NewsClick

NewsClick
  • English
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • हमारे लेख
  • हमारे वीडियो
search
menu

सदस्यता लें, समर्थन करें

image/svg+xml
  • सारे लेख
  • न्यूज़क्लिक लेख
  • सारे वीडियो
  • न्यूज़क्लिक वीडियो
  • राजनीति
  • अर्थव्यवस्था
  • विज्ञान
  • संस्कृति
  • भारत
  • अंतरराष्ट्रीय
  • अफ्रीका
  • लैटिन अमेरिका
  • फिलिस्तीन
  • नेपाल
  • पाकिस्तान
  • श्री लंका
  • अमेरिका
  • एशिया के बाकी
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें
सब्सक्राइब करें
हमारा अनुसरण करो Facebook - Newsclick Twitter - Newsclick RSS - Newsclick
close menu
भारत
राजनीति
केरल के आईने में दलित-कम्युनिस्ट आंदोलन
लेखक ने इस किताब के लिए इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र व अर्थशास्त्र के विभिन्न ग्रंथों से तथ्यों को जुटाया है। 1800 से 2010 की अवधि के बीच क़रीब 200 वर्षों के केरल के सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक घटनाक्रम का 26 अध्यायों में विश्लेषण किया गया है—ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ।
अजय सिंह
26 Apr 2021
केरल के आईने में दलित-कम्युनिस्ट आंदोलन

आलोचक और दलित साहित्य के जिज्ञासु अध्येता बजरंग बिहारी तिवारी (जन्म 1972) की विमर्शमूलक किताब ‘केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य’ (2020, नवारुण) को मैं इसलिए महत्वपूर्ण मानता हूं कि यह दक्षिण भारत—ख़ासकर केरल के समाज, संस्कृति, राजनीति से हमारा—हम हिंदीभाषियों का—आत्मीय परिचय कराती है। दक्षिण भारत और उत्तर भारत के बीच जो कई तरह की दूरी और अपरिचय लंबे समय से रहा है, उसे यह किताब दूर करने की कोशिश करती है। और इसमें उसे काफ़ी हद तक क़ामयाबी मिली है। मलयालम या अंगरेज़ी में इस तरह की किताब है या नहीं, मुझे नहीं मालूम, लेकिन हिंदी में इस तरह की यह शायद पहली किताब है, जो केरल के दलित साहित्य (मलयालम) और दलित व वामपंथी/कम्युनिस्ट आंदोलन के बारे में इतनी सघन जानकारी देती है।

388 पन्नों की यह गहन शोधपरक किताब छोटे-छोटे वाक्य विन्यासों और सहज-सुबोध भाषा शैली के कारण पठनीय, सुगम्य व दिलचस्प बन गयी है। आम तौर पर ऐसी किताबें रूखी-सूखी होती हैं, उन्हें पढ़ने के लिए अच्छी-ख़ासी मशक्कत करनी पड़ती है। लेकिन बजरंग बिहारी तिवारी की किताब इससे ठीक उलट नज़ारा पेश करती है, और हमारी जानकारी व संवेदना का विस्तार करती है।

लेखक ने इस किताब के लिए इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीतिशास्त्र व अर्थशास्त्र के विभिन्न ग्रंथों से तथ्यों को जुटाया है। 1800 से 2010 की अवधि के बीच क़रीब 200 वर्षों के केरल के सामाजिक-सांस्कृतिक-राजनीतिक घटनाक्रम का 26 अध्यायों में विश्लेषण किया गया है—ऐतिहासिक पृष्ठभूमि के साथ। किताब के अंत में संदर्भ व टिप्पणियां, शब्द अनुक्रमणिका (इंडेक्स) व संदर्भ सूची दी गयी है, जो 77 पन्नों में फैली है।

उत्तर भारत की हिंदी-उर्दू पट्टी में दक्षिण भारत के समाज, संस्कृति व राजनीति के बारे में आम तौर पर बहुत कम जानकारी और गहरी उदासीनता रही है। इसके पीछे कई ऐतिहासिक व सामाजिक कारण रहे हैं। इन कारणों पर हम न भी जायें, तो भी यह सही है कि दक्षिण भारत को लेकर हमारे दिमाग़ में पहले से बने-बनाये आग्रह व धारणाएं रही हैं। ‘केरल में सामाजिक आंदोलन और दलित साहित्य’ किताब ऐसे आग्रह-दुराग्रह व धारणाओं को तोड़ती है।

