NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
कानून
कोविड-19
भारत
राजनीति
न्यायाधीश आनंद वेंकटेश को बहुत-बहुत धन्यवाद 
धन्यवाद न्यायमूर्ति वेंकटेश, मुझे और मुझ जैसे लाखों लोगों को यह महसूस कराने के लिए कि हम भी इस समाज से सम्बद्ध हैं और यह समाज हमारे अस्तित्व को स्वीकार करता है।
अजय कुमार
11 Jun 2021
न्यायाधीश आनंद वेंकटेश को बहुत-बहुत धन्यवाद 

मद्रास हाई कोर्ट के न्यायमूर्ति आनंद वेंकटेश ने हाल ही में अदालत में घोषणा की थी कि “किसी भी प्रकार के भेदभावपूर्ण स्वरुप का सामान्यीकरण करने के लिए अज्ञानता के औचित्य को सही नहीं ठहराया जा सकता है।” इस बात को उन्होंने दो समलैंगिक महिलाओं द्वारा पुलिस प्रताड़ना से सुरक्षा पाने के लिए दायर की गई एक रिट याचिका के सन्दर्भ में कही थी। न्यायमूर्ति वेंकटेश ने एलजीबीटीक्यूआईए+ व्यक्तियों से संबंधित मुद्दों पर बेहतर समझ बनाने के लिए विशेषज्ञों के साथ परामर्श सत्र में  हिस्सा लेने के विकल्प को चुना। उन्होंने इसे इस उम्मीद  से किया ताकि उनकी भावनाओं और समाज में व्याप्त पूर्वाग्रहों और पक्षपात पूर्ण व्यवहार के कारण उनके सामने आने वाली समस्याओं के बारे में बेहतर समझ विकसित हो सके। अधिवक्ता अजय कुमार ने इसे कलमबद्ध किया है कि इस बारे में वे क्या महसूस करते हैं और बहुत से लोगों के लिए इसके क्या मायने हैं, जब अदालत उनके प्रति इस प्रकार की सहानुभूतिपूर्ण समझ दिखाती है।

जब मैं मद्रास हाई कोर्ट में सुषमा और अन्य बनाम पुलिस आयुक्त एवं अन्य (2021 के डब्ल्यूपी 7284 फैसले दिनांक 7 जून 2021) के फैसले को पढ़ रहा था, तो मुझे अपनी आँखों पर यकीन नहीं हो रहा था। एक ऐसे व्यक्ति के रूप में जिसे पेशेवर तौर पर भारत की न्यायपालिका से जूझना पड़ता है, मैंने सपने में भी कभी नहीं सोचा था कि यह संभव हो सकेगा कि एक संस्था जिसे कई लोग असमलैंगिकता के अंतिम गढ़ों में से एक के तौर पर देखते हैं, वह इस मुद्दे पर कुछ ऐसा भी फैसला ले सकती है जैसा कि न्यायमूर्ति एन. आनंद वेंकटेश ने इस मामले में लिया है। (नारीवादी सिद्धांत में, असमलैंगिकता एक सामाजिक-राजनीतिक व्यवस्था है जहाँ उभयलिंगी सिसजेंडर पुरुषों और असमलैंगिकों के पास सिसजेंडर महिलाओं पर और अन्य यौनिक झुकाओं एवं लैंगिक पहचानों पर अधिकार होता है। यह एक ऐसा शब्द है जो इस बात पर जोर देता है कि महिलाओं और एलजीबीटीक्यू लोगों के साथ समान सेक्सिस्ट सामाजिक सिद्धांत वाले भेदभावपूर्ण व्यवहार लागू होते हैं।)

मुझे आज भी वह दिन याद है जब सर्वोच्च न्यायालय ने 2013 में सुरेश कुमार कौशल बनाम नाज़ फाउंडेशन के अपने फैसले में दिल्ली उच्च न्यायालय के नाज़ फाउंडेशन बनाम एनसीटी दिल्ली सरकार के फैसले को ख़ारिज कर दिया था। 

