NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
आधी आबादी
उत्पीड़न
महिलाएं
अंतरराष्ट्रीय
पश्चिम एशिया
तालिबान: महिला खिलाड़ियों के लिए जेल जैसे हालात, एथलीटों को मिल रहीं धमकियाँ
तालिबान को अफ़गानिस्तान पर नियंत्रण किए हुए आठ महीने बीत चुके हैं और इतने समय में ही ये देश समाचारों से बाहर हो गया है। ओलिंपिक में भाग लेने वाली पहली अफ़गान महिला फ्रिबा रेज़ाई बड़े दुख के साथ कहती हैं कि, 'दुनिया अब हमें भूल गई है।'
स्टीफन नेस्टलर
27 Apr 2022
Translated by महेश कुमार
Taliban
फ्रिबा रेज़ाई ने खेल फेडरेशनों से अपील की है कि वे तालिबान पर दबाव बनाना जारी रखें

अफ़गान एथलीट अमीरा (नाम बदला हुआ) लिखती हैं कि "काश मेरा अस्तित्व ही नहीं होता।" "मैंने कुछ भी गलत नहीं किया। मैंने केवल खेल खेलने का ही अपराध किया है।"

अगस्त 2021 में काबुल में तालिबान के सत्ता पर क़ाबिज़ होने से पहले अमीरा देश के सर्वश्रेष्ठ जूडो लड़ाकों में से एक थीं। कुछ हफ्ते पहले, तालिबान ने उनके दस्तावेजों को हासिल करने के लिए उसके घर पर छापा मारा था, यदि मिल जाते तो ये साबित कर दिया जाता कि युवती अफ़गान राष्ट्रीय टीम की सदस्य थी।

"सौभाग्य से, वह भागने में सफल रही और पूरे दिन एक स्थानीय कब्रिस्तान में छिपी रही, इबादत करती रही कि तालिबान उसे ढूंढ न पाए," 

फ्रिबा रेजाई ने डीडब्ल्यू को उक्त बातें बताईं। "अगर उन्हें ये दस्तावेज उसके घर में मिल जाते, तो उस पर शरिया अदालत में मुकदमा चलाया जाता। इसका मतलब यह होता कि उसे या तो 100 कोड़े लगाए जाते या उसे सार्वजनिक रूप से मार दिया जाता।"

रेज़ाई खुद कभी अफ़गानिस्तान में सफल जूडो की खिलाड़ी रही हैं। वे और ट्रैक एंड फील्ड स्प्रिंटर रोबिना मुकीम यार 2004 में एथेंस में ओलंपिक में अफ़गानिस्तान की तरफ से प्रतिस्पर्धा में भाग लेने वाली पहली महिला बनीं थीं।

रेज़ाई याद करते हुए कहती हैं कि "वह एक खेल क्रांति थी।" 2011 में, वह अफ़गानिस्तान से कनाडा भाग गई थी। वहां, 36 वर्षीय रेज़ाई ने महिला सहायता संगठन, वीमेन लीडर्स ऑफ़ टुमॉरो (WLT) की स्थापना की, जो अफ़गानिस्तान से आई महिला शरणार्थियों को उच्च शिक्षा प्रदान करता है।

गर्ल ऑफ अफगानिस्तान लीड (जीओएएल) के खेल कार्यक्रम के तहत संगठन, मार्शल आर्ट सिखाने में भी अफ़गान महिलाओं की मदद करता है। रेज़ाई लगभग उन 130 अफ़गान महिला एथलीटों के संपर्क में हैं जो तालिबान के सत्ता में आने के बाद देश से भागने में कामयाब रही थीं।

Taliban
तालिबान के सत्ता में आने से कुछ समय पहले प्रशिक्षण करती अफ़गानिस्तान की महिला जूडो टीम

काबुल से धमकी

रेज़ाई कहती हैं, ये महिलाएं अपने घरों में छिप कर रहती हैं, "एक अर्थ में, वे तालिबान के दरवाजे पर दस्तक देने और खुद की गिरफ्तारी का इंतज़ार कर रही हैं।" "तालिबान ने उन्हें धमकी भरे पत्र भेजे हैं। उन्हें धमकाया जा रहा है कि वे घर से बाहर नहीं जा सकती हैं।"

जूडो की खिलाड़ी अमीरा ने एथलीटों की दयनीय स्थिति का वर्णन इस प्रकार किया है, "हमें अफ़गानिस्तान में यानी महिलाओं को जेल की जरूरत नहीं है। हमारे घर हमारे लिए जेल बन गए हैं।" अफ़ग़ानिस्तान की मीना (बदला हुआ नाम), एक और जूडो की खिलाड़ी हैं, जो देश में ही रह रहीं हैं का कहना है, "देश हमारे लिए एक अनाथ देश बन गया है जहाँ हिंसक बच्चों के पास इस किस्म की शक्ति है कि वे महिलाओं और लड़कियों के साथ जो चाहे कर सकते हैं।"