इस संदर्भ में बजरंग बिहारी तिवारी ने हिंदी लेखक व विद्वान राहुल सांकृत्यायन (1893-1963) की ‘नयी खोज’ कर डाली है, जिस पर ध्यान दिया जाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण जानकारी मुझे इस किताब से ही मिली। किताब के दूसरे अध्याय ‘केरल में दास प्रथा’ की शुरुआत करते हुए बजरंग लिखते हैः ‘केरल की सामाजिक संरचना और जाति-जनित क्रूरता का हिंदी में पहला उल्लेख संभवतः राहुल सांकृत्यायन ने किया है।’ इस सिलसिले में उन्होंने राहुल की किताब ‘हिंदी काव्यधारा’ का ज़िक्र किया है, जो 1945 में किताब महल, इलाहाबाद से छपी थी। (इस किताब का नाम मैंने पहली बार सुना है।)

राहुल सांकृत्यायन ‘हिंदी काव्यधारा’ की भूमिका (‘अवतरणिका’) में लिखते हैं: ‘बहुत-सी नीच कही जानेवाली जातियों के प्रति तो ब्राह्मणों की व्यवस्था बहुत क्रूर थी। कितनी क्रूर थी, इसका अंदाज़ा कुछ-कुछ आपको लग सकता है, यदि परम अद्वैतवादी शंकराचार्य की जन्मभूमि मलबार के पंचमों की बीसवीं शताब्दी की अवस्था का आपको थोड़ा-सा परिचय हो। उस युग के नगरों की बहुत-सी सड़कें उनके लिए वर्जित थीं। कितनी ही सड़कों पर थूकने के लिए उन्हें अपने साथ पुरवा रखना पड़ता था...’ यह थी तब के केरल की सामाजिक संरचना और जाति-जनित क्रूरता, जिसके प्रति राहुल नफ़रत से भरे हुए हैं! राहुल के इस पहलू से हमारा परिचय कराने का श्रेय बजरंग को जाता है।

केरल में दास प्रथा (स्लेवरी) का मुख्य कारण था, मनुस्मृति-आधारित हिंदू जाति व्यवस्था/वर्ण व्यवस्था, जो सामंती-ब्राह्मणवादी भूमि संबंध पर टिकी थी। यह भूमि संबंध या ज़मीन पर मालिकाना पूरी तरह से प्रभुत्वशाली वर्ग (मुख्यतः ब्राह्मण समुदाय) के पक्ष में था। दास प्रथा के क्रूरतम साक्ष्य इस किताब में मौजूद हैं। ग़ुलामों की मंडियां लगती थीं, जिनमें औरतों-मर्दों-बच्चों की ख़रीद-फ़रोख़्त होती थी, उन्हें कोड़ों से पीटा जाता था और जंजीरों से बांध कर रखा जाता था। मालिक उनकी हत्या भी कर सकता था। उस दौर में केरल में ‘स्तन टैक्स’ भी लगता था। हिंदू जाति व्यवस्था/वर्ण व्यवस्था के यह अत्यंत घृणित रूप थे।

ऐसे केरल को नया, आधुनिक केरल बनाने में ‘केरल रेनेसां’ (केरल का नवजागरण आंदोलन), दलित आंदोलन और कम्युनिस्ट आंदोलन का बड़ा भारी रोल रहा। लंबे समय तक चले सामाजिक-राजनीतिक आंदोलन की बदौलत केरल में दास प्रथा का अंत हुआ, और दास/ग़ुलाम जातियां आगे चलकर हरिजन या दलित कहलायीं, जिन्हें बाद में अनुसूचित जाति का दर्जा मिला। इस सामाजिक उथल-पुथल के दौर में मलयालम दलित साहित्य ने—जिसमें दलित स्त्री स्वर की अपनी स्वतंत्र पहचान थी—परिवर्तनकारी भूमिका निभायी। इस सिलसिले में यह किताब पर्याप्त जानकारी मुहैया कराती है।

इस किताब में एक बात मुझे बहुत खटकी, जिस पर चर्चा करना ज़रूरी है। वह है, 18-वीं शताब्दी के मैसूर के शासक टीपू सुलतान (1750-1799) के बारे में अभद्र व असंयत भाषा का प्रयोग (पेज 42-43). ब्रिटिश उपनिवेशवाद-विरोधी महान योद्धा टीपू सुलतान को बजरंग ने ‘कट्टर मुस्लिम राजा’ और ‘क्रूर’ बताया है, और लिखा है कि 1799 में ‘युद्ध करता हुआ टीपू सुलतान मारा गया’। इसे इस तरह भी लिखा जा सकता था कि ‘युद्ध करते हुए टीपू सुलतान मारे गये’।

