NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
रसोई गैस की सब्सिडी में 92% कमी, सिलेंडर की क़ीमतों में वृद्धि डबल! 
कंट्रोलर जनरल अकाउंट का कहना है कि वित्त वर्ष 2022-23 के शुरुआती 4 महीनों(अप्रैल से जुलाई) में केंद्र सरकार द्वारा रसोई गैस की सब्सिडी पर महज 1,233 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। जबकि साल 2019-20 के वित्त वर्ष की इसी अवधि में रसोई गैस की सब्सिडी पर 28,385 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे।
अजय कुमार
09 Sep 2021
रसोई गैस की सब्सिडी में 92% कमी, सिलेंडर की क़ीमतों में वृद्धि डबल! 
फ़ोटो साभार: सोशल मीडिया

“जब एक गरीब घर की औरत चूल्हा जलाकर अपने घर का खाना बनाती है तो 400 सिगरेट के बराबर धुआं अपने अंदर खींच लेती है। मैंने अपने बचपन में यह सब देखा है। कभी-कभी तो ऐसा होता था कि मां खाना बनाती थी और धुंए से उसका चेहरा नहीं दिखता था।” ये किसी किताब या किसी की जीवनी नहीं बल्कि प्रधानमंत्री मोदी के भाषण की ही पंक्तियाँ हैं। जो उन्होंने उज्जवला योजना के महत्व को बताते हुए दिया था। प्रधानमंत्री से ही पूछना चाहिए कि देश के कई इलाकों में 1000 हजार रुपए प्रति सिलेंडर से अधिक की कीमत पर रसोई गैस बिक रही है, आखिर इतनी क़ीमत पर कौन गरीब गैस ख़रीद पाएगा। इतनी बड़ी कीमत क्या कोई गरीब मां दे पाएगी?

इस सवाल को सुनते ही, हो सकता है कि सरकार के कामकाज के समर्थक लोग सब्सिडी का तर्क दें। यानी ये कि अगर कीमतें बढ़ेंगी तो उसका बोझ आम लोगों पर पड़ने नहीं दिया जाएगा। सरकार खुद खाते में पैसा भेज देगी। टेक्निकली देखा जाए तो सब्सिडी खत्म नहीं हुई है। लेकिन वास्तविक तौर पर देखा जाए तो सब्सिडी खत्म हो गई है। नियम के मुताबिक 10 लाख से ऊपर की आमदनी वाले और जो स्वेच्छा से सब्सिडी छोड़ना चाहते हैं उनके सिवाय सभी एलपीजी पर सब्सिडी के हकदार होंगे। यह नियम है।

कंट्रोलर जनरल अकाउंट का कहना है कि वित्त वर्ष 2021-22 के शुरुआती 4 महीनों(अप्रैल से जुलाई) में केंद्र सरकार द्वारा रसोई गैस की सब्सिडी पर महज 1,233 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं। जबकि साल 2019-20 के वित्त वर्ष की इसी अवधि में रसोई गैस की सब्सिडी पर 28,385 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। वहीं साल 2021 के वित्त वर्ष में यह कम होकर 16,461 करोड़ रुपए रह गयी। और अब ये इससे भी कम होकर महज 1,233 करोड़ रुपए रह गई है। यह पिछले साल दी गई सब्सिडी के मुकाबले 92 फ़ीसदी की कमी है। मई 2020 के बाद लोगों के खातों में सब्सिडी का पैसा नहीं पहुंचा है।

यानी एक तरफ रसोई गैस की कीमत हर महीने 25 रुपए से लेकर 50 रुपए बढ़ाई जा रही है और दूसरी तरफ सब्सिडी पर दिया जाने वाला पैसा पिछले साल से बंद कर दिया गया है। पिछले साल रसोई गैस की कीमत ₹580 के आसपास थी और इस साल इस समय इसकी कीमत ₹900 से लेकर ₹1000 प्रति सिलेंडर हो गई है।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना के मुताबिक गरीबी रेखा से नीचे रहने वाली महिलाओं को फ्री में गैस सिलेंडर दिया जाएगा और सब्सिडी रेट पर सिलेंडर में गैस भरने की सहूलियत दी जाएगी। सरकार ने दावा किया था कि इस योजना की वजह से भारत के 95% लोगों तक गैस सिलेंडर पहुंच पा रहा है। भारत की बहुत बड़ी आबादी लकड़ी के चूल्हे पर खाना बनाने की मजबूरी से मुक्त हुई है।

लेकिन अगर पिछले 7 साल में रसोई गैस की कीमतें बढ़कर दोगुना हो गई है, तो इस योजना से कितनी औरतों और परिवारों को लाभ पहुंचा होगा।

साल 2018 के रिसर्च इंस्टिट्यूट ऑफ कंपैशनेट इकोनॉमिक्स के सर्वे के मुताबिक उत्तर भारत में इस योजना के लाभ लेने वाले 85 फ़ीसदी परिवारों की औरतों ने इस योजना को छोड़ दिया है। साल 2019 की कैग रिपोर्ट कहती है कि उज्ज्वला योजना से लाभान्वित होने वाले परिवार साल भर में मुश्किल से तीन या चार सिलेंडर का इस्तेमाल करते हैं। इन सभी आंकड़ों का इशारा इसी तरफ है कि रसोई गैस की बढ़ती कीमतों की वजह से भारत का गरीब समाज इस योजना का फायदा नहीं उठा सकता है।

रसोई गैस पर जीएसटी लगता है। पेट्रोल और डीजल की तरह टैक्स बढ़ाने को लेकर जीएसटी में हदबंदी है। इसलिए कहीं ऐसा तो नहीं कि सरकार यहां पर सब्सिडी न देने वाली नीति अपना रही है कि किसी भी तरह से उस पर बोझ न पड़े।