तालिबान ने अभी तक कानूनी तौर पर महिलाओं के खेल पर आधिकारिक रूप से प्रतिबंध नहीं लगाया है। 1996 से 2001 के पहले तालिबान शासन के दौरान, अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति (आईओसी) ने सिडनी में 2000 के खेलों से अफ़गानिस्तान को आंशिक रूप से बाहर कर दिया था, क्योंकि कट्टरपंथी इस्लामवादी महिला एथलीटों के साथ भेदभाव कर रहे थे।

रेज़ाई कहती हैं कि तालिबान का यह रवैया आज भी नहीं बदला है।। "शरिया कानून की उनकी व्याख्या के अनुसार, महिलाओं का खेलना पाप हैं। उनका मानना ​​है महिलाओं के खेलने से पुरुषों को यौन संकेत मिलते हैं क्योंकि शारीरिक गतिविधि के दौरान महिला का शरीर दिखाई देता है। महिलाओं को जिम में व्यायाम करने की भी अनुमति नहीं है।"

वे आगे बताती हैं कि अफ़गानिस्तान में डर और धमकी का माहौल है। उदाहरण के लिए, अफ़गान राष्ट्रीय वॉलीबॉल टीम की एक खिलाड़ी को हाल ही में गिरफ्तार कर लिया गया था और "तालिबान ने उसे बेरहमी से पीटा था। उसके पूरे शरीर पर भयानक चोट के निशान थे। तालिबान ने उसे ज़िंदा छोड़ दिया क्योंकि वे अन्य महिला एथलीटों को सबक सीखना चाहते थे कि अगर वे खेलेंगी तो उनका क्या हश्र होगा।"

Taliban
जूडो टीम के प्रशिक्षण कक्ष में सशस्त्र तालिबान के जवान गश्त करते हुए 

'दुनिया अब अफ़गानिस्तान को भूल गई है'

डब्लूएलटी में रेज़ाई और उनका स्टाफ अभी भी अफ़गान महिला एथलीटों को देश से बाहर निकालने और सुरक्षित रखने की कोशिश कर रहे हैं। लेकिन अगर वे इसमें सफल भी हो जाते हैं, तो सवाल यह है कि महिलाएं रहेंगी कहां?

उदाहरण के लिए, कनाडा की सरकार अपनी शरणार्थी नीति के तहत, कनाडा की सेना के पूर्व स्थानीय अफ़गान बलों और उनके परिवारों पर केंद्रित करती है, इस प्रकार महिला एथलीटों को छोड़ दिया गया है। रेज़ाई कहती हैं, ''यूरोप में भी, उनके लिए एंट्री वीज़ा हासिल करना बहुत कठिन है।'' 

यूक्रेन युद्ध ने चीजों को और भी जटिल बना दिया है। "दुनिया का सारा ध्यान अब यूक्रेनी शरणार्थियों पर केंद्रित है। और दुनिया अफ़गानिस्तान को भूल गई है।"

अफ़गान खेल के प्रमुख खिलाड़ी सोचते हैं कि दुनिया के प्रमुख खेल संगठनों ने उनका परित्याग कर दिया है। रेज़ाई का मानना है कि आईओसी जैसे महासंघों द्वारा तालिबान के साथ "शांत कूटनीति" को बढ़ावा देने का रास्ता गलत है।

"अगर वे तालिबान सरकार को वैध मानते हैं तो तालिबान जीत जाएगा। यह एक ऐतिहासिक मिसाल कायम करेगा: कि बुराई जीतती है। लेकिन हम चाहते हैं कि खेल, शिक्षा और मानवाधिकारों के सिद्धांत बंदूकधारियों पर जीत हासिल करें।"

दबाव पर्याप्त नहीं

आठ महीने पहले तालिबान के सत्ता में आने के बाद, विश्व क्रिकेट की संस्था, आईसीसी ने महिलाओं के खेल पर अपने तालिबानी रुख के कारण अफ़गानिस्तान को निष्कासित करने की धमकी दी थी। लेकिन अंतत: आईसीसी ने भी अपनी स्थिति में ढील दे दी।

अब फ़ेडरेशन स्पष्ट रूप से कुछ समय के लिए ऐसा कर रही है: कि यह "महिला खेल के विकास सहित देश में खेल की दिशा की निगरानी करते हुए अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट खेलने के लिए अफगान पुरुषों की टीम का समर्थन करना जारी रखेगी," 

ऐसा अप्रैल की शुरुआत में दुबई में ही बोर्ड की एक बैठक के बाद कहा गया है।

Taliban
अमीरा (बदला हुआ नाम) तालिबान के एक कब्रिस्तान में छिप गईं थीं

रेजाई को समझ नहीं आ रहा है कि, खेल संघों को तालिबान पर कार्रवाई करने में क्या हिचक है। कनाडा के पासपोर्ट की मांग करते हुए निर्वासित अफगान महिला ने कहा कि, "अब दबाव बनाने का सही समय है: लड़कियों की शिक्षा और खेल के बिना, कोई मान्यता नहीं है।" वह कहती हैं कि अंतरराष्ट्रीय दबाव से अफ़गानिस्तान के कट्टरपंथी शासकों पर भी फर्क पड़ सकता है।