उस दिन बुधवार को कार्यालय में काफी व्यस्तता थी और बहुत सा काम करने के लिए पड़ा हुआ था। जब न्यूज़ चैनलों ने इस खबर को दिखाया तो हमें इस बारे में सूचना मिली। मुझे याद है कि मैं इस फैसले के अपलोड होने का टकटकी लगाकर इंतजार कर रहा था ताकि मैं भी देख सकूं कि कैसे भारत की न्यायपालिका इस बंधन को कसी हद तक तोड़ने में कामयाब रही। 

मेरे स्कूल के पुस्तकालय में हमारे संविधान की एक प्रति हुआ करती थी और मुझे याद है मैंने इसे कक्षा 8 में पढ़ा था। यह शायद कानून के साथ मेरा पहला साबका था। मेरे लिए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने जो फैसला लिया था, वह स्पष्ट था। हमारा संविधान हमारे साथ समान रूप से बर्ताव करता है और लोग कानून के तहत समान बर्ताव के हकदार थे।

एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के व्यक्तियों के निजी जीवन का आपराधिककरण कर के उनके साथ जो भेदभावपूर्ण बर्ताव हुआ वो भारत के संविधान की भावना और सिद्धांतों से से एकदम उलट था। लेकिन कौशल के मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने मुझसे साफ़ तौर पर असहमति जताई। मुझे याद है उस दिन इसके लिए मुझे अपने बॉस से झाड़ सुनने को मिली थी क्योंकि मैं इस केस में काफी दिलचस्पी ले रहा था और “पैसे बनाने लायक काम” पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय मैंने एक लेख लिखा था। 

उस समय मेरे एक बॉस (जो वकीलों के लिए अनाम रहेंगे) मुझसे इतने खफा थे थे कि मैंने फैसले के बारे में लिखने के लिए समय कैसे निकाल लिया। उन्होंने मुझे रात 9:00 फोन किया, जब मैं ऑफिस से निकल रहा था, और कहा  कि अगर मेरे पास एक गैर-मुद्दे पर  लिखने के लिए इतना पर्याप्त खाली समय उपलब्ध है तो मैं “आर्टिकल ऑफ  एसोसिएशन” में संशोधन के लिए भी समय निकाल सकता हूँ।

एक अन्य बॉस ने भी मुझे एक तटस्थ क़ानूनी विश्लेषण प्रस्तुत करने के बजाय इस मुद्दे पर  भावनात्मक तरीके से लिखने के लिए झिड़का था। मैं तब सोच में पड़ गया था कि क्या मैं उन्हें बता दूँ कि क्यों मैं इस फैसले के बारे में इतना चिंतित हूँ लेकिन फिर मैंने खुद से मन ही मन कहा कि बेहतर होगा कि ऐसा न किया जाये। वैसे भी ऐसा करने से क्या फायदा होने वाला था?

देश की सर्वोच्च अदालत ने मेरे जैसे मामूली अल्पसंख्यकों को अभी-अभी संवैधानिक संरक्षण के लिए अयोग्य के रूप में वर्गीकृत किया था। इसलिए मैंने इस मुद्दे को जाने दिया और बाकी रात काम करते हुए बिता दी।

इसके पांच साल बाद सर्वोच्च न्यायालय ने नवतेज सिंह जोहर एवं अन्य बनाम भारत सरकार एआईआर 2018 एससी 4321 के मामले में कौशल वाले फैसले को ख़ारिज कर दिया था। 

जब तक यह फैसला आया, तब तक मैं एक नए नियोक्ता के यहाँ कार्यरत था और ऑफिस में इसको लेकर प्रतिक्रिया मिलीजुली थी। जहाँ कुछ लोग खुलकर इसका स्वागत कर रहे थे, वहीं कई वरिष्ठ यह सोचकर हैरान थे कि इस फैसले का व्यापक “समाज” पर कैसा प्रभाव पड़ने वाला है। 

लगभग एक सार्वभौमिक सहमति थी कि आपराधिक निषेध को अब खत्म करना होगा। लेकिन उस समय सामाजिक स्वीकार्यता एक दिवा-स्वप्न सरीखा लग रहा था, विशेषकर क़ानूनी पेशे के दायरे के भीतर। 