प्रधानमंत्री उज्ज्वला योजना का जमकर प्रचार प्रसार किया जाता है। विकास के नाम का ढोल पीटने के लिए भाजपा सरकार इस योजना का खूब इस्तेमाल करती है। प्रधानमंत्री से लेकर मुख्यमंत्री तक इस योजना पर अपनी पीठ थपथपाते हुए दिखाई देते हैं। जब भी इस योजना का बखान होता है तो मीडिया में हेड लाइन बनती है। लेकिन इस योजना को जिस तरह से लागू किया जा रहा है उसकी कोई खबर नहीं दिखती।

आजकल आगामी चुनावों को देखकर, पूरा मीडिया तालिबान के बहाने ध्रुवीकरण के काम में लगा हुआ है। वहीं पर महंगाई बढ़ती जा रही है। बेरोजगारी बढ़ती जा रही है। कोरोना के बाद तकरीबन 7 करोड़ से अधिक लोग गरीबी रेखा के नीचे चले गए हैं। भारत की अर्थव्यवस्था मांग से जूझ रही है। लोगों की जेब में पैसा नहीं है कि बेतहाशा महंगाई का सामना कर पाएँ। लेकिन मीडिया से यह खबरें गायब हैं।

बिहार के गांव देहात के इलाक़ों में इस समय मक्के की कटाई चल रही है, औरतें खेतों में जाकर डंठल इकट्ठा करती हैं ताकि इनका इस्तेमाल चूल्हे पर खाना पकाने के लिए किया जा सके। उसी चूल्हे पर जिसका जिक्र करते हुए प्रधानमंत्री कहते हैं कि औरत जब चूल्हा जलाकर अपना खाना बनाती है तो 400 सिगरेट के बराबर धुआं अपने अंदर खींच लेती है।

LPG
LPG gas
LPG price hike
GAS SUBSIDY
Inflation
Rising inflation
Prime Minister Ujjwala Yojana

Related Stories

डरावना आर्थिक संकट: न तो ख़रीदने की ताक़त, न कोई नौकरी, और उस पर बढ़ती कीमतें

आर्थिक रिकवरी के वहम का शिकार है मोदी सरकार

क्या जानबूझकर महंगाई पर चर्चा से आम आदमी से जुड़े मुद्दे बाहर रखे जाते हैं?

ध्यान देने वाली बात: 1 जून से आपकी जेब पर अतिरिक्त ख़र्च

मोदी@8: भाजपा की 'कल्याण' और 'सेवा' की बात

गतिरोध से जूझ रही अर्थव्यवस्था: आपूर्ति में सुधार और मांग को बनाये रखने की ज़रूरत

मोदी के आठ साल: सांप्रदायिक नफ़रत और हिंसा पर क्यों नहीं टूटती चुप्पी?

जन-संगठनों और नागरिक समाज का उभरता प्रतिरोध लोकतन्त्र के लिये शुभ है

वाम दलों का महंगाई और बेरोज़गारी के ख़िलाफ़ कल से 31 मई तक देशव्यापी आंदोलन का आह्वान

महंगाई की मार मजदूरी कर पेट भरने वालों पर सबसे ज्यादा 


बाकी खबरें

  • डॉ. द्रोण कुमार शर्मा
    तिरछी नज़र: ये कहां आ गए हम! यूं ही सिर फिराते फिराते
    29 May 2022
    उधर अमरीका में और इधर भारत में भी ऐसी घटनाएं होने का और बार बार होने का कारण एक ही है। वही कि लोगों का सिर फिरा दिया गया है। सिर फिरा दिया जाता है और फिर एक रंग, एक वर्ण या एक धर्म अपने को दूसरे से…
  • प्रेम कुमार
    बच्चे नहीं, शिक्षकों का मूल्यांकन करें तो पता चलेगा शिक्षा का स्तर
    29 May 2022
    शिक्षाविदों का यह भी मानना है कि आज शिक्षक और छात्र दोनों दबाव में हैं। दोनों पर पढ़ाने और पढ़ने का दबाव है। ऐसे में ज्ञान हासिल करने का मूल लक्ष्य भटकता नज़र आ रहा है और केवल अंक जुटाने की होड़ दिख…
  • राज कुमार
    कैसे पता लगाएं वेबसाइट भरोसेमंद है या फ़र्ज़ी?
    29 May 2022
    आप दिनभर अलग-अलग ज़रूरतों के लिए अनेक वेबसाइट पर जाते होंगे। ऐसे में सवाल उठता है कि कैसे पता लगाएं कि वेबसाइट भरोसेमंद है या नहीं। यहां हम आपको कुछ तरीके बता रहें हैं जो इस मामले में आपकी मदद कर…
  • सोनिया यादव
    फ़िल्म: एक भारतीयता की पहचान वाले तथाकथित पैमानों पर ज़रूरी सवाल उठाती 'अनेक' 
    29 May 2022
    डायरेक्टर अनुभव सिन्हा और एक्टर आयुष्मान खुराना की लेटेस्ट फिल्म अनेक आज की राजनीति पर सवाल करने के साथ ही नॉर्थ ईस्ट क्षेत्र के राजनीतिक संघर्ष और भारतीय होने के बावजूद ‘’भारतीय नहीं होने’’ के संकट…
  • राजेश कुमार
    किताब: यह कविता को बचाने का वक़्त है
    29 May 2022
    अजय सिंह की सारी कविताएं एक अलग मिज़ाज की हैं। फॉर्म से लेकर कंटेंट के स्तर पर कविता की पारंपरिक ज़मीन को जगह–जगह तोड़ती नज़र आती हैं।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License