हिंदी लेखकों में आम तौर पर यह प्रवृत्ति दिखायी पड़ती है कि मुस्लिम राजाओं के लिए वे ‘मारा गया’ और ‘था’- जैसे अनादरसूचक क्रिया पदों का इस्तेमाल करते हैं, जबकि हिंदू राजाओं के लिए वे ‘मारे गये’ और ‘थे’- जैसे आदरसूचक क्रिया पदों का इस्तेमाल करते हैं—औरंगजेब उनके लिए हमेशा ‘था’ हुआ करता है, जबकि शिवाजी हमेशा ‘थे’ हुआ करता है। जहां तक टीपू सुलतान के ‘कट्टर क्रूर मुस्लिम राजा’ होने की बात है, यह पूरी तरह से हिंदू राष्ट्रवादी संघी परिकल्पना है, जिसका ऐतिहासिक तथ्यों से कोई लेना-देना नहीं। किसी हिंदू राजा के लिए ‘कट्टर हिंदू राजा’ लिखा गया हो, मुझे याद नहीं आता।

(लेखक वरिष्ठ कवि व राजनीतिक विश्लेषक हैं। विचार व्यक्तिगत हैं।)

Kerala
Dalit-communist movement
Hindutva
sanghi

Related Stories

डिजीपब पत्रकार और फ़ैक्ट चेकर ज़ुबैर के साथ आया, यूपी पुलिस की FIR की निंदा

ओटीटी से जगी थी आशा, लेकिन यह छोटे फिल्मकारों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतरा: गिरीश कसारावल्ली

ज्ञानवापी कांड एडीएम जबलपुर की याद क्यों दिलाता है

कोरोना अपडेट: केरल, महाराष्ट्र और दिल्ली में फिर से बढ़ रहा कोरोना का ख़तरा

मनोज मुंतशिर ने फिर उगला मुसलमानों के ख़िलाफ़ ज़हर, ट्विटर पर पोस्ट किया 'भाषण'

क्या ज्ञानवापी के बाद ख़त्म हो जाएगा मंदिर-मस्जिद का विवाद?

बीमार लालू फिर निशाने पर क्यों, दो दलित प्रोफेसरों पर हिन्दुत्व का कोप

बिहार पीयूसीएल: ‘मस्जिद के ऊपर भगवा झंडा फहराने के लिए हिंदुत्व की ताकतें ज़िम्मेदार’

इतवार की कविता: वक़्त है फ़ैसलाकुन होने का 

दलितों में वे भी शामिल हैं जो जाति के बावजूद असमानता का विरोध करते हैं : मार्टिन मैकवान


बाकी खबरें

  • covid
    न्यूज़क्लिक टीम
    कोरोना अपडेट: देश में 24 घंटों में कोरोना के 2,539 नए मामले, 60 मरीज़ों की मौत
    17 Mar 2022
    देश में एक्टिव मामलों की संख्या घटकर 30 हज़ार 799 हो गयी है।
  • सोनिया यादव
    परदे से आज़ादी-परदे की आज़ादी: धर्म और शिक्षा से आगे चला गया है हिजाब का सवाल
    17 Mar 2022
    कई सामाजिक और नागरिक संगठन हिजाब के हिमायती नहीं हैं लेकिन वो इसे जबरन उतरवाने के ख़िलाफ़ हैं। उन्हें डर है कि इसके चलते कहीं मुस्लिम लड़कियां शिक्षा से दूर न हो जाएं और शायद यही वजह है कि विरोध में…
  • kashmir
    न्यूज़क्लिक टीम
    कश्मीर में अलगाव-उग्रवाद और कश्मीरी पंडित के पलायन का सच
    16 Mar 2022
    इन दिनों अचानक कश्मीर के सच का एक नया आख्यान पेश किया जा रहा है। इस बेहद विवादास्पद आख्यान को कश्मीर का एकमात्र ऐतिहासिक सच साबित करने की कोशिश हो रही है। कश्मीर को ध्रुवीकरण की राजनीति का मुद्दा…
  • bhagwant mann
    न्यूज़क्लिक टीम
    क्या आम आदमी पार्टी राष्ट्रीय स्तर पर देगी मोदी सरकार को चुनौती?
    16 Mar 2022
    बोल के लब आज़ाद हैं तेरे के इस अंक में आज अभिसार शर्मा बात कर रहे हैं पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के शपथ ग्रहण समारोह की, और चर्चा कर रहे हैं की क्या आने वाले दिनों में होने वाले चुनावों में आम…
  • sandeep dixit
    न्यूज़क्लिक टीम
    सब निजी स्वार्थ के लिए काम कर रहे हैं, Congress पार्टी से कोई सरोकार नहीं: संदीप दीक्षित
    16 Mar 2022
    Congress के खस्ता हाल के लिए कौन है ज़िम्मेदार? काँग्रेस का मतलब राहुल गांधी या सोनिया गांधी नहीं। देखिये संदीप दीक्षित के साथ एक ख़ास चर्चा।
  • Load More
सब्सक्राइब करें
हमसे जुडे
हमारे बारे में
हमसे संपर्क करें

CC BY-NC-ND This work is licensed under a Creative Commons Attribution-NonCommercial-NoDerivatives 4.0 International License