उन लोगों के लिए जिन्होंने संवैधानिक अधिकारों पर अपना काफी समय खर्च किया था, क़ानूनी पेशेवरों के साथ के मेरे अनुभव ने मुझे सिखाया है कि वे विशेष तौर पर इस बारे में ध्यान दे रहे थे कि सामाजिक रूप से उन संवैधानिक अधिकारों का कौन लोग आनंद उठाएंगे। 

लेकिन शायद यही वजह है कि श्रीमान न्यायमूर्ति वेंकटेश ने जो किया वह इतना उल्लेखनीय था। यहाँ एक संवैधानिक न्यायालय का एक न्यायाधीश है, जो इस बात को स्वीकार करता है कि हमारे अधिकारों के बारे में फैसला लेने से पहले उसे एलजीबीटीक्यूआई समुदाय के बारे में और अधिक समझने की आवश्यकता है। यह स्वीकारोक्ति ही अपने आप में हम जैसे लोगों के लिए आधी जीत के समान है जो एलजीबीटीक्यूआई व्यक्तियों के लिए अधिक स्वतंत्रता के लिए अभियान चलाते हैं।

वैसे तो न्यायाधीशों के लिए खुलकर यह टिप्पणी करना असामान्य बात नहीं है कि वे किसी चीज को नहीं समझ पा रहे हैं, लेकिन किसी न्यायाधीश के लिए यह बेहद असामान्य है कि वह न सिर्फ वकील से बयान देने के लिए कहे बल्कि इसे तफसील से समझाने के लिए भी कहे। इसके बजाय, न्यायमूर्ति वेंकटेश ने यह जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली कि वे खुद इस बारे में जानकारी हासिल करेंगे। एक व्यापक जांच-पड़ताल के बाद इसके हितधारकों को सुनेंगे और अपने स्वंय के पूर्वाग्रहों को चुनौती देंगे। शायद ऐसा निजी तौर पर कई बार होता हो, लेकिन आम जन के सामने ऐसा करना न्याय की प्रति ईमानदारी और प्रतिबद्धता के पहलुओं को प्रदर्शित करता है, जो हमारे संविधान की मिसाल प्रस्तुत करता है।

जहाँ नवतेज सिंह जोहर के मामले में सर्वोच्च अदालत ने घोषित किया कि मेरे जैसे लोग अपराधी नहीं हैं, मैं आजीवन न्यायमूर्ति वेंकटेश के प्रति आभारी रहूँगा, जो ऐसे पहले न्यायाधीश थे जिन्होंने एलजीबीटीक्यूआई व्यक्तियों को इंसान— वास्तविक इंसान, वास्तविक जीवन एवं वास्तविक भावनाओं— के तौर पर मान्यता प्रदान की।

उन दिशानिर्देशों के जारी होने से पड़ने वाले प्रभावों के बारे में काफी कुछ लिखा जायेगा। शायद हमारे लिए वास्तव में यह समझ पाना संभव नहीं होगा कि अब से आने वाले कई वर्षों तक यह फैसला कितना के युगांतकारी साबित होने जा रहा है। लेकिन मैं एक और व्यस्त दिन में से समय निकालकर न्यायमूर्ति वेंकटेश की प्रशंसा में कुछ मिनट निकालना चाहता हूँ। किसी अन्य साधारण दिन में, मैं हमेशा की तरह संवैधानिक अदालतों की अनियमित प्रक्रियाओं और विस्तृत भूमिका को लेकर नुक्ताचीनी करने में हमेशा की तरह व्यस्त रहता। लेकिन आज नहीं। धन्यवाद न्यायमूर्ति वेंकटेश जी, मुझे और मेरे जैसे लाखों लोगों को यह अहसास कराने के लिए कि हम इस समाज से सम्बद्ध हैं और यह समाज भी हमारे अस्तित्व को स्वीकार करता है।

यह लेख मूलतः द लीफलेट में प्रकाशित हुआ था। 

(अजय कुमार बॉम्बे हाई कोर्ट में अधिवक्ता हैं। उनके कार्यक्षेत्र में वाणिज्यिक नागरिक विवाद, सफेदपोश आपराधिक मुकदमे, और मध्यस्थता शामिल हैं। उनकी पहचान गैर-युग्मक के तौर पर है। व्यक्त विचार व्यक्तिगत हैं।)