"क्योंकि तालिबान जितना अपनी विचारधारा से बंधा है, वे इस बारे में बहुत संवेदनशील हैं, कि दुनिया उनके बारे में क्या सोचती है। वे बहुत क्रूर और दुष्ट हैं। लेकिन वे मूर्ख भी नहीं हैं। वे जानते हैं कि दुनिया उन्हें देख रही है, खासकर सोशल मीडिया पर लोग नज़र रखे हुए हैं।"

रोशनी का आख़री बल्ब

रेज़ाई के लिए हार मान लेने का सवाल नहीं है, जबकि उसे अक्सर अपने देश से धमकियाँ मिलती रहती हैं। वह झिड़कते हुए कहती हैं कि "मुझे इसकी आदत हो गई है। वह लड़ना जारी रखेगी, क्योंकि वह अपने देशवासियों और खिलाड़ियों के प्रति प्रतिबद्ध महसूस करती है। 

"जब भी महिलाएं फोन करती हैं या मुझे अफ़गानिस्तान से संदेश भेजती हैं, तो वे रोती हैं और गमगीन हो जाती हैं। रेज़ाई कहती हैं कि, जीने की उनकी हिम्मत टूट रही है।"

"जब कोई एथलीट अपनी प्रेरणा खो देता है, तो यह ऐसा है जैसे कि आप एक माँ से उसका बच्चा छीन रहे हैं। जो काम हम कर रहे हैं, और जो मैं अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से करने के लिए कह रही हूँ, वह न केवल अफ़गानिस्तान में महिला एथलीटों के जीवन को बचाने के लिए है, बल्कि उनकी आशा को जीवित रखने के लिए भी है। आशा यह है कि रोशनी का आख़री बल्ब जलता रहे। हमें इस प्रकाश को बुझने नहीं देना चाहिए।"

(इस लेख का जर्मन से अंग्रेज़ी में अनुवाद किया गया और अब अंग्रेज़ी से हिन्दी किया गया है।)

सौजन्य: डीडब्लू

अंग्रेज़ी में प्रकाशित इस मूल आलेख को पढ़ने के लिए इस लिंक पर क्लिक करें:- Afghan Women Athletes: Prisoners in Their Own Homes

TALIBAN
Afganistan
Afghan Taliban
Afghan women

Related Stories


बाकी खबरें

  • hafte ki baat
    न्यूज़क्लिक टीम
    कांग्रेस का असल संकट और 'आप' के भगत अम्बेडकर
    20 Mar 2022
    कांग्रेस का असल संकट क्या है? 18 और 23 असंतुष्ट नेताओं के ग्रुप वैचारिक दबाव-समूह हैं या चुनावी राजनीति में अपने-अपने स्वार्थ के अखाड़ेबाज? पंजाब में अपनी शानदार चुनावी सफलता के बाद आम आदमी पार्टी(आप…
  • itihas ke panne
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या लाभार्थी थे भाजपा की जीत की वज़ह?
    20 Mar 2022
    'इतिहास के पन्ने मेरी नज़र से' के इस अंग में नीलांजन बात करते हैं समाजशास्त्री हिलाल अहमद से. वे बात करते हैं देश के बदलते चरित्र की.
  • Kanwal Bharti
    राज वाल्मीकि
    भेदभाव का सवाल व्यक्ति की पढ़ाई-लिखाई, धन और पद से नहीं बल्कि जाति से जुड़ा है : कंवल भारती 
    20 Mar 2022
    आपने 2022 में दलित साहित्य के समक्ष चुनौतियों की बात पूछी है, तो मैं कहूँगा कि यह चुनौती अब ज्यादा बड़ी है। हालांकि स्थापना का संघर्ष अब नहीं है, परन्तु विकास और दिशा की चुनौती अभी भी है।
  • Aap
    अनिल जैन
    ख़बरों के आगे-पीछे: राष्ट्रीय पार्टी के दर्ज़े के पास पहुँची आप पार्टी से लेकर मोदी की ‘भगवा टोपी’ तक
    20 Mar 2022
    हर हफ़्ते की ज़रूरी ख़बरों को एक पिटारे में एक बार फिर लेकर हाज़िर हैं अनिल जैन
  • न्यूज़क्लिक डेस्क
    इतवार की कविता: जश्न-ए-नौरोज़ भी है…जश्न-ए-बहाराँ भी है
    20 Mar 2022
    अभी दो दिन पहले हमने होली और शब-ए-बारात एक साथ मनाई और 21 मार्च को नौरोज़ है। नौरोज़ यानी नया दिन। पारसियों के नए साल की शुरुआत। वसंत हर देश, हर समाज के लिए जश्न-ए-बहाराँ लेकर आता है। इसी सिलसिले में…
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License