुल्म सहो खामोश रहो न्यू नॉर्मल दौर है ये!

अभी देश में जो दौर चल रहा है उससे एक बात तो साफ़ नजर आती है कि मनुवादी ताकतों का वर्चस्व दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है। यही वजह  है कि दलितों का शोषण, उन पर अन्याय, अत्याचार बढ़ते जा रहे हैं। ऐसा लगता है जैसे मनुवादी व्यवस्था का पुराना दौर फिर से आ रहा है। जिसने हजारों वर्ष दलितों को अपना गुलाम बनाए रखा था। वह गुलामी का दौर फिर से आ रहा है। ऐसे में सतर्क रहना, जागरूक रहना, सक्रिय रहना बहुत जरूरी हो गया है। ऐसे में गौहर रज़ा साहब की नज़्म इस मौजूदा दौर के लिए इस नए नॉर्मल दौर के लिए याद आ रही हैं  –

जब सब ये कहें ख़ामोश रहो, जब सब ये कहें कि कुछ न कहो ... तब उनको कहो अलफ़ाज़ अभी तक ज़िन्दा हैं...तब उनको कहो आवाज़ उठाना लाज़िम है। 

(लेखक सफाई कर्मचारी आंदोलन से जुड़े हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

इसे भी पढ़ें : सीवर कर्मचारियों के जीवन में सुधार के लिए ज़रूरी है ठेकेदारी प्रथा का ख़ात्मा

Sewer worker
SEWER DEATH
manual scavenger
Dalits
Dalit atrocities
Attack on dalits
Dalit Rights
Narendra modi
8 years of Modi government

Related Stories

ग्राउंड रिपोर्टः पीएम मोदी का ‘क्योटो’, जहां कब्रिस्तान में सिसक रहीं कई फटेहाल ज़िंदगियां

हिमाचल में हाती समूह को आदिवासी समूह घोषित करने की तैयारी, क्या हैं इसके नुक़सान? 

विचारों की लड़ाई: पीतल से बना अंबेडकर सिक्का बनाम लोहे से बना स्टैच्यू ऑफ़ यूनिटी

सीवर कर्मचारियों के जीवन में सुधार के लिए ज़रूरी है ठेकेदारी प्रथा का ख़ात्मा

बच्चों को कौन बता रहा है दलित और सवर्ण में अंतर?

‘धार्मिक भावनाएं’: असहमति की आवाज़ को दबाने का औज़ार

मुद्दा: आख़िर कब तक मरते रहेंगे सीवरों में हम सफ़ाई कर्मचारी?

कॉर्पोरेटी मुनाफ़े के यज्ञ कुंड में आहुति देते 'मनु' के हाथों स्वाहा होते आदिवासी

#Stop Killing Us : सफ़ाई कर्मचारी आंदोलन का मैला प्रथा के ख़िलाफ़ अभियान

सिवनी मॉब लिंचिंग के खिलाफ सड़कों पर उतरे आदिवासी, गरमाई राजनीति, दाहोद में गरजे राहुल


बाकी खबरें

  • mp
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    सिवनी : 2 आदिवासियों के हत्या में 9 गिरफ़्तार, विपक्ष ने कहा—राजनीतिक दबाव में मुख्य आरोपी अभी तक हैं बाहर
    04 May 2022
    माकपा और कांग्रेस ने इस घटना पर शोक और रोष जाहिर किया है। माकपा ने कहा है कि बजरंग दल के इस आतंक और हत्यारी मुहिम के खिलाफ आदिवासी समुदाय एकजुट होकर विरोध कर रहा है, मगर इसके बाद भी पुलिस मुख्य…
  • hasdev arnay
    सत्यम श्रीवास्तव
    कोर्पोरेट्स द्वारा अपहृत लोकतन्त्र में उम्मीद की किरण बनीं हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं
    04 May 2022
    हसदेव अरण्य की ग्राम सभाएं, लोहिया के शब्दों में ‘निराशा के अंतिम कर्तव्य’ निभा रही हैं। इन्हें ज़रूरत है देशव्यापी समर्थन की और उन तमाम नागरिकों के साथ की जिनका भरोसा अभी भी संविधान और उसमें लिखी…
  • CPI(M) expresses concern over Jodhpur incident, demands strict action from Gehlot government
    न्यूज़क्लिक रिपोर्ट
    जोधपुर की घटना पर माकपा ने जताई चिंता, गहलोत सरकार से सख़्त कार्रवाई की मांग
    04 May 2022
    माकपा के राज्य सचिव अमराराम ने इसे भाजपा-आरएसएस द्वारा साम्प्रदायिक तनाव फैलाने की कोशिश करार देते हुए कहा कि ऐसी घटनाएं अनायास नहीं होती बल्कि इनके पीछे धार्मिक कट्टरपंथी क्षुद्र शरारती तत्वों की…
  • एम. के. भद्रकुमार
    यूक्रेन की स्थिति पर भारत, जर्मनी ने बनाया तालमेल
    04 May 2022
    भारत का विवेक उतना ही स्पष्ट है जितना कि रूस की निंदा करने के प्रति जर्मनी का उत्साह।
  • starbucks
    सोनाली कोल्हटकर
    युवा श्रमिक स्टारबक्स को कैसे लामबंद कर रहे हैं
    03 May 2022
    स्टारबक्स वर्कर्स यूनाइटेड अमेरिकी की प्रतिष्ठित कॉफी श्रृंखला हैं, जिसकी एक के बाद दूसरी शाखा में यूनियन बन रही है। कैलिफ़ोर्निया स्थित एक युवा कार्यकर्ता-संगठनकर्ता बताते हैं कि यह विजय अभियान सबसे…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License