इस लेख को मूल अंग्रेज़ी में पढ़ने के लिए नीचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

A Big Thank You For Justice Anand Venkatesh

Civil Law
civil society
Constitutional Law
Fundamental Rights
Judiciary
Law and Sexuality
LGBTQI
Right to Life

Related Stories

सुप्रीम कोर्ट का ऐतिहासिक आदेश : सेक्स वर्कर्स भी सम्मान की हकदार, सेक्स वर्क भी एक पेशा

क्यों मोदी का कार्यकाल सुप्रीम कोर्ट के इतिहास में सबसे शर्मनाक दौर है

भारतीय अंग्रेज़ी, क़ानूनी अंग्रेज़ी और क़ानूनी भारतीय अंग्रेज़ी

"लव जिहाद" क़ानून : भारत लड़ रहा है संविधान को बचाने की लड़ाई

राज्य कैसे भेदभाव के ख़िलाफ़ संघर्ष का नेतृत्व कर सकते हैं

सुप्रीम कोर्ट की क्षेत्रीय बेंचों की ज़रूरत पर एक नज़रिया

विरोध प्रदर्शन को आतंकवाद ठहराने की प्रवृति पर दिल्ली उच्च न्यायालय का सख्त ज़मानती आदेश

भीमा कोरेगांव : पहली गिरफ़्तारी के तीन साल पूरे हुए

कोविड सिलसिले में दो हाई कोर्ट के तीन आदेशों पर सुप्रीम कोर्ट की सिलसिलेवार रोक

राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली सरकार (संशोधन) अधिनियम, 2021 की संवैधानिकता क्या है?


बाकी खबरें

  • सोनिया यादव
    समलैंगिक साथ रहने के लिए 'आज़ाद’, केरल हाई कोर्ट का फैसला एक मिसाल
    02 Jun 2022
    साल 2018 में सुप्रीम कोर्ट के ऐतिहासिक फैसले के बाद भी एलजीबीटी कम्युनिटी के लोग देश में भेदभाव का सामना करते हैं, उन्हें एॉब्नार्मल माना जाता है। ऐसे में एक लेस्बियन कपल को एक साथ रहने की अनुमति…
  • समृद्धि साकुनिया
    कैसे चक्रवात 'असानी' ने बरपाया कहर और सालाना बाढ़ ने क्यों तबाह किया असम को
    02 Jun 2022
    'असानी' चक्रवात आने की संभावना आगामी मानसून में बतायी जा रही थी। लेकिन चक्रवात की वजह से खतरनाक किस्म की बाढ़ मानसून से पहले ही आ गयी। तकरीबन पांच लाख इस बाढ़ के शिकार बने। इनमें हरेक पांचवां पीड़ित एक…
  • बिजयानी मिश्रा
    2019 में हुआ हैदराबाद का एनकाउंटर और पुलिसिया ताक़त की मनमानी
    02 Jun 2022
    पुलिस एनकाउंटरों को रोकने के लिए हमें पुलिस द्वारा किए जाने वाले व्यवहार में बदलाव लाना होगा। इस तरह की हत्याएं न्याय और समता के अधिकार को ख़त्म कर सकती हैं और इनसे आपात ढंग से निपटने की ज़रूरत है।
  • रवि शंकर दुबे
    गुजरात: भाजपा के हुए हार्दिक पटेल… पाटीदार किसके होंगे?
    02 Jun 2022
    गुजरात में पाटीदार समाज के बड़े नेता हार्दिक पटेल ने भाजपा का दामन थाम लिया है। अब देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में पाटीदार किसका साथ देते हैं।
  • सरोजिनी बिष्ट
    उत्तर प्रदेश: "सरकार हमें नियुक्ति दे या मुक्ति दे"  इच्छामृत्यु की माँग करते हजारों बेरोजगार युवा
    02 Jun 2022
    "अब हमें नियुक्ति दो या मुक्ति दो " ऐसा कहने वाले ये आरक्षित वर्ग के वे 6800 अभ्यर्थी हैं जिनका नाम शिक्षक चयन सूची में आ चुका है, बस अब जरूरी है तो इतना कि इन्हे जिला अवंटित कर इनकी नियुक्ति कर दी…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License